देवास- अर्थात -जहां है देवी का वास-
मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर से मात्र 35 किमी उज्जैन – 36 किमी स्थित है, चामुंडा माता की नगरी देवास । देवास की माता टेकरी को रक्त पीठ माना जाता है।
तुलजा भवानी हिन्दू देवी
दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है और उत्तरी गुजरात, तेलंगाना, उत्तरी कर्नाटक, पश्चिमी राजस्थान और पंजाब के
राजपूतों द्वारा भी पूजा की जाती है।
टेकरी पर कालका माता, अन्नपूर्णा माता का मंदिर, खो-खो माता, अष्टभुजादेवी, दक्षिणाभिमुखी हनुमान मंदिर, कुबेर माता का मंदिर भी है।
देवास में मराठी राजवंशों ने शासन किया है। पहला घराना है होल्कर और दूसरा घराना है पंवार। और पंवार घराने ने छोटी माता अपनी कुल देवी माना है।
ज्यादातर इतिहासकार शक्ति
पूजा की शुरुआत गुप्ता काल 280-550 ad मई मानते है परन्तु शक्ति-पूजा का सर्वप्रथम वर्णन मार्कण्डेयपुराण के
देवी-महात्म्य खण्ड -दुर्गा-सप्तशती
में मिलता है। दुर्गा सप्त सती - में देवी को
विभिन्न रूपों में -- मौलिक गुणों जिन्हें तमस रजस, और सत्व के साथ वर्णित किया गया है । हालाँकि मार्कण्डेयपुराण की
रचना से बहुत पहले, ऋग्वेद
के देवी-सूक्त के आठ
मन्त्रों में देवी-उपासना की गई
महाभारत में देवी दुर्गा के रूप में देवी पूजा का संदर्भ मिलता है। भगवान कृष्ण ने
अर्जुन को महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले देवी माता से प्रार्थना करने की सलाह
दी।
कनोपनिषद में- वह
देवी उमा के रूप में shiv की दिव्य पत्नी के रूप में प्रकट होती हैं युधिष्ठिर ने अपने वनवास के दौरान
कष्टों से राहत के लिए देवी माता की पूजा की।
वर्तमान युग की
शक्ति-पूजा-पद्धतियों का प्रसार राजपूतों द्वारा किया गया, रोचक बात है कि राजपूतों ने शिव के
त्रिशूल को देवी का चिह्न माना! प्रारम्भिक दौर की नवरात्रियों में, देवी-प्रतिमा का स्थान राजपूताना तोपों ने ले रखा था, जिनपर त्रिशूल चिह्न टाँके गए तथा कई-कई दीप जलाकर शक्ति
का पूजन किया गया। प्रजा ने भी राजपरिवारों का अनुसरण
किया, परन्तु उनके लिए तोपें कहाँ
सुलभ थीं? ऐसे में, देवी दुर्गा की प्रतिमा का प्रवेश
हुआ। मराठों की सत्ता के साथ साथ उनकी आराध्या माता तुलजा-भवानी के जयघोषों का भी
साक्षी रहा है।
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