Wednesday 7 April 2021

नाथ संप्रदाय

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नाथ संप्रदाय

भारत में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है। नाथ शब्द का अर्थ होता है स्वामी। कुछ लोग मानते हैं कि नाग शब्द ही बिगड़कर नाथ हो गया। नाथ समाज हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। नौ नाथों की परंपरा से 84 नाथ हुए। नौ नाथों के संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं।

भगवान शंकर को आदिनाथ और दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है। इन्हीं से आगे चलकर नौ नाथ और नौ नाथ से 84 नाथ सिद्धों की परंपरा शुरू हुई। नाथ संप्रदाय को गुरु मत्स्येंद्रनाथ और उनके शिष्य गोरक्षनाथ (गोरखनाथ) ने पहली दफे व्यवस्था दी। इतिहासवेत्ता मत्स्येन्द्र का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी मानते हैं तथा गोरक्षनाथ दसवीं शताब्दी के पूर्व उत्पन्न कहे जाते हैं।

 

1.  मत्स्येन्द्र नाथ : नाथ संप्रदाय में आदिनाथ और दत्तात्रेय के बाद सबसे महत्वपूर्ण नाम हठयोग के परम गुरु आचार्य मत्स्येंद्र नाथ का है, जो मीननाथ और मछन्दरनाथ के नाम से लोकप्रिय हुए। मत्स्येन्द्र के गुरु दत्तात्रेय थे। इनकी समाधि उज्जैन के गढ़कालिका के पास स्थित है।

2.  गोरखनाथ -गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ- नाथ साहित्य के आरंभकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ से पहले अनेक संप्रदाय थे, जिनका नाथ संप्रदाय में विलय हो गया। गोरखनाथ ने असम से पेशावर, कश्मीर से नेपाल और महाराष्ट्र तक की यात्राएं कीं। गोरखनाथ ने काबुल, गांधार, सिंध, बलोचिस्तान, कच्छ और अन्य देशों मक्का-मदीना तक नाथ परंपरा को विस्तार दिया। उनकी बनायी गयीं 12 शाखाएं आज भी जीवित हैं जिनमें उडीसा में सत्यनाथ, कच्छ का धर्मनाथ, गंगासागर का कपिलानी, गोरखपुर का रामनाथ, अंबाला का ध्वजनाथ, झेलम का लक्ष्मणनाथ, पुष्कर का बैराग, जोधपुर का माननाथी, गुरूदासपुर का गंगानाथ, बोहर का पागलपंथ समुदाय के अलावा दिनाजपुर के आईपंथ की कमान विमलादेवी सम्भाले हैं, जबकि रावलपिंडी के रावल या नागनाथ पंथ में ज्यादातर मुसलमान योगी ही हैं।उत्तरप्रदेश के गोरखपुर शहर का नाम गोरखनाथ जी के नाम पर ही पड़ा है। यहाँ पर स्थित गोरखनाथ जी का मंदिर  आज भी दर्शनीय है।

 बारह पंथ

 उडीसा में---सत्यनाथ पंथ – इनकी संख्या 31 बतलायी गयी है । इसके मूल प्रवर्तक सत्यनाथ (भगवान् ब्रह्माजी) थे । इसीलिये सत्यनाथी पंथ के अनुयाययियों को “ब्रह्मा के योगी” भी कहते हैं । इस पंथ का प्रधान पीठ उड़ीसा प्रदेश का पाताल भुवनेश्वर स्थान है ।

कच्छ में--धर्मनाथ पंथ – इनकी संख्या २५ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक धर्मराज युधिष्ठिर माने जाते हैं । धर्मनाथ पंथ का मुख्य पीठ नेपाल राष्ट्र का दुल्लुदेलक स्थान है । भारत में इसका पीठ कच्छ प्रदेश धिनोधर स्थान पर हैं ।

