Wednesday, 1 July 2020

इस्लाम धर्म

किसी भी धर्म के बारे लिखना बहुत मुश्किल कार्य है - हज़ारो सालो के इतिहास , को जानना ,उनकी मर्यादा को समझने के लिए मेरे जैसे मूड बुध्दि के लिए असंभव है -इसमें डाली गयी जानकारी हिस्ट्री ऑफ़ रिलिजन नामक  किताब को पड़ने के बाद लिखी गयी है - इसमें इंटरनेट से प्रपात जानकारी भी शामिल की गयी है किसी भी ज्ञानी को इसमें लिखी कोई भी जानकारी त्रुटि पूर्ण लगे तो तुरंत संपर्क करे ताकि उसे ठीक किया जा सके

इस्लाम की उत्पत्ति लगभग चौदह सौ साल पहले सऊदी अरब में हुई थी पैगंबर मोहम्मद को आखिरी पैगंबर माना जाता है जिन्होंने इस्लाम के वर्तमान प्रारूप का प्रचार किया। इस्लाम के अनुयायियों को मुसलमान कहा जाता है


मुहम्मद साहब--

मुहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था।उनके पिता हजरत अब्दुल्लाह और माता बीबी आमना थीं शैशव काल मैं ही उनके माता ,पिता का देहावसान हो गया ।उनका लालन-पालन दादा हजरत अब्दुल मुत्तलिक ने किया दादा के इंतकाल पर जिम्मेदारी उनके चाचा अबू तालीब पर आ गयी

24 वर्ष की उम्र मैं  आपने ख़ादीजा नाम की एक विधवा से शादी  कर ली आपके तीन लड़के और चार लड्‌कियां हुईं

 लगभग 613 इस्वी के आसपास मुहम्मद साहब ने लोगों को अपने ज्ञान का उपदेशा देना आरंभ किया था। इसी घटना का इस्लाम का आरंभ जाता है आपने लोगों को ये बताना कि उन्हें परमेश्वर से यह संदेश आया है कि ईश्वर एक है उन्होंने मूर्तिपूजा का भी विरोध किया है।आपने लोगो को उपदेश देने शुरू किये  मक्का के लोगों द्वारा विरोध कर उनका मज़ाक उड़ाया गया हालांकि कुछ उनके अनुयायी बन गएजैसे ही उनके अनुयायियों में वृद्धि हुई, मुहम्मद शहर शासकों के लिए खतरा बन गए  इस तरह इस्लाम धर्म का प्रचार करते  हुए उन्हें बहुत से अत्याचार भी झेलने पड़े मुहम्मद की पत्नी खदिजा रजी. और चाचा अबू तालिब दोनों की मृत्यु 619 में हुई, अंत में सन् 622 में उन्हें अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना के लिए कूच करना पड़ा इस यात्रा को हिजरत कहा जाता है 52 वर्ष की अवस्था में जब वे मदीना पहुंचेमदीना में उनका स्वागत हुआ मुहम्मद के संदेशों ने उन्हें वहाँ बहुत लोकप्रिय बना दिया।अगले कुछ वर्षों में कईअनुयायी बने सन् 630 में मुहम्मद ने अपने अनुयायियों के साथ मक्का पर चढ़ाई कर दी। मक्के वालों ने हथियार डाल दिये। मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया गयाइस तरह अरब में मुसलमान धर्म की ज्योति जगमगा उठी ।  सन् 632 में जब पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु हुई मुहम्मद साहब की मौत के बाद लगभग समूचा अरब जगत इस्लाम के सूत्र में बंध चुका था।

खलीफा ---- 

खलीफा मध्य युगीन सुन्नी समुदाय के सबसे बड़े नेता को कहा जाता था, हजरत मुहम्मद साहब के समय में अरब के देश काफी शक्तिशाली हो गए थे और उनका साम्राज्य काफी विस्तृत हो गया था। खलीफा बनने का मतलब था कि उस बड़े साम्राज्य की बागडोर संभालना। तब तक मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी को खलीफा कहा जाने लगा था पैग़म्बर मुहम्मद के गुजरने के तुरंत बाद आपसी बातचीत से अबु बकर(632-634) को ख़लीफ़ा चुना गया

