झाँसी
झाँसी पर प्रारंभ में चन्देल राजाओं का नियंत्रण था। उस
समय इसे बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था। झाँसी का महत्व सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा
के राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में बढ़ा।
झॉसी किले का निर्माण ओर्छा
के राजा बीर सिह देव द्वारा 1613 में करवाया गया था यह किला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर
निर्मित है।
झांसी संग्रहालय
यह संग्रहालय सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड की ऐतिहासिक धरोहर की झलक प्रस्तुत करता है
दतिया :
झॉसी शहर से 27 कि॰मी॰ दूर यह राजा बीर
सिह द्वारा बनवाये गये सात मन्जिला महल एवं श्री पीतम्बरा देवी के मन्दिर के लिये
प्रसिद्ध है।
पीताम्बरी पीठ
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा को राजसत्ता
की देवी माना जाता है। श्री पीताम्बरा पीठ, बगलामुखी
के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है इस
सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई।मंदिर प्रांगण में स्थित
वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग को महाभारत काल का बताया जाता है। वनखंडेश्वर
महादेव, जिनकी तांत्रिक रूप में पूजा होती है दस
महाविद्याओं में से एक मां धूमावती का एक मात्र मंदिर इसी प्रागण मे है -परन्तु इस
मंदिर के दर्शन केवल आरती के समय ही किये जा सकते है माँ को केवल नमकीन पकवानों का भोग लगता है
सोनागिरि
सोनागिरि के जैन
मंदिर 9th ad से इस
हिल पे सथापित
है यहाँ 77 मंदिर है यह
दतिया से 20 K.M दूर है
झाँसी से 16 K.M उनाव से 17
k.M की दूरी पे है
यहाँ ज्योति के लिए घी चढ़ाने की रिवाज है
ज्योति के लिए घी चढ़ाने का यह सिलसिला पिछले करीब 400 वर्षों से चला
रहा है और इस दौरान इतना घी इकट्ठा हो गया कि उसे कुओं में संरक्षित करना पड़ा।आज
मंदिर के पास पांच हज़्ज़ार क्विंटल घी है -घी को यहाँ कुए मैं रखा जाता है अभी तक
सात कुए भर चुके है मंदिर की स्थापना सोलहवीं शताब्दी में हुई थी। तब एक चबूतरे पर
सूर्य यंत्र स्थापित किया गया था। बाद में झांसी के राजा नारायण राव (नारूशंकर) ने
इसे मंदिर का रूप दिया। दतिया के राजा नरेश रावराजा ने सन 1736 से 1762 के बीच मंदिर
को भव्य रूप दिया। दतिया स्टेट गजेटियर के अनुसार 1854 में सिंधिया के मंत्री
मामा साहब जादव ने मंदिर का और विस्तार कराया। मंदिर के गर्भ गृह के ठीक सामने से
पहूज (पुष्पावती) नदी निकली हुई है।
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