Sunday 29 May 2022

मुक्तेश्वर धाम पठानकोट-- article by -HOME STAY PATHANKOT

 










आज आपको उत्तर भारत के कुछ ऐसे  स्थानों से रूबरू कराने जा रहा है जहां पांडवों ने अपने बारह वर्ष के बनवास के दौरान  महाभारत के युद्ध से पहले समय व्यतीत किया था,,,

पांडवों से जुड़े कुछ प्रमुख स्थान है --हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में मौजूद 15 शिखर मंदिरों वाली  संरचना मसरूर मंदिर,,, बाथू मंदिर- शिमला से करीब 110 किमी की दूरी पर पब्बर नदी के किनारे जुब्बल में मां हाटेश्वरी का प्राचीन मंदिर,,, मंडी जिला के जंजैहली गांव में पांडव शिला और भीम शिला,,, मंडी के करसोग में ममलेश्वर मंदिर

 चलिए आपको सबसे पहले लिए चलते हैं-पंजाब के जिला पठानकोट की प्रसीद पांडव गुफा मे-- गुफा मंदिर हिंदू देवता भगवान शिव को समर्पित हैं

पठानकोट के प्रसिद्ध मुक्तेश्वर शिवधाम को प्राचीन पांडव गुफा के नाम से जाना जाता है। शिवालिक की पहाड़ियों में लगभग 5500 साल से भी पुराने इस धाम के बारे में कहा जाता है कि इसे पांडवों ने विकसित किया था। इस धाम को छोटा हरिद्वार भी कहा जाता है। जो हरिद्वार में लोग राख का विसर्जन नहीं कर सकते  उनके परिजन इसे मुक्तेश्वर महादेव मं दिर में रावी नदी में प्रवाहित करते हैं।

मुक्तेश्वर धाम पठानकोट  से 22 किलोमीटर गांव ढूंग में रावी नदी के किनारे स्थित है। किम्वदंति के अनुसार द्वापर युग में युद्धिष्ठिर बनवास काटने अपने चारों भाइयों और द्रौपदी के साथ लगभग 6 महीने यहां रहे थे। यहां गुफाओं में उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया था। इसमें संगमरमर का शिवलिंग और तांबे की योनि है।

काफी गहराई में पहाड़ियों के बीच नदी निर्मल धारा भी बहती दिखाई देती है। -

250 सीढ़ियां उतरने के बाद मंदिर परिसर में पहुंच जाएंगे, जहां  महाभारत काल की गवाह चार गुफाएं हैं। नीचे दो गुफाओं में से एक बड़ी गुफा में मंदिर, द्रौपदी की रसोई, परिवार मिलन कक्ष  है। बाकी तीन गुफाएं थोड़ा ऊंचाई पर हैं। इनमें से एक में अंगरक्षक सहायक तेली को रात में जगाते रहने के लिए कोहलू लगाया गया था। एक गुफा द्रौपदी के लिए आरक्षित थी और चौथी में दूध और भोजन भंडारण किया जाता था। यहां अमावस्या, नवरात्र, बैसाखी और शिवरात्रि पर मेला भी लगता है।

नाथ सम्प्रदाय (नादी जनेऊ)

 नाथ सम्प्रदाय (नादी जनेऊ)

https://youtu.be/kCaT2tOQVss 


नाथ, भारत में हिंदू धर्म के भीतर एक शैव उप-परंपरा है इसके संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं 'नाथ' शब्द का अर्थ होता है स्वामी  मध्ययुगीन आंदोलन में इसने भारत में बौद्ध धर्म, शैववाद और योग परंपराओं के विचारों को जोड़ा-- नाथ भक्तों का एक संघ है, जो शिव को अपना पहला स्वामी मानते हैं, शिव को 'अलख' (अलक्ष) नाम से सम्बोधित करते हैं। यह हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित पंथ है प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली बार व्यवस्था दी।  नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं  हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है।

 ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। बिना सिले वस्त्र धारण करते हैं

प्रारम्भिक दस नाथ -आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथ नाथ। इनके बारह शिष्य थे - नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुन

