Ujjain---- कवि हों या संत, भक्त हों या साधु, पर्यटक हों या कलाकार, पग-पग पर मंदिरों से भरपूर पवित्र नदी क्षिप्रा के मनोरम तट के दाहिने
किनारे पर स्थित, कवि कालिदास की नगरी,
शाश्वत शहर उज्जयिनी, उन सात प्राचीन पुरी में शुमार है जहाँ
मोक्ष की प्राप्ति होती है यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी ।
उज्जयिनी को भारतीय राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान के नाभि केंद्र
(मणिपुर कमल) के रूप में वर्णित किया गया है। प्राचीन ग्रंथों में इसका अलग-अलग
नाम दिया गया है। अवंतिका, उज्जैन, प्रतिकल्प, कनकश्रंगा, अमरावती, शिवपुरी,
चुडामणि, कुमुदवती आदि कुछ ऐसे नाम हैं। कवि कालिदास ने इसे महान विशाला कहा है,
महाभारत में उल्लेख आता है कि कृष्ण व बलराम यहाँ गुरु सांदीपनी के आश्रम में विद्या प्राप्त करने हेतु आये थे। कृष्ण की एक पत्नी मित्रवृन्दा उज्जैन की ही राजकुमारी थी।
मत्स्य पुराण के अनुसार यह वही महाकाल वन था जहाँ
ब्रह्मा के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने सभी प्राणियों के कल्याण के लिए कुश घास के
आसन पर विराजमान किया था, इसलिए, इस
शहर को कुशस्थली के नाम से भी जाना जाता था।इस क्षेत्र में, महाकाल
ने ब्रह्मा का सिर काटकर और उनके कपाल को कुचलने के बाद तपस्या की,
जहां तक उज्जयिनी नाम का संबंध है, पौराणिक कथा अनुसार त्रिपुरा राक्षस, ब्रह्मा द्वारा आशीर्वादित होने के कारण, देवताओं और उनके अनुयायियों के प्रति बहुत क्रूर और अत्याचारी हो गया। अंततः, सभी दिव्य शक्तियों ने भगवान शिव से त्रिपुरा से उनकी रक्षा करने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने देवी रक्तदंतिका की पूजा की और उन्हें प्रसन्न करने के बाद महापशुपतास्त्र प्राप्त किया, जिसके प्रहार से राक्षस मारा गया। इस विजय (जीत) के परिणामस्वरूप शहर उज्जैनी या उज्जैन के रूप में लोकप्रिय हो गया।
इसी महाकाल वन में भगवान शिव ने राक्षस अंधक का भी वध किया था। यह वह
क्षेत्र भी था जहां प्रख्यात भक्त प्रह्लाद ने भगवान विष्णु और भगवान शिव से अभय
(निर्भयता) प्राप्त किया था।
उज्जैन का प्राचीन शहर कभी अशोक राजा
का निवास हुआ करता था। आज सदियों पुराना यह शहर एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल है, जहां 12 साल में एक बार कुंभ मेला लगता है। उज्जैन
में आपको सबसे पहले हरसिद्धि मंदिर जाना चाहिए, जो भारत के 51
शक्तिपीठों में से एक है।
Shree Mahakaleshwar Temple उज्जयिनी के श्री महाकालेश्वर भारत में बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में पूजा का महत्व पाया जाता है। महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है।
मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का क्षेत्रफल 10.77 x 10.77 वर्गमीटर और ऊंचाई 28.71 मीटर है. महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है।
मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी।
श्री महाकालेश्वर मंदिर का पुनः निर्माण 1734 ई॰ मराठा के जनरल रनोजी सिंधिया ने करवाया इसके बाद सिंधिया वंश के दौरान मंदिर की विकास कार्य आगे तक चलता रहा। सन १९६८ के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था।
इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा १९८० के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। हाल ही में इस मंदिर के 118 शिखरों पर 16 किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है।
अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट
सुविधा भी चालू की गई है श्री महाकालेश्वर मंदिर में गुरुवार सुबह हुई भस्म आरती
में बाबा महाकाल का भगवान गणेश के रूप में भांग, चंदन और
सिंदूर से श्रृंगार किया गया। सुबह मंदिर के पट खुलने के बाद महाकाल को ठंडे जल से
स्नान कराया गया। मंत्रोच्चार के साथ दूध दही घी शक्कर रस के पंचामृत से अभिषेक
पूजन किया गया। मनमोहक श्रृंगार किया गया। महानिर्वाणी अखाड़े की और से भगवान
महाकाल को भस्म अर्पित की गई।वस्त्र, सिर पर रजत मुकुट धारण
किया महाकाल ने। रजत के रुद्राक्ष ,गुलाब और गेंदे से बनी
फूलों की माला अर्पित की गयी। फलों और मिष्ठान का भोग लगाया भस्म आरती में बड़ी
संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने बाबा महाकाल का आशीर्वाद लिया।
हरसिद्धि मंदिर
रूद्र सागर तालाब के सुरमई तट पर -महाकाल मंदिर के पास -51 शक्ति पीठों मे से एक - विक्रमादित्य की आराध्य
देवी -हरसिद्धि देवी का सिद्ध शक्ति पीठ मंदिर स्तिथ है जो अपनी चमत्कारी शक्तियों - जगमगाते हुए रत्नो के सामान दिव्या रौशनी से
प्रकाशमान 1011 दीपों से सुसज्जित 2 दीप सतम्भो के अलौकिक दृश्य, अवर्णनीय शोभा आरती के कारण
भारत ही नहीं विश्व भर मे प्रसीद है शंख की धवनि -नगाड़ो के स्वर के
मध्य स्वयंसेवक रोज अपनी जान पर खेल इस अलौकिक दृश्य
की रचना करते है- लोक मान्यता अनुसार हरसिद्धि माता गुजरात में
रहती थी -राजा विक्रमादित्य अपने तप से माँ को उज्जैन ले आए - आज भी माता सुबह
गुजरात मे रहती है शाम को आरती के समय माँ
हरसिद्धि मंदिर में प्रवेश करती है –
आज भी उज्जैन में माता की आरती शाम के समय होती है और सुबह के समय
गुजरात में होती है।
यह देवी के 51 शक्तिपीठों में से 13वां शक्तिपीठ है। जिसका निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने 21
मार्च 1766 को कराया था- मंदिर के चार प्रवेश द्वार है मंदिर
की सीढ़ियाँ चढ़ते ही सामने मां हरसिद्धि के वाहन सिंह की विशाल प्रतिमा है। द्वार
के दाईं ओर दो बड़े-बड़े नगाड़े रखे हैं, जो
प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं। गरब
ग्रह मे हरसिद्धि देवी = पीछे माँ अन्नपूर्णा
देवी -नीचे महा काली - द्वार पर भैरव जी है मंडप गृह मे श्री यंत्र ,51 देवी के चित्र ,
मंदिर के सामने में 51 फीट ऊंचे दो बड़े दीप स्तंभ हैं। जिसे जलाने के लिए एक बार
में 60 लीटर तेल व बाती के लिए 4 किलो रुई की की आवश्यकता होती है
मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके
बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत 1447 अंकित है
गुप्त कमरे मे अखंड ज्योति महामाया माँ का रूप है महासरस्वती और महालक्ष्मी की मूर्तियों के बीच
गहरे लाल रंग में चित्रित अन्नपूर्णा की एक मूर्ति है
हरसिद्धि मंदिर में देवी की
दिव्य मूर्ति पूर्वाभिमुखी महिषासुर मर्दिनी मुद्रा में विराजमान है
दीपक राग गा कर शिव शक्ति के प्रतीक दोनों डीप स्तम्ब प्रजलवित किया
जाते थे-
इस मंदिर के प्रांगण में शिवजी का कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर भी है जो
कि चौरासी महादेव में से एक है जहां कालसर्प दोष का निवारण होता है एक मंदिर विघ्नहर्ता गणेश जी को समर्पित है
