जनम मरण के चक्कर से मुक्ति पाने के लिए यह नियम दिए
चार आर्य सत्य
१. दुःख--जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, सब में दुःख है।
२. दुःख कारण ----तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है
३. दुःख निरोध- तृष्णा से मुक्ति के आठ साधन बताये गये हैं जिन्हें ‘अष्टांगिक मार्ग’ कहा गया है।
४. दुःख निरोध का मार्ग
तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।
मुक्ति पाने एवं तथ्य-ज्ञान के साधन 8 मार्ग-
सही दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना
सही संकल्प : वासना से बचना ,मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
सही वाक :, झूठ न बोलना
सही कर्म : किसी की हत्या , चोरी कर्म न करना
सही जीविका : हानिकारक व्यापार न करना
सही प्रयास : बुरे कर्मो का त्याग की कोशिश करना
सही स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने
की कोशिश करना
सही समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना
पंचशील
भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायीओं को पांच शीलो का पालन करने की शिक्षा दि हैं।
१. अहिंसा
२. अस्तेय- चोरी न करे
३. अपरिग्रह-- व्यभिचार न करे
४. सत्य
5 सभी नशा से विरत
बौध धर्म verse हिन्दु धरम
समानताएँ
हिन्दुमत में मूर्ति पूजा का प्रचलन है तो बौद्ध मन्दिर भी मूर्तियों से भरे पड़े हैं
बौद्ध धर्म एक ईश्वर के अस्तित्व या कई देवताओं के अस्तित्व से इनकार नहीं।
हिन्दू धर्म की कर्म के अनुसार फल सिद्धांत को माननागौतम बुद्ध ने पुनर्जन्म के हिन्दू विचार को भी उधार लिया।
हिन्दू धर्म के चिन्ह जैसे तिलक लगाना , रुद्राक्ष , मुद्राए , स्वस्तिक के चिन्ह को सौवस्तिक के रूप को अपनाना
समान कर्मकाण्ड - मन्त्र , योग , ध्यान , समाधि , चक्र , नाड़ी, कुण्डलिनी आदि को मानना
शुरू मैं उनकी शिक्षा भी पास बैठा कर दी जाती थी उपनिषदों की तरह परन्तु इसमें मुख्या अंतर था की आत्मा का परमात्मा से मिलान जरूरी नहीं है का विचार ,
असमानताएँ
गौतम बुद्ध ने ब्रह्म को कभी इश्वर नहीं माना।
बुद्ध ने वेदों को भी साफ़ तौर से नकार दिया
बुद्ध ने आत्मा को भी
नकार दिया है और कहा है कि एक जीव पांच स्कन्धो से मिल कर बना है
हिन्दू धर्म मैं उस वक़्त यह मन जाता था कि चौथे वर्ण को मोक्ष नहीं मिल सकता जिसका बोध ने विरोध किया -जाती प्रथा को दूर रखा
उन्होंने दुखो को दूर करने पर जोर दिया -यह कैसे दूर हो सकते है इसके लिए 4 आर्य सत्य तथा उनसे मुक्ति पाने के आठ सत्य रस्ते पर चलने का उपदेश दिए
बौद्ध धर्म अनुसार आप को ज्ञान प्राप्त करने मैं कोई मदद तो कर सकता है परन्तु ज्ञान अन्दर से ही प्राप्त होता है
बोध धर्म का पतन
महान व्यक्तियों के साथ ऐसा होता है कि हर कोई उन्हें अपनाना चाहता है क्योंकि ऐसे व्यक्तियों का जीवन-संदेश भी सबके लिए होता है बुद्ध ने लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलने के लिए हमेशा जोर दिया.
बुद्ध के जीवनकाल में ही उनके कई शत्रु बन गए. बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु की मदद से देवदत्त ने बुद्ध को मरवाने के कई असफल प्रयास किये. लेकिन देवदत्त भिक्खु संघ को विभाजित करने में सफल हुआ. रूढ़ ब्राह्मणों ने उनका और उनके विचारों का तीखा विरोध किया, लेकिन इन्हीं लोगों ने अपनी सुविधा के लिए उन्हें विष्णु के दस अवतारों में भी शामिल किया बुद्ध कोई ‘बौद्ध’ धर्म नहीं चलाया. लेकिन उनके समय में और उनके बाद भी बौद्धवाद के नाम पर शासकों में आपसी युद्ध तक हुए. राज्याश्रय और राजनीति के फंदे में उलझकर बौद्ध आचार्यों और भिक्षुओं ने मठों और विहारों में अय्याशी और भोग-विलास का स्वच्छंद खेल शुरू किया और यही अंततोगत्वा इस संप्रदाय के ऐतिहासिक पतन का कारण भी बना.
