Monday 8 June 2020

जैन धर्म



सोनगिरि -जैन धर्म का तीर्थ सथल




जैन धर्म विश्व के सबसे प्राचीन दर्शन या धर्मों में से एक है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जिनमें प्रथम तीर्थंकर(का अर्थ है पथ मेकर) भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) तथा अंतिम 24th व प्रमुख महावीर स्वामी हैं। जैन शब्द जिन शब्द से बना है जिसका अर्थ है जिसने अपने मन  को जीत लिया- अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है।जैन धर्म भारत से बाहर नहीं फैला तथा भारत में भी उसका बहुत अधिक विस्तार नहीं हुआ

 भगवान महावीर

भगवान महावीर का जन्म 27 मार्च 598 ई.पू. को वैशाली के कुंडलपुर के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ ,माता त्रिशला की तीसरी संतान के रूप में हुआ।30 वर्ष की आयु में महावीर ने संसार त्याग दिया उनकी शादी के बारे कुछ लोग मानते है की उन्होंने शादी नहीं की थी कुछ लोग मानते है की उन्होंने शादी की थी और उनकी एक बेटी भी थी

जैन धर्म की शाखाएं

ईसा की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए। एक दल श्वेतांबर कहलाया, जिनके साधु सफेद वस्त्र (कपड़े) पहनते थे, और दूसरा दल दिगंबर कहलाया जिसके साधु नग्न (बिना कपड़े के) ही रहते थे। श्वेतांबरों की मंदिरमार्गी तथा स्थानकवासी दो शाखाएं हैं और दिगंबरों की तीन शाखा हैं मंदिरमार्गी, मूर्तिपूजक और तेरापंथी
 गुजरात तथा राजस्थान मैं श्वेतामबर जैन रहते है -कर्णाटक ,मैसूर मैं दिगंबर जैन ज्यादा रहते है

जैन मंदिर-

जैन मंदिर दो प्रकार के होते हैं : शिखर बंद जैन मंदिर
घर जैन मंदिर (बिना शिखर वाले) जैन समाज में ऐसे कई मंदिर हैं जहां मूर्ति के स्थान पर जिनवाणी रखी होती हैं।ऐसे मंदिरों को चैत्यालय कहते हैंजैन मंदिर काफी हद तक हिन्दू मंदिरो की तरह ही होते है - मुख्या मूर्ति को मुला नायक कहते है -परिकर्मा मैं चौबीस तिरंथकार की मूर्तियां सजाई जाती है परन्तु यह मुर्तिया खुले आसमान मैं लगाई जाती है  - दिगंबर मंदिरो की मूर्तियां नग्न होती है और उनकी आंखे बंद होती है - श्वेताम्बर मंदिर मैं मूर्ति सफ़ेद कपड़ो मैं खुली आँखों की मुद्रा  मैं होती है -प्रत्येक मंदिर मैं सिद्ध चक्कर बनाया जाता है मंदिर मैं महास्तंभ भी होता है जिसपे मुख्या तिरंथकार की चार मुर्तिया चारो दिशा को देखती हुए लगाई जाती है मंदिर मैं जूता तथा जुराब पहन कर नहीं जा सकते -मंदिर मैं प्रवेश एवं पूजा के लिए नहाना आवशयक मन जाता है

धार्मिक पुस्तक

जैन धर्म के मूल ग्रंथों को अगम कहते है ये आगम 46 हैं और इन्हें श्वेतांबर जैन प्रमाण मानते हैं, दिगंबर जैन नहीं।12 अंग 12 उपांग 10 पइन्ना  6 छेदसूत्र 4 मूलसूत्र
3rd bc मैं जैन भिक्षु पाटलिपुत्र पटना मैं एकत्रित हुए -और यहाँ खण्ड-खण्ड करके ग्यारह अंगों का संकलन किया गया, बारहवाँ अंग किसी को स्मरण नहीं था, तत्पश्चात लगभग 150 वर्ष बाद, साधुओं का चौथा सम्मेलन हुआ,41सूत्र , 12 आख्यान ,1 maha comentry अर्ध मगधी भाषा मैं लिखे गए



Top 12 जैन धर्म के सिद्धांत

(१) ईश्वर में अविश्वास

जैन धर्म अनुयायी विश्वास करते। है कि यह सृष्टि अनादि और अनंत है। यह लोग ईश्वर के स्थान पर तीर्थंकरों की पूजा करते हैं। जिनकी आत्माएँ सांसारिक बंधनों से मुक्ति पा गई है।

