ईसा
मसीह का जीवन परिचय:
ईसा
मसीह के जन्म को लेकर विभिन्न धार्मिक मान्यताएं देखने को मिलती है। मान्यता है कि ईसा मसीह का जन्म वर्तमान इजराइल देश की
राजधानी यूनिवर्सल प्राचीन शहर फिलिस्तीनी के पास बेथलहम नामक स्थान को ईसा मसीह
का जन्म स्थान माना जाता है, बाइबिल में भी ईसा मसीह के जन्म की कोई तारीख अंकित नहीं की गई है माना जाता है ईसा मसीह का जन्म संभवत 4BC यहूदा, रोमन साम्राज्य” मैं हुआ था अतः 25 दिसंबर का
दिन ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में पूरे विश्व भर में
मनाया जाता है।
ईसा
मसीह के पिता का नाम जोसफ और माता का नाम मरियम था। यीशु के पिता यूसुफ एक बढ़ई थे मान्यता अनुसार, यीशु का जन्म एक कुंवारी मां “मरियम” के घर ,किसी भी जैविक तत्व के बिना एक पवित्र
आत्मा के माध्यम से हुआ था।
यीशु की मां मरियम और जॉन की माँ एलिजाबेथ चचेरी बहनें थी, मरियम
की गर्भावस्था के दौरान ही रोम राज्य की जनगणना का समय आ गया। तब नियमों के चलते यूसुफ
भी अपनी पत्नी मरियम को लेकर नाम लिखवाने येरूशलम के बैतलहम नगर को चला गया। क्योंकि युसुफ वहीँ का मूल निवासी था. सराय में
जगह न मिलने के कारण उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली। वहीं पर अर्धरात्रि में यीशु का जन्म
हुआ, और
उस बालक को कपड़े में लपेटकर घास से बनी चरनी में लिटा दिया और उसका नाम यीशु रखा। यहूदियों के राजा महान रोमन हेरोदेस ने
बेथलेहेम के आस-पास के सभी नवजात लड़कों को मारने का आदेश दिया था, यीशु के जन्म होते ही उनके पिता
उन्हें छिपाकर मिश्र ले गये थे।
ईसाई
इतिहास की किताबों में 18 साल ईसा मसीह कहाँ रहे इसके बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं
मिलती सन 1887 में
एक रूसी शोधकर्ता "निकोलस अलेकसैंड्रोविच नोतोविच ने इस बात की खोज की थी
ज्ञान प्राप्त करने के लिए ईसा भारत चले गए थे. उनकी पुस्तक The Life of Saint Issa के अनुसार ईसा एक काफिले के साथ सिंध होते हुए कश्मीर गए , उन्होंने " हेमिस बौद्ध मठ में
रह कर बौद्ध धर्म का ज्ञान प्राप्त किया और संस्कृत और पाली भाषा भी सीखी . ईसा
उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर ,बनारस गए जब ईसा मसीह वैदिक धर्म का ज्ञान प्राप्त कर चुके थे तो ईसा
मसीह ने संस्कृत में अपना नाम " ईशा " रख लिया था
तीस
वर्ष की आयु में वह यरुशलम लौटे और वहाँ उन्हें यूहन्ना (जॉन)नामक महात्मा ने ज्ञान
दिया तब से वह सत्य ज्ञान के प्रचार में लग गये।
यीशु ग्रीक शब्द ‘इसुआ’ का अंग्रेजी
अनुवाद है, जिसका
अर्थ है “जीवन देने वाला”। इस नाम का उल्लेख 900 से अधिक बार बाइबल में किया गया
है
यीशु
चार भाषाएँ बोल सकते थे : हिब्रू, ग्रीक, लैटिन और एक अन्य। मैथ्यू और ल्यूक की खोज के अनुसार, यीशु शाकाहारी नहीं थे, वह मछली और भेड़ का बच्चे का भोजन
ग्रहण करते थे यीशु ने 40 दिनों तक उपवास रखा और 40 महीने तक ईश्वर का प्रचार
किया। यीशु
मसीह ने सबसे पहला उपदेश माउंट की पहाड़ी पर दिया था, ईसा मसीह ने अपने 12 मुख्य शिष्यों के सहयोग से अपने धर्म
का प्रचार किया. आज चलकर यह ईसा का धर्म अर्थात ईसाई कहलाया. विभिन्न स्रोतों के अनुसार, यीशु ने 37 चमत्कार दिखाए थे।
यहूदी
कट्टरपंथी यीशु को अपना दुश्मन मानते थे. वे इन्हें केवल पाखंडी समझते थे तथा उनके
द्वारा स्वयं को ईश्वर का दूत कहना विरोधियों को सबसे बुरा लगा. इन कट्टरपंथियों
ने मिलकर यीशु की शिकायत रोमन गवर्नर पिलातुस से की. उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाने
लगा. कोड़ों से चमड़ी उड़ेल देने वाली पिटाई की जाने लगी. उनके सिर पर तीखे काँटों का
ताज सजाया गया, लोगों
ने उन पर थूका भी.
