प्राचीन धर्म
धर्म के उत्पत्ति
के सिध्दांत-
सुख एंव दुख के
सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य सुख प्राप्ति वाले कार्य करता है और दुख देने वाले
कार्यों से बचने का प्रयास करता है।
दैवीय प्रकाशना
का सिद्धांत- इस मत के अनुसार स्वयं ईश्वर ने ही अपने विशेष कृपा से मानव
हितों के लिए धर्म का प्रकाशन अवतार एवं पैगम्बर इत्यादि के माध्यम से किया है
जीववादी सिद्धांत
के अनुसार विश्व की समस्त वस्तुओं में आत्मा जीव का निवास है।
मानवीय विवेक
सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार धर्म की उत्पत्ति मानवीय विवेक से हुई है। इस
आधार पर धर्म का दो रूपों में विकास हो गया- प्रथम शुद्ध प्राकृतिक ऐतिहासिक धर्म।
और दूसरा पुरोहितों की इच्छानुसार प्रचलित धर्म
1 शुद्ध प्राकृतिक
ऐतिहासिक धर्म।
संसार मैं फैले बड़े धर्मो के इलावा ट्राइबल के अपने अपने शुद्ध प्राकृतिक धर्म है इन्हे मौलिक धर्म कहा जाता है यह प्रकृति के नजदीक है तथा इसको मानने वाले प्रकृति की ताक़त से डरते है
गणचिह्नवाद या
टोटम प्रथा
(totemism)
किसी समाज के उस
विश्वास को कहतें हैं जिसमें मनुष्यों का किसी जानवर, वृक्ष, पौधे या अन्य आत्मा से
सम्बन्ध माना जाए। भारत के बहुत से समुदायों में भी ऐसे टोटम पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए देखा
गया है कि महाराष्ट्र में 'ताम्बे' का पारिवारिक नाम रखने वाले लोग नाग को अपना
कुलदेवता मानते हैं और कभी भी नाग नहीं मारते। अगर दो गुटों का एक ही
टोटम हो तो उनमें आपस में विवाह करना वर्जित था क्योंकि वह एक ही पूर्वज के वंशज
माने जाते थे।
संसार के तीन सौ मिलियन जनजातियां पक्के धार्मिक है आधुनिक युग के लोग चाहे उनका मज़ाक बनाये पूर्ण रूप से टोटेमवादी हैं
प्रेतवादी
सिद्धांत के अनुसार आदिम युग के मानव में यह धारणा थी कि उसके पूर्वजों अस्तित्व
मृत्यु के पश्चात प्रेतात्मा के रूप में रहता है। भूतो की आत्मा पर विश्वाश किया
जाता है यह आत्माये तीन प्रकार की होती है प्रथम है अच्छी आत्मा - जो मदद करती है
उनकी पूजा की जाती है तथा धन्यवाद किया जाता है दूसरी है समान्य आत्मा जो ना मदद
करती है ना ही नुकसान करती है तीसरी है
बुरी आत्मा इनको दूर करने के लिए जोर दिया जाता है
इन सब से अलग है अन्य आत्माये जो हमारी सांसारिक जरूरतों को पूरा करने मैं मदद करती है वही आत्माये देवता या भगवान की श्रेणी मैं आती है उनके मंदिर है उनके लिए तयोहार है यह भी माना जाता है कि इन सब देवता के उप्पर भी कोई है जो इन देवता को वश मैं रखता है वही भगवान् है ज्यादतर जनजातियाँ मानती है की मरने के बाद आत्मा जिन्दा रहती है तथा धरती पर रहने वालो को उनका ध्यान रखना चाहिए यह धर्म मिथको पर आधरित होते है परन्तु झूठ पर नहीं बलिक प्रकृति के साथ रिश्तो की गहरी समझ पर आधारित होते है इन आत्माओ से आप बात कर सकते है यह इतनी ताक़तवर होती है किसी जिन्दा व्यक्ति के शरीर मैं प्रवेश कर आप से बात कर सकती है - उसको वश मैं कर सकती है नव वर्ष का त्यौहार हो या नयी फसल पर पूजा , बली की प्रथा हो या शादी विवाह मैं सबसे पहले जठेरों की पूजा मौलिक धर्म पर ही आधारित है - जिसके लिए पंडित , ओझा , पुजारी कर्मकांड करते है जो आत्मा से बात करते है -बुरी आत्मा को दूर करने मैं मदद करते है कभी कभी तो बीमार को दवा भी देते है
