Sunday 28 June 2020

बुध धर्म


किसी भी धर्म के बारे लिखना बहुत मुश्किल कार्य है - हज़ारो सालो के इतिहास को जानना ,उनकी मर्यादा को समझने के लिए मेरे जैसे मूड बुध्दि के लिए असंभव है -- किसी भी ज्ञानी को इसमें लिखी कोई भी जानकारी त्रुटि पूर्ण लगे तो तुरंत संपर्क करे ताकि उसे ठीक किया जा सके

गौतम बुद्ध (563 ईसा पूर्व–483 ईसा पूर्व)



जीवन यात्रा

गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में राजा शुद्धोधन माँ महामाया के घर में हुआ जन्म के सात दिन बाद उनकी माँ का निधन हो गया उनका पालन-पोषण उनकी मौसी गौतमी ने किया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया सिद्धार्थ का अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो"। जन्म के पाँचवे दिन जनेऊ धारण करने पर उनका नाम गौतम रखा गया पालिग्रंथों में उनके बचपन के बारे में जो चित्रण है कि वह जब अपने पिता के साथ खेतों में जाते थे तो कृषि-कार्य देखने के बजाय किसी पेड़ के नीचे बैठ ध्यान में डूब जाते थे। 

ये अतिशयोक्तियां हमारे समाज में इसलिए गढ़ी जाती हैं कि किसी महापुरुष की महानता की पृष्ठभूमि बनाई जा सके कि उस व्यक्ति में महानता के लक्षण बचपन से ही थे। शोध से ज्ञात होता है कि बुद्ध एक समृद्ध आर्थिक पृष्ठभूमि वाले किसान परिवार से आते थे। बुद्ध का पिता एक ज़मींदारनुमा अमीर किसान था। गांवों में अब तक किसी अमीर किसान को राजा आदमी कहने का रिवाज है। सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा के साथ हुआ। उनके पुत्र राहुल  का जन्म हुआ

वैरागय 

एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। दूसरी बार आगे एक रोगी आ गया। तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली उनका मन वैराग्य में चला उन्होंने आपने परिवार  त्याग दिया। सिद्धार्थ तपस्या के लिए चल पड़े। बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कलाम थे,  उन्होंने योग-साधना सीखी। समाधि लगाना सीखा। भिक्षा माँगी। केवल तिल-चावल खाकर तपस्या शुरू की, वह एक वैचारिक निष्कर्ष पर पहुंचे। उन्होंने पाया की भूखे रह कर मोक्ष नहीं मिल सकता उन्होंने पाया अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है

ज्ञान प्राप्ति 

5 से 6 वर्ष घूमने के बाद वह उरुवेला आये, उन्होंने वट वृक्ष के नीचे समाधि लगाई आज यह जगह बोधगया के नाम से जाना जाता है। - उन्हें ज्ञान 3 स्टेज मैं हुआ - प्रथम उन्होंने अपने पूर्व जनम देखे , दूसरी बार जन्म मृत्यु का रहस्य जाना तीसरी बार दुखो के कारन उनको दूर करने का रास्ता एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष कहलाया ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया जिसे "धर्म चक्र प्रवर्तन" का नाम दिया जाता है  इसकी याद को अक्षुण्ण बनाने के लिए अशोक मौर्य ने यहां एक स्मृतिचिह्न (स्तूप ) बनाया, वही आज भारत सरकार का राजचिह्न है। 



प्रथम उपदेश 

वहीं पर प्रथम पाँच मित्रों को अपना अनुयायी बनाया और फिर उन्हें धर्म प्रचार करने के लिये भेज दिया। उस हिंदू धर्म में बढ़ते कर्मकांड और ब्राह्मणवाद से संतुष्ट नहीं थे. इसलिए उन्होंने एक नया रास्ता चुना. उन्होंने बौद्ध धर्म की शुरुआत की. बुद्ध ने अपने प्रवचनों में संस्कृत के बजाए मगध की आम बोलचाल की भाषा मगधी का इस्तेमाल किया  बुद्ध के धर्म प्रचार से भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी। बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी उनके शिष्य बनने लगे। शोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम्‌ भूमिका निभाई  80 वर्ष की उम्र तक अपने धर्म का संस्कृत के बजाय उस समय की सीधी सरल लोकभाषा पाली में प्रचार करते रहे

बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में कुशीनारा में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई. जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है. एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बांटकर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया.