मुहम्म्द साहब के दोस्त अबू बकर को मुहम्मद का उत्तराधिकारी घोषित किया गया।उन्होंने इस्लामी राज का बहुत विस्तार किया अबू बकर देहांत से पहले उन्होंने बिना विचार-विमर्श के उमर(634-644) को दूसरा  ख़लीफ़ा बना दिया।जिस से कुछ अन्य साथियों ने उन्हें ख़लीफ़ा मानने से आनाकानी करनी शुरू कर दी। ईरानियों ने उमर को मार डाला। उस्मान तीसरे ख़लीफ़ा(644-656) बने कुछ विद्रोहियों ने उनकी भी हत्या कर दी और अली को चौथा ख़लीफ़ा (656-661)चुना गया। शिया अनुयायिओं का मत है कि पहले तीन ख़लीफ़ाओं का राज नाजायज़ था और शुरू से ही अली को ख़लीफ़ा होना चाहिए था क्योंकि वे पैग़म्बर के पारिवारिक रिश्तेदार भी थे 

 चौथे ख़लीफ़ा अली मुहम्मद साहब के फ़रीक (चचेरे भाई) थे और उन्होंने मुहम्मद साहब की बेटी फ़ातिमा से शादी की थी। जब अली ख़लीफ़ा बने तो बहुत उपद्रव हुए।तीसरे खलीफा उस्मान के समर्थकों ने उनके खिलाफत तो चुनौती दी और अरब साम्राज्य में गृहयुद्ध छिड़ गया। सबसे बड़ी चुनौती मुआवियाह से आई जो उस्मान के रिश्तेदार थे झगडे तथा लड़ाई चलते रहे और फिरसन् 661 में अली की भी हत्या कर दी गयी हसन को छठा ख़लीफ़ा बनाया गया मुस्लिम समुदाय को बंटने से रोकने के लिए हसन ने समझौता किया कि वे ख़लीफ़ा की गद्दी त्याग देंगे और मुआवियाह को ख़लीफ़ा स्वीकार लेंगे मुआवियाह सातवा ख़लीफ़ा तो बन गया लेकिन उसकी मर्ज़ी थी कि उसके बाद उसका बेटा याज़िद ख़लीफ़ा बने। मुआवियाह मरा तो उसके बेटे याज़िद ने आठवा ख़लीफ़ा बनने की घोषणा कर दी। अली के दुसरे बेटे हुसैन ने यह मानने से इनकार कर दिया। जिसके परिणाम सवरूप करबला का युद्ध' हुआ जिसमें हुसैन को गर्दन काटकर मारा गया। करबले के मैदान में उनके नवासे ने शहादत पायी 6 माह का मासूम असगर हजरत अबासकासिम आदि न जाने कितने जानिशां इस्लाम के लिए कुरबान हुए और उनके परिवार की स्त्रियों का अपमान किया गया। शिया लोग मुहर्रम में इन घटनाओं का मातम मानते हैं


 750 Adके बाद इस्लाम का सूरज डूबने लगा - इसके बाद मुस्लिम केवल भारत मैं ही पहुंचे जहा 1556 से लेकर 1707 तक इनका सितारा शिखर पर रहा भारत से ही इस्लाम मलेशिया इंडोनेशिया फिलीपीन पूर्वी चीन तथा मध्यएशिया मैं फैला

वास्को डे गामा जब भारत आया तो व्यापार के रास्ते  खुल गए यूरोप का प्रभाव इस धर्म पर भी पड़ा आमिर मुस्लिम यूरोप की टेकनीक  अपनाना चाहते थे अपने इलाके मैं तेल की खोज कर इन्होने पश्चिमी प्रभाव का सामना भी किया

उत्तर भारत में, इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच दूसरा ज्यादा लंबा समय तक चलनेवाली टकराहट दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद हुई