धर्म की उत्पत्ति
भय-भावना, जीने की इच्छा , जीने की इच्छा से
जानने की इच्छा , असंतोष से हुई।
पांच हज़ार सालो से सांप , बैल को प्रजनन शक्ति काप्रतीक मन जाता रहा है तथा इनकी पूजा
की जाती रही है -वेद काल में न तो मंदिर थे और न ही मूर्ति। यज्ञ के द्वारा भी
ईश्वर और प्रकृति तत्वों का आह्वान और प्रार्थना करते थे। बहुत से समुदायों में
यक्ष, नाग, पितर, ग्रह-नक्षत्र आदि की पूजा का प्रचलन था। अनुमान लगाया जाता
है की जब शुरू मैं इंसान ने उपसमाधि (ट्रांस) की अवस्था का अनुभव किया तभी उनको
आत्मा के बारे विचार आया - आत्मा के बाद भगवान के अस्तित्व की कल्पना की - लोगो ने विकासवाद मैं जो भी
मुसीबते आ रही थी जैसे बारिश ,तूफ़ान, ज्वालमुखी , सब के एक आत्मा की कल्पना की जिसे देवता कहा गया जब लोगो की
समझ विकसित हुई तो सारी प्रकृति को एक मान
कर एक देवता स्थापित किया - जो एक ईश्वरवाद की शुरुआत थी - बाद मैं बहु ईश्वरवाद
आया इतिहास इस बात का साक्षी है की एक ईश्वरवाद ने देश को मजबूत किया
मिथक एक पुल की तरह भावनाओ , मन ,बुद्धि, तर्क के बीच काम करता है
इन सब के साथ मिथक तथा प्रतीक दुनिया मैं आये यह प्रतीक आज भी धर्म का हिस्सा है जैसे सिख धर्म मैं खंडा , मुस्लिम धर्म मैं चाँद ,ईसाई धर्म मैं क्रॉस या हिन्दू धर्म मैं तिलक
,
EGYPT - मिस्र की धार्मिक मान्यताये
3100 BC क कोई लिखित वर्णन ने मिलने से इतिहास की जानकारी नहीं है - चित्रलिपि लेखन का काल
करीब 3200 ई.पू. का है और यह करीब 500 प्रतीकों से बना है। चित्रलिपि का प्रयोग स्मारकों
और कब्रों पर किया जाता था, प्राचीन
मिस्रवासी किसान थे संगीत और नृत्य उन लोगों के लिए लोकप्रिय मनोरंजन थे जो उन्हें खरीद सकते थे।
आरंभिक वाद्यों में शामिल थी बांसुरी
प्राचीन मिस्र
में लगभग 1400 देवी-देवताओं की पूजा होती थी। मिस्र में सूर्य को सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा देवता
के रूप में माना जाता है। बाज को सूर्य का सांपो को कृषि के देवता का दूत माना
जाता था प्रत्येक शहर का अपना देवता होता थे
मगरमच्छ ,
कुत्ते ,बिल्ली ,इबिस पक्षी की पूजा की जाती थी ,बैल को जनन क्षमता
के कारन पूजा जाता है इस सभ्यता मैं मानना था की पहले दुनिया
मैं चारो तरफ पानी था फिर उसमे से एक चट्टान बहार निकली जिससे जीवन की शुरुआत हुई – परमात्मा और पुनर्जन्म
में विश्वास, प्राचीन मिस्र की सभ्यता
की स्थापना काल से ही गहरे जमे हुए थे; देवताओं की पूजा पंथ मंदिरों में की जाती थी,
मंदिर दो प्रकार के होते थे एक भगवान् या देवता को समर्पित दुसरे राजा को - प्रत्येक मंदिर मैं बहुत से
कमरे होते थे जो अलग अलग कार्यो को समर्पित थे - यह कमरे भी सजा कर रखे जाते थे - मंदिर के
बाहर चारो तरफ चारदीवारी होना अनिवार्य था गर्भ गृह मैं कुछ लोग ही प्रवेश कर सकते