इसका मठ मुख्यालय गोरखपुर में है

Wednesday 25 May 2022

महेश्वर-

जब से हिंदी fiction फिल्म बहु बलि का प्रदर्शन हुआ है - बच्चे बच्चे की जुबान पर महिष्मति नगर का नाम चढ़ गया है  राजा सहस्त्रार्जुन  - की नगरी महिष्मति  ----वायु पुराण, नर्मदा पुराण , स्कंद पुराण इत्यादि में वर्णित महिष्मति --- आज महेश्वर नाम से विख्यात  हे | "मध्य प्रदेश की जीवन रेखा" -माँ नर्मदा के पवित्र तट पर बसा  महेश्वर, एक ऐसा शहर जहां आपको खूबसूरत मंदिर ही मंदिर दिखाई देंगे इंदौर से महेश्वर की दूरी 95 किलोमीटर दूर है। ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 60 Km है।

नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव को समर्पित  श्री अहिल्येश्वर मंदिर ऊंचे मंडप पर बना हुआ है। मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर है। मंदिर के तीन तरफ से प्रवेश द्वार है।


छतरी


मन्दिर के गुम्बदों और लाटों की उत्कृष्ट शिल्पकला और वास्तुकला, मराठा सैनिकों और घोड़ों की सुन्दर नक्काशियाँ आने वाले पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते हैं मन्दिर का सम्पूर्ण परिवेश एक शान्त और शुद्ध वातावरण सृजित करता है  मन्दिर का मण्डप प्रभावशाली अलंकरण से सजाया गया है।


श्रीमंत जसवंतराव होलकर (प्रथम) की अभिलाषा के अनुरूप कृष्णाबाई मां साहेब ने इसका निर्माण करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य कार्तिक शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत् 1856 से प्रारंभ होकर वैशाख शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत 1890 को पूर्ण हुआ। 




 सभा मंडम में नंदी और स्तंभों पर दशावतार की मूर्तियों को उकेरा गया है। जिनमें मत्स्य, वराह, कच्छप, वामन, नृसिंह, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध व कलगी अवतार शामिल है। मंदिर के गर्भ गृह के दोनों ओर घुमावदार सीढ़ियां हैं। जिनसे होकर मंदिर की छत पर जाया जा सकता है। मंदिर में ओंकारेश्वर शिवलिंग भी स्थापित है।




हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने नर्मदा नदी का निर्माण किया, विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है जिसका पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो ता है 


 राजा सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज के हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे । उन्होंने दत्तात्रेय भगवान ki घोर तपस्या की aur 1 हजार हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया। सम्राट सहस्त्रार्जुन ने एक युद्ध में रावण को पराजित कर उसे बंदी भी बना लिया था।  

रावण की याद मे जलते 11 दीपक - 10 रावन के दससिर के लिए एक भगवन को समर्पित


युद्ध का कारण : ऋषि वशिष्ठ से शाप का भाजन बनने के कारण सहस्त्रार्जुन की मति मारी गई थी। सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन  मारा गया।

तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम के पिता जमदग्नि का वध कर डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर सती हो गई। परशुराम ने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूँगा।

तब अहंकारी और दृष्ठ हैहय-क्षत्रियों से उन्होंने 21 बार युद्ध किया था।
राजा सहस्त्रार्जुन का मंदिर

यहां पर आपको 11 दीपक देखने के लिए मिलते हैं, जो उस समय से जल रहे हैं। जब यह मंदिर बनाया गया था। माना जाता है कि यह सोमवंशी राजा सहस्त्रार्जुन कीर्ति वीर्य की समाधि मंदिर है। यहां पर राजा सहस्त्रार्जुन की प्रतिमा भी आपको देखने के लिए मिलेगी और यहां पर शंकर जी का शिवलिंग भी देखने के लिए मिल जाता है। राजा सहस्त्रार्जुन का जन्मदिन महेश्वर में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यहां 3 दिन उत्सव मनाया जाता है और यहां पर भंडारा भी किया जाता है।


विश्व प्रसीद महेश्वर दुर्ग-


बलुआ पत्थर से मराठी शिल्पकला से सुसज्जित यह  क़िला - किले में रोजाना सुबह 8.30 बजे से आयोजित होने वाले अनोखे लिंगार्चन पूजा अनुष्ठान में शामिल होने का प्रयास करें। यहां पर महारानी देवी अहिल्या बाई की समाधि भी  है। किले के अंदर होलकर साम्राज्य की बहुत सारी वस्तुएं आपको देखने के लिए मिल जाते हैं। किले के अंदर आपको म्यूजियम देखने के लिए मिलेगा। यह किला बहुत खूबसूरत है और बलुआ पत्थर से बना हुआ है। किले में रोजाना सुबह 8.30 बजे से आयोजित होने वाले अनोखे लिंगार्चन पूजा अनुष्ठान में शामिल होने का प्रयास करें। 