बुद्ध ने लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलने के लिए हमेशा जोर दिया. कई लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलना अपनी आज़ादी में बाधक लगा. अब वे लोग संगठित होने लगे, जिन्हें धम्म पसंद नहीं आया था. उन्होंने मूल धम्म त्यागकर “महासांघिक पंथ” बना लिया. “महासांघिक पंथ” को “महायान पंथ” में बदल दिया गया. ये कार्य बुद्ध के महापरिनिर्वाण के करीब 100 वर्ष बाद इन लोगों द्वारा वैशाली में आयोजित दूसरे बौद्ध अधिवेशन में किया गया.
.अशोक एवं उसके अधीन राजाओं ने बौध्द धर्म को अपना राजधर्म बना लिया था जिसके कारण अन्य धर्मों पर अत्याचार होने लगे थे। जैसे ही बौध्द पर मोर्य शासकों का संरक्षण खत्म हुआ इसका पतन शुरू हो गया। यवनों को भारत पर आक्रमण करने के लिए बौध्द मठों द्वारा आमंत्रित किया गया।
हर महान व्यक्ति में कुछ अंतर्विरोध होते हैं। बुद्ध में भी थे। उन्होंने कई बार छोटे-छोटे समझौते किये और अपने ही विचारों या बातों से पीछे हटे। उन्होंने व्यक्ति पूजा का हमेशा विरोध किया गौतम बुद्ध की जीवन लीला उनकी कथा किंवदंती के रूप में प्रचारित होने लगी। वह रोक सकते थे। लेकिन नहीं रोका छोटे-छोटे ‘पाखण्ड’ उन्होंने स्वयं विकसित किये।
कई स्थानों पर उन्होंने अपने सम्मानित कुल की चर्चा आरम्भ में स्त्रियों के संघ में शामिल होने की उन्होंने मनाही कर रखी थी। लेकिन अपनी मासी गौतमी और अंबपाली को वह ना नहीं कह सके। उन्होंने कर्जखोरों और सैनिकों के संघ में शामिल होने की भी मनाही की। इन सब के लिए आज बुद्ध की आलोचना होती है
सातवीं सदी आते आते बौद्ध धर्म में अनेक कुरीतियाँ आ गई थी, वैदिक धर्म की तरह कर्मकांड इसमें शामिल हों गये थे
महायान
उन लोगों ने पैदा किया जिन्हें बौद्ध धम्म रास नहीं आया. बुद्ध ने लोगों को बताया कि वे इंसान हैं महायानियों ने बुद्ध को नास्तिक बुद्ध से आस्तिक बुद्ध बना दिया बुद्ध पूजा और उपासना के विरुद्ध थे, लेकिन महायानियों ने उनकी पूजा उपासना प्रारंभ कर दी. दूसरी शताब्दी में एक ब्राह्मण नागार्जुन ने महायान अपनाया और बुद्ध का एक विशाल स्मारक बनवाया. महायान ने बुद्ध की मूर्ति की पूजा प्रारंभ की. बुद्ध को गुण-प्रदाता के रूप में पूजा जाने लगा. बुद्ध से मन्नतें मांगी जाने लगीं. महायान ने मानव बुद्ध को हिन्दू देवता बना दिया. महायान बौद्ध धर्म की शाखा है ये सत्य नहीं है बल्कि महायान हिन्दू धर्म का एक पंथ है
वज्रयान
महायानी
षड्यंत्रकारियों ने बुद्ध की शिक्षाओं के विपरीत आठवीं शताब्दी में महायान की एक
शाखा वज्रयान के रूप में विकसित कर दी. इसमें जादू-टोना
और तंत्र साधना का समावेश किया गया. तंत्र साधना में इन लोगों ने स्त्रियों का भी
इस्तेमाल किया. इसी तन्त्र साधना पद्धति को वज्रयान (बज्रयान) कहते हैं. इन
तांत्रिक क्रियाओं में भिक्षुणियाँ (स्त्रियाँ) भिक्षुओं (पुरुषों) के साथ गुह्य
(एकान्त स्थान) में रहने लगीं. उस समय अपने शारीरिक, मानसिक दुःखों को दूर
करने और मस्ती करने के लिए लोग तंत्रयानी छद्म भिक्षुओं का सहारा लेने लगे. बहुत
से अंधविश्वासी साधक उस समय येसे भी देखे गये जो एक ही कंबल में स्त्री के साथ