गोरखपुर में  -- राम पंथ – इनकी संख्या 61 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भगवान् श्रीरामचन्द्र माने गये हैं । इनका प्रधान पीठ उत्तर-प्रदेश का गोरखपुर स्थान है ।

झेलम में-- नाटेश्वरी पंथ अथवा लक्ष्मणनाथ पंथ – इनकी संख्या 43  है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक लक्ष्मणजी माने जाते हैं । इस पंथ का मुख्य पीठ पंजाब प्रांत का गोरखटिल्ला (झेलम) स्थान है । इस पंथ का सम्बन्ध दरियानाथ व तुलनाथ पंथ से भी बताया जाता है ।

कंथड़ पंथ – इनकी संख्या 10  है । कंथड़ पंथ के मूल प्रवर्तक गणेशजी कहे गये हैं । इसका प्रधान पीठ कच्छ प्रदेश का मानफरा स्थान है ।

गंगासागर में---कपिलानी पंथ – इनकी संख्या 26  है । इस पंथ को गढ़वाल के राजा अजयपाल ने चलाया । इस पंथ के प्रधान प्रवर्तक कपिल मुनिजी बताये गये हैं । कपिलानी पंथ का प्रधान पीठ बंगाल प्रदेश का गंगासागर स्थान है । कलकत्ते (कोलकाता) के पास दमदम गोरखवंशी भी इनका एक मुख्य पीठ है ।

पुष्कर में---वैराग्य पंथ – इनकी संख्या 124 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भर्तृहरिजी हैं । वैराग्य पंथ का प्रधान पीठ राजस्थान प्रदेश के नागौर में राताढुंढा स्थान है ।इस पंथ का सम्बन्ध भोतंगनाथी पंथ से बताया जाता है ।

जोधपुर में---माननाथ पंथ – इनकी संख्या 10 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक राजा गोपीचन्द्रजी माने गये हैं । इस समय माननाथ पंथ का पीठ राजस्थान प्रदेश का जोधपुर महा-मन्दिर नामक स्थान बताया गया है ।

दिनाजपुर में  ---आई पंथ – इनकी संख्या १० है । इस पंथ की मूल प्रवर्तिका गुरु गोरखनाथ की शिष्या भगवती विमला देवी हैं । आई पंथ का मुख्य पीठ बंगाल प्रदेश के दिनाजपुर जिले में जोगी गुफा या गोरखकुई नामक स्थान हैं । इनका एक पीठ हरिद्वार में भी बताया जाता है । इस पंथ का सम्बन्ध घोड़ा चौली से भी समझा जाता है ।

बोहर में---पागल पंथ – इनकी संख्या 4 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री चौरंगीनाथ थे । जो पूरन भगत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब-हरियाणा का अबोहर स्थान है ।

अंबाला में-----ध्वजनाथ पंथ – इनकी संख्या 3 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक हनुमानजी माने जाते हैं । वर्तमान में इसका मुख्य पीठ सम्भवतः अम्बाला में है ।

 गुरूदासपुर में-----गंगानाथ पंथ – इनकी संख्या 6 है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री भीष्म पितामह माने जाते हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब में गुरुदासपुर जिले का जखबार स्थान है ।

कालान्तर में नाथ सम्प्रदाय के इन बारह पंथों में छह पंथ और जुड़े –  रावल (संख्या-७१),  पंक (पंख),  वन, कंठर पंथी, गोपाल पंथ तथा  हेठ नाथी ।

इस प्रकार कुल बारह-अठारह पंथ कहलाते हैं । बाद में अनेक पंथ जुड़ते गये, ये सभी  उपशाखायें अथवा उप-पंथ है । कुछ के नाम इस प्रकार हैं – अर्द्धनारी, अमरनाथ, अमापंथी। उदयनाथी, कायिकनाथी, काममज, काषाय, गैनीनाथ, चर्पटनाथी, तारकनाथी, निरंजन नाथी, नायरी, पायलनाथी, पाव पंथ, फिल नाथी, भृंगनाथ आदि