Gopal Mandir Temple-- कृष्ण जन्माष्टमी पर जहां देश भर में कान्हा की पूजा में उनके भक्त डूबे हैं वहीं एक ऐसा मंदिर भी है जहां कान्हा के जन्म के बाद उनकी आरती नहीं उतारने की परंपरा है। क्योंकि यह परंपरा करीब 110 सालों से चली आ रही है। जी हां यह उज्जैन के श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में एक अनूठी परंपरा है। यहां जन्म के बाद कन्हैया पांच दिनों तक सोते नहीं हैं। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म (जन्माष्टमी) के बाद रोज होने वाली शयन आरती पांच दिनों तक नहीं होती है। मान्यता के अनुसार बछबारस पर भगवान बड़े हो जाते हैं। इस दिन सुबह अभिषेक पूजन के बाद उन्हें चांदी की पादुका पहनाई जाती है। चांदी की यह पादुका सिंधिया राजवंश की है। श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर का निर्माण संवत् 1909 में सिंधिया राजवंश की महारानी बायजाबाई सिंधिया ने कराया था। अत्यंत कलात्मक व भव्य मंदिर में भगवान द्वारकाधीश पटरानी रुक्मिणीजी के साथ विराजित हैं।
Chaubis Khamba Temple
एक भव्य संरचना, चौबीस खंबा मंदिर उज्जैन में घूमने के लिए एक और लोकप्रिय पवित्र स्थान है। मनोरम संरचना 9वीं या 10वीं शताब्दी की है। इस मंदिर में आप स्थापत्य कला का एक सुंदर उदाहरण देख सकते हैं। प्रवेश द्वार मंदिर के संरक्षक देवी-महालय और महामाया की छवियों को प्रदर्शित करता है इस मंदिर में दर्शन आप सुबह 5:30 बजे से शाम 6 बजे के बीच कर सकते हैं।
श्री चारधाम मंदिर उज्जैन
यहां पर श्री द्वारका धाम, श्री रामेश्वर धाम, श्री बदरीनाथ धाम और श्री जगन्नाथ धाम के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यहां पर मां वैष्णो माता की गुफा भी बनाई गई है। वैष्णो माता की गुफा में प्रवेश के लिए 5 रूपए का शुल्क लिया जाता है। वैष्णो माता की गुफा के बाहर ही, शंकर जी श्री कृष्ण जी गणेश भगवान जी और नरसिंह भगवान कृष्ण भगवान के विराट रूप और शिव भगवान जी के भी दर्शन किए जा सकते हैं। यहां पर 12 ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है। मंदिर में गार्डन बना हुआ है, जहां पर आप बैठकर शांति से अपना समय बिता सकते हैं। यहां पर गौ माता के लिए गौशाला भी बनी हुई है। यहां पर पर्यटक के रुकने की व्यवस्था भी है। चार धाम मंदिर में धर्मशाला बनी हुई है।
रणजीत हनुमान मंदिर (Ranjeet Hanuman Temple) का अस्तित्व : बात
है वर्ष 1907 की तब पहलवानी का शौक रखने वाले भारद्वाज ne इस
वीरान वन क्षेत्र में पतरे की ओट लगाकर हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित
कर दी और छोटा-सा अखाड़ा बना दिया। विशेष बात यह है कि इस
मंदिर में कोई द्वार नहीं है,रामनवमी और हनुमान जयंती पर यहां विशेष
श्रृंगार, अनुष्ठान, पूजा-पाठ
और आरती की जाती है। रणजीत हनुमान
मंदिर प्रांगण में शनिवार के दिन दोपहर में एक विशेष आरती होती हैं
Bharat Mata Mandir== 2018 में माधव सेवा न्यास की ओर से निर्मित भारत माता मंदिर का लोकार्पण 4 जनवरी को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और वात्सल्यग्राम की अधिष्ठात्रि ऋतंम्भरा द्वारा किया गया था मंदिर का निर्माण गर्भगृह सहित 3000 वर्ग फीट है। मंदिर का खुला क्षेत्र 3000 वर्ग है। जमीन से शिखर तक की ऊंचाई 101 फीट है। तीन तल ke मंदिर का निर्माण में धोलपुर के लाल पत्थरों का उपयोग किया गया है प्रथम तल पर ध्यान केंद्र,, पुस्तकालय द्वितीय तल पर 120 लोगों के बैठने का ऑडिटोरियम तृतीय तल पर भारत माता की मार्बल 16 फीट प्रतिमा सुशोभित है तथा दीवार पर चारों और नवदुर्गा की प्रतिमा विराजित की गई है। साथ ही भारत माता का एक किलो सोने से निर्मित मुकुट शीश पर धारण किए हैं। मंदिरों में कुल 5 द्वार का निर्माण कर कांच लगाए गए हैं,
