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नाथ संप्रदाय
भारत में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है। नाथ शब्द का
अर्थ होता है स्वामी। कुछ लोग मानते हैं कि नाग शब्द ही बिगड़कर नाथ हो गया। नाथ
समाज हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। नौ नाथों की परंपरा से 84 नाथ हुए। नौ नाथों के संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं।
भगवान शंकर को आदिनाथ और दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है। इन्हीं
से आगे चलकर नौ नाथ और नौ नाथ से 84 नाथ सिद्धों की
परंपरा शुरू हुई। नाथ संप्रदाय को गुरु मत्स्येंद्रनाथ और उनके शिष्य गोरक्षनाथ
(गोरखनाथ) ने पहली दफे व्यवस्था दी। इतिहासवेत्ता मत्स्येन्द्र का समय विक्रम की
आठवीं शताब्दी मानते हैं तथा गोरक्षनाथ दसवीं शताब्दी के पूर्व उत्पन्न कहे जाते
हैं।
1. मत्स्येन्द्र नाथ : नाथ संप्रदाय में आदिनाथ और दत्तात्रेय के बाद सबसे महत्वपूर्ण नाम हठयोग के परम गुरु आचार्य मत्स्येंद्र नाथ का है, जो मीननाथ और मछन्दरनाथ के नाम से लोकप्रिय हुए। मत्स्येन्द्र के गुरु दत्तात्रेय थे। इनकी समाधि उज्जैन के गढ़कालिका के पास स्थित है।
2. गोरखनाथ
-गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को चौरासी सिद्धों में
प्रमुख माना जाता है। गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक
नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ- नाथ साहित्य के आरंभकर्ता माने
जाते हैं। गोरखनाथ से पहले अनेक संप्रदाय थे, जिनका नाथ
संप्रदाय में विलय हो गया। गोरखनाथ ने असम से पेशावर, कश्मीर
से नेपाल और महाराष्ट्र तक की यात्राएं कीं। गोरखनाथ ने काबुल, गांधार, सिंध, बलोचिस्तान,
कच्छ और अन्य देशों मक्का-मदीना तक नाथ परंपरा को विस्तार दिया। उनकी
बनायी गयीं 12 शाखाएं आज भी जीवित हैं जिनमें उडीसा में सत्यनाथ, कच्छ का धर्मनाथ, गंगासागर का कपिलानी, गोरखपुर का रामनाथ, अंबाला का ध्वजनाथ, झेलम का लक्ष्मणनाथ, पुष्कर का बैराग, जोधपुर का माननाथी, गुरूदासपुर का गंगानाथ, बोहर का पागलपंथ समुदाय के अलावा दिनाजपुर के आईपंथ की कमान विमलादेवी
सम्भाले हैं, जबकि रावलपिंडी के रावल या नागनाथ पंथ में
ज्यादातर मुसलमान योगी ही हैं।
कच्छ में--धर्मनाथ पंथ – इनकी संख्या २५ है ।
इस पंथ के मूल प्रवर्तक धर्मराज युधिष्ठिर माने जाते हैं । धर्मनाथ पंथ का मुख्य
पीठ नेपाल राष्ट्र का दुल्लुदेलक स्थान है । भारत में इसका पीठ कच्छ प्रदेश धिनोधर
स्थान पर हैं ।
गोरखपुर
में -- राम पंथ – इनकी संख्या 61 है । इस
पंथ के मूल प्रवर्तक भगवान् श्रीरामचन्द्र माने गये हैं । इनका प्रधान पीठ
उत्तर-प्रदेश का गोरखपुर स्थान है ।
झेलम में-- नाटेश्वरी पंथ अथवा लक्ष्मणनाथ पंथ
– इनकी संख्या 43 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक लक्ष्मणजी माने जाते हैं । इस पंथ
का मुख्य पीठ पंजाब प्रांत का गोरखटिल्ला (झेलम) स्थान है । इस पंथ का सम्बन्ध