बाणेश्वर मंदिर महेश्वर में स्थित एक मंदिर है। यह मंदिर नर्मदा नदी के बीच में बने एक टापू पर बनाया गया है। यह मंदिर पूरी तरह से पत्थर का बना हुआ है। मंदिर में शिवलिंग और नंदी भगवान आपको देखने के लिए मिल जाते हैं। माना जाता है कि द्वापर युग में, बाणासुर ने यहां कठिन तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। बाणेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 9 वीं से 10 वीं शताब्दी में हुआ है। इस मंदिर में आप नाव के द्वारा पहुंच सकते हैं।


यहाँ का प्रवेश द्वार बहुत ही भव्य है -
or आप को मराठा शिल्पकला की झलक दिखलाता है - 


रानी अहिल्या बाई  ने यहाँ से शाषण की बागडोर संभाली थी -यही उनका महल है  -अहिल्या बाई का महल एक होटल मे कन्वर्ट किया जा चुका है -कुछ हिस्सा जिसे राज वाड़ा कहा जाता है -अभी भी आम जनता के लिए खुला है -जहां पर फोटोग्राफी
allowed नहीं है - 


आंगन मे शिव भगत अहिल्या बाई की विशाल प्रतिमा लगाई गयी है -यहाँ आज भी मिट्टी के सवा लाख शिवलिंग बना कर पूजा की जाती है - अन्दर से राज वाड़ा - साधारण है परन्तु यहाँ पर रखी सोने की पालकी आकर्षण का केंद्र है -

इसका प्रवेश द्वार करीब दस फ़ीट ऊँचे हाथीओ से सुसज्जित है ---

 देवी अहिल्या बाई की मृत्यु 13-8-1795 को हुई थी और यहीं पर उनके पार्थिव शरीर का दहन किया गया था।



अहिल्या घाट वहुत ही खूबसूरत है - यहाँ पर boating की सुविधा भी है



फिल्म दबंग ३ पेड मैन महाकर्णिका एवं टी वी सीरियल महाकाल मे आप यहाँ के खूबसूरत घाटों को बड़े परदे पर देख चुके है 









महेश्वर का काशी विश्वनाथ मंदिर लगभग 4 शताब्दी पूर्व का अनुमानित  हे जिसका निर्माण राजमाता अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था | नर्मदा कनारे निर्मित यह शिव मंदिर अत्यंत सुन्दर और भव्य हे | नर्मदा नदी का दर्शन यहाँ से अत्यंत लुभावना है |


17वीं शताब्दी में हैदराबादी बुनकरों द्वारा प्रारंभ की गई माहेश्वरी साड़ी आज भी साड़ियों का एक बड़ा ब्रांड है और महेश्वर इन माहेश्वरी साड़ियों के निर्माण और व्यवसाय का बड़ा केंद्र है।


Sunday 8 May 2022

मांडू-रानी रूपमती और बाजबहादुर के अमर प्रेम की साक्षी

सिटी ऑफ जॉय के नाम से मशहूर 12 दरवाजों से महलों तक हरियाली से पटा -अभेद्य गढ़ों का नगर, अकल्पनीय रानी रूपमती और बाजबहादुर के अमर प्रेम की साक्षी छठी शताब्दी का शहर मांडू, जिसमें भारत का सबसे बड़ा किला मांडू फोर्ट स्थित है मध्यप्रदेश के धार जिले में है। मांडू को पहले  शादियाबाद के नाम से भी जाना जाता था, जिसका अर्थ है खुशियों का नगर अंग्रेज तो इसे अब भी सिटी ऑफ जाय के नाम से ही पुकारते हैं।  मांडू-- शहर विंध्य पर्वतमाला में 2,079 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है और आपको प्राचीन अफगान वास्तुकला की दुनिया में ले जाता है।  मांडू में प्रवेश करते ही विशाल दरवाजे स्वागत करते है। पांच किमी. के दायरे में लगभग 12 प्रवेश द्वार निर्मित हैं। इनमें सुल्तान या दिल्ली दरवाजा प्रमुख माना जाता है। इसे मांडू का प्रवेश द्वार भी कहते हैं। इसका निर्माण 1405 से 1407 के मध्य में हुआ था। इसके बाद आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, गाड़ी दरवाजा, तारापुर दरवाजा दरवाजे आते हैं। काले पत्थरों से निर्मित इन दरवाजों के बीच से गुजरते हुए पर्यटक मांडू नगरी में प्रवेश करते हैं।