क्रूस
पर चढ़ाए जाने से पहले, यीशु ने अपने 12 शिष्यों के साथ भोजन किया था और भविष्यवाणी की थी कि
उनके एक शिष्य ने उन्हें धोखा दिया है। यीशु की गिरफ्तारी के समय उनके तीन शिष्यों
ने उन्हें धोखा दिया था।
शुक्रवार
के दिन उन्हें सूली पर चढ़ाया गया था इसलिए इसे “गुड फ्रायडे” कहते है बाइबिल के
अनुसार ईसा को 6 घंटे तक ही क्रूस पर लटका कर रखा गया था , और वह जीवित बच गए थे और क्रूस पर चढ़ाने के तीन बाद ही वो जिंदा
हो उठे थे, और
उस खुशी में ईस्टर संडे मनाया जाता है। रविवार के दिन सिर्फ एक स्त्री (मेरी
मेग्दलीन) ने उन्हें उनकी कब्र के पास जीवित देखा और तब से उस रविवार को “ईस्टर”
के रूप में मनाया जाता है।ईसा मसीह की मृत्यु की पीड़ा के समय भी ईसा ने अपने
विरोधियों के बारे में ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा “प्रभु इन्हें शमा करना
क्योंकि ये नही जानते की ये क्या कर रहे है.”
ईसा की अंतिम भारत यात्रा---
(यह खबर टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में दिनांक 8 मई 2010 में प्रकाशित हुई थी).
ईसाई धर्म का इतिहास
ईसा की मृत्यु के बाद उनके शिष्य ईसाई धर्म का प्रचार करने लगे। सबसे सफल थे संत पौलुस; संत पौलुस ने एशिया माइनर, मासेदोनिया तथा यूनान में ईसाई धर्म का प्रचार किया। तीसरी शताब्दी के अंत तक ईसाई धर्म विशाल रोमन साम्राज्य के सभी नगरों में फैल गया था; इसी समय फारस तथा दक्षिण रूस में भी बहुत से लोग ईसाई बन गए। प्रारंभिक ईसाई साहित्य यूनानी भाषा में लिखा गया बाद मैं लैटिन भाषा सिरियक भाषा में साहित्य की रचना प्रारंभ हो गई 313 AD में CONSTANTINE ने राजा बनते सब धर्मो को सवतंत्रा दे दी ईसाई संसार में अशांति फैलने लगी से दूर करने के उद्देश्य से कोंस्तांतीन(CONSTANTINE) ने कॉथलिक चर्च की प्रथम विश्वसभा का आयोजन किया; प्रथम वास्तविक ईसाई सम्राट् थे ओदोसियस (Theodosius) ने ईसाई धर्म को राजधर्म के रूप में घोषित किया; पाँचवीं शताब्दी में और दो बार विश्वसभा बुलाई गई। पहले पहल 360 ई. में फ्रांस के दक्षिण में एक मठ स्थापित किया गया अगले कई सालो तक प्रचार के लिए कई मठ बन गए संत बेनेदिक्त (480-547) ने भी एक धर्मसंघ की स्थापना की 4th ,5th AD मैं पादरियों मैं वाक् युद्ध होते थे
रोम के राज मैं पादरी प्रथा को बढ़ावा मिला संत ग्रेगोरी 590 ई. में
रोम के बिशप (पोप) चुने गए संत ग्रेगोरी के
जीवनकाल में हजरत मुहम्मद का जन्म हुआ उस समय से लेकर 900 वर्ष तक ईसाई तथा
मुसलमान सेनाओं का संघर्ष चलता रहा। ईसाई धर्म का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह
है कि यूनानी भाषा तथा लैटिन भाषा बोलने वाले कॉथोलिकों का अलगाव उस युग में बढ़ने लगा। इस्लाम ने काथॉलिक चर्च को यूरोप तक सीमित कर दिया
यहूदी
धर्म का प्रभाव
यहूदी
धर्म विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से है यहूदियों के धार्मिक स्थल को मन्दिर व
प्रार्थना स्थल को सिनेगॉग कहते हैं यहूदी मान्यताओं के अनुसार ईश्वर एक है लेकिन
वो दूत से अपने संदेश भेजता है। सर्वशक्तिमान् ईश्वर को छोड़कर और कोई देवता नहीं
है अब्राहम(इब्राहिम) को ईश्वर का पैग़म्बर मानते है ईसाई और इस्लाम धर्म भी
इन्हीं मान्यताओं पर आधारित है 1096-99 में ईसाई फौज ने यरुशलम को