बुध धर्म - प्रसार के कारण 

बुद्ध ने  कोई ‘बौद्ध’ धर्म नहीं चलाया उनकी शिक्षा के सिद्धांत बोध धर्म कहा 

गया 

बुध ना तो भगवान् थे - न ही भगवान् के दूत 

 वह दार्शनिक के साथ ही कुशल प्रबंधक भी थे।

अपने संघ को उन्होंने वर्ण-जाति भेद से बहुत हद तक मुक्त रखा था।

 संस्कृत के बजाय  सरल लोकभाषा पाली में प्रचार 

अशोक एवं उसके अधीन राजाओं ने बौध्द धर्म को अपना राजधर्म बना लिया था मौर्य सम्राज्य में बौद्ध भिक्षुओं को राजदरबार में आदर एवं उच्च स्थान प्राप्त होता था, जिसके कारण बौद्ध धर्म का तेजी से विस्तार हुआ।
बौद्ध धर्म अपने अनुयायियों को दो श्रेणियों में विभाजित करता है - (i) साधारण अनुयायी और (ii) भिक्षु सदस्य

 जनम मरण के चक्कर से मुक्ति पाने के लिए यह नियम दिए 

चार आर्य सत्य

१. दुःख--जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, सब में दुःख है।

२. दुःख कारण   ----तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है

३. दुःख निरोध- तृष्णा से मुक्ति के आठ साधन बताये गये हैं जिन्हें ‘अष्टांगिक मार्ग’ कहा गया है।

४. दुःख निरोध का मार्ग

तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।

मुक्ति पाने एवं तथ्य-ज्ञान के साधन 8 मार्ग

सही दृष्टि : चार आर्य सत्य में विश्वास करना

सही संकल्प : वासना से बचना ,मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना

सही वाक :, झूठ न बोलना

सही कर्म : किसी की हत्या , चोरी कर्म न करना

सही जीविका : हानिकारक व्यापार न करना

सही प्रयास : बुरे कर्मो का त्याग की कोशिश करना

सही स्मृति : स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना

सही समाधि : निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना

पंचशील

भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायीओं को पांच शीलो का पालन करने की शिक्षा दि हैं।

१. अहिंसा

२. अस्तेय- चोरी न करे

३. अपरिग्रह--   व्यभिचार न करे

४. सत्य

5 सभी नशा से विरत


रेवाल्सवर हिमाचल मैं बोध मोनेस्ट्री तथा हिन्दू मंदिर एक ही ईमारत मैं 
  

बौध धर्म   verse  हिन्दु धरम

समानताएँ

बोध धर्म कट्टर ब्रह्मण वाद के विरुद  प्रफुलित हुआ  था परन्तु - उनके सिद्धांतो की नींव मैं हिन्दू धर्म के विचार ही थे

हिन्दुमत में मूर्ति पूजा का प्रचलन है तो बौद्ध मन्दिर भी मूर्तियों से भरे पड़े हैं

बौद्ध धर्म एक ईश्वर के अस्तित्व या कई देवताओं के अस्तित्व से इनकार नहीं।

हिन्दू धर्म की  कर्म के अनुसार फल  सिद्धांत को मानना 

गौतम बुद्ध ने पुनर्जन्म के हिन्दू विचार को भी उधार लिया।

हिन्दू धर्म के चिन्ह जैसे तिलक लगाना , रुद्राक्ष , मुद्राए , स्वस्तिक के चिन्ह को सौवस्तिक के रूप को अपनाना

समान कर्मकाण्ड - मन्त्र , योग , ध्यान समाधि , चक्र , नाड़ी, कुण्डलिनी आदि को मानना

शुरू मैं उनकी शिक्षा भी पास बैठा कर दी जाती थी उपनिषदों की तरह परन्तु इसमें मुख्या अंतर था की आत्मा का परमात्मा से मिलान जरूरी नहीं है का विचार ,

