मणिपुर में 9 जिले हैं। (विष्णुपुर, चंदेल, चुराचंदपुर, इम्फाल ईस्ट, इम्फाल वेस्ट, सेनापति, तमेंगलांग, थोबल और उखरूल) मणिपुर की प्रमुख भाषा मणिपुरी है जिसे मीठी या माइटिलोन के नाम से भी जाना जाता है। यह भाषा मणिपुर के साथ-साथ बांग्लादेश और म्यांमार में भी बोली जाती है।
मणिपुर में पुरुषों की पोशाक में मुख्य रूप से सफ़ेद कलर की धोती कुरता और सफ़ेद पगड़ी होती है। महिलाए एक विशेष प्रकार की ड्रेस पहनती है जिसे इंनाफी के नाम से जाना जाता है इसके अलावा एक फेनक और स्कर्ट भी महिलाओं की पोशाक में शामिल है।
मणिपुर राज्य से ही 'पोलो' खेल की उत्पत्ति हुई थी यहां पर पोलो को स्थानीय रूप से 'सगोल कांजेई' के रूप में जाना जाता है। अब दुनिया भर में पोलो का खेल खेला जाता है।
सामूहिक गान का कीर्तन रूप नृत्य के साथ जुड़ा हुआ है, जिसे मणिपुर में संकीर्तन के रूप में जाना जाता है । पुरुष नर्तक नृत्य
करते समय पुंग और करताल बजाते हैं । नृत्य का पुरुषोचित पहलू- चोलोम, संकीर्तन परम्परा का एक भाग है । सभी सामाजिक और धार्मिक त्यौहारों पर
पुंग तथा करताल चोलोम प्रस्तुत किया जाता है
पूर्वोत्तर भारत की ताजे पानी
की सबसे बड़ी झील मणिपुर में स्थित है। इसे लोकतक झील और सेन्द्रा द्वीप कहा जाता
है। लोकतक की पश्चिमी सीमा पर यह झील फुबाला है। विश्व का एकमात्र तैरता हुआ
राष्ट्रीय उद्यान है केईबुल लमजाओ राष्ट्रीय उद्यान जो लोकतक झील पर स्थित है। यह
मणिपुर के नाचने वाले हिरण संगई का अंतिम प्राकृतिक वास है।
राज्य के प्रमुख त्योहार
हैं—लाई हारोबा, रास लीला, चिराओबा, निंगोल चाक-कुबा, रथ यात्रा, ईद-उल-फितर,
इमोइनु, गाना-नागी, लई-नगाई-नी,
ईद-उल-जुहा, योशांग (होली), दुर्गा पूजा, मेरा होचोंगबा, दीवाली,
कुट तथा क्रिसमस आदि।
मुख्य पर्यटन केंद्र—कांगला, श्रीश्री गोविंदाजी मंदिर, ख्वैरमबंद बाजार (इमा किथेल), युद्ध स्मारक, शहीद मीनार, नूपी लेन (स्त्रियों का युद्ध) स्मारक परिसर, खोगंमपट्ट उद्यान, आजाद हिंद सेना (मोइरंग) स्मारक, लोकतंत्र झील, केइबुल लामजो राष्ट्रीय उद्यान, विष्णुपुर का विष्णु मंदिर , मोरह, सिरोय गांव, सिरोय पहाड़ियां, ड्यूको घाटी, राज्य संग्रहालय, खोग्जोम युद्ध स्मारक परिसर आदि हैं।
ख्वारम्बंद बाज़ार / इमा बाज़ार--
इंफाल शहर Ema Keithel (Mother's Market
मणिपुरी में 'इमा' शब्द का शाब्दिक अर्थ
अंग्रेजी शब्द 'मदर' यानि माता है। इस
मार्केट को पूरी तरह से महिलाओं द्वारा चलाया जाता है एवं इमा कीथेल 500 साल पुराना बाजार है यह एक सड़क के दोनों ओर दो खंडों में विभाजित है।
किराने का सामान एक तरफ बेचे जाते हैं और दूसरी तरफ अति सुंदर हथकरघा और घरेलू
उपकरण।
मदर्स मार्केट को कम से कम 4,000 महिलाएं चलाती हैं. यह एशिया का या शायद पूरी दुनिया का ऐसा सबसे बड़ा बाज़ार है जिसे सिर्फ़ महिलाएं चलाती हैं.