विक्रमादित्य का मंदिर --शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर के समीप उज्जयिनी के सम्राट राजा विक्रमादित्य का मंदिर है। 500 साल पुराने इस मंदिर के पुजारी पं.अखिलेश जोशी सम्राट विक्रमादित्य के मंदिर में सेवा पूजा करने वाले पांचवीं पीढ़ी के सदस्य हैं। वे बताते हैं उनके परिवार के पास भोज पत्र पर बना एक यंत्र है। इसमें विश्व का नक्शा दिखाई देता है, मध्य में एक भ्रूण की आकृति नजर आती है। इस स्थान को उनके पर दादा पृथ्वी का नाभि केंद्र बताते थे। वह स्थान मंदिर में स्थित विक्रमादित्य की मूर्ति के पैर के नीचे है। कालांतर में राजा जयसिंह ने मोक्षदायिनी शिप्रा के गऊघाट के समीप यंत्र महल का निर्माण कराया। जहां से 100-100 साल के पंचाग की गणना होने लगी। मंदिर में प्रतिदिन राजा विक्रामादित्य की आरती पूजा होती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर विशेष उत्सव मनाया जाता है।
यह मूर्ति करीब 18 फीट ऊंची और 10 फीट चैड़ी है। मूर्ति के दोनों ओर रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियों है। गणेश जी की इस मूर्ति की सूंड दक्षिणावर्ती दिखाई गई है जो बहुत ही कम देखने को मिलती है। कहा जाता है कि इस विशाल प्रतिमा को बनाने में सीमेंट का प्रयोग बिलकुल भी नहीं किया गया है। बल्कि सिमेंट के स्थान पर इसमें गुड़ और मेथीदाने का उपयोग किया गया है। एक और खास बात यह है कि इसमें देश की सात मोक्ष पुरियों- सहित अन्य अनेकों प्रमुख तीर्थ स्थलों की मिट्टी और पवित्र जल लाकर भी इस मूर्ति के निर्माण में उपयोग किया गया है। बड़ा गणेश मंदिर में आज भी ज्योतिष विज्ञान, संस्कृत भाषा, पूजा-पाठ विधि और नैतिक शिक्षा का परंपरागत ज्ञान बांटा जाता है।
लेकिन इस मंदिर का असली आकर्षण इस मंदिर के मध्य भाग में स्थित
कृष्ण एक बहुत नटखट बच्चे , एक बांसुरी वादक , एक चतुर राजनेता,
महायोगी , भयंकर योद्धा, और ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने
भीतर समाए हुए हैं। अगर आप कृष्ण को समझना चाहते हैं, तो उज्जैन के
संदीपनी आश्रम मे नयी बनाई गई कला दीर्घा की यात्रा आवश्यक है इस कला
दीर्घा में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सीखी गई 64 विद्याओं और और उनसे जुड़ी
कला का संक्षिप्त उल्लेख चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।
इसमें गीतकला, वाद्यकला, नृत्यकला, नाट्यकला , धनुर्विद्या, अस्त्र मंत्रोपनिषद,
इंद्रजाल, गज एवं अश्वरोहण , शस्त्र, शास्त्र व धर्म सहित फर्नीचर से लेकर इत्र
बनाने की विद्या आदि के साथ फूल व पत्तियों से रंग बनाने की कला भी
शामिल है। गुरु सांदीपनि ने श्रीकृष्ण को रंग बनाने के साथ कपड़ों पर छापे
लगाने आदि की कला भी सिखाई थी। भगवान को यहां पिचकारी में जल
भरकर छोडऩे की जल क्रीड़ा का ज्ञान भी प्राप्त हुआ था।
आर्किटेक्ट अशोक भार्गव और उनके 100 साथियों को करीब पांच महीने का
वक्त लगा. इसके खर्च के लिए उन्हें 6.73 करोड़ रुपए नगर निगम की ओर से दिए गए.
