किसी भी धर्म के बारे लिखना बहुत मुश्किल कार्य
है - हज़ारो सालो के इतिहास , को जानना ,उनकी मर्यादा को समझने के लिए मेरे जैसे मूड बुध्दि के लिए
असंभव है किसी भी ज्ञानी को इसमें लिखी कोई भी जानकारी त्रुटि पूर्ण लगे तो तुरंत
संपर्क करे ताकि उसे ठीक किया जा सके
धर्म
का तात्पर्य सभी श्रेणियों के लोगों के लिए निर्धारित सामाजिक नियमों से है।
हिन्दू धर्म---
संसार का सबसे पुराना धर्म हिन्दू धर्म है इतिहासकारों की मानें तो हिन्दू धर्म का
प्रारम्भ सिन्धु घाटी की सभ्यता 5000वर्ष समानांतर/उपरांत से कहा जाता है,
परन्तु सन् 2017 में ईराक मेंप्राप्त श्रीराम के6000 वर्ष
प्राचीन भित्तिचित्र प्रमाण हिन्दू
धर्म को कहीं अधिक प्राचीन बनाते हैं। परन्तु हिन्दू शब्द का प्रचलन 1200 AD मैं शुरू हुआ
पर्शियन लोगो ने जब भारत पर आक्रमण किया तो उनका कल्चर यहाँ के निवासी दर्विडन
लोगो से अलग था तो उन्होंने सिंधु नदी के आस पास बसी सभ्यता को हिन्दू कहना शुरू
किया -यह शब्द प्रत्येक भारतीय के लिए इस्तेमाल होता था --मन्यता है की भारत के
असली बाशिंदे अब दक्षिण भारत मैं रहते है
भारत के वासी भारत भूमि
की भूगोलिक अवस्था के कारन अपनी मातृभूमि को भारत माता कहते है - हिन्दू धर्म का
दुसरे धर्मो की तरह कोई जनम दाता नहीं है हिन्दू
धर्म को वैदिक धर्म या सनातन धर्म भी कहा जाता है हिंदू धर्म में असंख्य पंथ और देवता हैं। सदियों से इसके विकास के माध्यम से कई संप्रदाय और उप-संप्रदाय इससे
उभरते रहे।
भारत
के अधिकांश लोगों द्वारा धर्म का पालन किया जाता है। इसके अनुयायियों की बड़ी
संख्या बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बर्मा, इंडोनेशिया, गुयाना, फिजी, मॉरीशस, पाकिस्तान और दुनिया के अन्य हिस्सों में फैली हुई है।
कुछ लोग इसे मूर्तिपूजकों, प्रकृति पूजकों
या हजारों देवी-देवताओं के पूजकों का धर्म मानकर इसकी आलोचना करते हैं, कुछ लोग इसको
जातिवादी धारणा को पोषित करने वाला धर्म मानते हैं, लेकिन यह उनकी सतही सोच
या नफरत का ही परिणाम है
प्राचीनकाल में देव, नाग, किन्नर, असुर, गंधर्व, वराह, दानव, राक्षस, यक्ष, किरात, वानर, पिशाच, बेताल आदि
जातियां हुआ करती थीं। देव और असुरों के झगड़े के चलते समाज दो भागों में बंटता
गया यही आगे चलकर यही वैष्णव और शैव में बदल गए शैव और वैष्णव दोनों
संप्रदायों के झगड़े के चलते शाक्त धर्म की उत्पत्ति हुई
वेद और पुराणों से उत्पन्न 5 तरह के संप्रदायों
माने जा सकते हैं:- 1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5.