प्यार की कहानी

मांडू के सुल्तान बाज बहादुर एक बार शिकार करने गए जहाँ  उन्होंने रूपमती को अपने दोस्तों के साथ जंगल में गाते हुए देखा। सुल्तान, कला प्रेमी, उसकी सुरीली आवाज से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने रूपमती को शादी करने की विनती की।

रूपमती के गायन और सुंदरता की प्रसिद्धि बढ़ती गई, मुगल सम्राट अकबर को जलन होने लगी कि एक राजा के पास ऐसा खजाना हो सकता है जिसकी मुगल दरबार में कमी थी। उन्होंने बाज बहादुर से मांग की कि रूपमती को उनके गायन के साथ मुगल दरबार की शोभा बढ़ाने के लिए दिल्ली भेजा जाए। जब मांडू के सुल्तान ने इनकार कर दिया, तो मुगल सम्राट ने अपने अपने सेनापति अधम खान को भेजा। सारंगपुर में एक खूनी लड़ाई के बाद, जिसमें बाज बहादुर की सेना हार गई थी, मुगल सेना ने शहर में तोड़फोड़ की; हजारों लोग बर्बर क्रूरता से मारे गए। रूपमती ने जहर खाकर जान दे दी

  Ashrafi Mahal -

मस्जिद के सामने एक और प्राचीन इमारत अशरफी महल है। अशरफी का 

 आशय वैसे सोने की मुद्रा से होता है, इस महल का निर्माण होशंगशाह

 खिलजी के उत्तराधिकारी मोहम्मद खिलजी ने मदरसे के लिए किया था।

 अशर्फी महल का, जो प्रवेश द्वार है। वह संगमरमर का बना हुआ है इसमें

 पीले रंग की टाइल्स भी लगी हुई है।अशर्फी महल ऊंचाई पर बना हुआ है

 और इसके नीचे वाली मंजिल में तहखाना बना हुआ है। कहा जाता है, कि

 मांडू के शासक गयासुद्दीन खिलजी ने अपनी रानियों का वजन को कम

 करने के लिए, इस महल की सीढ़ियां उतरने चढ़ने के लिए कहा और हर

 सीढ़ी के बदले 1 सोने के सिक्का यानी अशर्फी देने का वादा किया। तब से

 यह महल अशर्फी महल के नाम से जाना जाता है।



 Baz Bahadur palace 

बाज बहादुर का महल रूपमती महल के पास ही बाज बहादुर महल है।

 इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था।

 इस महल में विशाल आंगन और हॉल बने हुए हैं।



हाथी महल


Hindola Mahal 

हिंडोला महल हिंडोला महल भी मांडू के खूबसूरत महलों में से एक है।

 हिंडोला का अर्थ होता झूला। इस महल की

 दीवारें कुछ झुकी होने से यह महल हवा में झूलता हिंडोला नजर आता है।

 हिंडोला महल का निर्माण ग्यासुद्दीन

 खिलजी ने 15 ईस्वी में सभा भवन के रूप में किया था। इसके सुंदर कॉलम

 पांच विशाल द्विज्या मेहराबों इसे और

 भी खूबसूरती प्रदान करते हैं। इस महल के परिसर में प्राचीन चंपा बावड़ी

 है। इसका कलात्मक निर्माण देखते ही

 बनता है। इसमें नीचे उतरने के लिए व्यवस्थित रास्ता भी बना है। वैसे, अब

 नीचे जाने की इजाजत किसी को नहीं

 है।



Hoshang Shah Tomb

होशंगशाह की कब्र  इसे भारत में मार्बल से निर्मित पहली कब्र माना जाता है।



 