कंगला महल------- इम्फाल में स्थित एक पुराना महल है। यह इम्फाल नदी के दोनों (पूर्वी और पश्चिमी) किनारों पर विस्तृत है लेकिन अब इसके अधिकतर भाग के खंडहर ही बचे हैं। मणिपुरी भाषा में 'कंगला' का अर्थ 'सूखी भूमि' होता है और यह महल प्राचीनकाल में मणिपुर के मेइतेइ राजाओं का निवास हुआ करता था। मणिपुर के प्राचीन इतिहास-ग्रंथ 'चेइथारोल कुम्माबा' के अनुसार इस स्थान पर महल ३३ ईसवी काल से खड़ा था हालांकि यहाँ समय के साथ-साथ नए निर्माण होते रहे।
शहीद मीनार-- इंफाल शहर
1891 में अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देशभक्त मीती और आदिवासी शहीदों की याद मेंबीर टिकेंद्रजीत पार्क में इस ऊंचे मीनार का निर्माण करवाया गया है
मणिपुर राज्य संग्रहालय ---- पोलो ग्राउंड के पास संग्रहालय है
इमा बाज़ार , शहीद मीनार , पोलो ग्राउंड
, कंगला महल , मणिपुर
राज्य संग्रहालय , कंगला महल के पास है
श्रीश्री गोविंदजी मंदिर
इस भव्य मंदिर के दो सोने चढ़ी गुंबद, एक बड़ा मंडप और सभा हॉल है। गर्भगृह में मुख्य देवता गोविंदजी विराजमान हैं । गर्भगृह में मुख्य देवता के दोनों तरफ बलभद्र और कृष्णा की छवि मौजूद हैं, इसके अलावा दूसरी तरफ जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की भी छवि लगी हुई हैं।
गोविंदजी महाराजा नारा सिंह के कुल देवता थे 16 जनवरी 1846 में महाराजा
नारा सिंह के शासनकाल के दौरान मंदिर को बनवाकर तैयार करवा दिया था लेकिन इसकी मूल
सरंचना भूंकप की चपेट में आकर बहुत हद तक बर्बाद हो गई थी । जिसके बाद महाराजा चंद्रकृष्ण के शासनकाल में
पुननिर्माण (1876) करवाया गया। 1891 के एंग्लो मणिपुर युद्ध के दौरान मंदिर की
मूर्तियों को कोंग्मा ले स्थानांतरित कर दिया गया था । 1908 में महाराजा चर्चेंद्र
सिंह ने अपनी नए महल में प्रवेश के साथ ही मूर्तियों को वर्तमान मंदिर में स्थापित
करवा दिया था।
मुख्य मंदिर उच्च मंच पर एक वर्ग आकार की संरचना पर बनाया गया है। गर्भगृह प्रदक्षिणा पथ से घिरा हआ है। पवित्र स्थान दो छोटी दीवारों के साथ विभाजित हैं। बाहरी कक्ष और पोर्च को आर्केड सिस्टम के तहत विशाल स्तंभों के साथ बनाया गया है। रेलिंग के चार कोनों में "सलास" नामक छोटे मंदिरों का निर्माण किया जाता है। पवित्र स्थान के ऊपर दीवारें छत तक जाकर गुंबदों का रूप लेती हैं। प्रत्येक गुंबद पर कलश शीर्ष पर है। कलश के ऊपर एक सफेद झंडा फहराया गया है। दो गुंबदों की बाहरी सतह सोने के की परत चढ़ाई गई है। मंदिर प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है। मंदिर के निर्माण में ईंट और मोर्टार का इस्तेमाल किया गया है। राधा के साथ गोविंदजी की पवित्र छवियां केंद्रीय कक्ष में मौजूद हैं।
War Cemetery--
युद्ध कब्रिस्तान --- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मारे गए ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों की याद मैं बनाया गया है
तांगखुल चर्च
युद्ध कब्रिस्तान के पास है
Khonghampat Orchidarium