 नेपाल के परम सिद्ध योगी : गोरखनाथ

गुरु गोरखनाथजी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं ने नाम पाया। नेपाल का गोरखा जिले का नाम भी भी गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही पड़ा। नेपाल की राजमुद्रा पर श्रीगोरक्षनाथ नाम और राजमुकुटों में उनकी चरणपादुका का चिह्न अंकित है।

गोरखनाथ द्वारा रचित ग्रंथों

गोरखनाथ द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या ४० बताई जाती है किन्तु डा. बड़्थ्याल ने केवल १४ रचनाएं ही उनके द्वारा रचित मानी है जिसका संकलन ‘गोरखबानी’ मे किया गया है।

1. सबदी  2. पद  3.शिष्यादर्शन  4. प्राण सांकली  5. नरवै बोध  6. आत्मबोध 7. अभय मात्रा जोग  8. पंद्रह तिथि  9. सप्तवार  10. मंछिद्र गोरख बोध  11. रोमावली12. ग्यान तिलक  13. ग्यान चैंतीसा  14. पंचमात्रा   15. गोरखगणेश गोष्ठ 16.गोरखदत्त गोष्ठी (ग्यान दीपबोध)  17.महादेव गोरखगुष्टिउ 18. शिष्ट पुराण  19. दया बोध 20.जाति भौंरावली (छंद गोरख)  21. नवग्रह   22. नवरात्र  23 अष्टपारछ्या  24. रह रास  25.ग्यान माला  26.आत्मबोध (2)   27. व्रत   28. निरंजन पुराण   29. गोरख वचन 30. इंद्र देवता   31.मूलगर्भावली  32. खाणीवाणी  33.गोरखसत   34. अष्टमुद्रा  35. चौबीस सिध  36 षडक्षर  37. पंच अग्नि  38 अष्ट चक्र   39 अूक 40. काफिर बोध

 3 गहिनीनाथ : गहिनीनाथ के ‍गुरु गोरखनाथ थे। मान्यता है कि एक दिन गुरु गोरखनाथ अपने गुरु मछिन्दर नाथ के साथ तालाब के किनारे एक एकांत जगह प्रवास कर रहे थे, जहां पास ही में एक गांव था। मछिंदरनाथ ने कहा कि मैं तनिक भिक्षा लेकर आता हूं तब तक तुम संजीवनी विद्या सिद्धि का मंत्र जपो। संजीवनी विद्या को सिद्ध करने को चार बातें चाहिए श्रद्धा, तत्परता, ब्रह्मचर्य और संयम। ऐसा कहकर मछिंदरनाथ तो चले गए और गोरखनाथ जप करने लगे।वे जप और ध्यान कर ही रहे थे वहीं तालाब के किनारे बच्चे खेलने आ गए। तालाब की गीली-गीली मिट्टी को लेकर वे बैलगाड़ी बनाने लगे। बैलगाड़ी बनाने तक वो सफल हो गए, लेकिन बैलगाड़ी चलाने वाला मनुष्य का पुतला वे नहीं बना पा रहे थे। किसी लड़के ने सोचा कि ये जो आंख बंद किए बाबा हैं इन्हीं से कहें- बाबा-बाबा हमको गाड़ी वाला बनाके दीजिए। गुरु गोरखनाथ ने आंखें खोलीं और कहा कि अभी हमारा ध्यान भंग न करो फिर कभी देखेंगे। लेकिन वे बच्चे नहीं माने और फिर कहने लगे। बच्चों के आग्रह के चलते गोरखनाथ ने कहा- लाओ बेटे बना देता हूं। उन्होंने जप संजीवनी जप करते हुए ही मिट्टी उठाई और पुतला बनाने लगे। संजीवनी मंत्र प्रभाव से वो पुतला सजीव होने लगा उसमें जान आ गई। जब पूरा हुआ तो वो पुतला बोला प्रणाम। गुरु गोरखनाथजी चकित रह गए। बच्चे घबराए कि ये पुतला कैसे जी उठा? बच्चे तो चिल्लाते हुए भागे। जाकर उन बच्चो ने गांव वालों से कहा और गांव वाले भी उस घटना को देखने जुट गए। गांव वालों ने गोरखनाथ को प्रणाम किया। इतने में गुरु मछिंद्रनाथ भिक्षा लेकर आ गए। दोनों नाथ बच्चे को लेकर जाने लगे। इतने में गांव के ब्राह्मण मधुमय और ब्राह्मणी गंगा जिनको संतान नहीं थी गांव वालों ने कहा कि आपकी कृपा से इन्हें संतान मिल सकती है। दोनों ने उक्त बालक को गोद लेना स्वीकार कर लिया।यही बालक गहिनीनाथ योगी के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ। यह कथा है कनक गांव की जहां आज भी इस कथा को याद किया जाता है। गहिनीनाथ की समाधि महाराष्ट्र के चिंचोली गांव में है, ‍जो तहसील पटोदा और जिला बीड़ के अंतर्गत आता है। मुसलमान इसे गैबीपीर कहते हैं।

