Wednesday 9 August 2017

दिल्ली - देश की धड़कन

दिल्ली
भारत की राजधानी - जहाँ से लिखी जाती है करोड़ो भारतीयों की जिंदगी - लुटियंस की दिल्ली - दिलवालो की दिल्ली -- करोड़ो लोगो को गुमनामी मैं धकेलने वाली दिल्ली -राजनेताओ की धूर्त चालो , पैसे की चकाचौंध , जहाँ दिल्ली की अँधेरी गलियो के दर्शन कराती है वही चांदनी चौक मैं पराठे वाली गली , गुरुद्वारा शीश गंज , लाल क़िला , तंग गलियों मैं बसे लज़ीज़ खाने के होटल , भगती के संसार के इलावा सांसारिक स्वादों की भी सैर करवा देती है दिल्ली मैं 300 से ज्यादा मोन्यूमेंट है शायद इंडिया मैं सबसे ज्यादा - आप को दिल्ली देखनी है तो कम से कम मास का समय चाहिए - वैसे तो पुरानी दिल्ली का रेलवे स्टेशन ही आप को इतिहास के पन्ने खोलने को मज़बूर कर देगा --पुरानी इतिहासिक इमारतों के इलावा मेट्रो रेल , लोटस टेम्पल , बड़े बड़े माल ,रंग बिरंगी रोशिनियो से चमकता अक्षर धाम आप को मॉडर्न ईरा मैं ला के खड़ा कर देगा

पालम एयर फ़ोर्स म्यूजियम

वायु सेना संग्रहालय पालम- भारतीय वायु सेना के इतिहास को दर्शाते हवाई जहाजों एवं हथियारों का संग्रहालय तीन खंडों में विभाजित है। पहले खंड में वायु सेना के इतिहास को दर्शाते फोटो है  द्वितीय खंड में द्वितीय विश्व युद्ध मे वायुसैनिकों द्वारा दिखाई गयी बहादुरी की मुँह बोलती कहानी है रिवाल्वर, पिस्टल अनुष्ठानिक तलवार आदि है अंतिम खंड में आधुनिक विमानन इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी है।

समय: प्रातः 10 बजे से सायं 5 बजे तक-----अवकाश: सोमवार एवं मंगलवार 


पुराणी दिल्ली रेलवे स्टेशन 

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन --1864 में एक छोटे से भवन से शुरू हुए इस रेलवे स्टेशन की गिनती आज देश के दस बड़े स्टेशन में होती है। एक जनवरी, 1867 को इस स्टेशन पर ही तो पहली ट्रेन पहुंची थी। वर्तमान इमारत- ब्रिटिश भारत सरकार ने गेरुआ रंग में बनाई और 1903 में खोला गया।


गुरुद्वारा बांग्ला साहिब
यह इमारत मूल रूप से राजा जय सिंह का बंगला (हवेली) था . 1664 में सिखों के आठवें सिख गुरु गुरु हरकिशन साहिब जी को बहुत छोटी उम्र में गद्दी प्राप्त हुई थी., मुगल बादशाह औरंगजेब ने विरोध किया. इस मामले में औरंगजेब ने गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाया  गुरु हरकिशन साहिब जी जब दिल्ली पहुंचे, यहाँ रुके थे। दिल्ली में हैजे की महामारी फैली हुई थी. उन्होंने इस घर के कुएं से ताजा स्वास्थ्य वर्धक, आरोग्य वर्धक पानी देकर लोगों की मदद की. बाद में चेचक से 30 मार्च को उनका निधन हो गया. कुएं की जगह पर आज सरोवर है,  गुरूद्वारे के साथ-साथ एक रसोईघर, लंगर भवन, बड़ा तालाबं “यात्री निवास”, एक स्कूल और एक आर्ट गैलरी भी है। इसका निर्माण सिक्ख जनरल सरदार भगेल सिंह ने 1783 में किया था, 






गुरु द्वारा शीश गंज- चांदनी चौक
1783 में बघेल सिंह ने नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर की शहादत के उपलक्ष्य में इसका निर्माण किया था. मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर को 11 नवंबर 1675 को मौत की सजा दी गई. लखी शाह वंजारा ने अंधेरे की आड़ में गुरु के शव को चोरी कर लिया. गुरु के शव को दाह संस्कार करने के लिए उसने अपने घर को जला दिया और गुरु जी का संस्कार किया  ये जगह आज गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब के रूप में मशहूर है. 







