गांव स्वांखा स्थित ऐतिहासिक स्थल बाबा सिद्ध गोरिया नाथ जी का प्रसीद मंदिर है भगत परिसर मैं स्थित पवित्र सरोवर में स्नान कर सरोवर के मध्य स्थित मंदिर में बाबा जी की समाधि पर माथा टेक और पूजा-अर्चना कर सुख स्मृद्धि की कामना करते है
यह मंदिर विजय नगर जम्मू के पास है - नाथ सम्प्रदाय से सम्बंदित यह मंदिर कई जातियों के लिए पूजनीय सथल है
धूणा
मुख्या प्रवेश द्वार
लोग अपने बच्चो की सुख समृद्धि की कामना ले कर आते है
सरोवर मैं बना मंदिर
बाबा सुरगल जी--नाग देवता की बर्मी
12
वीं शताब्दी में विक्रम देव जम्मू राज्य पर शासन करते थे राज्य में पीने के पानी की भारी कमी थी। राजा विक्रम देव ने एक कुआं खोदने का आदेश दिया
और 150 फीट गहरी खुदाई के बाद पानी का कोई निशान नहीं मिला। पंडितों ने राजा को काले रंग के ब्राह्मण लड़के
की बलि का सुझाव दिया
सैनिक
एक लड़के मिला जिसका नाम "वीरू" था सैनिकों ने उनके परिवार का विवरण पूछा। उसके पिता का नाम "लड्डा" और माता का
नाम "यमुना" था । उन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता को पैसे की जरूरत है सैनिक वीरू के घर गए और उनके बेटे को बेचने के
लिए चर्चा की। लड्ढा ने अपने बेटे को उसके वजन के
बराबर पैसा बेचा।
वीरू
राजा के सामने लाया राजा ने कहा आपको इस कुएं में पानी के लिए कुर्बानी देनी
है" वीरू ने राजा को कहा कि अगर पानी बिना किसी बलिदान के उपलब्ध कराया जा सकता है वीरू गुरु गोरख नाथ जी के शिष्य थे - वीरू ध्यान मे बैठ गए -गुरु गोरख नाथ जी ने वीरू को अपनी उंगली से एक बूंद
खून डालने का आदेश दिया। खून डालने से सूखा कुआं पानी से भर जाता है। इस चमत्कार
को देखकर सभी लोग खुश हो गए लेकिन वीरू ने राजा को " श्राप " दिया कि कोई भी इस कुएं का पानी पिएगा
तो उसे त्वचा रोग होगा राजा ने राज्य छोड़ दिया और दिल्ली चले गए जहाँ उन्होंने राजा
"जल्लादुद्दीन" के अधीन सेवा शुरू की। राजा विक्रम देव को जल्लालुद्दीन की बेटी से प्यार हो गया। कुछ समय बीतने के बाद वह
गर्भवती हो गई। जल्लालुद्दीन इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सके। जल्लालुदीन ने अपनी बेटी को जंगल में जिंदा
दफनाने का आदेश दिया राजा विक्रम देव को जलालुद्दीन के सैनिकों ने मार डाला I गर्भवती की कबर मैं ही एक बालक का जन्म हुआ
एक दिन कुछ लोग जंगल में प्रार्थना कर रहे थे, उन्होंने देखा कि एक बच्चा जमीन
पर खेल रहा है, उन्होंने उस लड़के को देखा राजा के दरबार में
ले आए।
राजा ने लड़के का नाम "गोरिया" घोषित किया गुरु गोरख नाथ जी ने उन्हें शिष्य के रूप में
स्वीकार किया- बाबा सुरगल जी ने भी गुरु गोरक्ष नाथ जी के कहने
पर स्वांखा ज़ाकर बाबा सिद्ध गोरिया जी के साथ 12 साल तक जप तप किया इसलिए बाबा
सुरगल जी ने भी वही अपना बर्मी निशान बना लिया. उन्होंने लोगो की खूब सेवा की एवं अंतिम दिनों
मे बाबा सिद्धगोरिया जी ने सिद्ध
-स्वांखा में अपने माता पिता ,एक बेटे के साथ समाधी ले ली
महंत गिरधारी नाथ जी के शिष्य बाबा भोला नाथ मठके महंत है।