आपसी टकराव  दोनों के लिए महत्वपूर्ण तरीके से लाभकारी साबित हुआ इस दौर में कला, संगीत और साहित्य में अभूतपूर्व तरक्की हुई. ,  भक्ति आंदोलन उत्तर भारत तक फैल गया और सूफी इस्लाम की चुनौती का सामना तुलसीदास, सूरदास, कबीर, रहीम, मीराबाई, तुकाराम, चोखामेला और कई कम ज्ञात कवियों, भाटों और गवैयों के साहित्य, कविता और गानों के जरिए धर्म के मूलतत्व का प्रसार करके किया. दोनों के बीच संपर्क ने हिंदू धर्म को पहुंच के ज्यादा भीतर बनाया और इस्लाम को उस बिंदु तक नरम बनाने का काम किया, जहां धार्मिक ग्रंथ के अलावा दोनों को एक-दूसरे से बांटनेवाली चीज काफी कम रह गई.

 यह अमीर खुसरो का वक्त है, यह वह वक्त है जब ख्याल गायकी और कथक नृत्य का जन्म हुआ, जब रेखाचित्रों वाली फारसी मिनियेचर पेंटिंग का हिंदू कला के चटक रंगों के साथ संयोग हुआ और मुगल, राजपूत, कांगड़ा, बसोहली मिनियेचर पेंटिंग्स की शैली का जन्म हुआ. हुमायूं के मकबरे, ताजमहल, और पूरे उत्तर भारत में बने स्मारकों में भारत-इस्लामी वास्तुकला का जन्म हुआ

मुस्लिम धर्म की शाखाएं 

इस्लाम के दो मुख्य संप्रदाय सुन्नी और शिया पंथ हैं।

शिया-सुन्नी दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि अल्लाह एक है, मोहम्मद साहब उनके दूत हैं और क़ुरान -अल्लाह की भेजी हुई किताब है. लेकिन दोनों समुदाय में विश्वासों और पैग़म्बर मोहम्मद की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी के मुद्दे पर गंभीर मतभेद हैं.

मुहम्मद के निधन के पश्चात जिन लोगों ने मुहम्मद द्वारा बताये गये नियमों का पालन किया सुन्नी कहलाऐ।

सुन्नी पंथ की शाखा-

सुन्नी मुसलमान मुख्य रूप से चार समूह में बंटे हैं. हालांकि पांचवां समूह भी है जो इन चारों से ख़ुद को अलग कहता है.

हनफ़ी सुन्नी ,मालिकी सुन्नी, हंबली सुन्नी ,शाफ़ई सुन्नी ,सलफ़ी सुन्नी

आठवीं और नवीं सदी में लगभग 150 साल के अंदर चार प्रमुख धार्मिक नेता पैदा हुए. उन्होंने इस्लामिक क़ानून की व्याख्या की और फिर आगे चलकर उनके मानने वाले उस फ़िरक़े के समर्थक बन गए   ये चार इमाम थे- इमाम अबू हनीफ़ा (699-767 ईसवी), इमाम शाफ़ई (767-820 ईसवी), इमाम हंबल (780-855 ईसवी) और इमाम मालिक (711-795 ईसवी).

हनफ़ी-----इमाम अबू हनीफ़ा के मानने वाले हनफ़ी कहलाते हैं. इस फ़िक़ह या इस्लामिक क़ानून के मानने वाले मुसलमान भी दो गुटों में बंटे हुए हैं. एक देवबंदी हैं तो दूसरे अपने आप को बरेलवी कहते हैं

देवबंदी और बरेलवीदर----20वीं सदी के शुरू में दो धार्मिक नेता मौलाना अशरफ़ अली थानवी(1863-1943) का संबंध दारुल-उलूम देवबंद मदरसा से था, जबकि आला हज़रत अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी(1856-1921)  का संबंध बरेली से था

मालिकी

मालिकी सुन्नियों के दूसरे इमाम, उनके अनुयायी उनके बताए नियमों को ही मानते हैं. ये समुदाय आमतौर पर मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं

शाफ़ई

शाफ़ई इमाम मालिक के शिष्य हैं और सुन्नियों के तीसरे प्रमुख इमाम हैं. उनके अनुयायी भी इस बात में विश्वास रखते हैं कि इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी है.