गुरुद्वारा मजनू का टीला



कालका ज़ी मंदिर 
कहा जाता है मंदिर का निर्माण 3000 साल पहले किया गया, जबकि मंदिर की वास्तविक संरचना के छोटे से भाग का निर्माण 1734 में किया गया,- दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं, जबकि कालका मंदिर खुला होता है। अकबर ने इस मंदिर में 84 घंटे लगवाए थे। हर घंटे की आवाज अलग है मुख्य मंदिर के 12 द्वार हैं। यह 12 महीनों और 12 राशियों की तर्ज पर बनाए गएहैं।



 वसंत विहार हनुमान - एक शिला से बनी हुई है ये मूर्ति  




महावीर सथली- नजदीक क़ुतब मीनार
अहिंसा स्थल दिल्ली के महरौली में स्थित एक जैन मंदिर है। मंदिर के मुख्य देवता 24 वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर हैं। महावीर स्वामी की ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित की गयी एक विशाल मूर्ति विराजमान हैं। यह मूर्ति 13 फ़ुट और 6 इंच ऊँची हैं। भगवान महावीर के यह मूर्ति क़र्कला में बनवायी गयी थी ।"



बिहाई टेम्पल -- लोटस मंदिर 
लोटस टेंपल या कमल मंदिर, एक बहाई उपासना स्थल है। यहाँ पर कोई मूर्ति नहीं है मंदिर का उद्घाटन 24 दिसंबर 1986 को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर 1 जनवरी 1987 को खोला गया।



 मलाई मंदिर - आर के पुरम 
उत्तरा स्वामी मलाई मंदिर, लोकप्रिय रूप से मलाई मंदिर के रूप में जाना जाता है, तमिल में मलाई मंदिर का अर्थ है पहाड़ी मंदिर I मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है, और चोल शैली की तमिल वास्तुकला की याद दिलाता है। 8 सितंबर 1965 मंदिर की आधारशिला रखी गई 7 जून 1973 भगवान स्वामीनाथ का मुख्य मंदिर बन कर तैयार हो गया था






मंडी हाउस - कलाकारों की जन्नत

मंडी हाउस के आसपास कई कला केंद्र है जैसे साहित्य अकादमी, दूरदर्शन का कार्यालय, त्रिवेणी कला संगम व फिक्की सभागार

 श्रीराम सेंटर, कमानी सभागार और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सभागारों में चलने वाले नाटक के लिए कतारबद्ध लोग और कहीं नुक्कड़ नाटक करते तो कहीं स्केच से चित्र बनाते दृश्य, श्रीराम सेंटर चाय-समोसे के साथ सीन, डायलाग और नाटक की चर्चा.. करते लोग. नृत्य, संगीत और अभिनय की पाठशालाएं, कथक केंद्र के बाहर घुंघरूओं की आवाज, बॉलीवुड में एंट्री पाने के सपने पाले नौजवान, कशमकश में खोए, नई सोच के साथ घूमते नजर आते हैं ये लोग।यह रंग-संसार का बेहतरीन स्थल है।




निज़ामुद्दीन औलिआ की दरगाह
महान सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया चिश्ती सम्प्रदाय के चौथे संत थे संत ने 1325 में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, निजामुद्दीन दरगाह दिल्ली की वास्तुकला शिल्प के हिसाब से बेहद उम्दा इमारतों में से एक है।

दरगाह में बनी जालियों में यहां आने वाले फरियादी मन्नत का धागा बांधते हैं 

दरगाह में संगमरमर से बना एक छोटा चौकोर कमरा है


दरगाह के अंदर ही शायर अमीर खुसरो और मुगल राजकुमारी जहां आरा बेगम के मकबरे भी हैं।


इसके संगमरमरी गुंबद पर काले रंग की लकीरें हैं। 



विश्व धरोहर हुमायूं का मकबरा

1570 में निर्मित, यह भारतीय उप महाद्वीप पर प्रथम उद्यान - मकबरा था।हुमायूं की रानी हमीदा बानो बेगम ने निर्मित कराया था यूनेस्‍को ने इस को विश्‍व विरासत घोषित किया है। मकबरा 27.04 हेक्टेयर के परिसर में स्थित है।अष्टकोणीय मकबरा एक उच्च मंच पर खड़ा है, इसकी डबल गुंबद42.5 मीटर है