दरियानाथ व तुलनाथ पंथ से भी बताया जाता है ।
कंथड़ पंथ – इनकी संख्या 10 है ।
कंथड़ पंथ के मूल प्रवर्तक गणेशजी कहे गये हैं । इसका प्रधान पीठ कच्छ प्रदेश का
मानफरा स्थान है ।
गंगासागर
में---कपिलानी पंथ – इनकी संख्या 26 है ।
इस पंथ को गढ़वाल के राजा अजयपाल ने चलाया । इस पंथ के प्रधान प्रवर्तक कपिल
मुनिजी बताये गये हैं । कपिलानी पंथ का प्रधान पीठ बंगाल प्रदेश का गंगासागर स्थान
है । कलकत्ते (कोलकाता) के पास दमदम गोरखवंशी भी इनका एक मुख्य पीठ है ।
पुष्कर
में---वैराग्य पंथ – इनकी संख्या 124 है
। इस पंथ के मूल प्रवर्तक भर्तृहरिजी हैं । वैराग्य पंथ का प्रधान पीठ राजस्थान
प्रदेश के नागौर में राताढुंढा स्थान है ।इस पंथ का सम्बन्ध भोतंगनाथी पंथ से
बताया जाता है ।
जोधपुर
में---माननाथ पंथ – इनकी संख्या 10 है ।
इस पंथ के मूल प्रवर्तक राजा गोपीचन्द्रजी माने गये हैं । इस समय माननाथ पंथ का
पीठ राजस्थान प्रदेश का जोधपुर महा-मन्दिर नामक स्थान बताया गया है ।
दिनाजपुर
में ---आई पंथ – इनकी संख्या १० है । इस
पंथ की मूल प्रवर्तिका गुरु गोरखनाथ की शिष्या भगवती विमला देवी हैं । आई पंथ का
मुख्य पीठ बंगाल प्रदेश के दिनाजपुर जिले में जोगी गुफा या गोरखकुई नामक स्थान हैं
। इनका एक पीठ हरिद्वार में भी बताया जाता है । इस पंथ का सम्बन्ध घोड़ा चौली से
भी समझा जाता है ।
बोहर में---पागल पंथ – इनकी संख्या 4 है । इस
पंथ के मूल प्रवर्तक श्री चौरंगीनाथ थे । जो पूरन भगत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं ।
इसका मुख्य पीठ पंजाब-हरियाणा का अबोहर स्थान है ।
अंबाला
में-----ध्वजनाथ पंथ – इनकी संख्या 3 है ।
इस पंथ के मूल प्रवर्तक हनुमानजी माने जाते हैं । वर्तमान में इसका मुख्य पीठ
सम्भवतः अम्बाला में है ।
गुरूदासपुर में-----गंगानाथ पंथ – इनकी संख्या 6 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री भीष्म पितामह माने जाते हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब में गुरुदासपुर जिले का जखबार स्थान है ।
कालान्तर में नाथ सम्प्रदाय के इन
बारह पंथों में छह पंथ और जुड़े – रावल (संख्या-७१), पंक (पंख), वन, कंठर
पंथी, गोपाल पंथ तथा हेठ नाथी ।
इस प्रकार कुल बारह-अठारह पंथ कहलाते
हैं । बाद में अनेक पंथ जुड़ते गये, ये सभी उपशाखायें अथवा उप-पंथ है । कुछ के नाम इस प्रकार हैं – अर्द्धनारी,
अमरनाथ, अमापंथी। उदयनाथी, कायिकनाथी, काममज, काषाय,
गैनीनाथ, चर्पटनाथी, तारकनाथी,
निरंजन नाथी, नायरी, पायलनाथी,
पाव पंथ, फिल नाथी, भृंगनाथ
आदि
गुरु गोरखनाथजी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं ने नाम पाया। नेपाल का
गोरखा जिले का नाम भी भी गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही पड़ा। नेपाल की राजमुद्रा पर
श्रीगोरक्षनाथ नाम और राजमुकुटों में उनकी चरणपादुका का चिह्न अंकित है।
गोरखनाथ द्वारा रचित ग्रंथों
गोरखनाथ द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या ४० बताई जाती है किन्तु डा.