खोंगमपत ऑर्किडेरियम ---. खोंगमपत इम्फाल से 10 कि.मी है --- 200 एकड़ में फैला है 110 से अधिक दुर्लभ किस्मों के ऑर्किड शामिल हैं,। मार्च-अप्रैल में चरम खिलने का मौसम होता है।
Three Mothers Art Gallery
Three Mothers Art Gallery ----मातृभूमि, मातृभाषा और स्वयं की मां का प्रतीक है।
097749 87618 threemothersartgallery@gmail.com 9:00 AM - 5:00 PM
ग्रीक पौराणिक कथाओं में मेडुसा एक
राक्षस था, जिसे
आमतौर पर बालों के स्थान पर जीवित जहरीले सांपों के साथ एक पंख वाली मानव महिला के
रूप में वर्णित किया गया था। लोक मान्यता अनुसार उसके चेहरे को देखने वाला पत्थर
मैं बदल जाता है
"लॉर्ड प्रोटेक्टर" -ड्रैगन सिंहासन---- यह "टौरोइनई सिंहासन" है,
मेथिस की पवित्र पुस्तक "लीसेम्बा पुया" और "लैंगमाइचिंग-चिंग-कोइ-रोल" के अनुसार, जो भगवान और देवताओं के अनुरोध पर, पृथ्वी पर चंद्रमा से आए थे
Taohuireng Apanba, सूर्य देव, meiteis का मानना है कि सूर्य भगवान केवल एक घोड़े की सवारी करते हैं। लेकिन
हिंदुओं की पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव सात घोड़ों
की सवारी करते हैं, जो सुंदरकांड के सात रंगों का
प्रतिनिधित्व करते हैं।
मोइरंग -----
यह शहर इम्फाल से 48 कि.मी., लोकतक झील के पास स्थित है जब आप Moiraang जाते हैं
- तो आप नीचे दिए गए सभी स्थानों को देख सकते हैं—
यहां के तक्मू वाटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में बोटिंग और अन्य वाटर स्पोर्ट्स का आयोजन किया जाता है
मणिपुर में लोकतक झील
एक सुंदर ताजे पानी की झील है। यह मोइरांग के पास स्थित है और इसे उत्तर पूर्व भारत
की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील माना जाता है। फ्लुम्डी 'नामक फ्लोटिंग वनस्पति
इसकी विशेषता है। लोकतक
झील को दुनिया में एकमात्र' फ्लोटिंग लेक है। ‘फुमदी’ जो अपघटन के
विभिन्न चरणों में वनस्पति, मिट्टी और जैविक
मामलों का एक विषम ठोस आकृति पिंड है।
लोकतक झील मणिपुर के
लिए एक प्राकृतिक खजाना है जो राज्य की बिजली, सिंचाई और पेयजल
आपूर्ति को संचालित करता है। झील जैव विविधता में समृद्ध और प्रचुर मात्रा में है।
लोकतक झील का सबसे खूबसूरत पहलू फुमदी ’है झील के पूरे खंड में कई फुमदी
’तैर रहे हैं जो इसे एक अद्भुत परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं। ये फ्लोटिंग फुमदिस झोपड़ियों
के निर्माण के लिए पर्याप्त हैं स्थानीय मछुआरों इस पर शानदार बस्तियाँ बनाते हैं।
Keibul
Lamjao National Park-- केबुल लमजाओ
नैशनल पार्क on
the Loktak Lake
वन विभाग के पास पार्क के भीतर टावर हैं आप टावरों से पार्क के सुंदर दृश्य देख सकते हैं और दो विश्राम गृह हैं।यह नैशनल पार्क प्रसिद्ध लोकटक लेक के किनारे पर स्थित है और संगाई हिरणों dancing deer of Manipur का प्राकृतिक आवास है। इस पार्क की सबसे अनोखी बात यह है कि यह पानी पर तैरता हुआ पार्क है।
बिष्णुपुर --- Bishnupur-,( इम्फाल से 27 कि.मी.)