वैदिक संप्रदाय। सभी संप्रदाय का धर्मग्रंथ वेद ही है
विष्णु को मानने वाले वैष्णव ,शिव को मानने वाले शैव , देवी शक्ति को मानने वाले शाक्य भी है -
वैष्णव
महाभारत निश्चित तौर पे 1000 BC से पहले रची गयी होगी ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है
वैष्णव धर्म का विकास भागवत धर्म से हुआ कृष्ण के अनुयायी उन्हें ‘भगवत्’ (पूज्य) कहते थे । विष्णु एक ऋग्वेदिक देवता है बाद की ग्रन्थों में विष्णु के प्रभाव में वृद्धि पाते हैं महाभारत में विष्णु को सर्वश्रेष्ठ देवता के रूप में प्रतिष्ठित पाते हैं । इसमें विष्णु के विभिन्न अवतारों का उल्लेख मिलता है जिनमें से एक अवतार कृष्ण वासुदेव हैं ईस्वी सन के प्रारम्भ होने से पूर्व ही वासुदेव कृष्ण की देवता के रूप में पूजा प्रारम्भ हो चुकी थी भागवत धर्म की प्राचीनता 5th BC तक जाती है इसे लोकप्रिय बनाने में यवनों का विशेष योगदान रहा वैष्णव धर्म का चरमोत्कर्ष गुप्त राजाओं के शासन-काल (319-550 ई॰) में हुआ गुप्तकाल में लिखे गये पुराणों में बिष्णु के अवतारों का विस्तृत वर्णन मिलता है । इस युग के कोशकार अमरसिंह ने अपने ग्रन्थ में विष्णु के 39 नाम गिनाते हुए उन्हें वसुदेव का पुत्र बताया है । विभिन्न लेखों में ‘ओम् नमो भगवते वासुदेवाय’ कहकर विष्णु के प्रति श्रद्धा प्रकट की गयी है । विष्णु के दस अवतारों की कथा का व्यापक प्रचलन हुआ
वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं- जैसे
बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, माध्व, राधावल्लभ, आदि। शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार बताए हैं, लेकिन प्रमुख 10
अवतार माने जाते हैं- बद्रीधाम, मथुरा, अयोध्या, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथ, द्वारका वैष्णव तीर्थ हैं इसके अनुयायी जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल
तथा दंडी रखते हैं। चंदन का तिलक खड़ा लगाते
हैं
वैष्णव सम्प्रदाय
का तिलक- कांचीपुरम मंदिर
‘शैव’
‘शिव’ से सम्बद्ध धर्म को ‘शैव’ कहा जाता है ऋग्वेद
में शिव को ‘रुद’ कहा गया है जो अपनी उग्रता के लिये प्रख्यात है शैव मत का मूल
रूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में है। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर
शिव, महादेव कहलाए
अथर्ववेद में उन्हें पशुपति, भूपति आदि कहा
गया हैं । उपनिषद्-काल में रुद्र की
प्रतिष्ठा में और अधिक वृद्धि पाते हैं पतंजलि के महाभाष्य से पता चलता है कि ईसा
पूर्व दूसरी शती में शिव की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती थी । शिव के दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं। इन अवतारों के अलावा शिव के अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है सैन्धव सभ्यता की खुदाई
में मोहेनजोदड़ो से एक मुद्रा पर पद्मासन में विराजमान एक योगी का चित्र मिलI है
12 ज्योतिर्लिंग तीर्थ हैं इसके संन्यासी जटा रखते हैं सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं
रखते ये निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी
पहनते हैं ये भभूति तिलक आड़ा लगाते
हैं। हाथ में कमंडल, चिमटा रखते हैं। शैव साधुओं को
नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, ओघड़, योगी, सिद्ध आदि कहा
