Sunday, 29 May 2022

नाथ सम्प्रदाय (नादी जनेऊ)

 नाथ सम्प्रदाय (नादी जनेऊ)

https://youtu.be/kCaT2tOQVss 


नाथ, भारत में हिंदू धर्म के भीतर एक शैव उप-परंपरा है इसके संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं 'नाथ' शब्द का अर्थ होता है स्वामी  मध्ययुगीन आंदोलन में इसने भारत में बौद्ध धर्म, शैववाद और योग परंपराओं के विचारों को जोड़ा-- नाथ भक्तों का एक संघ है, जो शिव को अपना पहला स्वामी मानते हैं, शिव को 'अलख' (अलक्ष) नाम से सम्बोधित करते हैं। यह हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित पंथ है प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली बार व्यवस्था दी।  नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं  हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धूनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध कहा जाता है।

 ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे 'सिले' कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। बिना सिले वस्त्र धारण करते हैं

प्रारम्भिक दस नाथ -आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथ नाथ। इनके बारह शिष्य थे - नागार्जुन, जड़ भारत, हरिशचंद्र, सत्यनाथ, चर्पटनाथ, अवधनाथ, वैराग्यनाथ, कांताधारीनाथ, जालंधरनाथ और मालयार्जुन

इसका मठ मुख्यालय गोरखपुर में है

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