थे मंदिर की दीवारों को विभिन धार्मिक चिन्हो एवं मंत्रो से सजाया जाता था गर्भ
गृह मैं अँधेरा रखा जाता था - मिस्रवासियों का मानना था कि उन देवताओं को प्रसाद और पूजा के द्वारा संतुष्ट
करना पड़ता है। आम नागरिक,
अपने घरों में
निजी मूर्तियों की पूजा कर सकते थे
यह भी मान्यता थी की राजा मृत्यु के बाद सूर्य के पास जाता है यह मान्यता धीरे धीरे हर व्यक्ति पर लागू हो
गयी आत्मा का विचार सर्वमान्य था - यमदूत का विचार भी यह लोग मानते थे – book of
dead के अनुसार मृतक को रस्ते मैं यमदूत मिलते थे -
जो लोग गुम हो जाते थे या जिनकी लाश नहीं मिलती थी उनकी याद मैं नदी मैं एक डमी बना देते थे यह भी माना जाता था की
आत्मा को सूर्य तक जाने के लिए शरीर की जरूरत पड़ती है प्राचीन मिस्रवासियों ने दफन
की एक विस्तृत प्रथा को बनाए रखा था The opening of mouth क्रिया के साथ मृतक को खाना खिलाया जाता था अमीर मिस्रवासियों को
विलासिता की अधिक वस्तुओं के साथ दफनाया जाता था
egypt के लोग अपने साथ मंदिर बनाने की विधि साथ लाये और भारत मैं मंदिर बनने लगे भारतीय और मिस्र की भाषाओं में बहुत से शब्द और उनके अर्थ समान हैं, जैसे हरी (सूर्य)- होरस, ईश्वरी- ईसिस, शिव- सेव, श्वेत- सेत, क्षत्रिय- खेत, शरद- सरदी आदि। मिस्र के पुरोहितों की वेशभूषा भारतीय पुरोहितों व पंडितों की तरह है। उनकी मूर्तियों पर भी वैष्णवी तिलक लगा हुआ मिलता है। एलोरा की गुफा और इजिप्ट की एक गुफा में पाई गई नक्काशी और गुफा के प्रकार में आश्चर्यजनक रूप से समानता है।
ओल्मेक सभ्यता (1200-400 ई.पू.) पहली प्रमुख
मेसोअमेरिकन संस्कृति थी और कई अन्य सभ्यताओं की नींव रखी। एज़्टेक और माया सहित कई बाद की संस्कृतियों, ओल्मेक से गहरा प्रभावित थीं। एक उदाहरण Azuzul पुरातात्विक स्थल पर Hero जुड़वाँ की लगभग समान मूर्तियाँ हैं
ओल्मेक धर्म के
पांच पहलू
एक ब्रह्मांड है
देवता ने ब्रह्मांड को नियंत्रित किया
पुजारी वर्ग ने आम ओल्मेक
लोगों और उनके देवताओं के बीच मध्यस्थों के रूप में काम किया
शासकों द्वारा
रचित अनुष्ठान
प्राकृतिक और
मानव निर्मित पवित्र स्थल
ओल्मेक पवित्र स्थान---- मानव निर्मित स्थानों में मंदिर, प्लाजा और बॉल कोर्ट शामिल थे और प्राकृतिक स्थानों में स्प्रिंग्स, गुफाएँ, पर्वत और नदियाँ शामिल थीं। कई प्राचीन संस्कृतियों की तरह, ओल्मेकस ने पहाड़ों की वंदना की: रबर गेंदों का खेल उनके समय से प्रचलित है
ओल्मेक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू कृषि था, इसलिए कृषि प्रजनन पंथ, देवता और अनुष्ठान अत्यंत महत्वपूर्ण थे। आकाश देवताओं का घर था ओल्मेक में कई देवता थे जिनकी छवियां मूर्तियों, और अन्य कलात्मक रूपों में दिखाई देती हैं। ओलमेक साम्राज्य 400 ईसापूर्व के आसपास खत्म होने लग गया था पुरातत्वविद क्रिस्टा शाईबर के अनुसार जिस समय ओलमेक सभ्यता खत्म हो रही था, ठीक उसी समय माया सभ्यता का विकास हो रहा था
ओल्मेक में से अधिकांश
देवता बाद में अन्य संस्कृतियों, जैसे कि माया में
प्रमुखता से शामिल हुए ।
The Olmec Dragon ड्रैगन
The Bird Monster पक्षी दानव
The Fish Monster --- राक्षस शार्क