Loukoi Pat लौकी पाट ---- बिष्णुपुर स्थित लौकी पाट झील हैं
मौरंग से वापस आते समय - आप मणिपुर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर निथौंख में देख सकते हैं
खोंगजोम Khongjom War Memorial --
खोंगजोम युद्ध स्मारक - मौरंग से वापस आते समय--- भारत-म्यांमार सड़क पर इम्फाल से 36 कि.मी थौबल में हैं। यहीं पर मणिपुर के महान योद्धाओं में से एक मेजर
जनरल पाओना ब्रजबाशी ने 1891 में हमलावर ब्रिटिश सेना की
श्रेष्ठ पराक्रमी सेना के खिलाफ अपनी वीरता साबित की। खेबा पहाड़ी की चोटी पर एक
युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया है; और खोंगजोम दिवस हर
साल 23 अप्रैल को मनाया जाता है।
Red Hill (Lokpaching)----- लाल पहाड़ी
(लोकपथिंग) ----- इम्फाल से लगभग 16 किलोमीटर यह एक
रोमांचकारी स्थान है जहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिशों और जापानियों ने
एक भीषण युद्ध किया था। जापानी सैनिकों की याद में "भारत शांति स्मारक"।
यह जापानी पर्यटकों के लिए तीर्थ यात्रा का स्थान है।
Sadu Chiru Waterfall----About 20 Kms. from Imphal
मोरे
----- यह 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित
भारत-म्यांमार सीमा पर एक व्यस्त बाजार शहर है। इम्फाल से।
मोरे
एक वाणिज्यिक शहर और शॉपिंग स्वर्ग हैं
सीमावर्ती
शहर तमू जो केवल 5 किलोमीटर हैके माध्यम से म्यांमार की विभिन्न संस्कृतियों, जीवन शैली का अनुभव करने का एक अनूठा अवसर
उपलब्ध हैं।
मणिपुर
मे खाने पीने की बहुत सारी वैरायटी देखने को मिलती है। यहाँ के लोग मछली बहुत शौक
से खाते हैं। चूंकि यहां पर बहुत सारे आदिवासी समुदाय रहते हैं इसलिए यहां के भोजन
मे तरह तरह की जंगली वनस्पतियों का समावेश देखने को मिलता है। मणिपुर के स्थानीय
भोजन में मुख्य रूप से चावल तथा मछली प्रसिद्ध है। मछली की करी- नगा थोंगबा के नाम से जाना जाता है
चामथोंग सब्जियों के साथ बनाया जाता है यहां
एक खास किस्म की वेजिटेरियन थाली बड़ी मशहूर है। कहते हैं इस थाली मे 101 प्रकार के भोजन परोसे जाते हैं।
धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, परिवार मे होने वाले मांगलिक अवसरों पर इस थाली को तैयार किया जाता
है। इस थाली का नाम है-उषॉप। मुख्य रूप से यह मंदिरों में विशेष अवसरों पर भगवान
को भोग लगाने के लिए तैयार की जाती है। इसे बनाने में पूर्ण सात्विकता को विशेष
महत्व दिया जाता है। इसे केले के पत्तों से बनी कटोरियों में ही परोसा जाता है। इस
खास थाली की जड़ें कहीं सत्रहवीं शताब्दी में महाराजा गंभीर सिंह जी के समय मे
मिलती हैं, जब
मणिपुर में वैष्णव संप्रदाय का प्रचार प्रसार शुरू ही हुआ था।