लिपटे हुए घूमते थे, वे कंबल के अन्दर पूर्ण नग्न होते थे. स्त्री
प्रयोग के कारण इनमें यौन अनैतिक कार्य होने लगे. गुह्यसाधना के तहत काम भावना से
अनुप्रेरित विभिन्न कामुक मूर्तियां गढ़ी जाने लगीं. जादू-टोना, तंत्र-मंत्र शारीरिक और मानसिक रोग निवारण के साधन बन गये. वज्रयान भी आगे
चलकर दो शाखाओं में बंट गया. वज्रयान ने बुद्ध के मूल धम्म को अतुलनीय क्षति
पहुंचा
भक्ति लहर का असर ---
हिन्दू धर्म के समाज सुधारको आधी शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म की कुरीतियों को दूर करने की कमर कस ली पुरे भारत मैं घूम कर प्रसार किया आदि शंकराचार्य ने शास्त्राथ में अनेक बौद्ध भिक्षुओं और मठाधीशों को पराजित कर अपना अनुयायी बना लिया, फिर इन्हीं बौद्ध मठों से वैदिक धर्म का प्रसार होने लगा। हिन्दू संतो ने लोगों के बीच आसान और कर्मकांड रहित भक्ति मार्ग का प्रसार किया, जिससे हिन्दू धर्म आम लोगों के मध्य तेजी से पहुंचा। जिससे बौद्ध धर्म भारत से लगभग समाप्त हो गया
विदेशी आक्रमण
बौद्ध और हिन्दू धर्म को सबसे अधिक नुकसान बार बार हुए विदेशी आक्रमणों से हुआ। मुस्लिम आक्रांताऔं ने भारत में हजारों मंदिर और बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया
बौद्ध धर्म चीन, जापान, मंगोलिया, लाओस, सिंगापुर, कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई आदि में फैल चुका है
बोध धर्म की शाखाए
चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में विभाजित हो गया:(i) हीनयान (ii) महायान
बौद्ध धर्म में प्रमुख सम्प्रदाय हैं: हीनयान, थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, जेन
थेरवाद- रूढ़िवादी सिद्धान्त अपनाते है
हीनयान- केवल अपने लिए ज्ञान प्राप्त करने
का सिद्धांत मानते है
महायान- सब प्राणियों के उद्धार
के लिए ज्ञान प्राप्त करने
का सिद्धांत मानते है
वज्रयान= वज्रयान को तिब्बती तांत्रिक धर्म भी कहां जाता हैं। महायान तथा तांत्रिक का फ्यूज़न है
नवयान- बुद्ध के मूल सिद्धांतों का अनुसरण
जेन -महायान तथा समाधि का
मेल है चीन मैं पॉपुलर है
तिब्बतियन बुध्द
धर्म- यह तिब्बत तथा बॉन धर्म का मेल है इसकी भी दो
ब्राँच है रेड हैट तथा येलो हैट सेक्शन - इनकी धार्मिक किताब है book of dead
हीनयान-- को ही थेरवाद भी कहते हैं। हीनयान संप्रदाय के लोग परिवर्तन अथवा सुधार के
विरोधी थे। हीनयान की साधना अत्यंत
कठोर थी तथा वे भिक्षु जीवन के हिमायती थे। हीनयान संप्रदाय
श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला
हुआ है।
महायान के अंतर्गत बौद्ध धर्म की एक तीसरी शाखा
थी वज्रयान। वज्रयान संस्कृत शब्द, अर्थात हीरा या तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहलाता है झेन, ताओ, शिंतो आदि अनेक बौद्ध संप्रदाय भी उक्त दो संप्रदाय के
अंतर्गत ही माने जाते हैं। चीन,
जापान, बर्मा, थाइलैंड, कोरिया सहित आदि सभी
पूर्व के देश बौद्ध धर्म अंगीकार कर चुके थे।
'थेरवाद' शब्द का अर्थ है 'बड़े-बुज़ुर्गों का कहना थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं। गौतम बुद्ध एक गुरू अवश्य हैं लेकिन कोई अवतार नहीं।श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, म्यान्मार, थाईलैंड और लाओस में प्रचलित है
