आज आपको उत्तर भारत के कुछ ऐसे स्थानों से रूबरू कराने जा रहा है जहां पांडवों
ने अपने बारह वर्ष के बनवास के दौरान
महाभारत के युद्ध से पहले समय व्यतीत किया था,,,
पांडवों से जुड़े कुछ प्रमुख स्थान है
--हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में मौजूद 15 शिखर मंदिरों वाली संरचना मसरूर
मंदिर,,, बाथू मंदिर- शिमला से करीब 110 किमी की दूरी पर पब्बर नदी के किनारे जुब्बल में मां हाटेश्वरी का
प्राचीन मंदिर,,, मंडी जिला के जंजैहली गांव में पांडव शिला
और भीम शिला,,, मंडी के करसोग में ममलेश्वर मंदिर
चलिए आपको सबसे पहले लिए चलते हैं-पंजाब के जिला
पठानकोट की प्रसीद पांडव गुफा मे-- गुफा मंदिर हिंदू देवता भगवान शिव को समर्पित
हैं
पठानकोट के प्रसिद्ध मुक्तेश्वर
शिवधाम को प्राचीन पांडव गुफा के नाम से जाना जाता है। शिवालिक की पहाड़ियों में
लगभग 5500 साल से भी पुराने इस धाम के बारे में कहा जाता है
कि इसे पांडवों ने विकसित किया था। इस धाम को छोटा हरिद्वार भी कहा जाता है। जो
हरिद्वार में लोग राख का विसर्जन नहीं कर सकते
उनके परिजन इसे मुक्तेश्वर महादेव मं दिर में रावी नदी में प्रवाहित करते
हैं।
मुक्तेश्वर धाम पठानकोट से 22 किलोमीटर गांव ढूंग में रावी नदी के किनारे स्थित है। किम्वदंति के
अनुसार द्वापर युग में युद्धिष्ठिर बनवास काटने अपने चारों भाइयों और द्रौपदी के
साथ लगभग 6 महीने यहां रहे थे। यहां गुफाओं में उन्होंने
शिवलिंग स्थापित किया था। इसमें संगमरमर का शिवलिंग और तांबे की योनि है।
काफी गहराई में पहाड़ियों के बीच नदी
निर्मल धारा भी बहती दिखाई देती है। -
250 सीढ़ियां उतरने के बाद मंदिर
परिसर में पहुंच जाएंगे, जहां महाभारत काल की गवाह चार गुफाएं हैं। नीचे दो
गुफाओं में से एक बड़ी गुफा में मंदिर, द्रौपदी की रसोई,
परिवार मिलन कक्ष है। बाकी
तीन गुफाएं थोड़ा ऊंचाई पर हैं। इनमें से एक में अंगरक्षक सहायक तेली को रात में
जगाते रहने के लिए कोहलू लगाया गया था। एक गुफा द्रौपदी के लिए आरक्षित थी और चौथी
में दूध और भोजन भंडारण किया जाता था। यहां अमावस्या, नवरात्र,
बैसाखी और शिवरात्रि पर मेला भी लगता है।
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