वाहेगुरु जी का खालसा----------------------------------------वाहेगुरु जी की फ़तेह
किसी भी धर्म के बारे लिखना बहुत मुश्किल कार्य
है - हज़ारो सालो के इतिहास , को जानना ,उनकी मर्यादा को समझने के
लिए मेरे जैसे मूड बुध्दि के लिए असंभव है -परन्तु पंजाब का निवासी होने के नाते -
इस धर्म के बारे दुनिया को बताने की कुछ जिम्मेदारी बनती है - किसी भी ज्ञानी को
इसमें लिखी कोई भी जानकारी त्रुटि पूर्ण लगे तो तुरंत संपर्क करे ताकि उसे ठीक
किया जा सके
सिख धर्म के बारे में------
सिख यह शब्द संस्कृत के
शिष्य शब्द से बना है इस धर्म की शुरुआत श्री गुरु नानक देव जी(1469-1539) ने की
थी इस धर्म में 10 गुरु माने जाते
हैं
श्री गुरु नानक देव जी---
श्री नानक का जन्म तलवंडी राय में हुआ था यह जगह
अभी पाकिस्तान में है श्री गुरु नानक देव जी एक समाज सुधारक थे उन्होंने छुआछूत
सती प्रथा आदि आडंबर ओ का विरोध किया था और अपनी जिंदगी के 40 बरस घूम घूम कर अपने उपदेश दिए उन्होंने संगतकी
प्रथा शुरू की वह अपने जीवन काल में मक्का मदीना बगदाद वर्मा तथा चाइना भी गए गुरु नानक देव जी की यात्राओं को उदासी कहा जाता है ,गुरु नानक देव
जी के साथ भाई मरदाना जी रबाब बजाते थे गुरु जी ने पंजा साहिब मैं वली कंधारी का
अहंकार तोडा जीवन के अंतिम दिन उन्होंने करतारपुर में गुजारे वहीं पर उन्होंने
अपनी संसारीक यात्रा खत्म की ,1539 मैं ज्योति ज्योत समा गए
गुरु नानक देव जी को पाकिस्तान में बाबा तथा शाह भी कहते हैं उनके चाहने वालों में
हिंदू तथा मुस्लिम दोनों थे उनकी मृत्यु पर दोनों ने अपने-अपने रीति-रिवाजों के
अनुसार उनका अंतिम क्रिया कर्म किया था
दुसरे गुरु अंगद देव
जी(1504-1552) ने गुरमुखी लिपिका प्रचार किया गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई
लहणा जी था माता खीवी जी गुरु अंगद देव जी की पत्नी थी और वह सिक्ख
इतिहास में केवल एक स्त्री हैं जिनका नाम गुरु ग्रन्थ साहिब जी में दर्ज है गुरुदेव
ने सती प्रथा का भी जोरदार विरोध किया।
तीसरे गुरु श्री अमरदास जी(1479-1574) ने पर्दा
प्रथा का विरोध किया ‘गुरु का लंगर’ की प्रथा शुरू की गुरु अमरदास जी
ने गोइंदवाल शहर बसाया था, जहाँ वह गुरु बनने के बाद रुक गये थे गुरु अमरदास जी ‘मसंद’ प्रचारक शुरू किये थे
चौथे गुरु गुरु
रामदास जी(1534-1581) का पहला नाम भाई
जेठा जी था श्री रामदास जी ने 1574 में अमृतसर की
नींव रखी अंमृतसर शहर मैं पांच सरोवर है अंमृतसर ,कौलसर ,संतोखसर ,बिबेकसर , रामसर
पंचम गुरु श्री अर्जुन देव जी(1563-1606) ने दरबार साहब का
निर्माण करवाया गुरु अर्जुन देव जी ने ही आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब (पोथी
साहिब) को लिपिबद्ध किया उनके द्वारा किया
गया हस्तलिखित कार्य जालंधर के पास करतारपुर के गुरुद्वारा श्री शीशगंज महल में
रखा गया है गुरु अरजन देव जी सुखमनी साहिब भी रचना की सुखमनी साहिब में 24 अष्टपदीयां हैं श्री हरिमंदिर साहिब अंमृतसर में सन 1604 में श्री