महायान -बौद्ध धर्म के अनुयायी कहते हैं कि अधिकतर मनुष्यों के लिए निर्वाण-मार्ग अकेले ढूंढना मुश्किल या असम्भव है और उन्हें इस कार्य में सहायता मिलनी चाहिए।महायान शाखा में ऐसे हज़ारों बोधिसत्त्वों को पूजा जाता है और उनका इस सम्प्रदाय में देवताओं-जैसा स्थान है।इन बोधिसत्त्वों में प्रसिद्ध हैं, अवलोकितेश्वर, अमिताभ .मैत्रेय, मंजुश्री और क्षितिगर्भ।
'चान' शब्द, संस्कृत के 'ध्यान' शब्द का विकृत रूप है।एक बौद्ध धर्म सम्प्रदाय है जो महायान सम्प्रदाय की शाखा है। इसका प्रसार चीन में 6th शताब्दी से आरम्भ हुआ जो तामग वंश और सांग वंश के काल में प्रमुख धर्म बन गया। युआन वंश के पश्चात यह चीन के मुख्यधारा के बौद्ध दर्म में मिल गया।
अवलोकितेश्वर ----महायान बौद्ध धर्म सम्प्रदाय के लोकप्रिय बोधिसत्व हैं परन्तु इनकी परिकल्पना भगवन ब्रह्मा से ली गयी है -महायान बौद्ध ग्रंथ सद्धर्मपुंडरीक में इनके बारे लिखा गया है -की इन्होने सूर्य ,चाँद ,पृथ्वी का निर्माण किया इनकी मूर्ति भी हाथ मैं कमल का फूल लिए होती है - भगवान् श्री कृष्ण के विराट रूप से प्रेरणा ले कर इनको विशाल दिखाया गया है तिब्बत ,चीन , जापान , जावा मैं इनकी मान्यता है
'अमिताभ' ---मुख्य बुद्ध हैं जिनकी महायान की जापान और चीन में प्रचलित 'पवित्र भूमि' शाखा में मान्यता प्राप्त है। इन्हें तिब्बत में प्रचलित वज्रयान शाखा में भी माना जाता है। बौद्धों के अनुसार तीन जगत् तो नष्ट हो चुके हैं और आजकल चतुर्थ जगत् चल रहा है।
मैत्रेय : भावी बुद्ध का नाम
तिब्बती बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म की महायान शाखा की एक उपशाखा है जो तिब्बत, मंगोलिया, भूटान, उत्तर नेपाल, भारत चीन में प्रचलित है।दलाई लामा इसके सबसे बड़े धार्मिक नेता हैं लामा तिब्बत में बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता या धर्म गुरु को कहा जाता है।
सातवीं शताब्दी में थुबो के राजा सोंगत्सान गाम्बो के काल में तिब्बत का एकीकरण हुआ. उनके राज काल मैं बौद्ध धर्म तिब्बत में आया और विकसित भी हुआ. बौद्ध धर्म ने तिब्बत में शक्तिशाली होकर शासन का स्थान प्राप्त किया तिब्बत में बौद्ध धर्म की अनेक शाखाएं हैं, लेकिन उन का मुख्यतः दो शाखाओं यानी न्यिंगमा और सामा में बंटा हुआ है. इन दोनों के आधार पर चार मुख्य संप्रदाय भी बंटे हैं, जो प्राचीन तांत्रिक सिद्धांत में विश्वास रखने वाला सामा संप्रदाय और नए तांत्रिक सिद्धांत में आस्था रखने वाले साग्या, गेग्यु और गेलुग संप्रदाय कहलाते हैं.लामा का अर्थ है उच्च धार्मिक पदवी वाला संत - परन्तु धीरे धीरे यह हर भीखू के लिए इस्तेमाल होने लगा 7th अड़ में पद्मसम्भवे ने बॉन धर्म तथा बोध धर्म को मिला दिया इस मिले जुले रूप को लामावाद कहा गया 14th AD मैं एक सुधारक ने अपने दो गद्दी प्रथा शुरू की जिसमे एक दलाई लामा दूसरा पंचम लामा कहा गया - दलाई लामा ढूढ़ने की प्रथा बिलकुल ही अलग है
तिपिटक- बुद्ध धर्म के तीन प्रमुख ग्रन्थ है,जिन्हें त्रिपिटक कहा जाता है।