(२) आत्मा के अस्तित्व एवम अमरत्व में विस्वास

आत्मा परिपूर्ण और निर्विकार है यहशरीर से अलग रह कर भी यह सुख और दुख का अनुभव करता है ।केवल कर्म के बंधन ही उसकी शक्ति को क्षीण कर देते हैं।

( ३ ) पंच महाव्रत

आत्मा को सांसारिक कर्मों के बंधनों से मुक्त करने के लिए जैन धर्म में निम्नलिखित पाँच व्रतों को महाव्रत कहा जाता है-

 1अहिंसा- जैन धर्म में अहिंसा पर अत्यधिक बल दिया गया है ,
 2 सत्य बोलना
3  अपरिग्रह-- धन का संग्रह न करना
4  चोरी न करना
5 ब्रह्मचर्य।
६. रात्रि के समय भोजन न करना । यह छठा व्रत बाद में जोड़ दिया गया ।

(४) त्रिरत्न

जैन धर्म मे मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिरत्न की व्यवस्था है
1. सम्यक ज्ञान -सच्चा और पूर्ण ज्ञान ।

2. सम्यक दर्शन – तीर्थंकरो में विस्वास ।

3. सम्यक चरित्र – दैनिक जीवन में नैतिक चरित्र रखना ।

(५) कर्म की प्रधानता-

"मन, संवाद और शरीर की गतिविधियों   के कारण कर्मों की आमद होती है।"कर्मो के अनुसार आत्मा पर असर पड़ता है - मनुष्य अच्छे कर्म कर  शुद्ध कर सकता है आत्मा जो कर्मों के बंधन से, संसार से और जन्म मरण के चक्र से पूरी तरह मुक्त होती है उस अवस्था को (कर्मों से छुटकारा को )मोक्ष कहते हैं।
(६ ) तप की प्रधानता -जैन धर्म में कठोर तप और त्याग पर अधिक बल दिया गया है
तप के दो भेद हैं।बाह्य तप और अभ्यंतर तप
) बाह्य तप इस प्रकार है – १.उपवास २. भोजन से क्रमशः अनुभूति ३. भिक्षु चर्या ४. रस परी त्याग ५.कठिन आसनों द्वारा शरीर को कष्ट देना ६. इंद्रियों पर नियंत्रण में रखना
) अभ्यंतर तप ये है – १.प्राश्चित पापों का स्वीकार करना २. विनय ३.स्वाध्याय करना ५.ध्यान ६.शरीर से ध्यान हटा कर आसन में निश्चल रहना।

(७) जैन धर्म के दो संप्रदाय

श्वेतांबर और  दिगंबर कहलाता श्वेतांबर जैन धर्म के कठोर नियमों के पालन करने के पक्ष में नहीं है ।जबकि दिगंबर लोग कठोर नियमों के पालन पाते हैं। दिगंबर लोगों का विश्वास है कि कोई स्त्री तब तक के बंधन से मुक्त नहीं हो सकती जब तक वह पुरुष की योनि में फिर से जन्म धारण करें परंतु श्वेतांबर संप्रदाय वाले दिगंबर ओके इस विचार से सहमत नहीं है।

( ८ ) अहिंसा

(९ ) स्यादवाद

जैन धर्म में स्याद्वाद अनेकांतवाद अथवा सप्तभंगी का सिद्धांत कहा गया है। आगे चलकर शंकराचार्य एवं रामानुज ने इस का घोर विरोध किया था। उनके अनुसार यह दोनों परस्पर विरोधी बातें एक साथ नहीं हो सकती ।यह संभव ही नहीं कि एक ही समय कोई वस्तु हो और ना हो ।परंतु जैन धर्म में विश्वास करता है उनका कथन है कि हम परस्पर विरोध और जटिलता अथवा दृष्टिकोण संभव हो सकता है।

(१० ) अनेकात्मवाद

महावीर इस बात को नहीं मानते थे कि आत्मा एक है छोटे से छोटे जीव को सम्मान- जैन धर्म वनस्पति ,पत्थर और जल में भी आत्मा अथवा जीव का निवास स्वीकार करता है 