ईसा खान टॉम्ब 

ईसा खां का मकबरा हुमायुं का मकबरा परिसर में है।आकार में अष्टकोणीय और मुख्य रूप से लाल बलुआ पत्थर से निर्मित, 1547-1548 में शेर शाह सूरी के शासनकाल के दौरान बनाया गया था।




ईसा खान की मस्जिद -

मकबरे के पास ही खूबसूरत  मेहराब  के साथ बनी एक मस्जिद है। इसे ईसा खान की मस्जिद के नाम से जाना जाता है।












परांठे वाली गली
चांदनी चौक की परांठे वाली गली कई मामलों में बहुत खास है। कई वेरायटी , शुद्ध शाकाहारी परांठे यहां की पहचान है 1872 में पंडित गया प्रसाद ने यहाँ परांठे की दूकान खोली थी - आज यहाँ बीस के आस पास दुकाने है - सब एक ही परिवार की है - आज इसे परांठे वाली गली के नाम से जाना जाता है



क़ुतब मीनार


दिल्ली की इस 5 मंज़िला  मीनार की ऊंचाई 239 फ़ीट -है इसमें 379  सीढिया है 

13वीं शताब्‍दी में निर्मित कुतुब मीनार लाल सेंड स्टोन से बनी भारत की सबसे ऊंची मीनार है। इसका व्‍यास आधार पर 14.32 मीटर और 72.5 मीटर की ऊंचाई पर शीर्ष के पास लगभग 2.75 मीटर है। 








इमाम जमीन का मकबरा

 24 ft लम्बा ,24 फ़ीट चौड़ा  चकोर अकार मैं बना यह मकबरा इस्लाम धर्म संस्थापक मुहम्मद के वंशज सईद चिस्ती  मुहम्मद अली का है जिसे 1537 मैं बनवाया गया था








इल्तुतमिश का मकबरा

इल्तुतमिश का मकबरा, कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स में है।सन् 1235 में इल्तुतमिश ने इसे खुद बनवाया था।इस पर दो बार गुंबद बनवाया गया दोनों बार वो गिर गया यह मकबरा आज भी बिना छत के है


आयरन पिलर

 इस स्तम्भ की उँचाई लगभग सात मीटर है - पहले हिन्दू व जैन मन्दिर का एक भाग था। तेरहवीं सदी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मन्दिर को नष्ट करके क़ुतुब मीनार की स्थापना की 1600 वर्षों में आज तक उसमें जंग नहीं लगी, मुख्य रसायन शास्त्री डॉ॰ बी.बी. लाल इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं यह स्तंभ आश्चर्यजनक रूप से शुद्ध इस्पात का बना है कुछ इतिहासकार मानते है कि उस लोह स्तंभ में जो लेख है वो गुप्त लेखो की शैली का है और कुछ कहते है कि चंद्रगुप्त द्वितीय के धनुर्धारी सिक्को में एक स्तंभ नज़र आता है जिसपर गरुड़ है ,पर वह स्तंभ कम और राजदंड अधिक नज़र आता है।



रेल म्यूजियम सफदरजंग

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में 11 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है इसका उद्घाटन 1 फरवरी 1977 को किया गया।, संग्रहालय देश में लोकोमोटिव उद्योग के 163 वर्षों का दस्तावेज है जिसमे लगभग 100 मानव-निर्मित कलाकृति आप देख सकते है है।दुनिया का सबसे पुराना काम करने वाला स्टीम लोकोमोटिव Fairy Queen, 1914 का मॉरिस फायर इंजन, भाप, डीजल और बिजली के इंजन - प्रिंस ऑफ वेल्स सैलून, मैसूर के महाराजा के सैलून और बड़ौदा के महाराजा के सैलून प्रदर्शन पर हैं । संग्रहालय सोमवार को बंद रहता हैं ।





लाल क़िला



लाल किला की लाल बलुआ पत्थर की ,1638 में बनी 33 मीटर ऊपर उठती दीवारों को आक्रमणकारियों को बाहर रखने के लिए डिजाइन किया गया था

