हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में
स्थित काठगढ़ महादेव का यह मंदिर काफी रहस्यमयी है। दावा है yeh विश्व
का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां दो भागों में बंटा शिवलिंग हैं। पंजाब हिमाचल सीमा पर इंदौरा में काठगढ़ महादेव
का मंदिर स्थित है। यह स्थान मीरथल से तीन किमी, मुकेरियां से 22 किमी पर स्थित है। दो भागों में विभाजित शिवलिंग को अर्द्धनारीश्वर
शिवलिंग कहा जाता है।
अर्द्घनारीश्वर स्वरूप के विषय में जो
कथा पुराणों में दी गयी है उसके अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त
किया तब उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी उनकी संख्या में वृद्घि नहीं
हो रही है। इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए। अपनी चिंता लिये ब्रह्मा जी भगवान
विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा से कहा कि आप शिव जी की आराधना करें
वही कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे। ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू की इससे
शिव जी प्रकट हुए सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी
ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया। इसके बाद नर और नारी भाग अलग हो गये। शिव के
नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से
मिलन किया
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार
ब्रह्मा व विष्णु भगवान के मध्य बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान शिव इस युद्ध
को देख रहे थे। दोनों के युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ
के रूप में प्रकट हुए। इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ स्थित महादेव का
विराजमान शिवलिंग माना जाता है। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है।
यह शिवलिंग अष्टकोणीय है और काले भूरे रंग का है। शिव रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊचांई 7-8 फीट और पार्वती के रूप में अराध्य का हिस्सा 5-6 फुट ऊंचा है। माना जाता है कि मां पार्वती और भगवान शिव के दोनों भागों के बीच का अंतर घटता बढ़ता रहता है। यह अंतर ग्रहों व नक्षत्रों के परिवर्तित होने के अनुसार ही बदलता रहता है।शिवलिंग महाशिवरात्री पर्व के दौरान जुड़ जाता है और शिवरात्रि के बाद इनमें वापस धीरे-धीरे अंतर बढ़ने लगता है। शिवरात्रि के त्योहार पर हर साल मेला भी लगता है।
राजा रणजीत सिंह ने जब गद्दी संभाली तो
पूरे राज्य के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया। वह जब काठगढ़ पहुंचे, तो इतना आनंदित हुए कि उन्होंने शिवलिंग पर
तुरंत सुंदर मंदिर बनवाया, यहां पूजा करके आगे निकले। मंदिर के
पास ही बने कुएं का जल उन्हे इतना पंसद था कि वह हर शुभकार्य के लिए यहीं से जल
मंगवाते थे।
मंदिर कमेटी के प्रधान ने कहा कि 1984 में
बनी मंदिर की प्रबंधकारिणी सभा मंदिर के उत्थान के लिए कार्य करती आ रही है।
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई विकास कार्य किए गए। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या
को देखते हुए कमेटी ने दो लंगर हॉल, दो सराय,
एक भव्य सुंदर पार्क, पेयजल
की व्यवस्था तथा सुलभ शौचालयों का निर्माण करवाया है।