गुरु ग्रन्थ साहिब जी का प्रकाश हुआ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के पहले ग्रंथी बाबा बुड्डा जी
थे
जहांगीर ने उनके बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उनके
साथ बहुत अन्याय किया और गुरुजी शहीद हो गए उन्हें शहीदों के सरताज’ भी कहा जाता है
छटे गुरु श्री
हरगोबिंद सिंह(1595-1644)
(गुरु अरजन देव
जी के पुत्र हरगोबिंद जी )जी ने इस अन्याय को
देखकर पीरी तथा मीरी तलवारें धारण की तथा देग तथा ते ग अर्थात जरूरतमंद को खाना और
दुश्मन के साथ बहादुरी से लड़ना का नारा दिया उन्होंने 700 घोड़ो 300 कोटद्वार 600 पैदल फौजियों के साथ फौज तैयार की 1628 मे खालसा कॉलेज अमृतसर के पास शाहजहां के विरुद्ध सिखों ने अपनी पहली लड़ाई
लड़ी गुरु हरिगोबिंद जी ने अकाल तख़्त की स्थापना की थी
श्री हरगोविंद जी के बाद श्री हरि राय (1630-1661)ने
और उनके बाद गुरु हरि कृष्ण जी(1656-1664) को 5 साल की उम्र मैं गुरुगद्दी मिली 8 साल की उम्र मैं वह ज्योति ज्योत समाये
उनके बाद श्री तेग बहादुर जी(1621-1675)
ने गद्दी संभाली पंडित कृपा राम 500 कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर जी के पास मदद
मांगने के लिये आये थे जो की बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के संस्कृत के गुरु भी
बने एवं फिर खालसा सजे एवं अंत में चमकोर
की लड़ाई में शहीद हो गए मुगलो का विरोध करने पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने
दिल्ली में गुरु तेगबहादुर जी का सिर धड से अलग कर शहीद कर दिया गुरु तेगबहादुर
जी के साथ तीन सिक्खों भाई मती दास जी (आरी से काट के शहीद किया गया) भाई सती दास
जी (रुई में लपेट कर आग लगा दी गई) भाई दयाला जी (गर्म पानी में उबाला गया) शहीद
किया गया था जहाँ गुरु तेगबहादुर जी को शहीद किया गया वहां गुरुद्वारा सीस गंज, चांदनी चौंक
दिल्ली है उनका संस्कार भाई लक्खी शाह वणजारा ने किया जहाँ गुरु तेगबहादुर जी के
शरीर का संस्कार हुआ वहां गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब, दिल्ली है
भाई जैता जी (भाई
जीवन सिंह जी)गुरु तेगबहादुर जी के सीस को आनंदपुर साहिब ले कर गए थे गुरु तेगबहादुर जी को ‘हिन्द-दी-चादर’ भी कहा जाता है
उसके बाद श्री गोविंद सिंह जी(1666-1708)
ने गुरु की पदवी ग्रहण की उन्होंने वैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब मैं खालसा पंथ की
स्थापना की अपने गुरु की ललकार पर जो पांच लोग देश एवं धर्म के लिए
अपनी जान क़ुर्बान करने को आगे आये -गुरु जी ने उन्हे पांच प्यारे की पदवी से
सन्मानित किया सिक्ख पंथ के पहले पांच प्यारों थे
भाई दया सिंह जी ,भाई धरम सिंह जी ,भाई हिम्मत
सिंह जी ,भाई मोहकम सिंह जी , भाई साहिब सिंह जी -
उन्हें अलग पहचान देने के लिए उन्होंने पांच कंकार केस ,कंघा ,किरपान ,कड़ा ,कछिहरा धारण
करने का हुकुम दिया.