मुख्य द्वार, लाहौर गेट, आधुनिक भारतीय राष्ट्र के  प्रतीकात्मक केंद्रों में से एक है और प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस पर एक बड़ी भीड़ को आकर्षित करता है।

चट्टा चौक का गुंबददार आर्केड, विशाल किले के परिसर में जाता है। अंदर नौबत खाना, दीवाने आम , दीवाने खास , शीश महल , मस्जिद, बाथ और पैलेस सहित इमारत है।


दीवाने आम 

दीवान-ए-आम के पीछे अंगूरी बाग़   के उस पार है "रंग महल"



दूर से दिखाई देता दीवान-ए-खास और खास महल स्नान घाट मोती मस्जिद


दीवाने खास 

सम्राट यहाँ निजी बैठकें आयोजित करते थे दीवान-ए-खास में बनी पाँच मेहराबों इस्लाम के पाँच सिद्धांतों को  दर्शाती थी दीवान-ए-खास के स्तंभों पर संगमरमर के साथ कीमती पत्थर भी जड़े हुए थेदीवारों पर की गई फूलों की शानदार सजावट हिंदू महलों से ली गई है 


नौबतखाने के प्रथम तल पर संग्रहालय है


शाम को साउंड एंड लाइट शो जरूर देखे


लोधी गार्डन

90  एकड़ में फैले इस पार्क में मोहम्मद शाह, और सिकंदर लोदी के मक़बरे है 


अशोका स्तम्ब --फ़िरोज़ शाह कोटला



पुराना क़िला
प्राचीन स्थल इंद्रप्रस्थ पर निर्मित, पुराना किला लगभग दो किलोमीटर आकार में है जिसका निर्माण हुमायूँ द्वारा किया गया था । -- किला के तीन प्रवेश द्वार हैं जिनमें दोनों ओर बुर्ज हैं। किले के पूर्व ,यमुना नदी बहती थी। उत्तरी द्वार जिसे तालाकी दरवाजा कहा जाता है, जबकि तीसरा दक्षिणी प्रवेश द्वार को हुमायूँ दरवाजा कहा जाता है



वीर जवान ज्योति

अमर जवान ज्योति  -1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बलिदान करने वाले सैनिकों की श्रद्धांजलि के तौर पर जनवरी 1972 में इंडिया गेट की मेहराब के नीचे, अमर जवान ज्योति के साथ उल्टी राइफल पर हेलमेट स्थापित किया गया। 


इंडिया गेट

वर्ष 1931 में इंडिया गेट का निर्माण करवाया गया था। प्रथम विश्व युद्ध तथा अफगान युद्ध में शहीद हुए 13,516 शहीद भारतीयों के नाम इंडिया गेट के चारों तरफ उत्कीर्ण हैं। 


शांतिवन 
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की जो समाधि स्थल को शांतिवन कहा जाता है।


शक्ति सथल-- समाधी इंदिरा गाँधी 


यहाँ इंदिरा गांघी जी को गोली मारी गयी 


समाधी बापू गाँधी
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि स्थल को राजघाट कहा जाता है। 


चिड़िया घर 




जंतर मंतर

जंतर मंतर  का निर्माण जयपुर के महाराजा जयसिंह ने 1724 ई. में कराया था उन्‍होंने उज्‍जैन, वाराणसी, मथुरा, जयपुर , दिल्ली मे अंतरीक्षीय को सही माप लेने के लिए खगोल विज्ञान उपकरण वेधशालाओं का निर्माण कराया शिल्प और यंत्रों की दृष्टि से इसका कई मुकाबला नहीं है मथुरा का जंतर मंतर तबाह हो चुका है




 नेशनल म्यूसियम

सन् 1949 में दिल्ली में स्थापित संग्रहालय नई दिल्ली के दस जनपथ में स्थित है। वर्तमान संग्रहालय की इमारत 1960 में बनकर तैयार हुई संग्रहालय मे दो लाख से ज्यादा वस्तुयें प्रदर्शित हैं। संग्रहालय प्रतिदिन प्रातः 10 बजे से साँय 5 बजे तक खुला रहता है और सोमवार को अवकाश रहता है।



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