जाता है।
शाक्त
शक्ति को देवी मानकर पुजा करने वालों का
संप्रदाय ‘शाक्त’ कहा जाता है ।शाक्त मत के अनुयायी महामातृ
देवी को आदि शक्ति मानकर उसी की आराधना करते है । वही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन तथा संहार
करती है ऋगवेद के दसवें मण्डल में देवीसूक्त मिलता है
अथर्ववेद में पृथ्वी को माता कहकर उसकी स्तुति की गयी
वर्णित है कि महिषासुर का वध करने के लिये विष्णु, शिव, ब्रह्मा, इन्द्र, आदि देवताओं के तेज
से शक्ति की उत्पत्ति हुई शंकर ने शूल, विष्णु ने चक्र, वरुण ने शंख, वायु ने
धनुषबाणयुक्त तरकस, अग्नि ने तेज, इन्द्र ने बल, यमराज ने दण्ड, ब्रह्मा ने
कमण्डलु, काल ने ढाल और तलवार अस्त प्रदान किये
कुषाण शासकसिक्कों पर अंकित देवी के चित्रोंसे पता चलता है
कि ईसा की प्रथम शती तक देवी की मूर्तियों बनने लगी थीं पूर्व मध्यकाल तक आते-आते शाक्त-धर्म तंत्रवाद से पूर्णतया
प्रभावित हो गया बौद्ध, कश्मीर शैव, वैष्णव, जैन आदि सभी
धर्मों पर शाक्त-तांत्रिक विचारधारा का प्रभाव पड़ा साधना तथा मन्त्रों के द्वारा शक्ति जागृत की जाती है अनुयायी मदिरा, मांस, मल, मुद्रा तक मैथुन
की उपासना के द्वारा मुक्ति पाने में विश्वास रखते हैं ।शंकराचार्य ने यह प्रथा बंद करवाई
बंगाल तथा असम में इस मत का विशेष प्रचार है
वेद -
हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथ हैं। वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल का आरंभ 2000 bc से माना है।
इसके अलावा हिन्दू धर्म में 18 पुराण , मनुस्मृति, उपनिषद और भी ग्रंथ शामिल हैं। वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं।
वेद संख्या में चार हैं जो हिन्दू धर्म के आधार स्तंभ हैं।
आरण्यक
या वन ग्रंथ--
आरण्यक
या वन ग्रंथ ऋषियों द्वारा लिखे गए थे जो वनों मै रहते थे। इसमें ध्यान करने की
विधियों का वर्णन है उपनिषद आरण्यकों का एक हिस्सा हैं कुछ महत्वपूर्ण वन ग्रंथ हैं: ईसा, केना, प्रसन्ना, मुंडा, तैत्तिरीय, ऐटोरया, चंदोग्य, स्नेतासातारा और मैत्रेयी।
श्रुति--
वन
ग्रंथ और उपनिषद सहित वेद को श्रुति कहा जाता है
स्मृति--
ग्रंथों
की दूसरी श्रेणी को स्मृति कहा जाता है उनकी
रचना की अवधि 600 BC से लेकर 1200 AD तक है इस श्रेणी में हम वेदांग, पुराण, महाकाव्य और सूत्र शामिल कर सकते हैं।
वेदांग---
वेदांगों
में कल्प (अनुष्ठान, कर्मकांड ) Siksa (उचचारण), Chendas छंदशास्र Vyakaran(व्याकरण) निरुक्त (शब्दों और उनके अर्थों का अध्ययन) और ज्योतिष शामिल हैं।
वैदिक धर्म विशिष्टता
यह है कि इसमें जिस देवता की स्तुति की गयी है उसी को
सर्वश्रेष्ठ मान लिया जाता था
देवताओं का आवाहन किया जाता था
यज्ञों में अग्नि, घृत, अन्न, माँस आदि की आहुतियां दी
जाती थीं । ऐसी मान्यता थी कि अग्नि द्वारा आहुति देवता सक पहुंचती है ।
हिन्दू धर्म की विशेषता ---
मुख्या जोर जीवन जीने के
ढंग पर दिया जाता है
1 जीवन जीने की कला :
जिंदगी जीना एक महत्वपूर्ण
विद्या है।इसके लिए प्रमुख 10 कर्तव्यों का वर्णन किया गया है
1.वैदिक
प्रार्थना और ध्यान
3. दान- परोपकार
5. पर्व (शिवरात्रि, नवरात्रि, मकर संक्रांति, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी
और कुंभ),
7. पंच यज्ञ (ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ-श्राद्धकर्म, वैश्वदेव यज्ञ और