हंबली

मुसलमान इमाम हंबल के फ़िक़ह पर ज़्यादा अमल करते हैं और वे अपने आपको हंबली कहते हैं. सऊदी अरब, क़तर, कुवैत, मध्य पूर्व और कई अफ्रीकी देशों में हैं उनके अनुयायियों का कहना है कि उनका बताया हुआ तरीक़ा हदीसों के अधिक करीब है.

सल्फ़ी

सुन्नियों में एक समूह ऐसा भी है जो किसी एक ख़ास इमाम के अनुसरण की बात नहीं मानता और उसका कहना है कि शरीयत को समझने  क़ुरान और हदीस  का अध्ययन करना चाहिए

अहमदिया

हनफ़ी इस्लामिक क़ानून का पालन करने वाले मुसलमानों का एक समुदाय अपने आप को अहमदिया कहता है. इस समुदाय की स्थापना भारतीय पंजाब के क़ादियान में मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने की थी. मुसलमानों के लगभग सभी संप्रदाय इस बात पर सहमत हैं कि मोहम्मद साहब के बाद अल्लाह की तरफ़ से दुनिया में भेजे गए दूतों का सिलसिला ख़त्म हो गया है.

लेकिन अहमदियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ऐसे धर्म सुधारक थे जो नबी का दर्जा रखते हैं.

बस इसी बात पर मतभेद इतने गंभीर हैं कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग अहमदियों को मुसलमान ही नहीं मानता. हालांकि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में अहमदियों की अच्छी ख़ासी संख्या है.इसमें कृष्ण जी और भगवान् बुद्ध को भी अल्लाह का पैगम्बर माना गया है और उनको पैगम्बर जितना सम्मान दिया जाता है

शिया

शिया मुसलमानों का मानना है कि पहले तीन खलीफ़ा इस्लाम के अवैध तरीके से चुने हुए प्रधान थे और वे हज़रत अली से ही इमामों की गिनती आरंभ करते हैं और इस गिनती में ख़लीफ़ा शब्द का प्रयोग नहीं करते। सुन्नी मुस्लिम अली को (चौथा) ख़लीफ़ा भी मानते

सुन्नियों की तरह शियाओं में भी कई संप्रदाय हैं लेकिन सबसे बड़ा समूह इस्ना अशरी यानी बारह इमामों twelvers को मानने वाला समूह है

बारह इमामों twelvers

. दुनिया के लगभग 75 प्रतिशत शिया इसी समूह से संबंध रखते हैं. इस्ना अशरी समुदाय का कलमा सुन्नियों के कलमे से भी अलग है.उनके पहले इमाम हज़रत अली हैं और अंतिम यानी बारहवें इमाम ज़माना यानी इमाम महदी हैं. वो अल्लाह, क़ुरान और हदीस को मानते हैं, लेकिन केवल उन्हीं हदीसों को सही मानते हैं जो उनके इमामों के माध्यम से आए हैं.क़ुरान के बाद अली के उपदेश पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा और अलकाफ़ि भी उनकी महत्वपूर्ण धार्मिक पुस्तक हैं. यह संप्रदाय इस्लामिक धार्मिक क़ानून के मुताबिक़ जाफ़रिया में विश्वास रखता है. ईरान, इराक़, भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया के अधिकांश देशों में इस्ना अशरी शिया समुदाय का दबदबा है.