मांडवगढ़ में कई प्रमुख आकर्षण इस्लामी मूल के हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने 1305 में शहर पर कब्जा कर लिया था और यह 1732 तक इस्लामी शासन के अधीन रहा जब पेशवा बाजी राव प्रथम के अधीन मराठों ने शहर पर कब्जा कर लिया। मांडू में मांडवगढ़ किला -जिसे 10वीं शताब्दी में राजा भोज ने बनवाया था।



संग्रहालयतवेली महल में स्थित हैजिसमें दो इस्लामी इमारतें हैं, संग्रहालय

 हिंदू देवी-देवताओं की टूटी हुई मूर्तियों से भरा हुआ था।


Jahaz Mahal-- 

यह महल दो झीलों कापुर तालाब और मुंज तालाब के बीच बना हुआ है जो देखने में जहाज के जैसा दिखता है। इस महल को खिजली राजवंश के घिया – उद – दीन खिजली के द्वारा बनवाया गया था। इस महल में कई फव्‍वारे और कैनॉल है जिनसे पानी बहता है, इस महल की वास्‍तुकला में दो मंजिला इमारत, कई खंभे, मेहराब और खपरैल की छत भी बनी हुई है। जहाज महल का निर्माण 1469 से 1500 ईस्वी के मध्य कराया था लगभग 120 मीटर लंबे इस खूबसूरत महल को दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानों तालाब के बीच में कोई सुंदर जहाज तैर रहा हो। संभवत: इसका निर्माण श्रृंगारप्रेमी सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने विशेष तौर पर अंत:पुर (महिलाओं के लिए बनाए गए महल) के रूप में किया था।





swimming pool at second flour 



जामी मस्जिद, महमूद प्रथम के शासनकाल के दौरान 1440 में पूरी हुई। । मस्जिद अपनी मनभावन ज्यामिति को छोड़कर अलंकरण से इतनी विहीन है कि इसमें मीनार तक नहीं है। जामी मस्जिद पूरी तरह से इस्लामी वास्तुकला को बरकरार रखती है


जामी मस्जिद,


मस्जिद से अशरफ़ी  महल की झलक



 मस्जिद मे जाली का काम





भगवान राम की चर्तुभूज प्रतिमा भी मांडू में विराजित है जो दुर्लभ और महत्वपूर्ण मानी जाती है।


Roopmati pavilion 

मांडू के सुल्तान बाज बहादुर एक बार शिकार करने गए थे, जब उन्होंने रूपमती को अपने दोस्तों के साथ जंगल में गाते हुए देखा। सुल्तान, कला प्रेमी, उसकी सुरीली आवाज से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने उसे अपनी राजधानी में शामिल होने के लिए विनती की। रूपमती प्रतिदिन नर्मदा के दर्शन के बाद ही अन्ना-जल ग्रहण करती थीं।  रूपमती इस शर्त पर मान गई कि वह अपनी प्यारी नर्मदा नदी से कभी दूर नहीं थी। बाज बहादुर तुरंत सहमत हो गए और उनके लिए Roopmati pavilion बनवाया  ताकि वे सुबह उठने के बाद नर्मदा के दर्शन कर सकें।

बादलों या कोहरे की वजह से कभी नर्मदा के दर्शन नहीं की स्थिति से

 निपटने के लिए रूपमती महल में ही रेवा कुंड का निर्माण भी किया गया था,

यह रूपमती मंडप में पानी की आपूर्ति के लिए बनाई गई कृत्रिम झील है

 जिसमें नर्मदा का जल रहता था। यह भी कहा जाता है कि रूपमती अक्सर

 इस कुंड में पूजा करने आती थीं। मांडू किले में सैन्य अवलोकन चौकी - जहाँ

 रूपमती रुकी थी - जहाँ से बाज बहादुर का महल देखा जा सकता था, आज

 रूपमती मंडप कहलाती है।









rewa kund

अन्य दर्शनीय स्थल, दरिया खान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मघत की मस्जिद और जाली महल लोहानी गुफाएं और उनके सामने स्थित सनसेट प्वाइंट भी मांडू की दर्शनीय इमारते हैं। 

श्री खाटू श्याम जी

  निशान यात्रा में झूमते   भक् ‍ त - भगवान खाटू श्याम की जयकार करते हुए तंग गलियों से गुजरते हुए आनंद मे खो जाते है   और ...