The Banded-eye God बँधी हुई आँख भगवान
The Maize God फसल का देवता
The Water God पानी का देवता
The Were-jaguar शेर
The Feathered Serpent पंख वाले सर्प
माया सभ्यता-
जहां पर आज
मैक्सिको है वहां किसी जमाने में माया सभ्यता के लोग रहा करते थे। माया सभ्यता
ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास और यूकाटन प्रायद्वीप में स्थित थी।
इस सभ्यता की शुरुआत 1500 ई. पू. में हुई।
यह 300 ई० से 800 ईसा तक काफी प्रगतिशील रही, फिर धीरे-धीरे इसका अंत हो गया। माया सभ्यता के
लोग कला, गणित, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और लेखन आदि के क्षेत्र में काफी अव्वल थे। इस
सभ्यता की सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं जो उन्होंने धार्मिक केंद्रों के
रूप में में बनाए थे। माया सभ्यता के लोगों की सबसे बड़ी खासियत उनका खगोलीय ज्ञान
थी। उन्होंने विभिन्न घटनाओं, धार्मिक
त्योहारों और जन्म-मरण संबंधी बातों का रेकार्ड रखने के लिए कैलेंडर बनाया था।
माया सभ्यता की गणना और पंचांग को माया कैलेंडर कहा जाता था। माया सभ्यता का अंत
करीब 100 से ज्यादा वर्षों तक
लगातार सूखा पड़ने के कारण हुआ। हिन्दू अमेरिका पुस्तक में माया सभ्यता तथा भारतीय
सभ्यता की पारस्परिक निकटस्थ समानताएं वर्णित हैं । स्वयं माया शब्द ही भारतीय हैं
। मैक्सिको में श्री गणेश जी तथा सूर्यदेव की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं । प्राचीन
भारतीय शब्दावली में , अमरीकी
महाद्वीपों वाला पश्चिमी गोलार्द्ध पाताल कहलाता था । अमेरिकन इतिहासकार मानते हैं
कि भारतीय आर्यों ने ही अमेरिका महाद्वीप पर सबसे पहले बस्तियां बनाई थीं। अमेरिका
के रेड इंडियन वहां के आदि निवासी माने जाते हैं और हिन्दू संस्कृति वहां पर आज से
हजारों साल पहले पहुंच गई थी।
माया सभ्यता ने 250 से 800 ईसवी तक मध्य अमरीका पर राज किया था. उनका साम्राज्य आधुनिक होंडुरास से मध्य मेक्सिको तक फैला हुआ था.
पेगन धर्म—
जितने भी प्राचीन धर्म हैं उनमें तीन बातें सदा से रही- मूर्ति पूजा, प्रकृति पूजा और बहुदेववाद। पेगन धर्म के लोग का मानना है कि यह ब्रह्मांड ईश्वर ने बनाया है इसीलिए वे प्रकृति के सभी तत्व जैसे वृक्ष, पशु, पहाड़, नदी, पक्षी आदि की आराधना करते है। जीवन और मृत्यु के चल रहे चक्र में परमात्मा की शक्ति को देखते हैं। अग्नि और सूर्य आदि प्राकृतिक तत्वों के मंदिर बनाकर उसमें उनकी मूर्तियाँ स्थापित करते थे जहाँ विधिवत पूजा-पाठ वगैरह होता था। वे प्रकृति, मौसम, जीवन और मृत्यु के चक्र को मानकर उनके अनुसार ही जीवन जीते थे। यूल, इम्बोलक, ओस्टारा, बेल्टने, लिथा इत्यादि त्यौहार है।
महापाषाण
महापाषाणों का प्रयोग अधिकतर पाषाण युग और कुछ हद तक कांस्य युग में होता था।ऐसे बड़े पत्थर या शिला जिसको तराशकर और एक-दूसरे में फँसने वाले हिस्से बनाकर बिना सीमेंट किसी स्तम्भ, स्मारक या अन्य निर्माण के लिये किया गया हो।भारत के पूर्वी राज्यों मेघालय तथा असम मैं आप इनकी झलक पा सकते है जो मृतकों की याद मैं बनाये जाते थे महापाषणीय संस्कृति का उदय भारत मैं 1000BC के आस पास दक्षिण भारत मैं हुआ तथा कई शताब्दियों तक रहा दक्षिण भारत मैं प्रपात महापाषणीय शवाधानों का काल निर्धारण 3BC SE 1BC माना जा रहा है शव को कलश मैं डाल कर गाड़ देते थे या पत्थरों से ढक देते थे -कभी कभी दोनों विधि भी इस्तेमाल की जाती थी यह प्रथा यूरोप मैं प्रचलित थी