अतिथि यज्ञ)
ब्रह्म यज्ञ--नित्य संध्या वंदन, तथा वेदपाठ
देवयज्ञ --सत्संग
वैश्वदेव यज्ञ--प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा
अतितिथ यज्ञ -- मेहमानों की सेवा करना,
8. देश-धर्म सेवा,
10. ईश्वर
के प्रति समर्पण
2 प्रकृति से निकटता-
कंकर-कंकर शंकर है अर्थात प्रत्येक कण में
ईश्वर है।
3 अहिंसा
हिन्दू मानते हैं कि कंकर-कंकर में शंकर का वास
है इसीलिए जीव हत्या को 'ब्रह्महत्या' माना गया है।उपरोक्त
भावना ही अहिंसा का आधार है
4 उत्सव व्रत
हिन्दू
प्रकृति में परिवर्तन का भी उत्सव मनाते हैं, यहाँ सभी छे ऋतुओं
1. शीत-शरद, 2. बसंत, 3. हेमंत, 4. ग्रीष्म, 5. वर्षा और 6. शिशिर इन सभी का
उत्सव मनाया जाता है।
मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायन होता है तो उत्सव का समय शुरू होता है और सूर्य जब दक्षिणायन होता है
तो व्रतों का समय शुरू होता है।
5 वसुधैव कुटुम्बकम् : संपूर्ण विश्व एक परिवार' हैं।
6 पुनर्जन्म और कर्मों का सिद्धांत --
पुनर जनम मैं विश्वास किया जाता है
आपका अगला जनम कैसा होगा यह आप के कर्म तय
करेंगे (कर्म - यानि जीने का ढंग )
7 मोक्ष और ध्यान : ध्यान और मोक्ष हिन्दू धर्म
की ही देन है
मोक्ष
मोक्ष का उल्लेख
सभी धर्मों में है।जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान, बौद्ध धर्म में निर्वाण इस्लाम में मग़फ़िरत, ईसाई में सेल्वेसन कहा जाता है, परन्तु हिन्दू धर्म मैं हम अच्छे से बेहतर की तरफ बढ़ते है
हिन्दू धर्म
अनुसार जीवन के 4
पुरुषार्थ हैं-
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
मोक्ष प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अंतिम लक्ष्य माना गया है
मोक्ष का अर्थ जन्म और मरण के चक्र से मुक्त
गीता में मोक्ष
प्रापति के 4 मार्ग बताये हैं- कर्मयोग, सांख्ययोग, ज्ञानयोग और
मोक्ष प्राप्त
करने के प्रमुख 7 मार्गों भक्ति : योग : ध्यान : तंत्र : ज्ञान : कर्म और आचरण
8 सहिष्णुता और उदारता-
हिन्दू धर्म लोगों को निज विश्वासानुसार ईश्वर
या देवी-देवताओं को मानने व न मानने पूर्ण स्वतंत्रता देता है। कोई भी हिन्दू किसी भी भगवन को मान सकता है - कुछ हिन्दू
नास्तिक भी है
कुछ शाकाहार पर बल देते है कुछ नहीं –
कुछ जानवरो की पूजा करते है कुछ उनकी बलि देते
है –
कुछ लोग विष्णु के उपासक है तो कुछ शिवजी के -
विष्णु को मानने वाले वैष्णव ,शिव को मानने
वाले शैव , देवी शक्ति को मानने वाले शाक्य भी है - आप एक ईश्वर को भी
मान सकते है अनेक ईश्वरो को भी
वैदिक धर्म सुवर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित था।
हिन्दू धर्म समस्त मानव समाज को चार श्रेणियों में विभक्त करता है-
ब्रह्मण का अर्थ- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म ईश्वर या परम
ज्ञान को
जानता है। ब्राह्मण कोई जाति विशेष ना होकर एक वर्ण है ब्राह्मण को बुद्धिजीवी माना जाता है सामाजिक बदलाव के
इतिहास में जब भारतीय समाज को हिन्दू के रूप में संबोधित किया जाने लगा, तब ब्राह्मण वर्ण, जाति में भी परिवर्तित
हो गया
क्षत्रिय- उनका कार्य युद्ध करना तथा प्रजा की रक्षा करना था ग्रंथों के अनुसार क्षत्रियों की गणना ब्राहमणों के बाद की
जाती थी
वैश्य - खेती, और व्यापार करना उनका कार्य है, उसे वैश्य कहते
