Thursday 26 September 2019

मणिमहेश की यात्रा -हिमाचल प्रदेश

धरती के  सबसे भयानक रास्तों मैं  एक है मणिमहेश  का  रास्ता -भयानक मोड, उफनती पहाड़ी नदियों को पार करना, पदयात्रा के मार्ग से जाना, पत्थरीले रास्तों से गुजरना -रावी नदी के  किनारे ,खतरनाक पहाड़ी सड़कों के ज़रिये तंग रास्ते पर ड्राइव करना  -मौत जैसे बस कुछ ही पलों की दूरी पर खड़ी हो -विशाल हिमालय पर्वतों  की  दरकती चट्टानें  -  - मौत के इस खौफ से  जरा सा  भयभीत तो करती  है परन्तु भगवान शिव के प्रति श्रदा -हरी भरी वादियों के बीच मैं बहते झरने ,खूबसूरत अनुभवों, बादलों की अठखेलियाँ -खौफ को पीछे धकेल देती है -प्राकृति से घिरे मनमोहक  वातावरण के साथ ,बारीक़ नक्काशीदार मंदिर जिनकी वास्तुकला विविध प्रकार की है  जो प्रसिद्ध और कुछ अप्रसिद्ध सी मिथकीय कथाओं से संबंधित है का नज़्ज़ारा  मन से डर को दूर निकाल फेंकता है 





मणिमहेश झील ---हिमाचल प्रदेश -भरमौर से 26 किलोमीटर दूर बुधिल घाटी में स्थित है मणिमहेश शब्दों के मेल से बना है – मणि- एक आभूषण, महेश- भगवान शिव -- अर्थात -भगवान शिव के मुकुट मे सजी हुई मणि 

मणिमहेश झील हिमाचल प्रदेश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है तथा 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मणिमहेश विभिन्न मार्गों से आता है। लाहौल-स्पीति के तीर्थयात्री कुगती पास से होकर आते हैं। कांगड़ा और मंडी में से कुछ क्वारसी या जलसू पास से होकर आते हैं। सबसे आसान मार्ग चंबा से है और भरमौर से होकर जाता है। वर्तमान में भरमौर से हड़सर तक बसें चलती हैं। भरमौर से लगभग 17 किलोमीटर दूर सड़क पर अंतिम गाँव हडसर है हडसर से सड़क समाप्त होती है और पैदल मार्ग से मणिमहेश झील और कुगती दर्रा की यात्रा शुरू होती है। यह बुधिल नदी और मणिमहेश झील से बहने वाली एक धारा के संगम पर स्थित है 

हड़सर से तीर्थयात्रियों को मणिमहेश तक पहुंचने के लिए 13 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। धनछो एक महत्वपूर्ण पड़ाव है जहाँ तीर्थयात्री आमतौर पर एक रात बिताते हैं। यहाँ एक सुंदर झरना है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार ,भादों के महीने में चंद्र पक्ष के आठवें दिन, इस झील में एक मेला लगता है इसे 'मणिमहेश यात्रा' के रूप में जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने इसे राज्य स्तरीय तीर्थस्थल घोषित किया है।



हिमाचल के खूबसूरत छोटे से पुरातन कसबे भरमौर की ख़ूबसूरती , प्राकृतिक सौन्दर्य के बारे वर्णन करना कवियों के लिए भी मुश्किल भरा काम है मैं तो लिखने की कला से अनजान हूँ  सेबों से लदे पेड़, पड़री पर चरति भेड़े , सर को छू कर निकल जाते बादल , परम्परिक वेशभूषा मैं नाचते गद्दी ,हरे भरे पहाड़ , बर्फ की ढकी चोटिया ,तंग घुमावदार रास्ते , पहाड़ का सीना पहाड़ कर निकलते झरने  और मुस्करा कर स्वागत करते हिमाचली - आप की यादो मैं हमेशा के लिए अमिट छाप छोड़ देंगे