ज़ैदी 

शियाओं का दूसरा बड़ा सांप्रदायिक समूह ज़ैदिया हैजो बारह के बजाय केवल पांच इमामों में ही विश्वास रखता है. पांचवें और अंतिम इमाम हुसैन (हज़रत अली के बेटे) के पोते ज़ैद बिन अली हैं जिसकी वजह से वह ज़ैदिया कहलाते हैं.यह भारतपाकिस्तान ,ईरान,इराक मैं रहते है

इस्माइली

शियों का यह समुदाय केवल सात इमामों को मानता है और उनके अंतिम इमाम मोहम्मद बिन इस्माइल हैं और इसी वजह से उन्हें इस्माइली कहा जाता है.  ये मुहम्मद साहब को पैग़म्बर ,मुहम्मद साहब के दामाद अली को पहला इमाम,  मानते हैं 

 दाऊदी बोहरा--------दाऊदी बोहरा 21 इमामों को मानते हैं.

खोजा

खोजा गुजरात का एक व्यापारी समुदाय है जिसने कुछ सदी पहले इस्लाम स्वीकार किया था. इस समुदाय के लोग शिया और सुन्नी दोनों इस्लाम मानते हैं. इस समुदाय का बड़ा वर्ग गुजरात और महाराष्ट्र में पाया जाता है. पूर्वी अफ्रीकी देशों में भी ये बसे हुए हैं.

नुसैरी

इसे अलावी के नाम से भी जाना जाता है. सीरिया में इसे मानने वाले ज़्यादातर शिया हैं इस समुदाय का मानना है कि अली वास्तव में भगवान के अवतार के रूप में दुनिया में आए थे. नुसैरी पुर्नजन्म में भी विश्वास रखते हैं और कुछ ईसाइयों की रस्में भी उनके धर्म का हिस्सा हैं.

बहाई धर्म: ये भी इस्लाम से ही निकला है.. सय्यद अली मुहम्मद शिराज़ी इसके संथापक थे.

 नियाजी मुस्लिम: ये पन्थ “शमा नियाजी” द्वारा स्थापित किया है

वहाबी इस्लाम: सऊदी अरब और अन्य इस्लामिक देशो में ये मत ही सर्वोपरि है.. भारत में इसका केंद्र देवबंद है..


इस्लाम धर्म की मान्यताये-मूसा और क्राइस्ट सहित सभी नबियों को ईश्वर द्वारा दूत के रूप में भेजा गया था। सबसे महत्वपूर्ण यह विश्वास है कि पैगंबर मोहम्मद पृथ्वी पर भेजे गए भगवान के अंतिम दूत थे।

निर्णय का दिन जब दुनिया खत्म हो जाएगी और लोगों को उनके जीवन में किए गए कामों के लिए पुरस्कृत या दंडित किया जाएगा। इसमें स्वर्ग और नरक की अवधारणा शामिल है।

अल्लाह सर्व शक्तिमान है

इस्लाम एक ईश्वर को मानता है

मूर्ति पूजा का विरोध करता है

पुनर जनम का सिद्धांत नहीं मानता

परन्तु कर्म कांड को मानता है 

इस्लामिक मान्यता अनुसार प्रत्येक मनुष्य के साथ दो देवदूत लगे होते हैं जो उसके कर्मों को लिखते रहते हैं

मुसलमान भाग्य को मानते हैं

क़यामत- ईसाई और यहूदी  के समान इस्लाम में भी ब्रह्मांड का अंत प्रलय के दिन माना जाता है

इस्लाम के 5 स्तम्भ

तौहीद(एक इश्वर) नमाज़ रोज़ा (उपवास) ज़ाक़त(दान करना) हज (तीर्थ यात्रा)

कलमा - कलमा के बेगार इस्लाम में प्रवेश नहीं होता कलमा है ला +इलाहा _ईललल्लाह+ मुहम्मदुर्रसूलल्लाह- अर्थात अल्लाह के सिवा दूसरा कोई पूजनीय नहीं है मुहम्मद साहिब उनके रसूल है

पांच वक़्त की नमाज-मक्के की ओर मुंह करके.