असमानताएँ

गौतम बुद्ध ने ब्रह्म को कभी इश्वर नहीं माना। 

बुद्ध ने वेदों को भी साफ़ तौर से नकार दिया

बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है

बुद्ध ने आत्मा को भी नकार दिया है और कहा है कि एक जीव पांच स्कन्धो से मिल कर बना है

 हिन्दू धर्म मैं उस वक़्त यह मन जाता था कि चौथे वर्ण को मोक्ष नहीं मिल सकता जिसका बोध ने विरोध किया -जाती प्रथा को दूर रखा 

उन्होंने दुखो को दूर करने पर जोर दिया -यह कैसे दूर हो सकते है इसके लिए 4 आर्य सत्य तथा उनसे मुक्ति पाने के आठ सत्य रस्ते पर चलने का उपदेश दिए

बौद्ध धर्म अनुसार आप को ज्ञान प्राप्त करने मैं कोई मदद तो कर सकता है परन्तु ज्ञान अन्दर से ही प्राप्त होता है  

बोध धर्म का पतन

 महान व्यक्तियों के साथ ऐसा होता है कि हर कोई उन्हें अपनाना चाहता है क्योंकि ऐसे व्यक्तियों का जीवन-संदेश भी सबके लिए होता है बुद्ध ने लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलने के लिए हमेशा जोर दिया.

बुद्ध के जीवनकाल में ही उनके कई शत्रु बन गए. बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु की मदद से देवदत्त ने बुद्ध को मरवाने के कई असफल प्रयास किये. लेकिन देवदत्त भिक्खु संघ को विभाजित करने में सफल हुआ. रूढ़ ब्राह्मणों ने उनका और उनके विचारों का तीखा विरोध किया, लेकिन इन्हीं लोगों ने अपनी सुविधा के लिए उन्हें विष्णु के दस अवतारों में भी शामिल किया  बुद्ध कोई ‘बौद्ध’ धर्म नहीं चलाया. लेकिन उनके समय में और उनके बाद भी बौद्धवाद के नाम पर शासकों में आपसी युद्ध तक हुए. राज्याश्रय और राजनीति के फंदे में उलझकर बौद्ध आचार्यों और भिक्षुओं ने मठों और विहारों में अय्याशी और भोग-विलास का स्वच्छंद खेल शुरू किया और यही अंततोगत्वा इस संप्रदाय के ऐतिहासिक पतन का कारण भी बना.

बुद्ध ने लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलने के लिए हमेशा जोर दिया. कई लोगों को नैतिक मूल्यों पर चलना अपनी आज़ादी में बाधक लगा. अब वे लोग संगठित होने लगेजिन्हें धम्म पसंद नहीं आया था. उन्होंने मूल धम्म त्यागकर “महासांघिक पंथ” बना लिया. “महासांघिक पंथ” को “महायान पंथ” में बदल दिया गया. ये कार्य बुद्ध के महापरिनिर्वाण के करीब 100 वर्ष बाद इन लोगों द्वारा वैशाली में आयोजित दूसरे बौद्ध अधिवेशन में किया गया. 

.अशोक एवं उसके अधीन राजाओं ने बौध्द धर्म को अपना राजधर्म बना लिया था जिसके कारण अन्य धर्मों पर अत्याचार होने लगे थे। जैसे ही बौध्द पर मोर्य शासकों का संरक्षण खत्म हुआ इसका पतन शुरू हो गया। यवनों को भारत पर आक्रमण करने के लिए बौध्द मठों द्वारा आमंत्रित किया गया।

हर महान व्यक्ति में कुछ अंतर्विरोध होते हैं। बुद्ध में भी थे। उन्होंने कई बार छोटे-छोटे समझौते किये और अपने ही विचारों या बातों से पीछे हटे। उन्होंने व्यक्ति पूजा का हमेशा विरोध किया गौतम बुद्ध की जीवन लीला उनकी कथा किंवदंती के रूप में प्रचारित होने लगी। वह रोक सकते थे। लेकिन नहीं रोका छोटे-छोटे ‘पाखण्ड’ उन्होंने स्वयं विकसित किये।