भरमौर मणिमहेश के समीप अधिक दर्शनीय स्थल

भरमनी माता मंदिर ,चौरासी मंदिर भरमौर,बन्नी माता मंदिर ,छतराड़ी ,लामा डल ,हडसर



भरमौर का प्रसीद चौरासी मंदिर

मणिमहेश की जातर (जातर स्थानीय भाषा मैं यात्रा के लिए प्रयोग होता है ) कृष्ण जन्माष्टमी से शुरू होती है -चम्बा से आगे भरमौर से यह यात्रा शुरू होती है - यह गद्दी समुदाय के लोगो के लिए उत्सव है - भरमौर एरिया के सभी लोग चाहे किसी भी जाती के हो गद्दी ही कहलाते है - उनका मुख्या काम भेड़  , बकरी पालना है -भरमौर के प्रसीद चौरासी मंदिर से यह यात्रा शुरू होती है -




प्राचीन शिवलिंग के दर्शन


चौरासी मंदिर शिखर वास्तुशैली लगभग 1400 वर्ष पुराना मंदिर है यह मंदिर शिव और शक्ति को समर्पित है।

इस मंदिर किसने और कब बनाया इस विषय में कोई ठोस प्रमाण नही हैं। लेकिन इस मंदिर के टूटे हुए सीढियों जीर्णोद्धार चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में कराया था।

चौरासी मंदिर भरमौर यह लगभग 1400 वर्ष पुराना है। चौरासी मंदिर परिसर में 84 बड़े और छोटे मंदिर हैं।जिनके कारण इसका नाम चौरासी मंदिर पड़ा। इनके बीच  शिखर शैली में बना मणिमहेश मंदिर है।माना जाता है कि भरमौर के राजा सहिल वर्मन ने मंदिर का निर्मान 84 सिद्धकों के नाम पर करवाया था। यह योगीजन कुरुक्षेत्र से आए थे और मणिमहेश झील मणिमहेश कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए जा रहे थे। रास्ते में वे भरमौर में रुके और वहाँ साधना करी।

भरमौर को पहले ब्रह्मपुर कहा जाता था। इसे 'शिवभूमि' के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यहाँ भगवान शिव को समर्पित 100 से भी अधिक मंदिर है।


राजा मेरूवर्मन ने भरमौर में मणिमहेश मंदिर, लक्षणा देवी मंदिर, नरसिंह और गणेश मंदिर का निर्माण करवाया। इसके अलावा छतराड़ी में भी शक्ति देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। चौरासी मंदिर परिसर में प्रमुख मंदिर हैं मणिमहेश मंदिर, गणेश मंदिर, लक्ष्मण देवी मंदिर, स्वामी कार्तिक मंदिर, माँ चामुंडा मंदिर, हनुमान मंदिर, माँ शीतला मंदिर, धर्मेश्वर महादेव मंदिर, नंदी मंदिर, जय कृष्ण गिरिजी मंदिर, नर सिंह मंदिर, अर्ध मंदिर गंगा, त्रेश्वर महादेव, सूर्य लिंग महादेव और कुबेर लिंग महादेव।


चौरासी मंदिर परिसर भरमौर के ऐतिहासिक देवदार के वृक्ष पर झंडा चढ़ने के साथ सात दिवसीय स्थानीय जातर मेले का शुभारंभ हो गया। मेले का आयोजन हर वर्ष ग्राम पंचायत भरमौर द्वारा किया जाता है। मंदिर प्रांगण में सात दिनों तक चलने वाले मेले यहां विराजमान विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं। पहली जातर नर सिंह भगवान को समर्पित होती है। दूसरी शिव भोलेनाथ भगवान को, तीसरी लखना माता, चौथी गणेश, पांचवीं कार्तिकेय भगवान, छठी शीतला माता, सातवीं बाबा जय कृष्ण गिरि तथा आठवीं जातर दंगल के रूप में हनुमान जी को समर्पित होती है। जिस दिन जिस देवता की जातर होती है, उस रात उसी देवता के मंदिर में जगराता होता है। सदियों से मनाई जा रही यह परंपरा जन्माष्टमी के बाद ऐतिहासिक देवदार के वृक्ष पर झंडा चढ़ाने के बाद शुरू होती है।

                                                  नरसिंघा भगवान् के दर्शन 


 वास्तुकला के अनुसार यह एक दुर्लभ मूर्ति है इसमें नरसिंघा को हिमाचल के प्राचीन गहनों से सजाया गया है 