सुबह -सूर्य उदय से बीस मिंट पहले

दोपहर - तीसरे पहर के आरम्भ मैं

असिर -चौथा पहर यानि शाम को

मगरिब -सूर्यास्त के बाद

रात्रि -रात्रि के पहले पहर के बाद

ज़ाक़त(दान करना)-अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत हिस्सा दान देना

हज (तीर्थ यात्रा

मक्का मदीना की यात्रा हज कहलाती है

मक्का --इस्लाम का पवित्रतम शहर है इस्लामी परंपरा के अनुसार मक्का की शुरुआत इश्माइल वंश ने की थी। काबा की सरंचना और पवित्र मस्जिद-अल-हरम स्थित है।

 मदीना-- मक्का के बाद इस्लाम का दूसरा सबसे पवित्र शहर है। इस्लामी पैगंबर हज़रत मुहम्मद को सब्ज़ गुंबद के नीचे दफनाया गया था

 काबा-क्यूब के आकार की संरचना है जिसे इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। इस संरचना को मक्का में ही पाए जाने वाले ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया। इस्लाम मैं काबा की तरफ मुँह करके नमाज पड़ने का नियम है

ज़मज़म का कुआं-- काबा से केवल 20 मीटर दूर ज़मज़म का कुआं ग्रह पर पानी का सबसे पुराना चश्मा करार दिया जाता है जिसकी उम्र पांच हजार साल से ज़्यादा है।

क़ुरान -

कुराने पाक इस्लाम धर्म की  धार्मिक पुस्तक है जिसे कपडे मैं लपेट दरवाजे मैं उप्पर रखने का रिवाज है यह ग्रन्थ लगभग 1400 साल पहले अवतरण हुई है अरबी, फारसी, उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच आदि भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है ।

क़ुरआन" शब्द काअर्थ है - उसने पढ़ा, कुरान को तख्तों, खालों, हड्डियों, और के तने के चौड़े लकड़ियों पर दर्ज किया गया था। पहले ख़लीफ़ा, अबू बक्र ने पुस्तक को एक ग्रन्थ में इकट्ठा करने का फैसला किया  मुहम्मद की मृत्यु के 20 वर्षों के भीतर, कुरान लिखित रूप में प्रतिबद्ध था। ज़ैद इब्न थाबित (655ई) कुरान को इकट्ठा करने वाले पहले व्यक्ति थे  क़ुरआन में कुल 114 अध्याय हैं जिन्हें सूरा कहते हैं। पहला अध्याय सबसे बड़ा है आखिरी सब से छोटा  नौवें सूरे को छोड़कर प्रत्येक सूरा बिस्मिल्लाह जिसका अर्थ है "अल्लाह के नाम पर" के साथ शुरू होता है कुछ विचरको का अनुमान है की नोवा अध्याय पहले आठवे अध्याय की हिस्सा रहा होगा इसलिए उनमे बिस्मिल्लाह यह शब्द नहीं है हर सूरे का अपना नाम है प्रत्येक सूरा में कई छंद होते हैं, कुरान में छंदों की कुल संख्या 6,236 है छंद आयात मैं बाटे गए है - आयत का इंग्लिश मैं अर्थ है miracle यानि चमत्कार

मुहम्मद के समय, दान और प्रार्थना की ऐतिहासिक घटनाएं, बुनियादी इस्लामी मान्यताओं,  सामान्य नैतिक पाठों शामिल हैं

शरीया--

इस्लाम के उन नियमो  का समूह है जिससे इस्लामिक समाज के धार्मिक आर्थिक राजनैतिक सांस्कृतिक जीवन की व्याख्या की गयी है

शरीयत के चार प्रमुख स्रोतों में कुरान हदीस इज्मा और कियास

कुरान -- पैगंबर के वचनों का संग्रह

हदीस ----पैगंबर के हवाले से कही गई बातें लिखी हैं।

इज्मा -विद्वानों की मजलिस में बहुमत के आधार पर आम सहमति बनाई जाती है।

कियास--आत्मज्ञान, स्वविवेक  से मुफ्ती की राय

उलमा- इस्लाम धर्म के ज्ञाता

मुफ्ती-- इस्लामी संतों की आध्यात्मिक श्रंखला में आते हैं ।

 मुल्लाह- मुस्लिम पुरुष या महिला जो इस्लामी पवित्र कानून में शिक्षित हो

इमाम-- सुन्नी मुसलमानों के बीच एक मस्जिद और मुस्लिम समुदाय की नमाज़ का नेतृत्व करने वाला