 4 जालंधर (जालिंदरनाथ) नाथ : इनके गुरु दत्तात्रेय थे। एक समय की बात है हस्तिनापुर में ब्रिहद्रव नाम के राजा सोमयज्ञ कर रहे थे। अंतरिक्षनारायण ने यज्ञ के भीतर प्रवेश किया। यज्ञ की समाप्ति के बाद एक तेजस्वी बालक की प्राप्ति हुई। यही बालक जालंधर कहलाया। दस्तावेजों के मुताबिक वे विक्रम संवत 1451 में राजस्थान में पधारे थे।

5 कृष्णपाद : इनके गुरु जालंदरनाथ थे। कृष्णपाद को कनीफ नाथ भी कहा जाता है।और इनका नाम कण्हपा, कान्हूपा, कानपा आदि प्रसिद्ध है। कोई तो उन्हें कर्णाटक का मानता है और कोई उड़ीसा का। महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में ऊंचे किले पर मढ़ी नामक गांव है । इस किले पर श्री कनीफ नाथ महाराज ने 1710 में फाल्गुन मास की वैद्य पंचमी पर समाधि ली थी

 6 भर्तृहरि नाथ : भर्तृहरि राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। राजा गंधर्वसेन ने राजपाट भर्तृहरि को सौंप रानी द्वारा आत्मदाह की घटना ने भर्तृहरि को वैराग्य जीवन की राह दिखा दी। वे वैरागी हो गए।  मध्यप्रदेश के उज्जैन में आज भी भर्तृहरि की गुफा है जहां वे तपस्या किया करते थे।

 7 रेवणनाथ : महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में करमाला तहसील के वीट गांव में इनकी समाधि है।

 8 नागनाथ : ब्रह्मा का वीर्य एक नागिन के गर्भ में चला गया था जिससे बाद में नागनाथ की उत्पत्ति हुई।

 9 चर्पट नाथ :

 इस पंथ के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि सिद्धमत और नाथमत एक ही हैं।

 

नाथ-साधु हठयोग पर विशेष बल देते है।

 यह योगी सम्प्रदाय बारह पन्थ में विभक्त है

 सत्यनाथ ,धर्मनाथ ,दरियानाथ, आई पन्थी, रास के,वैराग्य के,कपिलानी,गंगानाथी,मन्नाथी,रावल के, पाव पन्थी, पागल

इस सम्प्रदाय में कई भाँति के गुरु होते हैं यथाः- चोटी गुरु, चीरा गुरु, मंत्र गुरु, टोपा गुरु आदि।