कई स्थानों पर उन्होंने अपने सम्मानित कुल की चर्चा आरम्भ में स्त्रियों के संघ में शामिल होने की उन्होंने मनाही कर रखी थी। लेकिन अपनी मासी गौतमी और अंबपाली को वह ना नहीं कह सके। उन्होंने कर्जखोरों और सैनिकों के संघ में शामिल होने की भी मनाही की। इन सब के लिए आज बुद्ध की आलोचना होती है 

सातवीं सदी आते आते बौद्ध धर्म में अनेक कुरीतियाँ आ गई थी, वैदिक धर्म की तरह कर्मकांड इसमें शामिल हों गये थे

महायान 

उन लोगों ने पैदा किया जिन्हें बौद्ध धम्म रास नहीं आया. बुद्ध ने लोगों को बताया कि वे इंसान हैं महायानियों ने बुद्ध को नास्तिक बुद्ध से आस्तिक बुद्ध बना दिया बुद्ध पूजा और उपासना के विरुद्ध थे, लेकिन महायानियों ने उनकी पूजा उपासना प्रारंभ कर दी. दूसरी शताब्दी में एक ब्राह्मण नागार्जुन ने महायान अपनाया और बुद्ध का एक विशाल स्मारक बनवाया. महायान ने बुद्ध की मूर्ति की पूजा प्रारंभ की. बुद्ध को गुण-प्रदाता के रूप में पूजा जाने लगा. बुद्ध से मन्नतें मांगी जाने लगीं. महायान ने मानव बुद्ध को हिन्दू देवता बना दिया. महायान बौद्ध धर्म की शाखा है ये सत्य नहीं है बल्कि महायान हिन्दू धर्म का एक पंथ है

वज्रयान

महायानी षड्यंत्रकारियों ने बुद्ध की शिक्षाओं के विपरीत आठवीं शताब्दी में महायान की एक शाखा वज्रयान के रूप में विकसित कर दी. इसमें जादू-टोना और तंत्र साधना का समावेश किया गया. तंत्र साधना में इन लोगों ने स्त्रियों का भी इस्तेमाल किया. इसी तन्त्र साधना पद्धति को वज्रयान (बज्रयान) कहते हैं. इन तांत्रिक क्रियाओं में भिक्षुणियाँ (स्त्रियाँ) भिक्षुओं (पुरुषों) के साथ गुह्य (एकान्त स्थान) में रहने लगीं. उस समय अपने शारीरिक, मानसिक दुःखों को दूर करने और मस्ती करने के लिए लोग तंत्रयानी छद्म भिक्षुओं का सहारा लेने लगे. बहुत से अंधविश्वासी साधक उस समय येसे भी देखे गये जो एक ही कंबल में स्त्री के साथ लिपटे हुए घूमते थे, वे कंबल के अन्दर पूर्ण नग्न होते थे. स्त्री प्रयोग के कारण इनमें यौन अनैतिक कार्य होने लगे. गुह्यसाधना के तहत काम भावना से अनुप्रेरित विभिन्न कामुक मूर्तियां गढ़ी जाने लगीं. जादू-टोना, तंत्र-मंत्र शारीरिक और मानसिक रोग निवारण के साधन बन गये. वज्रयान भी आगे चलकर दो शाखाओं में बंट गया. वज्रयान ने बुद्ध के मूल धम्म को अतुलनीय क्षति पहुंचा

भक्ति लहर का असर ---

हिन्दू धर्म के समाज सुधारको आधी शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म की कुरीतियों को दूर करने की कमर कस ली पुरे भारत मैं घूम कर प्रसार किया आदि शंकराचार्य ने शास्त्राथ में अनेक बौद्ध भिक्षुओं और मठाधीशों को पराजित कर अपना अनुयायी बना लिया, फिर इन्हीं बौद्ध मठों से वैदिक धर्म का प्रसार होने लगा। हिन्दू संतो ने लोगों के बीच आसान और कर्मकांड रहित भक्ति मार्ग का प्रसार किया, जिससे हिन्दू धर्म आम लोगों के मध्य तेजी से पहुंचा। जिससे बौद्ध धर्म भारत से लगभग समाप्त हो गया

विदेशी आक्रमण

बौद्ध और हिन्दू धर्म को सबसे अधिक नुकसान बार बार हुए विदेशी आक्रमणों से हुआ। मुस्लिम आक्रांताऔं ने भारत में हजारों मंदिर और बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया

बौद्ध धर्म चीन, जापान, मंगोलिया, लाओस, सिंगापुर, कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई आदि में फैल चुका है


बोध धर्म की शाखाए

चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में विभाजित हो गया:(i) हीनयान  (ii) महायान

 बौद्ध धर्म में प्रमुख सम्प्रदाय हैं: हीनयान, थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, जेन

थेरवाद- रूढ़िवादी सिद्धान्त अपनाते है

हीनयान- केवल अपने लिए ज्ञान प्राप्त करने का सिद्धांत मानते है

 महायान- सब प्राणियों के उद्धार के लिए ज्ञान प्राप्त करने का सिद्धांत मानते है

वज्रयान= वज्रयान को तिब्बती तांत्रिक धर्म भी कहां जाता हैं। महायान तथा तांत्रिक का फ्यूज़न हैवज्रयान में योगाचार ,साधना, निर्वाण पर बल दिया जाता हैनेपाल भूटान तिब्बत मैं फैला है 

नवयान- बुद्ध के मूल सिद्धांतों का अनुसरण

जेन -महायान तथा समाधि का मेल है चीन मैं पॉपुलर है

तिब्बतियन बुध्द धर्म- यह तिब्बत तथा बॉन धर्म का मेल है इसकी भी दो ब्राँच है रेड हैट तथा येलो हैट सेक्शन - इनकी धार्मिक किताब है book of dead 

 हीनयान-- को ही थेरवाद भी कहते हैं। हीनयान संप्रदाय के लोग परिवर्तन अथवा सुधार के विरोधी थे। हीनयान की साधना अत्‍यंत कठोर थी तथा वे भिक्षु जीवन के हिमायती थे। हीनयान संप्रदाय श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला हुआ है।

 महायान के अंतर्गत बौद्ध धर्म की एक तीसरी शाखा थी वज्रयान। वज्रयान संस्कृत शब्द, अर्थात हीरा या तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहलाता है झेन, ताओ, शिंतो आदि अनेक बौद्ध संप्रदाय भी उक्त दो संप्रदाय के अंतर्गत ही माने जाते हैं। चीन, जापान, बर्मा, थाइलैंड, कोरिया सहित आदि सभी पूर्व के देश बौद्ध धर्म अंगीकार कर चुके थे।

'थेरवाद' शब्द का अर्थ है 'बड़े-बुज़ुर्गों का कहना थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं। गौतम बुद्ध एक गुरू अवश्य हैं लेकिन कोई अवतार नहीं।श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, म्यान्मार, थाईलैंड और लाओस में प्रचलित है

महायान  -बौद्ध धर्म के अनुयायी कहते हैं कि अधिकतर मनुष्यों के लिए निर्वाण-मार्ग अकेले ढूंढना मुश्किल या असम्भव है और उन्हें इस कार्य में सहायता मिलनी चाहिए।महायान शाखा में ऐसे हज़ारों बोधिसत्त्वों को पूजा जाता है और उनका इस सम्प्रदाय में देवताओं-जैसा स्थान है।इन बोधिसत्त्वों में  प्रसिद्ध हैं, अवलोकितेश्वर, अमिताभ .मैत्रेय, मंजुश्री और क्षितिगर्भ।

चान -

'चान' शब्द, संस्कृत के 'ध्यान' शब्द का विकृत रूप है।एक बौद्ध धर्म सम्प्रदाय है जो महायान सम्प्रदाय की शाखा है। इसका प्रसार चीन में 6th शताब्दी से आरम्भ हुआ जो तामग वंश और सांग वंश के काल में प्रमुख धर्म बन गया। युआन वंश के पश्चात यह चीन के मुख्यधारा के बौद्ध दर्म में मिल गया।

अवलोकितेश्वर ----महायान बौद्ध धर्म सम्प्रदाय के लोकप्रिय बोधिसत्व हैं परन्तु इनकी परिकल्पना भगवन ब्रह्मा से ली गयी है -महायान बौद्ध ग्रंथ सद्धर्मपुंडरीक में इनके बारे लिखा गया है -की इन्होने सूर्य ,चाँद ,पृथ्वी का निर्माण किया इनकी मूर्ति भी हाथ मैं कमल का फूल लिए होती है - भगवान् श्री कृष्ण के विराट रूप से प्रेरणा ले कर इनको विशाल दिखाया गया है तिब्बत ,चीन , जापान , जावा मैं इनकी मान्यता है