हैं।
शूद्र-- तीनों वर्णों की सेवा करना शूद्र का कार्य था। यह व्यवस्था समाज के संतुलन के लिए थी।
प्रत्येक व्यवस्था गुणों और कर्मों के आधार पर
थी
हिन्दू धर्म पुरातन धर्म
है तब संसार मैं और कोई धर्म नहीं था - जब
नए धर्म के आक्रमणकारी भारत आये तो अलग धर्म के लोगो के साथ विरोधाभास होना
सव्भाविक था भारत मैं भी बोध तथा जैन धर्म ने जनम लिया 600 AD के आस पास ब्रह्मण वाद का विरोध शुरू हुआ गौतम बुद्ध
और महावीर दोनों क्षत्रिय थे तथा समाज
में ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के दावे का विरोध करते थे बौद्ध धर्म और जैन धर्म मैं हमेशा ब्राह्मणो के
सर्वश्रेष्ट होने को चुनौती दी गयी बौद्ध ग्रंथों के अनुसार चार वर्णों में
क्षत्रियों को ब्राह्मणों से ऊँचा स्थान प्राप्त था इसी विरोध के कारन उपनिषद का
जनम हुआ शंकराचार्य 8th AD ,रामानुजा 12th AD ,माधवा 13th AD ,जैसे महापुरषो का विशेष योगदान है
उपनिषद --
उपा का अर्थ है नजदीक , नि का अर्थ है
-नीचे, शद का अर्थ है बैठना - अर्ताथ - नीचे बैठ कर नजदीक से
शिक्षा ग्रहण करना-
उपनिषद् - हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं।ये संस्कृत में लिखे गये हैं मुक्तिकोपनिषद् में 108 उपनिषदों का वर्णन आता है, इसके अतिरिक्त अडियार लाइब्रेरी मद्रास से प्रकाशित संग्रह में से 171 उपनिषदों के प्रकाशन हो चुके है। गुजराती प्रिटिंग प्रेस बम्बई से मुदित उपनिषद्-वाक्य-महाकोष में 223उपनिषदों की नामावली दी गई है,
उपनिषद का पहला कदम था खुद को पहचानना
दूसरा प्रत्येक व्यक्ति मैं आत्मा को पहचानना
हिन्दू धर्म को विज्ञानिक पद्द्ति मैं ढालने की शुरुआत हुई - कई सूत्र लिखे गए
आदि शंकराचार्य(788-820) ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे उन्होने सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण किया। इन्होंने भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी
1 ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम,
2 श्रृंगेरी पीठ,
3 द्वारिका शारदा पीठ
4 पुरी गोवर्धन पीठ
कुछ बौद्ध इन्हें अपना शत्रु भी समझते हैं, क्योंकि इन्होंने बौद्धों को कई बार शास्त्रार्थ में पराजित करके वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की
हिन्दू धर्म की विशेषता सहिष्णुता और
उदारता के कारण यह हमेशा प्रगति शील रहा है हमेशा अच्छी एवं
नयी बातो को मानता रहा है - समय समय पर हर सुधारक की बातो को अपनाया गया है गौतम बुद्ध(563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व ) ने जब अपना
प्रभाव बढ़ाना शुरू किया तो उन्हें हिन्दू
धर्म के दस अवतारों से एक अवतार माना जाने लगा जब जैन धर्म का प्रभाव बड़ा तो
अहिंसा परम धर्म के सिद्धांत को अपनाया
गया - जो की किसी न किसी रूप मैं पहले से
ही हिन्दू धर्म की जीवन शैली का हिस्सा था
आदि शंकराचार्य(788-820)ने माया का सिदांत दिया - परन्तु इसमें सवाल यह
पैदा हुआ -कि क्या भगवान भी एक माया है - शंकराचार्य शिव भगत थे
रामानुजा(1137 AD) ने वैदिक धर्म के कर्म के सिद्धांत कि
बजाये भक्ति का सिंद्धांत पेश किया -
रामानुजा ने भक्ति पर बल
दिया -रामानुजा विष्णु भगत थे
माधवा(1197_1276) वो जैन धर्म से
प्रभावित थे - उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रत्येक आत्मा अलग है उसके कर्म भी अलग है