                                                         
                                                  माँ लक्षणा देवी का मंदिर 

लखना देवी का मंदिर चौरासी मंदिर का सबसे पुराना मंदिर है। इसे आयताकार योजना पर बनाया गया है और अगर इसे बाहर से देखा जाए तो यह एक मामूली झोंपड़ी है, जिसमें मलबे और मिट्टी की दीवारें हैं। मंदिर लक्ष्णा देवी की अष्टधातु छवि को दर्शाता है।



 सातवीं शताब्दी मैं लकड़ी से बनाया गया माँ लक्षणा देवी का मंदिर  इसमें लकड़ी की कारीगरी के काम की झलक आप को मंत्रमुग्ध कर देगी







भगवान गणेश मंदिर चौरासी मंदिर के प्रवेश द्वार के पास स्थित है।


                                                             माँ भरमाणी के दर्शन 
उससे पहले माँ ब्रम्हाणी यहाँ की स्थानीय देवी की पूजा की जाती है - यात्रा के  दिन भरमौर से 8 किलोमीटर दूर हड़सर  तक जाया जाता है -वहां पूरी रात भजन गए जाते है - 


 भरमाणी माता पारवती जी का ही रूप मणि जाती है मणिमहेश जाने वाले यात्रिओं के लिए प्रथम दर्शन यही से किये जाते है

भरमौर की पहाड़ियों के एक छोर पर डूग्गा सार नामक स्थान पर, समुद्रतल से 9 हजार फीट की ऊंचाई पर मां भरमाणी माता का पवित्र धाम है  ब्रह्मा जी की पुत्री ब्रह्माणी  ---

माता ब्राह्मणी मंदिर के दर्शनार्थ के लिए लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।

माता ब्रह्माणी के नाम पर ही ब्रह्मपुर यानी भरमौर की स्थापना हुई थी। माता ब्रह्माणी भरमौर वासियों की कुलदेवी हैं
पवित्र जल कुंड

ब्राह्मणी की गुफा से यह कुंड़ नीचे हैं। यह कुंड लगभग 4 * 4 मीटर का हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी ब्राह्मणी ने भगवान संधोल नाग से यह पवित्र पानी चुराया था, जो कि पहाड़ी का दूसरा हिस्सा हैं। गुफा के नीचे से सात जल धाराएँ आ रही हैं जो वर्तमान गुफा के नीचे से सात जल धाराएँ आ रही हैं



माता ब्राह्मणी यहां स्थित एक विशालकाय देवदार वृक्ष के समीप तपस्या किया करती थीं एक दिन स्वयं भगवान भोलेनाथ अपने 84 सिद्धों के साथ आए और इस स्थान पर एक रात बिताने के लिए यहां रुक गए। माता ब्रह्माणी जब भ्रमण के बाद यहां लौटीं तो यहां विराजमान 84 सिद्धों को देखकर क्रोधित हो उठीं। भगवान भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुए माता ब्रह्माणी से कहा कि अब यह स्थान चौरासी धाम के नाम से प्रख्यात होगा और आप किसी दूसरी जगह पर चली जाएं।


उन्होंने माता ब्रह्माणी को वरदान दिया कि आज के बाद जो भी भक्त मेरे दर्शन के लिए चौरासी धाम या मणिमहेश यात्रा के लिए आएगा वह सबसे पहले माता ब्रह्माणी के दर्शन करेगा तभी उसकी यात्रा सम्पूर्ण मानी जाएगी। भोलेनाथ के इस वचन के साथ माता ब्रह्माणी डूग्गा सार नामक स्थान पर चली गईं।  



मणिमहेश जाने वाले यात्रिओं के लिए प्रथम दर्शन यही से किये जाते है




पवित्र जल कुंड जहाँ स्नान किया जाता है



चौरासी मंदिर के प्रांगण के अन्य मंदिर-यमराज का मंदिर


धर्मराज महाराज या मौत के देवता का मंदिर है। इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में धर्मराज की कचहरी कहा जाता है। धर्मराज मंदिर के भीतर अढ़ाई सौ साल से अखंड धूना भी लगातार जल रहा है।मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है, तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं





यहां पर अढ़ाई पौढ़ी भी है। मान्यता है कि अप्राकृतिक मौत होने पर यहां पर प‍िंड दान किए जाते है।

