बहाई धर्म
19वीं सदी के
ईरान में शुरू हुआ इसकी स्थापना बहाउल्लाह
ने की थी। सईद अली मुहम्मद
(1820-1850 ) जिन्होने 23 मई, 1844 को स्वयं को बाब (“फाटक”),घोषित किया 22 अप्रैल, 1863 को, उनके अनुयायियों में से
एक मिर्जा हुसैन अली ने स्वयं को बाहा’ऊ’ल्लाह (“परमेश्वर की महिमा”) पदवी के साथ
पुकारा. उनके अनुयायियों को बहाई कहा जाता है. बहाउल्लाह को तत्कालिक शासक के आदेश
से 40 वर्षों तक जेल में असहनीय कष्ट सहने पड़े. जेल में उन्हें अनेक प्रकार की कठोर यातनायें दी र्गइं. उन्होंने 40 साल की कैद, यंत्रणा और निष्कासन की पीड़ा सही। बहाउल्लाह ने अपनी वसीयत में अपने ज्येष्ठ
पुत्र, अब्दुल-बहा (1844-1921)को अपनी शिक्षाओं का अधिकृत
व्याख्याता और प्रभुधर्म का प्रधान नियुक्त किया। अब्दुल-बहा द्वारा बहाई धर्म के संरक्षक के रूप में नियुक्त
किये गये उनके ज्येष्ठ नाती शोगी एफेंदी (1897-1957) आज पूरी दुनिया में बहाई धर्म का विकास विश्व न्याय मंदिर (सन् 1963 में स्थापित)
के मार्गदर्शन में हो रहा है।
इन पर शुरू मैं बहुत अत्याचार किये गए इनकी शादियां मान्य
नहीं थी इनको सेना की नौकरी नहीं मिलती थी 1921 मैं शाह ने इनके
कबिर्स्तान तक तुड़वा दिए थे -1970 तक पुलिस इनको तंग करती थी - इनके जनम प्रमाण
पात्र पर ईरानी होने का सबूत भी नहीं दिया जाता था , फिर भी यह सब की शांति की
कामना करते है - इनकी कोई प्रार्थना नहीं है -इनके मंदिरो मैं कोई मूर्ति नहीं
होती परन्तु यह लोग सब अवतारों पैगंबरो
जैसे आदम ,मोसेस ,कृष्णा ,बुद्धा ,ज़रथुश्त्र , Christ
,मुहम्मद ,बहाउल्लाह सब को मानते है
किताब-ए-अक़दस बहाइयों का मुख्य धार्मिक ग्रन्थ है।बहाई
धर्म में धर्म गुरु, पुजारी, मौलवी या पादरी वर्ग नहीं
होता है।बहाई अनुयायी जाति, धर्म, भाषा, रंग, वर्ग आदि किसी भी पूर्वाग्रहों को नहीं मानते
बहाई धर्म दुनिया के सभी भू-भागों
में 100,000 से अधिक स्थानों में संस्थापित है।
मृत्यु का आगमन होता है
तब आत्मा शरीर से अलग हो जाती है और पूर्णता की ओर एक अनन्त यात्रा पर निरंतर
प्रगति करती है।
प्रार्थना हमारे
आध्यात्मिक पोषण और विकास के लिये आवश्यक है।
उपवास और तीर्थयात्रा भक्ति में महत्वपूर्ण है।
सेवा की भावना से किया काम
भी उपासना का एक कार्य माना जाता है।
देने की प्रेरणा ईश्वर के
प्रेम से मिलती है
बहाई धर्म जगत में कुल
सात जगहो पर बहाई उपासना मन्दिर बनाये गये हैं जो हैं वेस्टर्न समोआ, सिडनी - औस्ट्रेलिया, कम्पाला- युगान्डा, पनामा सिटी - पनामा, फ्रेन्क्फर्ट्- जर्मनी और विलमेट, अमेरिका और नई दिल्ली, भारत।"बहाई उपासना मन्दिर (लोटस टेम्पल के
नाम से विख्यात)" कालका जी, नेहरू प्लेस, नई दिल्ली में स्थित है
बहाई धर्म के उद्देश्य -बहाई धर्म विश्व
के समस्त धर्मो का समिश्रण है. वसुधैव कुटुम्बकम्’
के सिद्धान्त का समर्थन व पोषण करता है. स्त्री-पुरूषों की मौलिक समानता, धर्म और विज्ञान के बीच समरसता,
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