कहा जाता है कि मुगल काल में बरगद के इस वृक्ष नष्ट करने के लिए उस पर लोहे के बहुत मोटे-मोटे तवे जड़वा दिए थे। इसके बाद भी इस वृक्ष के फिर से अंकुर फूट निकले और आज भी ये वृक्ष हरा-भरा है।
राम घाट हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक
महत्व का है क्यों कि इसे कुंभ
समारोह के संबंध में सबसे पुराने स्नान घाटों में से एक माना जाता है - हर 12 साल में
कुंभ मेला लगता है। लगभग 2 करोड़ लोग मेले में शामिल होते
हैं।
पौराणिक कथा अनुसार कुछ लोक मान्यताएं
1 एक बार
भगवान शिव विष्णु जी के पास भिक्षा लेने गए -विष्णु जी ने भिक्षा देते हुए भगवन शिव को ऊँगली दिखा दी
- शिव ने अपने त्रिशूल से उनकी ऊँगली काट दी - वो खून विष्णु लोक से धरती पर आ
गिरा तथा शिप्रा नदी मैं परिवर्तित हो गया -
2 माना जाता है कि भगवान विष्णु ने राम घाट पर
अमृत की कुछ बूंदें डालीं।
3
वाराणसी की तरह यहाँ भी -नजदीक के शमशान घाट पर शाम
के बाद भी चिता जलाई जाती है यही से भस्म आरती की राख जाती थी – अब तो कंडे
की राख से भस्म आरती होती है 4 भगवन राम ने अपने पिता जी की मृत्यु के
बाद उनका तरपन यही किया था
शाम की क्षिप्रा आरती राम घाट पर सबसे
अच्छे आकर्षणों में से एक है। घाट के किनारे गुरु नानक साहब जी का गुरुद्वारा भी
देखने के लिए मिलता है। यह गुरुद्वारा रामघाट के दूसरे तरफ है। घाट के दूसरे तरफ
जाने के लिए पुल बना हुआ है रामघाट के
किनारे पिशाचमुक्तेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है। पिशाचमुक्तेश्वर महादेव मंदिर 84 महादेव मंदिरों में से एक है। राम मंदिर
घाट से सूर्यास्त देखना सबसे आकर्षक दृश्यों में से एक है।श्री वेदमाता गायत्री
मंदिर, नागचंद्रेश्वर
मंदिर ,रामघाट के
दूसरे तरफ भूखी माता का मंदिर है
गुफा नंबर दो बहुत सकरी है। इस गुफा
की ऊंचाई ज्यादा नहीं है। इस गुफा में गोपीचंद जी का साधना स्थल गुफा में अंदर
जाकर शिवलिंग विराजमान है। इस शिवलिंग को नीलकंठेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता
है। गुफा में लाइट की पूरी व्यवस्था है
यहां पर गौशाला बनी हुई है, जहां पर उच्च कोटि की गायों को रखा गया
यहाँ चार यंत्र लगाये गये हैं —समरात
यंत् नाद वलम यंत्र दिगांरा यंत्र मिट्टी यंत्र यहां की प्रसिद्घ वेधशाला जयपुर नरेश सवाई जयसिंह द्वितीय ने सन 1733
में बनवाई थी जिसका जीर्णोद्घार सन 1925 में हुआ था।
गढ़कालिका मंदिर
आस्था ,निष्ठा पूजा का केंद्र -तांत्रिक विद्या का गढ़ उज्जैन के गढ़ नामक
स्थान पर स्थित,51 शक्तिपीठों मे से एक, सिद्ध शक्ति पीठ ,गढ़कालिका मंदिर माँ कलिका को समर्पित मंदिर है - - गड नामक
स्थान पर होने के कारण इसका नाम गड कलिका हो गया - लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार
भगवन श्री राम जब रवां कर अयोध्या वापिस
जा रहे थे तो इस क्षेत्र मे ठहरे थे -माँ कलिका ने हनु मान को खाने का
पप्रयास किया हनुमान जी ने विकराल रूप
धारण कर लिया - देवी चली गयी परन्तु उनका कुछ अंश कला हो कर यही गिर गया - और
कालिका कहलाया
वहीं 12 शक्ति पीठ महासिद्ध शक्ति पीठ कहे गए, जो इस प्रकार हैं :.शक्ति पीठ
1 - अम्बा (गुजरात), 2- कामाख्या
(गुवाहाटी ), 3- कुमारी(कन्याकुमारी) ), 4- कालिका (उज्जैन), 5- गुह्यकेश्वरी(नेपाल),
6- भ्रमराम्बा(श्रीशैलम), 7 – ललिता(प्रयाग),
