किसी भी धर्म के बारे लिखना बहुत मुश्किल कार्य है - हज़ारो सालो के इतिहास , को जानना ,उनकी मर्यादा को समझने के लिए मेरे जैसे मूड बुध्दि के लिए असंभव है -परन्तु पंजाब का निवासी होने के नाते - इस धर्म के बारे दुनिया को बताने की कुछ जिम्मेदारी बनती है - किसी भी ज्ञानी को इसमें लिखी कोई भी जानकारी त्रुटि पूर्ण लगे तो तुरंत संपर्क करे ताकि उसे ठीक किया जा सके
परंपरा के अनुसार एक
पारसी महिला के अपने समाज से बाहर विवाह के बाद वह अपनी धार्मिक पहचान खो देती है
और इसके परिणामस्वरूप उसके पारसी परिवार के सदस्यों की मृत्यु होने की स्थिति में
उसका टावर आफ साइलेंस में प्रवेश प्रतिबंधित होता है.
पारसी धर्म दुनिया का
सबसे छोटा धर्म है.इस्लाम के आने के पूर्व प्राचीन ईरान में ज़रथुष्ट्र धर्म का ही
प्रचलन था. एक संत ज़रथुष्ट्र ने इसकी स्थापना की थी सातवीं शताब्दी में अरबों ने
ईरान को पराजित कर वहाँ के लोगो को जबरदस्ती मुस्लिम बनाना शुरू कर दिया कुछ
ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आये और
यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये.
1600 ईस्वी मैं लिखी क़िस्सा इ
संजन मैं इस समुदाय की ईरान छोड़ने,
भारत यात्रा का वर्णन है
उसके अनुसार यह लोग रस्ते मैं तूफ़ान मैं फंस गए थे तब इन्होने फायर टेम्पल बनवाने की मन्नत मांगी थी राजा ने इनको
शरण दी तथा कुछ शर्ते रखी -कहते है तब इनके मुखिया ने कहा था जैसे दूध मैं चीनी
घुल जाती है हम आप की जनता के साथ ऐसे घुल जाये गए -1297-1465 तक मुस्लिमो के हमलो मैं उन्होंने हमेशा
हिन्दुओ का साथ दिया आज पारसी समुदाय
गुजरात के रीती रिवाजो को अपना चूका है -पारसी मानते है भारत आना उनके ग्रह
चक्कर मैं लिखा था
यह एक ईस्वर को मानते है तथा अन्य देवताओं की सत्ता को नहीं
नकारते. दैनिक जीवन के अनुष्ठानों व कर्मकांडों में ‘अग्नि’ प्रमुख देवता हैं.
ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बी सात देवदूतों (यज़त) की कल्पना करते हैं, पारसियों का प्रवित्र धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है भारत मैं सन् 721
ई. में प्रथम पारसी अग्नि मंदिर बना इनके अग्नि मंदिर जिसे आगीयारी भी कहते हैं, मैं आग जलती रहती है जिसमे श्रदालु लकड़ी डालते है -अन्दर जाने से पहले हाथ मुँह धोना जरूरी है -पुजारी एक चुटकी राख प्रशाद की तरह देता है -
पारसियों में धर्म-परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है 1857-1927 में BEHRAM SHAH
ने अलग मत ILLM-I-KSHNOOM (path of knowledge ) दिया परन्तु ज्यादातर पारसी पुराने धर्म को ही
मानते है
16वीं सदी में सूरत में जब
अंग्रेजों ने फैक्टरियां खोली तो बड़ी संख्या में पारसी कारीगर और व्यापारियों ने
बढ़-चढ़कर भाग लिया।ब्रिटिश जब भारत मैं आये तो उन्होंने पारसी लोगो के द्वारा ही
व्यपार किया -वेस्टर्न एडुकेटेड होने के कारन जब भारत के लोगो को संसद मैं अपनी
बात रखनी थी तो उन्हें इस समुदाय की जरूरत पड़ी - जिससे यह ऊँचे पदों पर पहुंच गए
हिंदू धर्म के जनेऊ
संस्कार से मिलता जुलता एक संस्कार इनमे धर्म दीक्षा ( ‘नवजोत’) महत्वपूर्ण है बच्चे
के 15 वर्ष का होने पर नवजोत आयोजित किया जाता है दो अत्यंत पवित्र चिह्न हैं- सदरो (पवित्र कुर्ती) और
पवित्र धागा (कुस्ति). कुस्ति को भेड़ की ऊन के 72 धागों से बुनकर बनाया जाता है, विशेष आकृति वाली
सदरों को निर्माण सफ़ेद सूती कपड़े के नौ टुकड़ों से किया जाता है. सुद्रेह और कुस्ति को जीवन भर पहनना होता है. कुस्ति को दिन मैं पांच बार खोला तथा पहना जाता
है पारसी धर्म मानने वाले
लोग मुख्य रूप से सात पर्व मानते हैं। नौरोज़ या नवरोज़ ईरानी ,खोरदादसाल ,जरथुस्त्रनो, गहम्बर्स, फ्रावार देगन, पपेटी: जमशोद
नौरोज़:
पारसी शादी भव्यता से भरी
होती है ज्यादातर पारसी शादियाँ
शाम को सूर्यास्त के थोड़ी देर बाद होती हैं। सगाई समारोह के दौरान
दूल्हे के परिवार (आमतौर पर 5 या 7 लेकिन 9 से अधिक कभी नहीं) से महिलाएं दुल्हन
के घर जाती हैं। दुल्हन की माँ द्वारा दरवाजे पर उनका स्वागत किया जाता है, जो “अचू मेज़ो” (बुरी नज़र को हटाने) का प्रदर्शन करती है। यह हमेशा दरवाजे पर
किया जाता है
नाहन लगन का दिन है। इस
दिन सीढ़ी, द्वार और द्वार को रंगोली
के सुंदर सजावटी डिजाइनों से सजाया जाता है। दूल्हे और दुल्हन के परिवार वाले एक बर्तन में एक युवा पेड़
लगाते हैं, यह आम तौर पर एक आम का पौधा है
पारसियों की शव-विसर्जन विधि विलक्षण है. वे शवों को किसी
ऊँची मीनार. टॉवर ऑफ साइलेंस पर अपने संबंधियों के शवों का पर खुला छोड़ देते हैं, टावर ऑफ साइलेंस एक तरह का गार्डन है जिसकी चोटी पर ले जाकर शव को रख दिया
जाता हैजहाँ गिद्ध-चील उसे नोंच-नांचकर खा जाते हैं. बाद में उसकी अस्थियाँ
एकत्रित कर दफना दी जाती है अंतिम संस्कार करते हैं.
आज कराची पाकिस्तान ,भारत के मुंबई , लंदन ,टोरंटो कनाडा मैं पारसी रहते है - परन्तु सब से ज्यादा भारत मैं है
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