दूसरा सुत्त पिटकः इस ग्रंथ में भिक्षुओं के नितनेम तथा संघ की मान-मर्यादा की व्याख्या की गई यह पाली भाषा मैं लिखी गयी है
तीसरा है अभिधम्म पिटकःइसकी सात किताबे लिखी गयी है
”बोद्धी गीता” जातक कहानियों का संग्रह है जातक कथाएँ भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की
कथायें हैं। विद्वानों का मानना है कि कुछ जातक कथाएँ, गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी हैं।
विनय पिटकः- संगीति ,संघ के नियमों की जानाकारी मिलती है भगवान बुद्ध के निर्वाण (देहांत) के बाद प्रथम संगीति राजगृह में 483 ईसा पूर्व हुई थी। दूसरी संगीति वैशाली में, तृतीय संगीति 249 ईसा पूर्व पाटलीपुत्र में हुई थी और चतुर्थ संगीति कश्मीर में हुई थी।संगीति अर्ताथ बैठक - पहली संगीति मैं बोध के विचारो पर चर्चा हुई -
अभिधम्मत्थ सङ्ग्रहो;
सुखावती व्यूहः
प्रज्ञापारमितासूत्र - प्रज्ञापारमितासूत्रों को जननी सूत्र भी कहते हैं
अभिधम्मपिटक
चैत्य का शाब्दिक अर्थ है, चिता-संबंधी। चोरटेन - चैत्य बौद्ध
स्तूपों को कहा जाता था। स्तूप समाधि, अवशेषों अथवा चिता पर
स्मृति स्वरूप निर्मित किया गया,
अर्द्धाकार टीला होता था।
उन्हीं को प्रारंभ में चैत्य अथवा स्तूप कहा गया कालांतर में बौद्धों ने इन्हें अपनी उपासना का केन्द्र बना
लिया ये दो प्रकार के होते थे। पहाडों को काटकर बनाये गये चैत्य 2 ईंट-पत्थरों की सहायता से खुले स्थान में बनाये
गये चैत्य
धार्मिक जुलूस सबसे पहले
बौद्ध धर्म में ही निकाला गया था.
ऐसे कई प्राचीन मंदिर है जहां पर विष्णु और बुद्ध की साथ-साथ मूर्तियां हैं। अजंता और एलोरा को अच्छे से देख लें। बर्मा, थाइलैंड के बौद्ध मंदिरों को भी अच्छे से देख लें।थाईलैंड एक बौद्ध राष्ट्र है लेकिन बौद्ध बहुल देश होने के बावजूद हिंदू धर्म में अटूट आस्था रखता है। इसी तरह बर्मा, कंबोडिया, लागोस, जापान और श्रीलंका के बौद्ध स्तूपों और मंदिरों पर आपको स्पष्ट रूप से हिन्दू प्रतीकों और संस्कृति की स्पष्ट छाप मिल जाएगी।
बुद्ध की प्रथम मूर्ति
मथुरा कला के अंतर्गत बनी थी. सर्वाधिक बुद्ध
की मूर्तियों का निर्माण गंधार शैली के अंतर्गत किया गया था
नवबौद्ध संप्रदाय की
उत्पत्ति भारत की आजादी के बाद हुई।1950 के दशक में भारत के विद्वान राजनेता डॉ.
भीमराव आंबेडकर ने बुद्ध की उल्लेखनीय जीवनियां लिखीं।अपने अनगिनत अनुयायियो के
साथबौद्ध धर्म अपनाकरबौद्ध धर्म को पुनर्जीवित कर दिया
BRANCHS OF BUDHA DHARMA IN JAPAN
TIEN TAI स्कूल
चीन में टियांटाई एक पर्वत का नाम है, जिसका अर्थ है "आकाश का मंच", लेकिन इस शब्द का बौद्ध धर्म के एक विशेष स्कूल को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है। "तियानताई" शब्द का उपयोग तियाताई ज़ही (538-597 के दार्शनिक विचारों को संदर्भित करने के लिए किया जाएगा
TENDAI स्कूल
तेंदई एक महायान
बौद्ध स्कूल है जिसे जापान में वर्ष 806 में सैचो नामक भिक्षु द्वारा स्थापित किया गया था, जिसे मरणोपरांत डेंगी दाशी के नाम से जाना जाता
है। तेन्दई स्कूल हीयन काल (794-1185) के दौरान प्रमुखता से उभरा, TIEN TAI के संस्थापक झीयी की शिक्षाओं का सम्मान करते हैं।