ओम मणि  पदमे हम बुद्ध अवलोकितेश्वर का मंत्र है,

'अमिताभ' ---मुख्य बुद्ध हैं जिनकी महायान की जापान और चीन में प्रचलित 'पवित्र भूमि' शाखा में मान्यता प्राप्त है। इन्हें तिब्बत में प्रचलित वज्रयान शाखा में भी माना जाता है। बौद्धों के अनुसार तीन जगत् तो नष्ट हो चुके हैं और आजकल चतुर्थ जगत् चल रहा है।

मैत्रेय : भावी बुद्ध का नाम 

तिब्बती बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म की महायान शाखा की एक उपशाखा है जो तिब्बत, मंगोलिया, भूटान, उत्तर नेपाल, भारत चीन में प्रचलित है।दलाई लामा इसके सबसे बड़े धार्मिक नेता हैं लामा तिब्बत में बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता या धर्म गुरु को कहा जाता है।

सातवीं शताब्दी में थुबो के राजा सोंगत्सान गाम्बो के काल में तिब्बत का एकीकरण हुआ. उनके राज काल मैं बौद्ध धर्म तिब्बत में आया और विकसित भी हुआ. बौद्ध धर्म ने तिब्बत में शक्तिशाली होकर शासन का स्थान प्राप्त किया तिब्बत में बौद्ध धर्म की अनेक शाखाएं हैं, लेकिन उन का मुख्यतः दो शाखाओं यानी न्यिंगमा और सामा में बंटा हुआ है. इन दोनों के आधार पर चार मुख्य संप्रदाय भी बंटे हैं, जो प्राचीन तांत्रिक सिद्धांत में विश्वास रखने वाला सामा संप्रदाय और नए तांत्रिक सिद्धांत में आस्था रखने वाले साग्या, गेग्यु और गेलुग संप्रदाय कहलाते हैं.लामा का अर्थ है उच्च धार्मिक पदवी वाला संत - परन्तु धीरे धीरे यह हर भीखू के लिए इस्तेमाल होने लगा 7th अड़ में पद्मसम्भवे ने बॉन धर्म तथा बोध धर्म को मिला दिया इस मिले जुले रूप को  लामावाद कहा गया 14th AD मैं एक सुधारक ने अपने दो  गद्दी प्रथा  शुरू की जिसमे एक  दलाई लामा दूसरा पंचम लामा कहा गया - दलाई लामा ढूढ़ने की प्रथा बिलकुल ही अलग है 

बुद्ध धर्म का मुख्य ग्रन्थ ;

तिपिटक- बुद्ध धर्म के तीन प्रमुख ग्रन्थ है,जिन्हें त्रिपिटक कहा जाता है।

प्रथम हिस्सा है -विनय पिटकः - 

 दूसरा सुत्त पिटकः इस ग्रंथ में भिक्षुओं के नितनेम तथा संघ की मान-मर्यादा की व्याख्या की गई यह पाली भाषा मैं लिखी गयी है  

तीसरा है अभिधम्म पिटकःइसकी सात किताबे लिखी गयी है  

बोद्धी गीता” जातक कहानियों का संग्रह है जातक कथाएँ भगवान बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथायें हैं। विद्वानों का मानना है कि कुछ जातक कथाएँ, गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद उनके शिष्यों द्वारा कही गयी हैं।

 विनय पिटकः- संगीति ,संघ के नियमों की जानाकारी मिलती है भगवान बुद्ध के निर्वाण (देहांत) के बाद प्रथम संगीति राजगृह में 483 ईसा पूर्व हुई थी। दूसरी संगीति वैशाली में, तृतीय संगीति 249 ईसा पूर्व पाटलीपुत्र में हुई थी और चतुर्थ संगीति कश्मीर में हुई थी।संगीति अर्ताथ बैठक - पहली संगीति मैं बोध के विचारो पर चर्चा हुई -