कनानी धर्म
वह कनान देश है, जिसमें इज़राइल, फिलिस्तीन, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया के आधुनिक क्षेत्र शामिल हैं। कनानी धर्म प्राचीन लेविट धर्मों के समूह को संदर्भित करता है कनानी धर्म बहुदेववादी था परिवारों के साथ आम तौर पर मूर्तियों को देवताओं और देवी देवताओं के रूप में मृतकों की पूजा करने पर ध्यान दिया जाता था, मृतकों को भोजन और पेय के सामान के साथ कब्र मैं दफनाया गया था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे जीवित लोगों को परेशान न करें।
अनात--------- युद्ध और कलह की कुंवारी देवी,
कनान अत्तार--- सुबह के तारे का देवता
बालत या बालित---- (गरज का स्वामी), तूफान देव
मेलकार्ट --नृत्य के देवता,
कोठारत-- शादी और गर्भधारण की देवी
क़ादस्तु,---बागों और फलों की देवी
शचर और शालीम-- भोर और शाम के जुड़वां पर्वत देवता
कनानी पौराणिक कथाओं में तारगिज़िज़ी और थारुमगी में दो पहाड़ थे जो पृथ्वी के चक्कर लगाने वाले महासागर के ऊपर से मजबूती पकड़ते हैं, जिससे पृथ्वी का विस्तार होता है। यहां दो पहाड़ों का विचार पृथ्वी के स्तनों के रूप में जुड़ा हुआ है, कनानी धार्मिक प्रथा बच्चों के कर्तव्यों के लिए अपने माता-पिता की देखभाल करने के लिए एक उच्च सम्मान था
मिनोअन धर्म-
मिनोअन संस्कृति का विकास एनाटोलिया के लोगों से हुआ है जो 7000 ईसा पूर्व यूनान के दक्षिण-पूर्व में क्रेते में द्वीप पर आए थे। मिनोअन संस्कृति का अंत 1750 ईसा पूर्व के एक ज्वालामुखी के विस्फोट से संबंधित हो सकता था।
धर्म शोधकर्ताओं अनुसार मृतक की तुलना में जीवित रहने पर अधिक ध्यान दिया, उनका सर्वोच्च देवता धरती माता थी. महिला देवता अधिक महत्वपूर्ण और कई थे. मातृ देवी, प्रजनन क्षमता, जानवरों की महिला, घर के रक्षक, फसलों के रक्षक आदि।. उनका सबसे विशिष्ट प्रतिनिधित्व सर्प देवी के रूप में था, कुछ संकेत यह प्रतीत करते हैं कि मिनोअन्स ने मानव बलि का अभ्यास किया था।
मैनिकेस्म या Mani
मणिचैस्म की उत्पत्ति तीसरी शताब्दी में हुई थी। Manichaeism के संस्थापक Manes, एक फ़ारसी जादूगर थे, जोरोस्टर धर्म के सिद्धांतों के साथ ईसाई सिद्धांत का मिश्रण है मणि की शिक्षाओं ने बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, पारसी धर्म और यहूदी-ईसाई धर्म के दार्शनिक विचारों को परस्पर जोड़ा।उनके विश्वास की पहली आधिकारिक मान्यता 689 और 705 के बीचManichaeans ने चीन के सबसे बड़े शहरों में अपने मंदिर खोले।चीनी प्राकृतिक दर्शन में, पांच तत्वों (syn), या पांच प्राथमिक तत्वों (धातु, लकड़ी, पानी, अग्नि, पृथ्वी) की अवधारणा, जो कि मैनिचियन प्रकाश के तत्वों के समान हैं
एज़्टेक का धर्म
एज़्टेक जातीय
