Wednesday 18 October 2023

त्रिवेणी संग्रहालय महाकाल मंदिर

 


त्रिवेणी संग्रहालय महाकाल मंदिर से करीब 2 किलोमीटर दूर होगा त्रिवेणी संग्रहालय आने के लिए चार धाम मंदिर के सामने से सड़क गई है।


यहां पर  एक व्यक्ति का प्रवेश शुल्क 20 रूपए लिया जाता है और विदेशी व्यक्ति का एक व्यक्ति का 200 रूपए लिया जाता है। कैमरे का शुल्क का भी लिया जाता है। यहां पर कैमरे का 100 रूपए लिया जाता है। विकलांग और 15 साल से छोटे बच्चों के लिए निशुल्क है।

 

संग्रहालय का समय :- प्रातः 9:00 से संध्या 5:00 बजे तक ---त्रिवेणी संग्रहालय मंगलवार के दिन बंद रहता है और किसी भी सरकारी छुट्टी के दिन यह संग्रहालय बंद रहता है।

यह दो मंजिला  संग्रहालय है  यहां पर पुस्तकालय भी है

कुंभ  2016 के अवसर पर त्रिवेणी पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय .प्र. सरकार द्वारा की गयी थी  इसमें शैव, वैष्णव और शाक्त नाम की 3 दीर्घाएँ शामिल हैं।



भारतीय स्मृति  का स्थापत्य शैव, शाक्त और वैष्णव परम्परा के आख्यानों से निर्मित हुआ है  




देश के विभिन्न प्रदेशों में शिव, शक्ति और श्रीकृष्ण के स्वरूपों के श्रृंगार के लिये विभिन्न  वेषभूषा का उपयोग किया जाता है भारतीय संस्कृति की  इन परम्पराओं की झाकियों  को प्रदर्शित किया गया है






वाचिक साहित्य-



मूर्तियों का सेक्शन


शक्ति गैलरी में पूरी देवियों इंद्राणी, काली, ब्रह्माणी आदि की मूर्ति को प्रदर्शित किया गया है

 




वैष्णव गैलरी मे  श्री विष्णु भगवान जी के 9 अवतार मत्स्य अवतार, कच्छप अवतार, वराह अवतार, नरसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण और बुध भगवान, कलंगी अवतार  

 ऊपर वाली गैलरी में पीपल का पेड़ में घंटियां बांधी गई थी और मंदिर में गर्भग्रह था


 इसे राजस्थान के कलाकार ने ही बनाया है। यह पूरी पेंटिंग दिवार में मिट्टी से बनाई गई है। यह उदयपुर के नाथा द्वार में स्थित श्रीनाथजी के मंदिर की पेंटिंग है और इसके चारों तरफ घर, हवेलियां देखने के लिए मिलती हैं। जैसे प्राचीन समय में रहा करते थे और उसके बीच में श्रीनाथ जी का मंदिर देखने के लिए मिलता है। प्राचीन समय में मुस्लिम शासक हिंदू मंदिर को खंडित कर देते थे। इसलिए यहां पर श्रीनाथ जी का मंदिर हवेलियों के बीच में बना हुआ है। ताकि कोई भी मुस्लिम शासक की नजर मंदिर में ना पड़े और आप पेंटिंग को अवलोकन करेंगे, तो आपको इसमें सभी जगह देखने के लिए मिल जाती है। जैसे किचिन, राजा रानी का कमरा, गौशाला, बगीचा यह सारी जगह यहां पर देखा जा सकता है।


त्रिवेणी अवधारणा तीन पंथ शैवयन (शिव), कृष्णयन (वासुदेव कृष्ण) और दुर्गायन (देवी दुर्गा) की रचना पर आधारित है। 

कृष्णयान दीर्घा में  प्रदर्शित किए गए हैं - मंदसौर की हरिहर प्रतिमा, विष्णु और उज्जैन की हयग्रीव प्रतिमाएं। मुरैना के बलराम, विदिशा के कल्कि और नरवराह, बोलिया (मंदसौर) के लक्ष्मी-नारायण, सिहोनिया (मुरैना) के विष्णु-विश्वरूप आदि प्रतिहार कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। मनकेड़ी (जबलपुर) के गरुड़ासीन लक्ष्मी नारायण, दमोह के त्रिविक्रम, जबलपुर के बलराम, दोनी (दमोह) के नरवराह, अंतरा (शहडोल) के विराट-विष्णु, सोहागपुर (शहडोल) के विष्णु, कृष्ण जन्म कलचुरि कला के नमूने हैं। ग्वाली (शाहडोल), शाहपुरा (शहडोल) के हरिहर, रीवा के गजेंद्र मोक्ष आदि।


दुर्गायन-(शाक्त) गैलरी

इस दीर्घा में प्रदर्शित मूर्तियां .प्र. के विभिन्न भागों में विकसित विभिन्न केन्द्रों की कला का प्रतिनिधित्व करती हैं।





अवारा (मंदसौर) की महिषासुर मर्दिनी और भानपुरा (मंदसौर) की कौमारी 8 वीं शताब्दी ईस्वी की राष्ट्रकूट कला का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। अन्य मूर्तियां चंदेला, कलचुरी, प्रतिहार-कच्छापघाट और परमार कला का सबसे अच्छा नमूना हैं, जो वर्तमान .प्र. प्रारंभिक मध्यकाल में। इनमें मोहनगढ़ की गौरी, पन्ना की पार्वती और टीकमगढ़ की भद्रकाली चंदेल कला का प्रतिनिधित









श्री खाटू श्याम जी

  निशान यात्रा में झूमते   भक् ‍ त - भगवान खाटू श्याम की जयकार करते हुए तंग गलियों से गुजरते हुए आनंद मे खो जाते है   और ...