अज़ान- मुस्लिम समुदाय पांचों नमाज़ों के लिए बुलाने के लिए ऊँचे स्वर में जो शब्द कहते हैं, उसे अज़ान कहते हैं।

मुअज़्ज़िन-  अज़ान देने वाले को मुअज़्ज़िन कहते हैं।

बकरीद की कहानी

अल्लाह ने पैगम्बर हजरत इब्राहिम से उनकी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी मांगी. हजरत इब्राहिम को सबसे ज़्यादा प्यार बुढ़ापे में पैदा हुई एकलौती औलाद इस्माइल से था. लेकिन अल्लाह का हुक्म मानकर वह अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए. हजरत इब्राहिम जब अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने जा रहे थे तभी रास्ते में शैतान मिला और उसने कहा कि -बेटे की कुर्बानी दे रहे हैं. उसके मरने के बाद बुढ़ापे में कौन उनकी देखभाल करेगा. हज़रत इब्राहिम ये बात सुनकर सोच में पड़ गए लेकिन कुछ देर बाद वह संभले और कुर्बानी के लिए तैयार हो गए. हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली.

 अल्लाह ने बेटे की जगह रख दिया 'बकर'

 हज़रत इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांधकर बेटे की कुर्बानी दी, लेकिन कुर्बानी के बाद जैसे ही पट्टी हटाई तो अपने बेटे को सामने जिन्‍दा खड़ा पाया. क्योंकि अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम के बेटे की जगह 'बकर' यानी बकरे को खड़ा कर दिया था. इसी वजह से बकरीद मनाई जाता है, बकरों और मेमनों की बलि दी जाती है.

  शैतान को पत्थर मारने की रस्म

 जो शैतान पैगम्बर हजरत इब्राहिम को अल्लाह के हुक्म को मानने से भटका रहा था. इसी को हज के तीसरे दिन बकरीद के बाद रमीजमारात पर पत्थर मारते हैं. रमीजमारात एक ऐसी जगह है जहां तीन बड़े खम्भे हैं. इन्हीं खंभों को लोग शैतान मानते हैं और उस पर कंकरी फेंकते हैं और इस रस्म के साथ ही हज पूरा हो जाता है.  

बकरीद मैं क़ुरबानी के नियम

शारीरिक बीमारी या छोटे पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती।

ईद की नमाज के बाद मांस के तीन हिस्से होते हैं। एक खुद के इस्तेमाल के लिए, दूसरा गरीबों के लिए और तीसरा संबंधियों के लिए। वैसे ज्यादातर लोग सभी हिस्सों का गरीबों में बांट देते हैं।

बड़े जानवर ( भैंस या ऊंट  ) पर सात हिस्से होते हैं

व्यक्ति अपनी कमाई का ढ़ाई फीसदी दान देता है। साथ ही समाज की भलाई के लिए धन के साथ हमेशा आगे रहता है। उसके लिए कुर्बानी जरूरी नहीं है।

जिस किसी व्यक्ति के पास पहले से कर्ज है तो वह कुर्बानी नहीं दे सकता।

जिबह करने वाला नमाज़ी तथा चरित्रवान हो

मुसलमानों के उपासनास्थल -मस्जिद

महत्वपूर्ण त्यौहार--- ईद उल फितर और ईद-उल-अज़्हा शबे-बारात –मुहरमम

अस-सलामु अलायकुम   -अरबी में  अभिवादन -खुदा तुम्हे सलामत रखे 

रमज़ान

इस्लामी कैलेण्डर का नवां महीना है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग उपवास रखते हैं। चाँद  देख कर रमज़ान मास शुरू किया जाता है. रमज़ान के आखरी दिन चांद देख कर अगले दिन ईद घोषित किया जाता है. उपवास के दिन सूर्योदय से पहले खा लेते हैं जिसे सहरी कहते हैं। दिन भर न कुछ खाते हैं न पीते हैं। शाम को सूर्यास्तमय के बाद रोज़ा खोल कर खाते हैं जिसे इफ़्तारी कहते हैं