अभिधम्मत्थ सङ्ग्रहो;उच्च शिक्षा का सारांश है 

सुखावती व्यूहःइसमें स्वर्ग का वर्णन है 

 प्रज्ञापारमितासूत्र - प्रज्ञापारमितासूत्रों को जननी सूत्र भी कहते हैं

अभिधम्मपिटक

बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों: सारनाथ लुम्बिनी, बोधगया और कुशीनगर।

चैत्य का शाब्दिक अर्थ है, चिता-संबंधी। चोरटेन - चैत्य बौद्ध स्तूपों को कहा जाता था। स्तूप समाधि, अवशेषों अथवा चिता पर स्मृति स्वरूप निर्मित किया गया, अर्द्धाकार टीला होता था। उन्हीं को प्रारंभ में चैत्य अथवा स्तूप कहा गया कालांतर में बौद्धों ने इन्हें अपनी उपासना का केन्द्र बना लिया ये दो प्रकार के होते थे। पहाडों को काटकर बनाये गये चैत्य  2 ईंट-पत्थरों की सहायता से खुले स्थान में बनाये गये चैत्य

धार्मिक जुलूस सबसे पहले बौद्ध धर्म में ही निकाला गया था.

ऐसे कई प्राचीन मंदिर है जहां पर विष्णु और बुद्ध की साथ-साथ मूर्तियां हैं। अजंता और एलोरा को अच्छे से देख लें। बर्मा, थाइलैंड के बौद्ध मंदिरों को भी अच्छे से देख लें।थाईलैंड एक बौद्ध राष्ट्र है लेकिन बौद्ध बहुल देश होने के बावजूद हिंदू धर्म में अटूट आस्था रखता है। इसी तरह बर्मा, कंबोडिया, लागोस, जापान और श्रीलंका के बौद्ध स्तूपों और मंदिरों पर आपको स्पष्ट रूप से हिन्दू प्रतीकों और संस्कृति की स्पष्ट छाप मिल जाएगी।

बुद्ध की प्रथम मूर्ति मथुरा कला के अंतर्गत बनी थी. सर्वाधिक बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण गंधार शैली के अंतर्गत किया गया था

नवबौद्ध संप्रदाय की उत्पत्ति भारत की आजादी के बाद हुई।1950 के दशक में भारत के विद्वान राजनेता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने बुद्ध की उल्लेखनीय जीवनियां लिखीं।अपने अनगिनत अनुयायियो के साथबौद्ध धर्म अपनाकरबौद्ध धर्म को पुनर्जीवित कर दिया

BRANCHS OF BUDHA DHARMA IN JAPAN

 TIEN TAI स्कूल

 चीन में टियांटाई एक पर्वत का नाम है, जिसका अर्थ है "आकाश का मंच", लेकिन इस शब्द का  बौद्ध धर्म के एक विशेष स्कूल को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है। "तियानताई" शब्द का उपयोग  तियाताई ज़ही (538-597 के दार्शनिक विचारों को संदर्भित करने के लिए किया जाएगा

 TENDAI स्कूल

तेंदई एक महायान बौद्ध स्कूल है जिसे जापान में वर्ष 806 में सैचो नामक भिक्षु द्वारा स्थापित किया गया था, जिसे मरणोपरांत डेंगी दाशी के नाम से जाना जाता है। तेन्दई स्कूल हीयन काल (794-1185) के दौरान प्रमुखता से उभरा, TIEN TAI के संस्थापक झीयी की शिक्षाओं का सम्मान करते हैं।

593-622 AD prince SHOTOKU ने  इस धर्म को सरंक्षण दिए AD 305   MOUNT HIEI  प्रथम विहार का निर्माण हुआ यह चीन के TIEN TAI स्कूल से प्रभावित था इसे  TENDAI BUDDISM कहते है Jōdo-shū तथा Nichiren Buddhism उसकी दो शाखा  निकली

 इसके विरोधी धड़े ने MOUNT KOYA  मैं अपना मुख्यालय बनाया KUKAI MONK (740-835 ) ने इस धर्म SHINGON BUDDHISM को जनम दिए इन्होने पहले अमिताभ buddha का प्रचार किया NEMBUTSU इनका मन्त्र था