8- महालक्ष्मी (कोल्हापुर), 9- मंगलावती (गया),
10- विंध्यवासिनी (विंध्यांचल), 11-
त्रिपुरसुन्दरी(बंगाल), एवं 12- विशा-varanasi
पहले जानते है इस मंदिर की रहस्य मई बातें
1-- 12 शक्तिपीठो
मे इसका स्थान 6 है यहाँ भैरव पर्वत पर सती के होंठ गिरे थे
2 तांत्रिक विद्या की किताब -त्रिपुरा रहस्य माहात्म्य
अनुसार --- तांत्रिक क्रिया के लिए इस मंदिर की विशेष महत्व है कई तांत्रिक इस
मंदिर में आते हैं।
3 यहां कपड़े के बनाए गए नरमुंड
तथा निम्बू चढ़ाए जाते हैं।नवरात्रो मे यहाँ विशेष आयोजन होता है - प्रसाद के रूप
में दशहरे के दिन नींबू बांटा जाता है। इन नौ दिनों में माता कालिका अपने भक्तों
को अलग-अलग रूप में दर्शन देती हैं।
मंदिर की स्थापना के बारे कोई प्रमाण नहीं है परन्तु इसे महाभारत कालीन माना समय समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा - राजा
विक्रमादित्य ने ईस्वी संवत 606 में करवाया था
महाकाव्य---कुमारसंभवम्
उनके महाकाव्यों के नाम है। रघुवंशम् में सम्पूर्ण रघुवंश के राजाओं की गाथाएँ हैं,
तो
कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।
रघुवंशम् में कालिदास ने रघुकुल के राजाओं का वर्णन किया है।
खण्डकाव्य
मेघदूतम् एक गीतिकाव्य है जिसमें यक्ष द्वारा मेघ से सन्देश ले जाने
की प्रार्थना और उसे दूत बना कर अपनी प्रिय के पास भेजने का वर्णन है। मेघदूत के
दो भाग हैं - पूर्वमेघ एवं उत्तरमेघ।
ऋतुसंहारम् में सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का विस्तार से
वर्णन किया गया है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर मां के वाहन सिंह की प्रतिमा बनी हुई है। - गर्भ गृह मे गेरुआ रंग के सिन्दूर से लेपित विशाल मूर्ति के दर्शन होंगे जो
चांदी के मुकुट तथा चांदी के दांतो से सुसज्जित है गर्भ गृह मे लक्समी सरस्वती
विराजमान है
काल भैरव - अर्थात -काल के आदि देव - काल यानि समय- भैरव अर्थात भय का हरण करने वाला, भगवन
शिव का रौद्र रूप - और आठ भैरवों में सबसे महत्वपूर्ण - शिव के रुधिर से भैरव की उत्पति हुई -
जो बाद मैं दो भागों मे बंट गया - काल भैरव तथा बटुक भैरव= जहां काल भैरव शिव का रौद्र रूप है बटुक भैरव बाल रूप है कालभैरव
की पूजा भारत समेत श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत
आदि स्थानों पर होती है. अलग-अलग स्थानों पर उन्हें अलग-अलग नामों से पूजा जाता
है. महाराष्ट्र में खंडोबा .दक्षिण भारत में शाश्ता है.
लेकिन हर जगह उन्हें काल के स्वामी रूप में ही जाना जाता है. भैरव
को दंड पाणी भी कहा जाता है जिसका अर्थ है पापियों को दंड देने वाले. इसीलिए उनका
अस्त्र डंडा और त्रिशूल है. उन्हें स्वासवा भी कहा जाता है अर्थात जिसका वाहन
कुत्ता है. प्राचीन
शास्त्रों की माने तो काल भैरव मंदिर को तंत्र पंथ से जोड़ा जाता है जो एक गुप्त धार्मिक संप्रदाय है,
काल भैरव- काशी , उज्जैन --
तथा बटुक भैरव-दिल्ली नेहरू पार्क , नैनीताल के पास घोडा खाड़
- यहाँ इसे गोलू देवता भी कहते हैजयपुर जिले के चाकसू कस्बे मे भी प्रसिद बटुक
भैरव मंदिर हे जो लगभग आठवी शताब्दी का बना हुआ हे माना जाता है कि भगवान शिव के
तम गण हैं – भूत, प्रेत, पिशाच,
पूतना, कोटरा और रेवती आदि. विपत्ति, रोग और मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके सैनिक हैं और इन सभी गणों के
अधिनायक है बाबा काल भैरव.