नवनाथ नाथ सम्प्रदाय के सबसे आदि में नौ मूल नाथ हुए हैं । वैसे नवनाथों के सम्बन्ध में काफी मतभेद है,

 आदिनाथ – ॐ-कार शिव, ज्योति-रुप

 उदयनाथ – पार्वती, पृथ्वी रुप

  सत्यनाथ – ब्रह्मा, जल रुप

 संतोषनाथ – विष्णु, तेज रुप

 अचलनाथ (अचम्भेनाथ) – शेषनाग, पृथ्वी भार-धारी

कंथडीनाथ – गणपति, आकाश रुप

 चौरंगीनाथ – चन्द्रमा, वनस्पति रुप

मत्स्येन्द्रनाथ – माया रुप, करुणामय

 गोरक्षनाथ – अयोनिशंकर त्रिनेत्र, अलक्ष्य रुप

चौरासी सिद्ध

 जोधपुर, चीन इत्यादि के चौरासी सिद्धों में भिन्नता है । अस्तु, यहाँ यौगिक साहित्य में प्रसिद्ध नवनाथ के अतिरिक्त ८४ सिद्ध नाथ इस प्रकार हैं –

 १॰ सिद्ध चर्पतनाथ,  २॰ कपिलनाथ,  ३॰ गंगानाथ, ४॰ विचारनाथ, ५॰जालंधरनाथ,

६॰ श्रंगारिपाद, ७॰ लोहिपाद, ८॰ पुण्यपाद, ९॰ कनकाई, १०॰ तुषकाई, ११॰ कृष्णपाद,

१२॰ गोविन्द नाथ, १३॰ बालगुंदाई, १४॰ वीरवंकनाथ, १५॰ सारंगनाथ, १६॰ बुद्धनाथ,

१७॰ विभाण्डनाथ, १८॰ वनखंडिनाथ, १९॰ मण्डपनाथ, २०॰ भग्नभांडनाथ, २१॰धूर्मनाथ २२॰ गिरिवरनाथ, २३॰ सरस्वतीनाथ, २४॰ प्रभुनाथ, २५॰ पिप्पलनाथ, २६॰ रत्ननाथ,

२७॰ संसारनाथ, २८॰ भगवन्त नाथ, २९॰ उपन्तनाथ, ३०॰ चन्दननाथ, ३१॰ तारानाथ,

३२॰ खार्पूनाथ, ३३॰ खोचरनाथ, ३४॰ छायानाथ, ३५॰ शरभनाथ, ३६॰ नागार्जुननाथ,

३७॰ सिद्ध गोरिया, ३८॰ मनोमहेशनाथ, ३९॰श्रवणनाथ, ४०॰बालकनाथ,४१॰शुद्धनाथ,

४२॰ कायानाथ ४३॰ भावनाथ, ४४॰ पाणिनाथ, ४५॰ वीरनाथ, ४६॰ सवाइनाथ,

४७॰ तुक नाथ, ४८॰ ब्रह्मनाथ, ४९॰ शील नाथ, ५०॰ शिव नाथ, ५१॰ ज्वालानाथ, ५२॰ नागनाथ, ५३॰ गम्भीरनाथ, ५४॰ सुन्दरनाथ, ५५॰ अमृतनाथ, ५६॰ चिड़ियानाथ,

