Wednesday 25 May 2022

महेश्वर-

जब से हिंदी fiction फिल्म बहु बलि का प्रदर्शन हुआ है - बच्चे बच्चे की जुबान पर महिष्मति नगर का नाम चढ़ गया है  राजा सहस्त्रार्जुन  - की नगरी महिष्मति  ----वायु पुराण, नर्मदा पुराण , स्कंद पुराण इत्यादि में वर्णित महिष्मति --- आज महेश्वर नाम से विख्यात  हे | "मध्य प्रदेश की जीवन रेखा" -माँ नर्मदा के पवित्र तट पर बसा  महेश्वर, एक ऐसा शहर जहां आपको खूबसूरत मंदिर ही मंदिर दिखाई देंगे इंदौर से महेश्वर की दूरी 95 किलोमीटर दूर है। ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 60 Km है।

नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव को समर्पित  श्री अहिल्येश्वर मंदिर ऊंचे मंडप पर बना हुआ है। मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर है। मंदिर के तीन तरफ से प्रवेश द्वार है।


छतरी


मन्दिर के गुम्बदों और लाटों की उत्कृष्ट शिल्पकला और वास्तुकला, मराठा सैनिकों और घोड़ों की सुन्दर नक्काशियाँ आने वाले पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते हैं मन्दिर का सम्पूर्ण परिवेश एक शान्त और शुद्ध वातावरण सृजित करता है  मन्दिर का मण्डप प्रभावशाली अलंकरण से सजाया गया है।


श्रीमंत जसवंतराव होलकर (प्रथम) की अभिलाषा के अनुरूप कृष्णाबाई मां साहेब ने इसका निर्माण करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य कार्तिक शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत् 1856 से प्रारंभ होकर वैशाख शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत 1890 को पूर्ण हुआ। 




 सभा मंडम में नंदी और स्तंभों पर दशावतार की मूर्तियों को उकेरा गया है। जिनमें मत्स्य, वराह, कच्छप, वामन, नृसिंह, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध व कलगी अवतार शामिल है। मंदिर के गर्भ गृह के दोनों ओर घुमावदार सीढ़ियां हैं। जिनसे होकर मंदिर की छत पर जाया जा सकता है। मंदिर में ओंकारेश्वर शिवलिंग भी स्थापित है।




हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने नर्मदा नदी का निर्माण किया, विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है जिसका पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो ता है 


 राजा सहस्त्रार्जुन क्षत्रिय समाज के हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे । उन्होंने दत्तात्रेय भगवान ki घोर तपस्या की aur 1 हजार हाथों का आशीर्वाद प्राप्त किया। सम्राट सहस्त्रार्जुन ने एक युद्ध में रावण को पराजित कर उसे बंदी भी बना लिया था।  

रावण की याद मे जलते 11 दीपक - 10 रावन के दससिर के लिए एक भगवन को समर्पित


युद्ध का कारण : ऋषि वशिष्ठ से शाप का भाजन बनने के कारण सहस्त्रार्जुन की मति मारी गई थी। सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन  मारा गया।

तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम के पिता जमदग्नि का वध कर डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर सती हो गई। परशुराम ने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूँगा।

तब अहंकारी और दृष्ठ हैहय-क्षत्रियों से उन्होंने 21 बार युद्ध किया था।
राजा सहस्त्रार्जुन का मंदिर

यहां पर आपको 11 दीपक देखने के लिए मिलते हैं, जो उस समय से जल रहे हैं। जब यह मंदिर बनाया गया था। माना जाता है कि यह सोमवंशी राजा सहस्त्रार्जुन कीर्ति वीर्य की समाधि मंदिर है। यहां पर राजा सहस्त्रार्जुन की प्रतिमा भी आपको देखने के लिए मिलेगी और यहां पर शंकर जी का शिवलिंग भी देखने के लिए मिल जाता है। राजा सहस्त्रार्जुन का जन्मदिन महेश्वर में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यहां 3 दिन उत्सव मनाया जाता है और यहां पर भंडारा भी किया जाता है।


