Wednesday, 24 April 2024

विश्व का खूबसूरत कस्बा देखना है तो चले आओ मंडावा

दुनियाँ की सबसे बड़ी open art gallery -विश्व का तीसरा खूबसूरत शहर -मरू भूमि का प्रवेश द्वार - सेठसाहूकारों का मंडावा - 


जिसकी ख़ूबसूरती की झलक आप कई फ़िल्मों पीकेबजरंगी भाई जानजब वी मेट 'कच्चे धागे पहेली मे  निहार चुके है


अपने fresco art से सजी हवेलियों -बावड़ियों -बुर्जो -छतरियों - के लिए दुनियाभर में मशहूर है। फ्रेस्को पेंटिंग्स 200 साल पुरानी है, 


लेकिन इनकी चमक आज भी नई जैसी लगती है। 

इन पेंटिंग्स को बनाने में जो रंग इस्तेमाल किए जाते थे, वे शुद्ध प्राकृतिक हुआ करते थे।


 Travel magazine के अनुसार खूबसूरती में  स्पेन का अलबरैशिन कस्बा पहले नंबर पर  है,  


जबकि राजस्थान के झुंझुनूं जिले का मंडावा तीसवें नंबर है।


खास बात यह है कि पूरे भारत में केवल मंडावा को ही यह दर्जा मिला है



मंडावा मे घूमने का बेस्ट टाइम है सर्दियों का मौसम -nearest रेलवे स्टेशन है झुंझुनू ३० किलोमीटर  -जहाँ से आप बस टैक्सी से यहाँ पहुँच सकते है -airport है जयपुर 182 किलोमीटर



मंडावा आइए यहां गोबर से लेपी हुई झोपड़ियां भी हैं और फाइव जैसी सुविधा वाले होटल भी.

यहां के कलात्मक भवन, और हवेलियां  ,किसी ने किसी रूप से इतिहास से जुड़े हैं.

मंडावा जहाँ विदेशी महिलाये राजस्थानी लोगो के साथ सफ़ेद वस्त्र पहने होली के रंगो से खेलते हुए भारतीय संस्कृति को करीब से महसूस करती है

शेखावाटी इलाके के इस गांव को राजस्थान की फिल्म सिटी भी कहा जाता है  


इतिहासकारों के मुताबिक मंडावा में राजपूतों ने संवत 1812 में शासन करना शुरू किया था. इससे पहले यह छोटा सा गांव था जो झुंझुनूं नवाब के अधीन था. 



बताया
 जाता है कि इससे पहले यहां मांडू जाट आकर बसा थाइसलिए इसे पहले मांडूवास कहकर पुकारते थे.


कालांतर में यह परिवर्तित होता हुआ मांडुवा तथा मंडवा और अंत में मंडावा कहलाया. इस स्थान पर मांडू जाट ने एक कच्चा कुआं बनवाया था. 



बाद
 
में उसे पक्का करवाया गयावह कुआं आज भी मंडावा कस्बे के 
हनुमान मंदिर के पास गली में मौजूद है.



मंडावा
पुराने सिल्क रूट पर पड़ने वाला मुख्य व्यापारिक केंद्र था, इसलिए यहां के व्यापारी खूब फलेफूले।


 
कालांतर में उनके पास इतना पैसा  गया कि उन्हें इस छोटे से कस्बे में रहना अप्रासंगिक लगने लगा और वे मुंबईदिल्लीसूरतकोलकाता जैसे बड़े व्यापारिक नगरों की ओर चले गए।

अब इन हवेलियों के मालिक किसी मांगलिक अवसर पर अपने कुलदेवता की पूजा-अर्चना करने हवेलियों में लौटते हैं, बाकी समय ये हवेलियां लगभग वीरान रहती हैं।


चिडावा। वहां का पेड़ा भी बहुत मशहूर है










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