बड़्थ्याल ने केवल १४ रचनाएं ही उनके द्वारा रचित मानी है जिसका संकलन ‘गोरखबानी’
मे किया गया है।
1. सबदी 2. पद 3.शिष्यादर्शन
4. प्राण सांकली 5. नरवै बोध 6. आत्मबोध 7. अभय मात्रा जोग 8. पंद्रह तिथि 9. सप्तवार
10. मंछिद्र गोरख बोध 11.
रोमावली12. ग्यान तिलक 13. ग्यान
चैंतीसा 14. पंचमात्रा 15. गोरखगणेश गोष्ठ 16.गोरखदत्त गोष्ठी (ग्यान
दीपबोध) 17.महादेव गोरखगुष्टिउ 18. शिष्ट
पुराण 19. दया बोध 20.जाति भौंरावली (छंद
गोरख) 21. नवग्रह 22. नवरात्र
23 अष्टपारछ्या 24. रह रास 25.ग्यान माला
26.आत्मबोध (2) 27. व्रत 28. निरंजन पुराण 29. गोरख वचन 30. इंद्र देवता 31.मूलगर्भावली 32. खाणीवाणी
33.गोरखसत 34. अष्टमुद्रा 35. चौबीस सिध
36 षडक्षर 37. पंच अग्नि 38 अष्ट चक्र
39 अूक 40. काफिर बोध
5 कृष्णपाद : इनके गुरु जालंदरनाथ थे। कृष्णपाद को कनीफ नाथ भी कहा जाता है।और इनका नाम कण्हपा, कान्हूपा, कानपा आदि प्रसिद्ध है। कोई तो उन्हें कर्णाटक का मानता है और कोई उड़ीसा का। महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में ऊंचे किले पर मढ़ी नामक गांव है । इस किले पर श्री कनीफ नाथ महाराज ने 1710 में फाल्गुन मास की वैद्य पंचमी पर समाधि ली थी
नाथ-साधु हठयोग पर विशेष बल देते है।
इस सम्प्रदाय में कई भाँति के गुरु होते हैं यथाः- चोटी गुरु, चीरा गुरु, मंत्र गुरु, टोपा गुरु आदि।
नवनाथ नाथ सम्प्रदाय के सबसे आदि में नौ मूल नाथ
हुए हैं । वैसे नवनाथों के सम्बन्ध में काफी मतभेद है,
संतोषनाथ – विष्णु, तेज रुप
कंथडीनाथ – गणपति, आकाश रुप
मत्स्येन्द्रनाथ – माया रुप, करुणामय
चौरासी सिद्ध
६॰ श्रंगारिपाद, ७॰ लोहिपाद, ८॰ पुण्यपाद, ९॰ कनकाई, १०॰
तुषकाई, ११॰ कृष्णपाद,
१२॰ गोविन्द नाथ, १३॰ बालगुंदाई, १४॰ वीरवंकनाथ, १५॰ सारंगनाथ, १६॰
बुद्धनाथ,
१७॰ विभाण्डनाथ, १८॰ वनखंडिनाथ, १९॰ मण्डपनाथ, २०॰ भग्नभांडनाथ, २१॰धूर्मनाथ २२॰ गिरिवरनाथ, २३॰ सरस्वतीनाथ, २४॰ प्रभुनाथ, २५॰ पिप्पलनाथ, २६॰
रत्ननाथ,
२७॰ संसारनाथ, २८॰ भगवन्त नाथ, २९॰ उपन्तनाथ,
३०॰ चन्दननाथ, ३१॰ तारानाथ,
३२॰ खार्पूनाथ, ३३॰ खोचरनाथ, ३४॰ छायानाथ,
३५॰ शरभनाथ, ३६॰ नागार्जुननाथ,
३७॰ सिद्ध गोरिया, ३८॰ मनोमहेशनाथ, ३९॰श्रवणनाथ, ४०॰बालकनाथ,४१॰शुद्धनाथ,
४२॰ कायानाथ ४३॰ भावनाथ, ४४॰ पाणिनाथ, ४५॰ वीरनाथ, ४६॰ सवाइनाथ,
४७॰ तुक नाथ, ४८॰ ब्रह्मनाथ, ४९॰ शील नाथ,
५०॰ शिव नाथ, ५१॰ ज्वालानाथ, ५२॰ नागनाथ, ५३॰ गम्भीरनाथ, ५४॰
सुन्दरनाथ, ५५॰ अमृतनाथ, ५६॰
चिड़ियानाथ,
५७॰ गेलारावल, ५८॰ जोगरावल, ५९॰ जगमरावल,
६०॰ पूर्णमल्लनाथ,६१॰ विमलनाथ,
६२॰ मल्लिकानाथ, ६३॰ मल्लिनाथ ।६४॰ रामनाथ,
६५॰ आम्रनाथ, ६६॰ गहिनीनाथ,
६७॰ ज्ञाननाथ, ६८॰ मुक्तानाथ, ६९॰