पूजा सथल- मंदिर
हिन्दू मंदिर की रचना लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व
हुई थी। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति
स्थापित होती है।गर्भगृह के ऊपर विमान
कहते हैं।गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा ,सभा के लिये कक्ष हो सकता
है।आर्य लोग मानते
थे की भगवन ऊपर आसमान मैं रहते है इसलिए खुले मैं
हवन करते थे इसी कारन उन्होंने लकड़ी के मंदिर बनवाये - इंदु वैली के लोग
मानते थे भगवन पहाड़ो पर रहते है इसलिए रॉक कट
मंदिर बनवाये - माना जाता है की भगवान् को भी आम इंसानो की तरह जरूरते है
इसलिए उन्हें सुबह जगा कर नहला कर नए विस्तार पहना कर पूजा जाता है - आठ पहर भोग लगाया जाता है
दिन मैं तीन बार पूजा की जाती है केवल जनेऊ धारी ही गरब ग्रह मैं प्रवेश कर सकता
है ॐ का जाप सबसे उत्तम माना गया है -गायत्री मंत्र ऋग वेद के समय से पड़ा जा रहा
है
हिन्दू धर्म की पुस्तके
चार वेद
ऋगवेद-ऋग्वेद की विश्व का सबसे पहला ग्रंथ है ।ऋग्वेद में 33 देवी-देवताओं, 25 नदियों, का उल्लेख है इस वेद में 1028 मंत्र
और 10 मंडल अध्याय हैं ।
सामवेद-इसमें मूलत: संगीत की
उपासना है । इसमें 1875 मंत्र हैं ।
अथर्ववेद-अथर्ववेद में विज्ञान और
तकनीकी ज्ञान का समावेश है यह वेद सबसे बड़ा
है, इसमें 20 अध्यायों में 5687 मंत्र हैं
यजुर्वेद- यजुर्वेद में मुख्यतया
कर्मकांड का वर्णन है ।40 अध्यायों में 1975 मंत्र हैं
वेद मंदिर नासिक
18 पुराण------------
1 1 ब्रह्म पुराण
2 पद्म पुराण
3विष्णु पुराण
4वायु पुराण --
(शिव पुराण)
5भागवत पुराण --
(देवीभागवत पुराण)
6नारद पुराण
7मार्कण्डेय
पुराण
8अग्नि पुराण
9भविष्य पुराण
10.ब्रह्म वैवर्त
पुराण
11.लिंग पुराण
12.वाराह पुराण
13.स्कन्द पुराण
14.वामन पुराण
15.कूर्म पुराण
16.मत्स्य पुराण
17.गरुड़ पुराण
18.ब्रह्माण्ड
पुराण
उपनिषद् -
हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति
धर्मग्रन्थ हैं।ये संस्कृत में लिखे गये हैं मुक्तिकोपनिषद् में 108 उपनिषदों का
वर्णन आता है, इसके अतिरिक्त अडियार लाइब्रेरी मद्रास से प्रकाशित संग्रह
में से 171 उपनिषदों के प्रकाशन हो चुके है। गुजराती
प्रिटिंग प्रेस बम्बई से मुदित उपनिषद्-वाक्य-महाकोष में 223उपनिषदों की नामावली दी गई है,
दो महाकाव्य- रामायण व महाभारत
वेदों में वर्णित देवताओं को वैदिक देवता कहते हैं अग्नि, इंद्र, सोम, वरुण, सूर्य, पृथ्वी वैदिक देवता हैं
वेदों में शाश्वत वस्तुओं और भावनाओं को देवता माना गया है,
हिन्दू धर्म में मुख्य 3 देवता हैं, ब्रह्मा को
सृष्टि का निर्माता, विष्णु को पालनहार और शिव को संहारक देवता कहा जाता है। त्रिमूर्ति की अवधारणा पुराणों में है।
वैदिक
जीवन चार आश्रम और चार वर्णों पर केन्द्रित व्यवस्था व प्रणाली है।
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ------चार आश्रम हैं
शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण ---- चार वर्ण कहलाते हैं।
कुल 4 युग माने गए हैं-
सत~युग
त्रेतायुग
द्वापरयुग
कलियुग।
पौराणिक कथाओं में 14 लोकों का वर्णन
पाया जाता है
8 लोकपाल दिग्पालों का वर्णन
* पूर्व के इंद्र
* पश्चिम
के वरुण
* उत्तर के कुबेर
* दक्षिण के यम
* दक्षिण-पूर्व के अग्नि
*
दक्षिण-पश्चिम के सूर्य
