तन मन, स्पंदन सभी तेरे।
स्नेह-दीप प्रज्ज्वलित करूँ---तेरा तुझको ही समर्पित करूँ।''
नर्मदा
नदी के किनारे, पवित्र ओम के आकार का मंधाता द्वीप पर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग
मंदिरों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्तिथ
है.
द्वीप
को दो पुलों के माध्यम से जोड़ा गया है
नर्मदा नदी पर यह 270 फीट का लटकता कैंटिलीवर प्रकार
का पुल है जो ओंकारेश्वर की सुंदरता को बढ़ाता है।
मान्यता अनुसार भगवान शिव और
माता पार्वती प्रतिदिन तीनो लोकों में विचरण करते है और रात्री में विश्राम करने
ओम्कारेश्वर आते है।
ओमकारेश्वर मंदिर यह पवित्र स्थान नर्मदा और कावेरी
नदी के मिलन बिंदु पर स्थित है
घाट
आश्चर्यजनक सत्य
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इस मंदिर की एक
विशेष बात यहाँ पर होने वाली आश्चर्य चकित करने वाली घटना है - जो रोज होती है - रोज रात को शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के
सामने चौसर और पांसे सीधे जमाये जाते है। रात में गर्भ गृह में कोई प्रवेश नही कर
सकता पर जब सुबह गर्भ गृह खुलता है तो पांसे उलटे पड़े मिलते है। यह अपने आप में एक
आश्चर्यजनक सत्य है। आस्था है कि महादेव और माता पार्वती रोज रात को पांसे से चौसर
खेलते है।
ओंकारेश्वर नाम का अर्थ है ‘ओंकार के भगवान’
इस ऐतिहासिक मंदिर के निर्माण की मूल तिथि कोई नहीं
जानता। हालांकि, शुरुआती सबूत बताते हैं कि 1063 में,
राजा उदयादित्य ने संस्कृत स्तोत्र के साथ चार पत्थर के शिलालेख
स्थापित किए।
1195 में, राजा
भरत सिंह चौहान ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और उसके पास एक महल का निर्माण
किया।
ओमकारेश्वर मंदिर में 15 फीट ऊँचे 60 बड़े
बड़े स्तम्भ हैं।
गर्भ गृह को रात को बंद कर दिया जाता
है
ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ट्रस्ट का
कार्यालय परिसर में ही स्थित है प्रथम और द्वितीय तलों के शिवलिंगों
के प्रांगणों में नन्दी की मूर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर के में भक्तों के लिए भोजनालय भी चलाया जाता है, जहाँ पर
नाममात्र के शुल्क पर भोजन प्रसाद मिलता है।
मान्यता है कि ओंकारेश्वर दर्शन से
पहले प्रथम दर्शन पंचमुखी श्रीगणेश करना चाहिए।
पंचमुखी गणेश प्रतिमा ओंकारेश्वर मंदिर के दाहिनी ओर स्थित है। पंचमुखी गणेश के
पांच मुखों के महत्व के बारे में पंचकोष अन्नमय, प्राणमय, विज्ञान कोष, आनंदमय
कोश। पंचमुखी गणेश के पांचों रूप सृष्टि के प्रतीक हैं।
यह लिंग मन्दिर के ठीक शिखर के नीचे न
होकर एक ओर हटकर है। लिंग के चारों ओर जल भरा रहता है। मन्दिर का द्वार छोटा है।
ऐसा लगता है जैसे गुफा में जा रहे हों। पास में ही पार्वतीजी की मूर्ति है।
स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के दर्शन
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का परिसर एक पांच मंजिला भवन
के रूप में है जिसकी पहली मंजिल पर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है भवन की
तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव स्थापित है, चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और
पांचवी मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है।
प्रथम तल पर महाकालेश्वर का मंदिर है
द्वितीय तल पर स्थित महाकालेश्वर लिंग
के ऊपर छत समतल न होकर शंक्वाकार है
Mamleshwar temple------- मामलेश्वर
मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। इस मंदिर का वास्तविक नाम अमरेश्वर मंदिर है। यह
एक संरक्षित स्मारक है जो प्राचीन भारत की असाधारण स्थापत्य शैली को प्रदर्शित
करता है। ममलेश्वर मंदिर एक छोटे से क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें एक हॉल और एक गर्भगृह है।
यह मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर के ठीक विपरीत नर्मदा नदी के किनारे स्थित
है। शिवलिंग के पीछे देवी पार्वती की भी प्रतिमा यहां मौजूद है।
इस मंदिर के आंगन में और छह मंदिर भी हैं|
इस मंदिर में
शिव स्त्रोत्र एक शिलालेख के रूप में स्थित है यह 1863 AD से दिनांकित है|
मंदिर सुबह 5:30 से 9:00 बजे
तक खुला रहता है। मंदिर बस स्टैंड से केवल 1.9 किलोमीटर की
दूरी पर स्थित है।
ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग का सही नाम अमरेश्वर मंदिर है।
यहां श्रद्धाओं को ज्योतिर्लिंग को छूकर पूजा करने की
इजाजत है।
मान्धाता टापू में ही ऑकारेश्वर की दो
परिक्रमाएँ होती हैं - एक छोटी और एक बड़ी।
नर्मदा
नदी के दक्षिण तट पर ब्रह्ममेश्वर महादेव और विष्णु मंदिर बना है। उत्तरी तट पर
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है तीनों मंदिरों की दूरी 700-700 फीट पर
है । इन मंदिरों के बीच समान दूरी होने पर श्रीयंत्र आकृति बनती है। मध्य भाग में
मां नर्मदा है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार श्रीयंत्र के पूजन से लक्ष्मी जी प्रसन्न
होती है।
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