चौरासी मंदिर 

यह देवदार का पेड़ जिसकी ऊँचाई 128 फ़ुट है, चौड़ाई लगभग 24 फ़ुट है।





घणछो

अगले दिन छे किलोमीटर दूर घणछो नामक जगह पर रूकते है - रास्ता बहुत ही कठिन है - परन्तु पास मैं बहती नदी आप को तरोताजा रखती है -रस्ते मैं गिरने वाले पहाड़ आप की मुसीबत  और बड़ा देते है - परन्तु जगह जगह पर श्रदालु  लंगर लगा कर बैठे है - वो हर संभव मदद  करते है -

 

                                  बन्दर घाटी      भैरव घाटी

उसके बाद शुरू होती है बन्दर घाटी - फिर आती है भैरव घाटी -और फिर मिलती है कुदरत की अनोखी तस्वीर - कैलाश पर्वत के बीच नदी के किनारे एक छोटी सी झील जिसे गोरी कुंड  कहा जाता है जहाँ यात्री स्नान करते है




गोरी कुंड


मणिमहेश यात्रा - कैलाश के चरणों मैं गोरी कुंड

मणिमहेश झील से लगभग डेढ़ किलोमीटर पहले गौरी कुंड हैं महिला तीर्थयात्री गौरी कुंड में पवित्र डुबकी लगाती हैं और पुरुष तीर्थयात्री शिव कुंड में डुबकी लगाते हैं।



गोरी कुंड के पास स्थानीय ग्राम देवी के दर्शन


थकान दूर करने को खूबसूरत झरना 
परन्तु नहाने की कोशिश न करे - कही यह आप की जिंदगी का आखिरी स्नान न बन जाये क्योंकि पानी का बहाव बहुत तेज़ है



स्थानीय लोगों का मानना है कि पूर्णिमा की रातों में , मणि से परावर्तित चंद्रमा की किरणों को मणिमहेश झील से देखा जा सकता है।


वास्तव में ग्लेशियर से परावर्तित प्रकाश,  शिखर को सुशोभित करता है, जो पहाड़ के सिर पर एक चमकदार मणि जैसा दिखता है।



यहाँ तक हेलीकाप्टर से भी जाया जा सकता है - इस झील से दो किलोमीटर ऊपर प्रमुख झील है शिव कुंड -  कैलाश पर्वत के दर्शन किये जाते है 


बन्नी माता मंदिर ---बन्नी माता मंदिर, जिसे महाकाली बन्नी माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है इस मंदिर का नाम बन्नी इसलिए रखा गया है क्योंकि इस जगह पर बहुत सारे बन  या ओक के पेड़ हैं। यह टुंडाह गांव के पास है और मणिमहेश चोटी के बिल्कुल सामने है।


लामा डल ---नौ छोटी झीलों के समूह को लामा डल के रूप में जाना जाता है, जो निर्जन पहाड़ी में स्थित है और एक मनोरम दृश्य प्रदान करता है। सात झीलें अंडाकार आकार की हैं, जिनकी परिधि 3 किलोमीटर है। चंदर झील डेढ़ किलोमीटर ऊपर है। फिर उसी दूरी पर नाग झील है। यह चंबा-भरमौर मार्ग के रास्ते पर 27 किलोमीटर की दूरी पर धारबाला से पहुँचा जा सकता है। यह माना जाता है कि भगवान शिव ने पहले यहां निवास करने का फैसला किया था, लेकिन देवी महा काली न मानी और भगवान शिव को निवास कैलाश शिखर पर स्थानांतरित करना पड़ा




यहाँ के मंदिर अद्वितीय पहाड़ी शैली में बनाए गए है  लेकिन वहाँ पर मौजूद कुछ मूर्तियों की आकृतियाँ बहुत ही सामान्य सी थीं और कुछ अन्य शैलियों से संबंधित थीं, हिमाचल प्रदेश के सभी मंदिरों में मैंने हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म का एक बहुत ही अनोखा और सुंदर मिलन देखा। ये दोनों धर्म यहाँ पर एक ही श्रद्धाभाव के स्वरूप में वास करते हैं।








श्री खाटू श्याम जी

  निशान यात्रा में झूमते   भक् ‍ त - भगवान खाटू श्याम की जयकार करते हुए तंग गलियों से गुजरते हुए आनंद मे खो जाते है   और ...