इस मास उपवास रखना , नमाज़ पढना, दान धर्म करना, अल्लाह का शुक्र अदा करना ग़रीबों की मदद करना ज़रूरी समझा जाता है।

 इस्लाम में दो ईद है पहली ईद उल-फ़ितर दुसरी ईद उल जुहा या बकरीद कहलाती है

मुहर्रम।

हिजरी संवत का पहला महीना होता है मुहर्रम। इस महीने को शहादत के महीने के रूप में जाना जाता है। मुहर्रम के दौरान जंग में दी गई शहादत को याद किया जाता है और  कुछ जगह ताजिये बनाकर इमाम हुसैन के प्रति सम्मान प्रकट किया किया जाता है। ताज़िया –मकबरे के आकार का वह मंडप जो मुहर्रम के दिनों में शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसेन की कब्र के प्रतीक रूप में बनाते है  मुस्लिम मुहर्रम की नौ और दस तारीख को रोजा रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत करते हैं मुहर्रम के दिनों में शिया लोग ताजिए के आगे बैठकर मातम करते हैं और मर्सिये पढ़ते हैं. ग्यारहवें दिन जलूस के साथ ले जाकर ताजिया को कर्बला में दफन करते हैं. इस परंपरा की शुरुआत भारत से ही हुई थी.

बादशाह तैमूर लंग ने 1398 इमाम हुसैन की याद में एक ढांचा तैयार कर उसे फूलों से सजवाया था. बाद में इसे ही ताजिया का नाम दिया गया. भारत में सब्से अच्छी ताजियादारी जावरा मध्यप्रदेश प्रदेश में होती है


इस्लाम का कोई झंडा नहीं है

-उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी  बताते हैं सऊदी अरब में जब इस्लाम आया उसके पहले वहां पर 360 अल्लाह हुआ करते थे। हर इलाके में लोगों ने अपने को अल्लाह घोषित कर रखा था। काबा पर हमला करके जब काबा को जीता गया तो वहां पर 360 अल्लाह की मूर्तियां मिलीं। इसके बाद वहां इस्लाम मजहब आया और धीरे - धीरे लोगों ने इस्लाम को अपनाना शुरू किया। इस्लाम के पहले जो 360 अल्लाह हुआ करते थे उसमें हुबल नाम के अल्लाह सबसे ज्यादा मशहूर थे। उनको मानने वाले लोग अपने घरों के ऊपर चांद -तारे का झंडा लगाते थे। उस समय तक झंडे में हरा रंग शामिल नहीं हुआ था। वर्ष 1906 में इस झंडे में हरा रंग आया। वसीम रिज़वी ने कहा कि इस्लाम का कोई झंडा नहीं है। झंडा सेनाओं का होता है। इस्लाम की कोई सेना तो है नहीं। मोहम्मद साहब ने जो पहला बैनर बनाया था वो काले रंग का था। उस पर कुछ भी नहीं लिखा था।

(अखबार मैं छपे लेक पर आधारित)

इज्तिहाद- 

इस्लाम मैं बौद्धिक व्याख्या करने की एक परम्परा है जिसे इज्तिहाद कहते है इसके अंतर्गत - न्यायधीश तथा धर्म गुरु इस्लाम की शिक्षा पर वाद विवाद करते रहे है कि समाज मैं बदलाव के साथ आयी समस्या को कैसे हल करे  सुन्नी मुस्लिम ने इस परमपरा को त्याग  है परन्तु शिया इसे आज भी मानते है इस प्रथा का इस्लामी कानून मैं बहुत महत्व है इसमें इस बात का भी ध्यान रखते है कि आधुनिक युग के विचारो और हालातो पर यह कैसे लागू हो - 1915 मैं मुस्लिम औरतो को तलाक़ का हक़ मिला -बहुत से देश अब समान कानून बनाने पर बल देने लगे है


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