( ११ ) स्त्रियों की स्वतंत्रता

महावीर स्वामी नारी की स्वतंत्रता के पक्षपाति थे। महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक अधिकार मिले और अविवाहित स्त्री भी संपत्ति की अधिकारी रही. ।महावीर ने नारी को निर्वाण प्राप्ति का अधिकारिणी माना

( १२ ) निर्वाण

महावीर स्वामी जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण या मोक्ष मानते थे हर मामले में बराबरी का हक समझने वाले संप्रदाय में मोक्ष केवल पुरुषों के लिए आरक्षित है दिगंबर संप्रदाय के अनुसार महिलाओं को मोक्ष नहीं मिल सकता क्योंकि वे कपड़ों का त्याग नहीं कर सकतीं. यहां तक कि मासिक धर्म के दौरान आने वाला खून भी उनके लिए मुक्ति की राह में रुकावट है. नग्नता मोक्ष के लिए एक अहम शर्त है. महिलाएं अगर चाहें भी तो मुक्ति के लिए वस्त्रहीन होने का मार्ग नहीं अपना सकतीं क्योंकि इससे पुरुषों के मन में कामना जाग सकती है जो उनके मोक्ष का भी रास्ता रोकेगी.
जैन धर्म के बहुत से विश्वास हिन्दू धर्म से लिए गए है - शरीर एवं आत्मा अलग अलग है मृत्यु और जन्म केवल जीव के एक अवस्था के खत्म होने और अगली दशा के शुरू होने को दर्शाती है।



गोपांचल पर्वत ग्वालियर


कोई 300 साल पहले श्वेतांबरों में ही एक शाखा और निकली 'स्थानकवासी'। ये लोग मूर्तियों को नहीं पूजते। जैनियों की तेरहपंथी, बीसपंथी, तारणपंथी, यापनीय आदि कुछ और भी उपशाखाएं हैं। जैन धर्म की सभी शाखाओं में थोड़ा-बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर तथा अहिंसा, संयम और अनेकांतवाद में सबका समान विश्वास है।


सभी साधुओं और साध्वियों को अपना घर, कारोबार, महंगे कपड़े, ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़कर पूरी तरह से सन्यासी जीवन में डूब जाना पड़ता है. इस प्रक्रिया का आखिरी चरण पूरा करने के लिए सभी साधुओं और साध्वियों को अपने बाल अपने ही हाथों से नोचकर सिर से अलग करने पड़ते हैं.

1.     सूर्यास्त के बाद जैन साधु और साध्वियां पानी की एक बूंद और अन्न का एक दाना भी नहीं खाते हैं. सूर्योदय होने के बाद भी ये लोग करीब 48 मिनट का इंतेजार करते हैं, उसके बाद ही पानी पीते हैं. जैन मुनि भयंकर गर्मी की ऋतु में प्यास लगने पर भी रात्रि में पानी नहीं पीते|
2.     जैन साधु और साध्वियां अपने लिए कभी भोजन नहीं पकाते हैं. ना ही उनके लिए आश्रम में कोई भोजन बनाता है. बल्कि ये लोग घर-घर जाकर भोजन के लिए भिक्षा मांगते हैं. वे लकड़ी, मिट्टी के पात्र ही उपयोग में लेते हैं
3.     वे चार महीने तक, वर्षावास में एक स्थान पर स्थिर रहते हैं और शेष समय जिनाज्ञा अनुसार परिभ्रमण करते हैं|
4.     जैन मुनि सिर्फ गरम पानी का ही उपयोग करते हैं|
5.     जैन मुनि वाहन का उपयोग नहीं करते| यात्रा में उन्हें नंगे पैर और बिना किसी चप्पल या जूतों के करनी पड़ती है. इसे पदयात्रा कहा जाता है
6.     जैन मुनि कैंची, उस्तरे आदि से बाल नहीं कटवाते| वे अपने हाथ से बाल निकालते हैं, जिसे जैन परिभाषा में लोच कहते हैं|
7.     जैन मुनि का अपना कोई मठ नहीं होता|

मान्यता

जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर अरिष्ट नेमिनाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे। जैन धर्म ने कृष्ण को उनके त्रैसष्ठ शलाका पुरुषों में शामिल किया है, जो बारह नारायणों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि अगली चौबीसी में कृष्ण जैनियों के प्रथम तीर्थंकर होंगे।


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