मुख्य शहर से दूर ,क्षिप्रा नदी के किनारे ,भैरवगढ़ क्षेत्र में एक
ऊंचे टीले पर स्थित 6000 वर्ष पुराना यह
मंदिर काले पत्थर से राजा भद्रसेन द्वारा
बनाया गया था। दिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण के अवंति खंड
में मिलता है। इस मंदिर में भगवान कालभैरव के वैष्णव स्वरूप का पूजन किया जाता है।
मंदिर के चारों ओर परकोटा (दीवार) बना
हुआ है। मंदिर पर मराठा शैली का प्रभाव पुनर्निर्माण के समय पड़ा
कालभैरव मंदिर
के मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही कुछ दूर चलकर बांई ओर पातालभैरवी का स्थान
है। इसके चारों ओर दीवार है। इसके अंदर जाने का रास्ता बहुत ही संकरा है। करीब
10-12 सीढिय़ां नीचे उतरने के बाद तलघर आता है। तलघर की दीवार पर पाताल भैरवी की
प्रतिमा अंकित है। ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में योगीजन इस तलघर में बैठकर
ध्यान करते थे।कालभैरव मंदिर से कुछ दूरी पर विक्रांत भैरव का मंदिर स्थित है।
श्मशान और नदी का किनारा होने से यहां
दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं। इस मंदिर में
भगवान कालभैरव की पगड़ी ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा
सैकड़ों सालों से चली आ रही इस संबंध में
मान्यता है कि करीब 400 साल पहले सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु
राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो
महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को अर्पित कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त
करने के लिए भगवान से प्रार्थना की।
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि
यहां भगवान कालभैरव की प्रतिमा को शराब का भोग लगाया जाता है।आश्चर्य की बात यह है
कि देखते ही देखते वह पात्र जिसमें मदिरा का भोग लगाया जाता है, खाली हो जाता है। पदम् श्री विष्णु श्री धर ने
इस प्रतिमा के नीच खुदाई भी की थी परन्तु उन्हें शराब का एक कण भी नहीं मिला
कालभैरव के इस मंदिर में दिन में दो
बार आरती होती है। एक सुबह साढ़े आठ बजे आरती की जाती है, दूसरी आरती रात में साढ़े आठ बजे की जाती है।भैरव को उज्जैन नगर का
सेनापति भी कहा जाता है
भूखी माता –
कहा जाता
है कि भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। तब जवान लड़के को उज्जैन
का राजा घोषित किया जाता था, उसके बाद
भूखी माता उसे खा जाती थी। एक दु:खी मां ने इसके लिए विक्रमादित्य को अपनी फरियाद
सुनाई। नरबलि वाली रात को विक्रमादित्य ने पूरे नगर को
सुगंधित पकवानों और स्वादिष्ट छप्पन भोग मिठाइयों
से सजाने का आदेश दिया। जगह-जगह छप्पन भोग सजा दिए गए। इन छप्पन भोगों के चलते
भूखी माता की भूख पहले ही शांत हो गई। देवी ने खुश होकर
वरदान मांगने के लिए कहा, तब
विक्रमादित्य ने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप किसी भी इंसान की बलि न लें और कृपा करके
नदी के उस पार ही विराजमान रहें मार्गशीर्ष शुक्ल
पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा के बीच भूखी माता को गुलगुले का नैवेद्य अर्पित करने
की परंपरा है गुर्जर गौड़
ब्राह्मण समाज के परिवार अन्य कई समाज भी
भूखी माता के दरबार में पहुँचकर देवी का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।
बर्बादी
के लिए वैसे तरीके अनेक हैं। पर
विवाह सबसे सर्वश्रेष्ठ व नेक है।परन्तु
बहुत से ऐसे लोग
है जो विवाह न
होने के कारण दुखी रहते है भारतीय जयोतिष
शास्त्र अनुसार मंगल
दोष के कारण विवाह
होने अड़चनें में
आती हैं, यदि विवाह हो भी जाता
है तो शादी
टूट सकती है, जीवनसाथी से तालमेल का
अभाव रहता है। ज्योतिष शास्त्र
अनुसार इसका निवारण भी किया जा
सकता है तो सभी
कुंवारे हो जाओ अलर्ट
-आओ जानते है कहाँ किया
जा सकता है इसका निवारण
-थर्ड ऑय ट्रेवल व्लॉग
आज आप की समस्या समाधान
हेतु करवाए गए ऐसे मंदिर
के दर्शन जहाँ है आपकी
शादी की कुंजी
उज्जैन नगरी को मंगल की
जननी भी कहा जाता
है भूमिपुत्र
मंगल की यहां पर
शिवलिंग के रूप में
पूजा की जाती है.