* उत्तर-पूर्व के सोम।
*पश्चिमोत्तर के वायु
इनकी सवारी दो हाथी माने जाते है जिसमे एक नर
हाथी है एक मादा
कपिलेश्वर मंदिर चेन्नई -द्वारपाल
वेदों में शाश्वत वस्तुओं और भावनाओं को देवता माना गया है, इसलिए प्रकृति
मैं पायी जाने वाली सब वस्तुओं का आदर किया जाता है उन्हें पूजा जाता है देवताओ के
वाहन भी पशु पक्षी है
प्रसिद्ध देवी-देवताओं और उनके वाहनों
शेर : मां दुर्गा -काँगड़ा क़िला
गाय : भगवान श्री कृष्ण-मथुरा
बैल- नंदी : भगवान शंकर बैजनाथ
,
गरुड़ : भगवान विष्णु जग मंदिर उदयपुर
मूषक (चूहा) : श्री गणेश-दगड़ू सेठ मंदिर
पूना
हंस :ब्रह्मा
हंस : देवी सरस्वती ,
उल्लू : धन की देवी लक्ष्मी
मगरमच्छ- देवी गंगा
श्वेत हाथी ऐरावत - इंद्र देव,
‘भैंसा’ मृत्यु के देवता
यमराज,
‘भैंसा’ ;महिषासुर’
हाथी : कामदेव
तोते :कामदेव की पत्नी रति
भेड़ :अग्नि देव
हिरण :वायु देव,
वरुण :सात हंस,
सोलह संस्कार
गर्भाधान,
पुंसवन,
सीमन्तोन्नयन,
जातकर्म,
नामकरण,
निष्क्रमण,
अन्नप्राशन,
मुंडन,
कर्णवेधन,
विद्यारंभ,
उपनयन,
वेदारंभ,
केशांत,
सम्वर्तन,
विवाह और
अंत्येष्टि
संध्यावंदन : 8 प्रहर की संधि में प्रात: मध्य और संध्या काल की संध्यावंदन
महत्वपूर्ण होती है। इसे त्रिकाल संध्या कहते हैं। संध्यावंदन ईश्वर या स्वयं से
जुड़ने का वैदिक तरीका है।
हिन्दू धर्म केधार्मिक स्थल : 12 ज्योतिर्लिंग, 51 शक्तिपीठ, 4 धाम, 7 पुरी, 7 नगरी, 4 मठ, आश्रम, 10 समाधि स्थल, 5 सरोवर, 10 पर्वत और 10
गुफाएं हैं।
12 ज्योतिर्लिंग-----सोमनाथ, नागेश्वर- द्वारका, महाकालेश्वर (उज्जैन),
श्रीशैल, भीमाशंकर(नासिक), ॐकारेश्वर, केदारनाथ विश्वनाथ(काशी,
त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर और बैद्यनाथ
4 धाम,---- बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ
पुरी
7 पुरी-सप्तपुरी का मतलब
भारत के सात पवित्र शहर -
काशी, मथुरा, अयोध्या,द्वारका, कांचीपुरम , उज्जैन और हरिद्वार,
4 मठ---- वेदान्त
ज्ञानमठ:रामेश्वरम्,,गोवर्धन
मठ :उड़ीसा,,शारदा
मठ :द्वारकाधाम .ज्योतिर्मठ--बद्रिकाश्रम
5 सरोवर--
कैलाश मानसरोवर ,
नारायण सरोवर : गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित है नारायण सरोवर प्राचीन कोटेश्वर मंदिर यहां से 4 किमी की दूरी पर है।
पुष्कर सरोवर : राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर
पंपा सरोवर : मैसूर के पास स्थित
बिंदु सरोवर ;अहमदाबाद (गुजरात) से 130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित
ऐतिहासिक सिद्धपुर
10 पर्वत
1.
हिमालय पर्वत (अमर नाथ , बद्री नाथ)
2.
विंध्याचल पर्वत (Vindhyachal
parvat)
3.
गोवर्धन पर्वत (मथुरा)
4.
कैलाश पर्वत (तिब्बत)
5.
गब्बर पर्वत (अम्बा जी)
6.
चामुंडा पहाड़ी (मैसूर)
7.
माउंट आबू (यहाँ 33कोटि देवता का निवास मानते है)
8.
त्रिकुटा पर्वत (वैष्णोदेवी)
10 गुफाएं
बाराबर गुफाएं (बिहार गया जिले -) सीताबेंग-जोगीमारा गुफा (छत्तीसगढ़ सरगुजा जिले -)-परशुराम महादेव
गुफा मंदिर (राजस्थान) बादामी गुफा (कर्नाटक) अमरनाथ गुफा (जम्मू-कश्मीर) अजंता-एलोरा की गुफाएं (महाराष्ट्र) एलीफेंटा की गुफा
(महाराष्ट्र) वराह गुफाएं (तमिलनाडु- महाबलीपुरम -) - गोवा गजह गुफा
(इंडोनेशिया) हिंगलाज माता मंदिर
(पाकिस्तान)
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