उन्होंने 1300 पेज का श्री दशम ग्रंथ लिखा मुगलों तथा सरहिंद के गवर्नर के साथ उनके कई युद्ध
हुए ,युद्ध के बाद गुरुजी श्री आनंदपुर साहब पहुंचे चमकौर की लड़ाई सिख इतिहास की महत्वपूर्ण लड़ाई है गुरु गोबिंद सिंह जी को अपनी रक्षा के लिये पंज
प्यारों ने चमकोर का किला किले को छोड़ने का आदेश दिया था चमकौर के युद्ध में उनके
दो साहेबजादे बाबा अजीत सिंह जी बाबा जुझार सिंह जी वीरता
पूर्ण लड़ते हुए शहीद हो गए और अपने एक नौकर गंगू ब्राह्मण
के धोखा देने पर उनके दो छोटे पुत्र बाबा फ़तेह सिंह जी बाबा जोरावर
सिंह जी भी मुगलों द्वारा जिंदा दीवारों में चुनवा दिए गए नांदेड़ में गुरुजी की
मुगलों के एक गुप्त चर ने चाकू मारकर 7 अक्टूबर 1708 में उनकी हत्या कर दी
बंदा बहादुर--
उन्होंने एक बैरागी माधो दास को अमृत पान के बाद बंदा
सिंह नाम दिया उन्होंने बंदा बहादुर को अन्याय का मुकाबला करने के लिए
चुना गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह को
खालसा पंथ का पहला जत्थेदार बनाया बंदा सिंह ने पंजाब छोड़ने से पहले
सिक्खों को निशान साहिब एवं नगाड़ा दिया बंदा सिंह ने सरहिंद पर 12 मई 1710 को जीत प्राप्त की और उसी दिन से अपने कैलेंडर
की स्थापना की 17 16 में वह दुश्मनों से गिर गए
और अपने साथियों सहित शहीदी को प्राप्त किया दिल्ली में राजा बहादुर शाह ने सिखों
को मार देने का हुक्म दिया यह कत्लेआम पूरे 30 साल चला
दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह जी. ने गुरु गद्दी
प्रथा को खत्म किया तथा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु की पदवी दी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में गुरबाणी 31 रागों में लिखी गयी है श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में 6 (पहले पांच एवं नोवें गुरु जी की) गुरुओं की
बाणी दर्ज है श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के 1430 अंग (पन्ने) हैं गुरु गोबिंद सिंह जी ने
होला मोहल्ला का त्यौहार शुरू किया था
सिक्खों के कैलेन्डर का नाम नानकशाही कैलेन्डर
है नानकशाही कैलेन्डर सूर्य की गति के हिसाब से चलता है इसका पहला वर्ष 1469 (जब गुरु नानक
देव जी का जन्म हुआ था)है
पांच तख्त
श्री अकाल तख़्त साहिब, अंमृतसर, पंजाब
श्री हरिमंदिर साहिब, पटना, बिहार (पटना साहिब)
श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर, पंजाब (आनंदपुर साहिब)
श्री हजूर साहिब, नांदेड़, महाराष्ट्र
श्री दमदमा साहिब, तलवंडी साबो, बठिंडा, पंजाब
·
गुरु का नाम--- गुरु नानक देव जी
·
जन्म स्थान -- तलवंडी राय
पोई—(15-4-1469) (ननकाना साहिब)
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माता का नाम -- तृप्त देवी जी
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पिता जी का नाम - महिता कालू चंद जी
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धर्मपत्नी का नाम- सुलखणी देवी जी
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सन्तान- दो पुत्र = श्री चाँद जी तथा श्री लक्ष्मी दास जी
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ज्योति जोत समाना—करतारपुर—(22-9-1539)
• गुरु का नाम --श्री अंगद देव जी
• जन्म स्थान --- मत्ते दी सरां-(31-3-1504)
• माता
का नाम-- श्रीमती दया कौर जी
• पिता जी का नाम - श्री फेरुमल जी
• धर्मपत्नी का नाम- श्रीमती खीवी जी
• सन्तान- पुत्र श्री दासू
जी ,पुत्र दातु जी - पुत्री -बीबी
अमरों जी , पुत्री -बीबी अनोखी जी
• ज्योति जोत समाना- खडूर साहिब (29-3-1552)