ग्रहों ke सेनापति
मंगल को
समर्पित मंगल नाथ मंदिर उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे बना
हुआ हैं।
- मंगल
यानि MARS ---मंगल
ग्रह के दो चंद्रमा
है फोबोस (Phobos) और डीमोस (Diemos) फोबोस
डीमोस से बड़ा है।
फोबोस का ग्रीक भाषा
में अर्थ होता है “भय”। इसलिये
ग्रीक लोग मंगल को “भय का देवता”
भी कहते थे। भारतीय जयोतिष में मंगल ग्रह को “युद्ध का देवता” माना
जाता है। फोबोस उपग्रह को “शुक्र का बेटा” भी
कहते थे। पृथ्वी से देखने पर
यह लाल दिखाई देता है। इसलिए इसे लाल गृह भी कहते हैं।
धार्मिक manyata अनुसार मंगल
देवता को लाल रंग
प्रिय है, so मंदिर का मुख्य भाग
भी लाल रंग का है। चूंकि
मंगल शिव पुत्र है इसलिए मंदिर jhane par
के पास चंद्रमा और सूर्य केसरिया
रंग में हैं। यह मंदिर 2 मंजिला
है और दूसरी मंजिल
में शिव जी का मंदिर
देखने के लिए मिलता
है। प्रथम तल पर पूजा
विधि संपन्न की जाती है
पौराणिक
मान्यता के अनुसार एक
बार अंधकासुर नाम के दैत्य ने
कठिन तपस्या के बल पर
भगवान शिव से वरदान प्राप्त
किया कि यदि उसके
बूंद पृथ्वी पर पड़ी तो
उससे सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे. इसके बाद वह इसका दुरुपयोग
करते हुए पूरी पृथ्वी पर उत्पात मचाने
लगा. मान्यता है कि देवताओं
ने जब भगवान शिव
से अपनी व्यथा बताई तो महादेव ने
अंधकासुर से युद्ध लड़ना
शुरु किया. युद्ध के दौरान जब
महादेव के पसीने की
एक बूंद पृथ्वी पर गिरी तो
उसकी गर्मी से धरती फट
गई और मंगल देवता
का प्राकट्य हुआ और उन्होंने अंधकासुर
के शरीर से निकलने वाले
रक्त को अपने भीतर
सोख लिया. इसके बाद भगवान शिव ने अधकासुर का
वध कर दिया.
43/84अंगारेश्वर।
यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के पीछे मां
क्षिप्रा के किनारे स्थित
है। मान्यता है कि दोनों
ही मंदिरों में भात पूजा कराने से कुंडली के
मंगल दोष का निवारण होता
है।
भात
पूजा : भात अर्थात चावल। चावल से शिवलिंगरूपी मंगलदेव
की पूजा की जाती है।
जो मांगलिक हैं उन्हें विवाह पूर्व भात पूजा अवश्य करना चाहिए।
वैशाख
में भात पूजन का महत्व ---मान्यता
है कि वैशाख की
गर्मी में भगवान को राहत देने
के लिए भात पूजा की जाती है।
वैसे भी भगवान मंगल
देव और अंगारेश्वर की
प्रकृति गर्म होने से ही भात
पूजा का विधान है।
महाराष्ट्र
में जलगांव के पास अमलनेर
में स्थित मंगल देव ग्रह मंदिर में विशेष पूजा और अभिषेक किया
जाता है।