1921 में लाला मेला राम सूद द्वारा निर्मित, पुर्तगाली,
मुगल, राजस्थानी और कांगड़ी वास्तुकला में निर्मित एक रिसॉर्ट है। 2012 में, उनके परपोते, अमीश सूद और पोते, यतीश
सी ने नवीनीकरण का काम शुरू किया।
खूबसूरत नीले और लाल बेल्जियन झूमर, एक
ग्रामोफोन और एक बड़ा लकड़ी का रेडियो, लाल, नीले, हरे और पीले रंग की खिड़कियों बीते
जमाने के खजाने की याद दिलाएगा। शाही रसोई में हिमाचल के व्यंजनों का ,ब्यास
नदी के किनारे कुरकुरी तली हुई मछली का , स्विमिंग पूल में खाना और शराब परोसने का आनंद ले
मेरा अनुभव
गरली के दोनों होटल के प्रबंधक बहुत अच्छे थे --नौरंग यात्री निवास के मालिक से मेरी बात हुई -वो बहुत ही सलीक़े से पेश आये - और उनके स्टाफ ने वेलकम ड्रिंक भी पेश की - दुसरे हेरिटेज होटल ने हमें कॉफ़ी पिलाई एवं पूरा होटल घुमाया - साथ मे लंच तक रुकने की गुजारिश भी की -ताकि वो हमें हिमाचली व्यंजन खिला सके -
गरली में लाल रंग की ईंट से निर्मित नौरंग यात्री निवास स्थित राय बहादुर मोहन लाल द्वारा अपनी बेटी हेमा की शादी में शामिल, पंजाब
के तत्कालीन उपराज्यपाल को ठहरने के
लिए बनाया गया था 2012 में पोते, अतुल और उनकी पत्नी इरा ने इमारत के
जीर्णोद्धार का काम शुरू किया।
परागपुर हिमाचल की कांगड़ा घाटी में
स्थित भारत का पहला गांव है जिसे राज्य सरकार की अधिसूचना 9 दिसंबर 1997 अनुसार भारत
की धरोहर घोषित किया गया है
प्रागपुर की स्थापना 16 वीं
शताब्दी के अंत में जसवान शाही परिवार की राजकुमारी प्राग देई की याद में पटियालों
द्वारा की गई थी। प्रागपुर का क्षेत्र जसवान की रियासत का हिस्सा था
जजेज कोर्ट
एंग्लो-इंडियन शैली की वास्तुकला में 1918
में निर्मित - जजेज कोर्ट -एक रिसॉर्ट है। इसके मालिक श्री लाल का 300 साल पुराने पुश्तैनी घर, 1931
में प्रागपुर के एक रईस द्वारा निर्मित, लाला रेरुमल हवेली, बुटेल
मंदिर गांव के बीचोबीच लगभग 200 वर्ष पुराना तालाब है. तालाब को ‘सिटी हार्ट’
नाम से जाना जाता है.
गांव के लोग निराश हैं ग्रामीणों के
अनुसार गरली प्रागपुर के हेरिटेज विलेज बनने से केवल चंद लोगों को फायदा हुआ है.
मेरा खुद यहाँ जाने का अनुभव कड़वा रहा जज कोर्ट का मैनेजर तो निहायत ही अव्यावसायिक
था -वहां पहुंचते ही रिसेप्शन पर ही उसने कह दिया वो और उसका स्टाफ बिजी है -मैं
आपको कुछ भी (नाश्ता) नहीं दे सकता - यहाँ तक की उसने पानी भी नहीं पिलाया
पर्यटकों के लिए चेतावनी
इनका प्रबंध स्थानीय लोग करते है -
प्रोफेशनल नहीं है -
आप को रूम भी ऑनलाइन ही बुक करने है
-वर्ना हो सकता है - लोकल मैनेजर आप को रूम दे ही नहीं -
बिना बुकिंग किये जाने पर - यह लोग बिलकुल भी डील नहीं करते - आप को ब्रेक फ़ास्ट , यहाँ तक की पानी भी नहीं मिलेगा
चिंतपूर्णी मंदिर (19 किमी), ज्वालामुखी
मंदिर (20 किमी)