५७॰ गेलारावल, ५८॰ जोगरावल, ५९॰ जगमरावल, ६०॰ पूर्णमल्लनाथ,६१॰ विमलनाथ,

६२॰ मल्लिकानाथ, ६३॰ मल्लिनाथ ।६४॰ रामनाथ, ६५॰ आम्रनाथ, ६६॰ गहिनीनाथ,

६७॰ ज्ञाननाथ, ६८॰ मुक्तानाथ, ६९॰ विरुपाक्षनाथ, ७०॰ रेवणनाथ, ७१॰ अडबंगनाथ,

७२॰ धीरजनाथ, ७३॰ घोड़ीचोली, ७४॰ पृथ्वीनाथ, ७५॰ हंसनाथ, ७६॰ गैबीनाथ,

७७॰ मंजुनाथ, ७८॰ सनकनाथ, ७९॰सनन्दननाथ, ८०॰ सनातननाथ,८१॰सनत्कुमारनाथ,

८२॰ नारदनाथ, ८३॰ नचिकेता, ८४॰ कूर्मनाथ ।

विभिन्न मान्यताएँ

1. गोरक्षनाथ जी के आध्यात्मिक जीवन संबंधित विभिन्न मान्यताएँ हैं। परंतु सभी मान्यताएँ उनके दो गुरूओं आदिनाथ और मत्स्येंद्रनाथ के होने के बारे में एकमत हैं। गोरक्षनाथ जी के अनुयायी इन्हें एक दैवी पुरूष मानते थे, इसीलिये उन्होनें इनके जन्म स्थान तथा समय के बारे में जानकारी देने से हमेशा इन्कार किया।

2 . नाथ संप्रदाय के कुछ संतो का ये भी मानना है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले उनका संप्रदाय अस्तित्व में था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश श्री गोर-नाथ जी के प्रथम शिष्य बने।

 3. श्री गोरक्षनाथ जी को अवतार के रूप में देखा गया जो विभिन्न कालों में धरती पर प्रकट हुए। सतयुग में वह लाहौर पार पंजाब के पेशावर में रहे, त्रेतायुग में गोरखपुर में निवास किया, द्वापरयुग में द्वारिका के पार भुज में और कलियुग में पुनः गोरखपुर के पश्चिमी काठियावाड़ के गोरखमढ़ी(गोरखमंडी) में तीन महीने तक यात्रा की।

 4. एक मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को श्री गोरक्षनाथ जी का गुरू कहा जाता है।

 5. गोरक्षनाथ के करीबी माने जाने वाले मत्स्येंद्रनाथ ko नेपाल के शासकों का कुल गुरू तथा बौद्ध भिक्षु  भी माना गया है,जिन्होनें आर्यावलिकिटेश्वर के नाम से पदमपाणि का अवतार लिया। मान्यता अनुसार उन्होंने शिव को योग की शिक्षा दी थी। उनकी आज्ञानुसार घर वापस लौटते समय समुद्र के तट पर शिव पार्वती को इसका ज्ञान दिया था। शिव के कथन के बीच पार्वती को नींद आ गयी, परन्तु मछली (मत्स्य) रूप धारण किये हुये लोकेश्वर ने इसे सुना। बाद में वहीं मत्स्येंद्रनाथ के नाम से जाने गये।

 6. एक अन्य मान्यता के अनुसार श्री गोरक्षनाथ के द्वारा आरोपित बारह वर्ष से चले आ रहे सूखे से नेपाल की रक्षा करने के लिये मत्स्येंद्रनाथ को असम  से बुलाया गया था।

 7. एक मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को हिंदू परंपरा का अंग माना गया है। सतयुग में उधोधर नामक एक परम सात्विक राजा थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनका दाह संस्कार किया गया परंतु उनकी नाभि अक्षत रही। उनके शरीर के उस अनजले अंग को नदी में प्रवाहित कर दिया गया, जिसे एक मछली ने अपना आहार बना लिया। तदोपरांत उसी मछ्ली के उदर से मत्स्येंद्रनाथ का जन्म हुआ। अपने पूर्व जन्म के पुण्य के फल के अनुसार वो इस जन्म में एक महान संत बने।