विश्व प्रसीद महेश्वर दुर्ग-


बलुआ पत्थर से मराठी शिल्पकला से सुसज्जित यह  क़िला - किले में रोजाना सुबह 8.30 बजे से आयोजित होने वाले अनोखे लिंगार्चन पूजा अनुष्ठान में शामिल होने का प्रयास करें। यहां पर महारानी देवी अहिल्या बाई की समाधि भी  है। किले के अंदर होलकर साम्राज्य की बहुत सारी वस्तुएं आपको देखने के लिए मिल जाते हैं। किले के अंदर आपको म्यूजियम देखने के लिए मिलेगा। यह किला बहुत खूबसूरत है और बलुआ पत्थर से बना हुआ है। किले में रोजाना सुबह 8.30 बजे से आयोजित होने वाले अनोखे लिंगार्चन पूजा अनुष्ठान में शामिल होने का प्रयास करें। 



बाणेश्वर मंदिर महेश्वर में स्थित एक मंदिर है। यह मंदिर नर्मदा नदी के बीच में बने एक टापू पर बनाया गया है। यह मंदिर पूरी तरह से पत्थर का बना हुआ है। मंदिर में शिवलिंग और नंदी भगवान आपको देखने के लिए मिल जाते हैं। माना जाता है कि द्वापर युग में, बाणासुर ने यहां कठिन तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। बाणेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 9 वीं से 10 वीं शताब्दी में हुआ है। इस मंदिर में आप नाव के द्वारा पहुंच सकते हैं।


यहाँ का प्रवेश द्वार बहुत ही भव्य है -
or आप को मराठा शिल्पकला की झलक दिखलाता है - 


रानी अहिल्या बाई  ने यहाँ से शाषण की बागडोर संभाली थी -यही उनका महल है  -अहिल्या बाई का महल एक होटल मे कन्वर्ट किया जा चुका है -कुछ हिस्सा जिसे राज वाड़ा कहा जाता है -अभी भी आम जनता के लिए खुला है -जहां पर फोटोग्राफी
allowed नहीं है - 


आंगन मे शिव भगत अहिल्या बाई की विशाल प्रतिमा लगाई गयी है -यहाँ आज भी मिट्टी के सवा लाख शिवलिंग बना कर पूजा की जाती है - अन्दर से राज वाड़ा - साधारण है परन्तु यहाँ पर रखी सोने की पालकी आकर्षण का केंद्र है -

इसका प्रवेश द्वार करीब दस फ़ीट ऊँचे हाथीओ से सुसज्जित है ---

 देवी अहिल्या बाई की मृत्यु 13-8-1795 को हुई थी और यहीं पर उनके पार्थिव शरीर का दहन किया गया था।



अहिल्या घाट वहुत ही खूबसूरत है - यहाँ पर boating की सुविधा भी है



फिल्म दबंग ३ पेड मैन महाकर्णिका एवं टी वी सीरियल महाकाल मे आप यहाँ के खूबसूरत घाटों को बड़े परदे पर देख चुके है 









महेश्वर का काशी विश्वनाथ मंदिर लगभग 4 शताब्दी पूर्व का अनुमानित  हे जिसका निर्माण राजमाता अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था | नर्मदा कनारे निर्मित यह शिव मंदिर अत्यंत सुन्दर और भव्य हे | नर्मदा नदी का दर्शन यहाँ से अत्यंत लुभावना है |


17वीं शताब्दी में हैदराबादी बुनकरों द्वारा प्रारंभ की गई माहेश्वरी साड़ी आज भी साड़ियों का एक बड़ा ब्रांड है और महेश्वर इन माहेश्वरी साड़ियों के निर्माण और व्यवसाय का बड़ा केंद्र है।


No comments:

Post a Comment

झुंझुनू -रानी सती मंदिर -खेमी सती मंदिर -

  रंग बिरंगे खूबसूरत रोशनियों से नहाया हुआ , उत्तरी भारत के सबसे अमीर मंदिरो मे से एक , स्त्री शक्ति का प्रतीक , मंदिर ह...