 SHINGON BUDDHISM

शिंगोन बौद्ध धर्म वज्रयान वंशावली में से एक है, जो भारत से चीन तक फैला है। ये गूढ़ शिक्षा बाद में जापान में एक बौद्ध भिक्षु के नाम से पनपेगी जिनका नाम कोकाई) था इसे अक्सर जापानी रूढ़िवादी एसोटेरिक बौद्ध धर्म कहा जाता है। शिंगोन दो प्रमुख स्कूलों में विभाजित है - पुराना स्कूल, कोगी शिंगन (प्राचीन शिंगोन स्कूल)

 Esoteric Buddhism

 गूढ़ बौद्ध धर्म को मन्त्रायण और तंत्र शब्द से भी जाना जाता है। ये उपदेश गुप्त हैं और हर किसी के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जबकि पुस्तकों से सीखी गई गूढ़ शिक्षाएं सभी के लिए सुलभ हैं। Esotericism के छात्र (जाप: mikkyo) को एक गुरु से उचित दीक्षा प्राप्त करनी चाहिए। Esoteric Buddhismमें एक रहस्यमय तत्व होता है,  तिब्बती बौद्ध धर्म (वज्रयान) में, अभ्यास को 'गुरु योग' के रूप में जाना जाता है। अनुष्ठान सूत्र, जैसे मंत्र, मुद्रा, ध्यान, और मंडल आवश्यक उपकरण हैं होमा  अनुष्ठान  में अग्नि के देवता अग्नि की पूजा की जाती है ।

 Zen Buddhism

Zen Buddhism भारतीय महायान बौद्ध धर्म और ताओवाद का मिश्रण है। जेन बौद्ध धर्म को 6 वीं शताब्दी ईस्वी में भारतीय भिक्षु बोधिधर्म द्वारा चीन लाया गया था। इसे चीन में चेन् कहा जाता था। यह चीन में शुरू हुआ, कोरिया और जापान तक फैल गया, और 20 वीं शताब्दी के मध्य से पश्चिम में बहुत लोकप्रिय हो गया।

ज़ेन सीधे जीवन के अर्थ को समझने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए एक गहन अनुशासन की आवश्यकता होती है ज़ेन बौद्ध धर्म का सार है कि सभी मनुष्य बुद्ध हैं, और उन्हें स्वयं ही सवयं के लिए सत्य की खोज करनी है

 Odoru shūkyō

 Tenshō Kenstai Jingūkyō एक जापानी नया धार्मिक आंदोलन है जो शिंटो से उभरा है। यह 1945 में शुरू होने वाली गतिविधियों के साथ Sayo Kitamura  (1900-1967) द्वारा स्थापित किया गया था। कितामुरा ने तेनाशो-कताइजीन शीर्षक के तहत अमातरसु द्वारा कब्जे का दावा किया।

 इसका मुख्यालय Tabuse जापान के एक शहर में है।

 ODORU SHŪKYŌ

अनुयायी गैर-अहंकार का नृत्य  नामक नृत्य का अभ्यास करते हैं, इसीलिए धर्म को नृत्य धर्म (Odoru shūkyō) कहा जाता है

 Reiyūkai-

एक जापानी बौद्ध नया धार्मिक आंदोलन है जिसकी स्थापना 1919 में काकुतरु कुबो (1892-1944) और किमी कोटानी (1901-1971) ने की थी। रेयूकाई ने कई विभाजन का अनुभव किया है; ऋषि कृसे काई, बुशो गोनेंकाई क्यदान, मायचाइकाई क्यदान, और माय्डकई क्यदान

 TENRIKYO

शिन्तो की तेरह शाखाओं में से एक आधिकारिक मान्यता पंथ के रूप में पहचान है 19 वीं सदी की एक महिला नाकायमा मिक्की की शिक्षा से उत्पन्न है, अपने अनुयायियों के लिए ओयसमा के रूप में जानी जाती है

श्री खाटू श्याम जी

  निशान यात्रा में झूमते   भक् ‍ त - भगवान खाटू श्याम की जयकार करते हुए तंग गलियों से गुजरते हुए आनंद मे खो जाते है   और ...