समूह था प्रारंभ में, इस जनजाति के
सदस्य शिकारी थे13 वीं शताब्दी में मेक्सिकन बेसिन में प्रवेश किया,
15 वीं शताब्दी तक बहुत युद्ध
किये तथा जीत प्राप्त की एज़्टेक दुनिया में योद्धाओं ने विशेष सम्मान का आनंद
लिया युद्ध मैं बलिदान केवल सूर्य उदय से सूर्य अस्त तक ही हो सकता था एज़्टेक
उत्कृष्ट शिल्पकार थे, देवता के लिए
सोने का सिंहासन बनाने की परम्परा इनके समय की देन है
इस जनजाति के लोग मानते थे कि कई देवता हैं जो प्रकृति की शक्तियों और लोगों के भाग्य को नियंत्रित करते हैं। सूर्य, चंद्रमा और शुक्र ग्रह की पूजा की जाती थी समाज के प्रत्येक स्तर के अपने अनुष्ठान और देवता थे। कई अवसरों पर लोगों ने देवताओं का प्रतिनिधित्व किया; उन्होंने उनकी तरह कपड़े पहने इनका मानना था की ब्रह्माण्ड मैं तेरह स्वर्ग और नौ पाताल है; उनके पास जल, मक्का, बारिश, सूर्य, युद्ध और कई अन्य देवता थे।
यकाटेकुहटली- व्यापारियों और यात्रियों के देवता थे।
क्विट्ज़ालकोट- प्रजनन क्षमता, ज्ञान, दिन और रात, के देवता थे।
सहवास- चार हाथों और तीन सिर के
साथ सांप- जीवन और मृत्यु का देवता थे
मेटज़ली-नाम का अर्थ है:
"चेहरे में नाग की देवी"।वह चंद्रमा की देवी हैं, मेक्लेन्टेकुहटली-मृत्यु की देवी के पति,
सिहुआकताल-जन्म की देवी
एज़्टेक ने विशाल, बड़े पैमाने पर सजाए गए मंदिरों का निर्माण
किया। उनका मानना था
कि मनुष्य में आत्मा का निवास स्थान हृदय हैं।
मानव बलि ---यह प्रकृति को संतुलित रखने पर आधारित था
भविष्यवाणियां
एज़्टेक धर्म का एक बड़ा हिस्सा थीं. एक व्यक्ति की मृत्यु के
बाद का जीवन इस बात पर आधारित था कि उसकी मृत्यु कैसे हुई।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुछ लोग पक्षियों या पशु योनी में पुनर्जन्म लेंगे और अंततः, मनुष्यों में
बलि
संस्कृत में बलि
शब्द का अर्थ सर्वथा मार देना नहीं इसका अर्थ दान है - पशुबलि की यह प्रथा कब और
कैसे प्रारंभ हुई,
कहना कठिन है।
ज्यादा तर इंसान
उस वक़्त मीट खाते थे इस लिए बलि की प्रथा
शुरू हुई परन्तु सब मौलिक धर्म इस सहमत थे की सारा खून बह जाने के बाद ही मीट
खाना चाहिए कुछ लोग तर्क देते हैं कि वैदिक काल में यज्ञ में पशुओं की बलि दी जाती
थी। हिन्दू धर्म में बलि प्रथा निषेध है और यह प्रथा हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं
है।ज्यादातर घर का मुखिया बलि देता था परन्तु फिर इस प्रथा पर पुजारी लोगो ने
कब्ज़ा कर लिया
ऋग, साम, यजुर और अथर्व वेद के संहिता (भजन और मंत्र) से जुड़ी वैदिक श्रुति ’हैं। वे
प्रत्येक वेद के भीतर संस्कृत ग्रंथों की एक वर्गीकरण हैं, जो अक्सर वैदिक अनुष्ठानों के प्रदर्शन पर
ब्राह्मणों को समझाते हैं और निर्देश देते हैं जिसमें संबंधित संहिता का पाठ किया
जाता है संहिता के प्रतीकवाद और अर्थ को समझाने के अलावा, ब्राह्मणम् साहित्य भी वैदिक काल के वैज्ञानिक
ज्ञान को उजागर करता है, जिसमें वेधशाला
खगोल विज्ञान भी शामिल है और विशेषकर वेदी निर्माण, ज्यामिति के संबंध में। प्रत्येक वेद के अपने एक