593-622 AD prince SHOTOKU ने इस
धर्म को सरंक्षण दिए AD 305
MOUNT HIEI प्रथम विहार का निर्माण हुआ यह चीन के
TIEN TAI स्कूल से
प्रभावित था इसे TENDAI BUDDISM कहते है Jōdo-shū
तथा Nichiren
Buddhism उसकी दो शाखा निकली
इसके विरोधी धड़े ने MOUNT KOYA मैं अपना मुख्यालय बनाया KUKAI MONK (740-835 ) ने इस धर्म SHINGON BUDDHISM को जनम दिए इन्होने पहले अमिताभ buddha का प्रचार किया NEMBUTSU इनका मन्त्र था
SHINGON BUDDHISM
शिंगोन बौद्ध
धर्म वज्रयान वंशावली में से एक है, जो भारत से चीन तक फैला है। ये गूढ़ शिक्षा बाद में जापान
में एक बौद्ध भिक्षु के नाम से पनपेगी जिनका नाम कोकाई) था इसे अक्सर जापानी रूढ़िवादी एसोटेरिक बौद्ध
धर्म कहा जाता है। शिंगोन दो प्रमुख स्कूलों में विभाजित है - पुराना स्कूल, कोगी शिंगन (प्राचीन शिंगोन स्कूल)
Esoteric Buddhism
गूढ़ बौद्ध धर्म को
मन्त्रायण और तंत्र शब्द से भी जाना जाता है। ये उपदेश गुप्त हैं और हर किसी के
लिए उपलब्ध नहीं हैं, जबकि पुस्तकों से
सीखी गई गूढ़ शिक्षाएं सभी के लिए सुलभ हैं। Esotericism के छात्र (जाप: mikkyo) को एक गुरु से उचित दीक्षा प्राप्त करनी चाहिए। Esoteric
Buddhismमें एक रहस्यमय
तत्व होता है,
तिब्बती बौद्ध धर्म (वज्रयान) में, अभ्यास को 'गुरु योग' के रूप में जाना
जाता है। अनुष्ठान सूत्र, जैसे मंत्र, मुद्रा, ध्यान, और मंडल आवश्यक
उपकरण हैं होमा अनुष्ठान में अग्नि के देवता अग्नि की पूजा की जाती है ।
Zen Buddhism
Zen Buddhism भारतीय महायान बौद्ध धर्म और ताओवाद का मिश्रण है। जेन बौद्ध धर्म को 6 वीं
शताब्दी ईस्वी में भारतीय भिक्षु बोधिधर्म द्वारा चीन लाया गया था। इसे चीन में
चेन् कहा जाता था। यह चीन में शुरू हुआ, कोरिया और जापान तक फैल गया, और 20 वीं शताब्दी के
मध्य से पश्चिम में बहुत लोकप्रिय हो गया।
ज़ेन सीधे जीवन
के अर्थ को समझने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए एक गहन अनुशासन की आवश्यकता होती है ज़ेन बौद्ध धर्म का सार
है कि सभी मनुष्य बुद्ध हैं, और उन्हें स्वयं
ही सवयं के लिए सत्य की खोज करनी है
Odoru shūkyō
Tenshō Kenstai Jingūkyō एक जापानी नया धार्मिक आंदोलन है जो शिंटो से उभरा है। यह 1945 में शुरू होने वाली गतिविधियों के साथ Sayo Kitamura (1900-1967) द्वारा स्थापित किया गया था। कितामुरा ने तेनाशो-कताइजीन शीर्षक के तहत अमातरसु द्वारा कब्जे का दावा किया।
इसका मुख्यालय Tabuse जापान के एक शहर में है।
ODORU SHŪKYŌ
अनुयायी
गैर-अहंकार का नृत्य नामक नृत्य का अभ्यास
करते हैं, इसीलिए धर्म को नृत्य धर्म (Odoru shūkyō) कहा जाता है
Reiyūkai-
एक जापानी बौद्ध
नया धार्मिक आंदोलन है जिसकी स्थापना 1919 में काकुतरु कुबो (1892-1944) और किमी कोटानी (1901-1971) ने की थी। रेयूकाई ने कई विभाजन का अनुभव किया है; ऋषि कृसे काई, बुशो गोनेंकाई क्यदान, मायचाइकाई क्यदान, और माय्डकई क्यदान
TENRIKYO
शिन्तो की तेरह
शाखाओं में से एक आधिकारिक मान्यता पंथ के रूप में पहचान है 19 वीं सदी की एक महिला नाकायमा मिक्की की शिक्षा
से उत्पन्न है, अपने अनुयायियों के लिए ओयसमा के रूप में जानी जाती है