विरुपाक्षनाथ, ७०॰ रेवणनाथ, ७१॰
अडबंगनाथ,
७२॰ धीरजनाथ, ७३॰ घोड़ीचोली, ७४॰ पृथ्वीनाथ,
७५॰ हंसनाथ, ७६॰ गैबीनाथ,
७७॰ मंजुनाथ, ७८॰ सनकनाथ, ७९॰सनन्दननाथ,
८०॰ सनातननाथ,८१॰सनत्कुमारनाथ,
८२॰ नारदनाथ, ८३॰ नचिकेता, ८४॰ कूर्मनाथ ।
विभिन्न मान्यताएँ
1. गोरक्षनाथ जी के आध्यात्मिक जीवन संबंधित विभिन्न मान्यताएँ हैं। परंतु सभी मान्यताएँ उनके दो गुरूओं आदिनाथ और मत्स्येंद्रनाथ के होने के बारे में एकमत हैं। गोरक्षनाथ जी के अनुयायी इन्हें एक दैवी पुरूष मानते थे, इसीलिये उन्होनें इनके जन्म स्थान तथा समय के बारे में जानकारी देने से हमेशा इन्कार किया।
2 . नाथ संप्रदाय के कुछ संतो का ये भी मानना है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले उनका संप्रदाय अस्तित्व में था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश श्री गोर-नाथ जी के प्रथम शिष्य बने।
इन्हीं से आगे चलकर चौरासी और नवनाथ माने गए जो
निम्न हैं-प्रारम्भिक दस नाथ………
आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल
नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ। इनके बारह शिष्य थे
जो इस क्रम में है- नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ,
अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ,
जालंधरनाथ और मालयार्जुन नाथ।
चौरासी और नौ नाथ परम्परा0
आठवी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के महायान के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन
हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते
थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चैरासी मानी गई है।
नौनाथ गुरु
1.मच्छेंद्रनाथ 2.गोरखनाथ 3.जालंधरनाथ 4.नागेश नाथ 5.भारती
नाथ 6.चर्पटी नाथ 7.कनीफ नाथ 8.गेहनी नाथ 9.रेवन नाथ। इसके अलावा ये भी हैं 1.
आदिनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ
4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.बिरुपक्षनाथ
9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रनाथ। ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ,
गजबेली नाथ, ज्ञान नाथ, चैरंगी
नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ। सम्भव है यह
उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ, दादाधूनी
वाले, गजानन महाराज, गोगा नाथ, पंरीनाथ और साईं बाब को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय
को वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय का माना जाता है, क्योंकि
उनकी भी नाथों में गणना की जाती है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने
जाते हैं।