या अधिक ब्राह्मण होते हैं, और प्रत्येक ब्राह्मणम् आम तौर पर एक विशेष शाक्त या वैदिक पाठशाला से
जुड़ा होता है। वर्तमान में बीस से कम ब्राह्मणम् हैं, सबसे पुराने ब्राह्मणम्
को लगभग 900 ईसा पूर्व माना जाता है, जबकि सबसे युवा को लगभग 700 ईसा पूर्व माना जाता है
पर्शिया के
जोरास्टर चीन के कन्फ़्यूशियस भारत के जैन सब धर्मो ने नैतिक मूल्यों पर जोर दिया
सब भगवन को नहीं मानते भारत मैं तो ब्रह्मणो ने इस विद्रोह को तीन तरह से दबा दिया
-कुछ बातो को अपना लिया गया दूसरा उपनिषद
की शुरुआत हुई और तीसरा था आप योग करके भगवान् को सीधे भी पा सकते है
प्राचीन यूनान का
देवपरिवार बड़ा समृद्ध था। होमर के अनुसार यूनानी देव-परिवार का सर्वप्रथम देवता
ओसीआनस था, जो नदियों का देवता कहा
जाता था। इसकी सहचरी थीटिस थी, जिसकी मान्यता
प्रमुख मातृदेवी के रूप में थी। ओसीआनास और थीटिस ही यूनानी देवपरिवार के आदि पिता
और माता है।
ज्यूस, जो कालांतर में यूनानी देवमंडल का प्रधान बना, ओसीआनास और थीटिस का पुत्र था
ज्यूस से उत्पन्न आर्तेमिस् और अपोलो जुड़वाँ बहनभाई थे और दोनों ही आयुध के रूप में चाँदी का धनुष बाण धारण करते थे। देवराज ज़्यूस की पत्नी हीरा थीं। अपोलो संगीत, कविता, नृत्य आदि कलाओं के साथ ही साथ विज्ञान और दर्शन का भी संरक्षक, ऋतुओं का अधिष्ठाता तथा सूर्य का प्रतिरूप भी माना जाता था। यह हाथों में वीणा और धनुष धारण करता था।
अपोलो
अपोलो प्राचीन
ग्रीक धर्म और प्राचीन रोमन धर्म के सर्वोच्च देवताओं में से एक थे। उनके इटली में
कई ख़ूबसूरत मंदिर थे, जहाँ उनके नाम पर
पशुबलि चढ़ाई जाती थे। वो प्रकाश, कविता, नृत्य, संगीत, चिकित्सा, भविष्यवाणी और खेल के देवता थे। वो आदर्श
पुरुष-सौन्दर्य और यौवन का प्रतिनिधित्व करते थे। मूर्तियों में उनके अत्यधिक
ख़ूबसूरत (नग्न) युवा के समान दिखाया जाता था। उनके कई पुरुष-प्रेमी (यूनानी
मिथकों के अनुसार) भी थे। वो ख़ास तौर पर व्यायामशाला में युवाओं के इष्टदेव थे और
डेल्फ़ी की देववाणी उन्हीं को समर्पित थी।
ऐफ्रोडाइटि
हंसवाहिनी ऐफ्रोडाइटि प्रेम और सौंदर्य की देवी थी। जीव और वनस्पति
जगत् में जनन-उत्पादन-क्षमता की यह संरक्षिका थी। गर्भ की रक्षा तथा प्रजनन का
नियंत्रण यह अपने वाहन हेबी देवी के साथ करती थी। हेबी वसंत की स्वामिनी थी।
ऐफ्रोडाइटि का विवाह ज्यूस ने हेफेस्टस से कर दिया था किंतु ये उससे अनुरक्त न थीं
और युद्ध देवता एरीज़ से प्रेम करती थी। इसीसे इन्हें दो पुत्र फोवस (भय) और डेमोस
(आतंक) उत्पन्न हुए थे। पोसाइडान भी इनका प्रेमी था। इस देवी को गुलाब विशेष प्रिय
था।
किसी
भी धर्म के बारे लिखना बहुत मुश्किल कार्य है - हज़ारो सालो के इतिहास , को जानना ,उनकी
मर्यादा को समझने के लिए मेरे जैसे मूड बुध्दि के लिए असंभव है -इसमें डाली गयी
जानकारी हिस्ट्री ऑफ़ रिलिजन नामक किताब को
पड़ने के बाद लिखी गयी है - इसमें इंटरनेट से प्रपात जानकारी भी शामिल की गयी है
किसी भी ज्ञानी को इसमें लिखी कोई भी जानकारी त्रुटि पूर्ण लगे तो तुरंत संपर्क
करे ताकि उसे ठीक किया जा सके
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