 8.एक और मान्यता के अनुसार एक बार मत्स्येंद्रनाथ लंका गये और वहां की महारानी के प्रति आसक्त हो गये। जब गोरक्षनाथ जी ने अपने गुरु के इस अधोपतन के बारे में सुना तो वह उनकी तलाश मे लंका पहुँचे। उन्होंने मत्स्येंद्रनाथ को राज दरबार में पाया और उनसे जवाब मांगा । मत्स्येंद्रनाथ ने रानी को त्याग दिया,परंतु रानी से उत्पन्न अपने दोनों पुत्रों को साथ ले लिया। वही पुत्र आगे चलकर पारसनाथ और नीमनाथ के नाम से जाने गये,जिन्होंने जैन धर्म की स्थापना की।

 9. एक नेपाली मान्यता के अनुसार, मत्स्येंद्रनाथ ने अपनी योग शक्ति के बल पर अपने शरीर का त्याग कर उसे अपने शिष्य गोरक्षनाथ की देखरेख में छोड़ दिया और तुरंत ही मृत्यु को प्राप्त हुए और एक राजा के शरीर में प्रवेश किया। इस अवस्था में मत्स्येंद्रनाथ को काम और सेक्स का लोभ हो आया। भाग्यवश अपने गुरु के शरीर को देखरेख कर रहे गोरक्षनाथ जी उन्हें चेतन अवस्था में वापस लाये और उनके गुरु अपने शरीर में वापस लौट आयें।

 10. संत कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के भक्त कवि थे। गोरक्षनाथ जी की एक गोष्ठी में कबीर और गोरक्षनाथ के शास्त्रार्थ का भी वर्णन है।

 11. पंजाब में चली आ रही एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई पूरनमल भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और पूरनमल पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पूरनमल तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के पास पूरनमल वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।

 12. बंगाल से लेकर पश्चिमी भारत तक और सिंध से राजस्थान पंजाब में गोपीचंद भरथरी , रानी पिंगला और राजा भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (चंन्द्रगुप्त द्वितीय) के नाम कर दी थी। भर्तृहरि बाद में गोरक्षनाथ के परमप्रिय शिष्य बन गये थे।

 गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा बने। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रह है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की साथ आए  धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण गोगा मजार के दर्शनों हेतु भादौं (भाद्रपद) मास में उमड़ पडते हैं। इन्ही गोगाजी को आज जावरवीर गोगा कहते है और राजस्थान से लेकर विहार  और पश्चिम बंगाल तक इसके श्रद्धालु रहते हैं ।

इन्हीं से आगे चलकर चौरासी और नवनाथ माने गए जो निम्न हैं-प्रारम्भिक दस नाथ………

 

आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ। इनके बारह शिष्य थे जो इस क्रम में है- नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुन नाथ।

 

चौरासी और नौ नाथ परम्परा0

आठवी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के महायान के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। ये सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चैरासी मानी गई है।

नौनाथ गुरु  1.मच्छेंद्रनाथ 2.गोरखनाथ 3.जालंधरनाथ 4.नागेश नाथ 5.भारती नाथ 6.चर्पटी नाथ 7.कनीफ नाथ 8.गेहनी नाथ 9.रेवन नाथ। इसके अलावा ये भी हैं 1. आदिनाथ 2. मीनानाथ 3. गोरखनाथ 4.खपरनाथ 5.सतनाथ 6.बालकनाथ 7.गोलक नाथ 8.बिरुपक्षनाथ 9.भर्तृहरि नाथ 10.अईनाथ 11.खेरची नाथ 12.रामचंद्रनाथ। ओंकार नाथ, उदय नाथ, सन्तोष नाथ, अचल नाथ, गजबेली नाथ, ज्ञान नाथ, चैरंगी नाथ, मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ। सम्भव है यह उपयुक्त नाथों के ही दूसरे नाम है। बाबा शिलनाथ, दादाधूनी वाले, गजानन महाराज, गोगा नाथ, पंरीनाथ और साईं बाब को भी नाथ परंपरा का माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय को वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय का माना जाता है, क्योंकि उनकी भी नाथों में गणना की जाती है। भगवान भैरवनाथ भी नाथ संप्रदाय के अग्रज माने जाते हैं।

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