• गुरु का नाम- श्री अमर दास जी
• जन्म स्थान - बासरके (5-5-1479)
• माता
का नाम - श्री सुलखणी जी
• पिता जी का नाम - श्री तेज भान जी
• धर्मपत्नी का नाम- श्रीमती मनसा जी
• सन्तान- पुत्र श्री मोहन
- सपुत्री बीबी दानी एते
बीबी पाणी
• गुरु का नाम---- श्री राम दास जी
• जन्म स्थान -- चूना मंडी लाहौर (24-9-1534)
• माता
का नाम - दया कौर जी
• पिता जी का नाम ---- श्री हरिदास जी -
• धर्मपत्नी का नाम-- बीबी पाणी जी
• ज्योति जोत समाना—अमृतसर (2-9-1581) 1639
• जन्म स्थान ---- गोइंद वाल साहिब (15 -4- 1563)
• माता
का नाम---- बीबी पाणी जी
• पिता जी का नाम -- श्री राम दास जी
• धर्मपत्नी का नाम- श्रीमती गंगा जी
• सन्तान-- श्री हर गोबिंद
जी
• ज्योति जोत समाना-- लाहौर (30-5-1606)
• गुरु का नाम-- श्री हर गोबिंद
जी
• जन्म स्थान -- गुरु की वडाली (5-7-1595)
• माता
का नाम - श्रीमती गंगा जी
• पिता जी का नाम - श्री अर्जुन देव
• धर्मपत्नी का नाम- श्री गुरु हरि गोबिंद जी के तीन विवाह हुए
दमोदरी जी-----सन्तान--- बीबी वीरो, बाबा गुरु दित्ता जी और अणी राय|
दूसरा विवाह- नानकी जी- संतान – श्री गुरु तेग
बहादर जी|
तीसरा विवाह—महादेवी--- संतान – बाबा
सूरज मल जी और अटल राय जी|
• ज्योति जोत समाना--- कीरतपुर (पंजाब)3-3-1644
• जन्म स्थान – कीरतपुर (16-1-1630)
• माता
का नाम -- श्रीमती निहाल कौर जी
• पिता जी का नाम -- बाबा गुरुदित्ता
जी
• धर्मपत्नी का नाम-- कृष्ण कौर
• सन्तान-- राम राय जी ,हरी कृष्ण जी
• ज्योति जोत समाना— रूपनगर 6-10-1661
• गुरु का नाम-- श्री हर कृष्ण जी
• जन्म स्थान – कीरतपुर(6-10-1661)
• माता
का नाम - कृष्ण कौर
• पिता जी का नाम--- गुरु हर राय जी
• ज्योति जोत समाना---30-3-1664
• गुरु का नाम-- श्री गुरु तेग
बहादर जी
• जन्म स्थान –अमृतसर (1-4-1621)
• माता
का नाम - माता नानकी जी
• पिता जी का नाम - श्री गुरु हरि
गोबिंद
• धर्मपत्नी का नाम-- गुजरी जी
• सन्तान-- श्री गोबिंद सिंह
जी, माता नानकी
• ज्योति जोत समाना-( 11-11-1675)
• गुरु का नाम- श्री (गुरु)
गोबिंद सिंह जी
• जन्म स्थान -- पटना
• माता
का नाम - गुजरी जी
• पिता जी का नाम - श्री गुरु तेग
बहादर जी
• धर्मपत्नी का नाम---
पहला विवाह—जीतो--- सन्तान श्री जुझार सिंह जी, श्री जोरावर सिंह जी, श्री फतह सिंह जी
दूसरा विवाह—सुन्दरी or सुन्दर कौर—सन्तान-- श्री अजीत सिंह
जी
• ज्योति जोत समाना--- नादेड़ 7-10-1708
आज सिख धर्म पुरे विश्व मैं फैला है 1969 मैं सिख मशीनरी सोसाइटी
ब्रिटेन ,सिख रीसर्च सेंटर कनाडा की स्थापना की गई -इस धर्म के अनुयायी सब धर्मो का सन्मान करते है - आम जन
की सेवा पर बल देते है -केश ,कंगा ,कड़ा कच्छा ,किरपान इनके
चिन्ह है
आज इस धर्म की दो शाखाएँ मानी जाती है
i) निरंकारी: निरंकारी आंदोलन के संस्थापक निरंकारी बाबा दयाल
थे। उन्होंने मूर्ति पूजा, कब्र पूजा और अन्य अनुष्ठानों जैसे नवाचारों का विरोध किया
और अपने अनुयायियों से केवल एक निरंकार (भगवान) की पूजा करने के लिए कहा।
ii) नामधारी: नामधारी आंदोलन की शुरुआत भगत जवाहरमल और बाबा
बालक सिंह ने की थी। हालांकि, इसे बाद के शिष्यों में से एक बाबा राम सिंह द्वारा
लोकप्रिय बनाया गया था। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा सिखाई और विवाह में लड़कियों की
जाति व्यवस्था, शिशुहत्या, शीघ्र विवाह और लड़कियों को रोकने जैसी सामाजिक बुराइयों का
विरोध किया। यह आगे चलकर संप्रदाय के रूप में विकसित हुआ।
बोले सो निहाल --- सति श्री अकाल