तबाह कर 1144
में दूसरा धर्मयुद्ध फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्दीन के बीच हुआ।
इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा। यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाए
रखने के लिए अपने देश को छोड़कर लगातार दरबदर रहना पड़ा इसके बाद 11वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई
यरुशलम सहित अन्य इलाकों पर कब्जे के लिए लड़ाई 200 साल तक चलती रही, द्वितीय विश्व युद्ध में यहूदियों को
अपनी खोई हुई भूमि इसराइल वापस मिली।
संघर्ष
का समय
11वीं तथा 12वीं शताब्दियों में चर्च ने बिशपों
की नियुक्ति तथा पोप के चुनाव में राजाओं के हस्तक्षेप का तीव्र विरोध किया राज
सत्ता ने हमेशा चर्च के कामो मैं हस्तक्षेप किया उनपे अधिकार करने की कोशिश की -
जिसके विरोध स्वरुप संघर्ष हुआ12वीं श्ताब्दी को पाश्चात्य चर्च का उत्थान काल
माना जा सकता है। पेरिस के पीटर लोंबार्ड की रचना से धर्मविज्ञान (Theology)
को नया उत्साह मिला 13वीं शताब्दी में फ्रांसिस्की
संघ तथा दोमिनिकी संघ दो धर्मसंघों की स्थापना हुई 13वीं शताब्दी के अंत में जर्मन
सम्राट् के अतिरिक्त फ्रांस के राजा भी चर्च के मामलों में अधिकाधिक हस्तक्षेप
करने लगे। यहाँ तक की पॉप की पदवी के लिए दो पॉप
चुने गए -जिससे आने वाले चालीस वर्ष तक
कैथोलिक संसार दो हिस्सों मैं बंट गया उस
समस्या का हल करने के प्रयास में 1409 ई. में एक तीसरे पोप का भी चुनाव हुआ किंतु
1417 ई. में सबों ने नवनिर्वाचित मारतीन पंचम को सच्चे पोप के रूप में स्वीकार
किया लूथर ने 1517 ई. में
काथलिक चर्च की बुराइयों के विरुद्ध आवiज उठाई कालविन
ने लूथर के सिद्धांतों का विकसित करते हुए एक दूसरे प्रोटेस्टैंट संप्रदाय का
प्रवर्तन किया हेनरी अष्टम ने भी ऐंग्लिकन चर्च प्रारंभ किया 16वीं
शताब्दी के महान पोपों के नेतृत्व में चर्च के शासन में अध्यात्म को फिर
प्राथमिकता मिल गई; बहुत से नए धर्मसंघों की स्थापना हुई जिसमें थिआटाइन तथा जेसुइट
प्रमुख हैं। henry martyn(1781-1812) ,William carey (1761-1834 ) ने भारतीय भाषों मैं बाइबिल का अनुवाद किया फ्रेंच क्रांति के फलस्वरूप चर्च
तथा सरकार का गहरा संबंध सर्वदा के लिये टूट गया। सब मैं एकता लाने के लिए प्रयास किये गए फलस्वरूप 1948 में world council of church की स्थापना हुई
ईसाई धर्म की मान्यता
ईसाई एकेश्वरवादी हैं और उन्होंने आकाश और पृथ्वी की रचना की। इस दिव्य
देवत्व में तीन भाग होते हैं: पिता (स्वयं भगवान), पुत्र (ईसा मसीह) और पवित्र आत्मा।--कुछ लोगो का मानना है की यह हिन्दू
धर्म के त्रिमूर्ति के सिद्धांत का ही रूप है
परमपिता इस सृष्टि के रचयिता हैं और इसके शासक भी।
पुनर्जन्म मैं विश्वास ---ईसाइयों का मानना है कि भगवान ने अपने बेटे
यीशु को, मसीहा
को दुनिया को बचाने के लिए भेजा।
ईसाई कहते हैं कि यीशु फिर से धरती पर लौट आएंगे, जिसे द्वितीय आगमन के रूप में जाना
जाता है।
बाइबिल के अनुसार
भगवान ने स्वर्ग और पृथ्वी और मानव जाति के पूर्वजों के रूप में आदम और हव्वा को
बनाया। आदम और हव्वा अपने निर्माता के प्रति अवज्ञाकारी थे और इस दुनिया में पाप
और बुराई लाए थे। सारी मानव जाति पाप की उत्तराधिकारी बन गई और भगवान की संतान
होने का सौभाग्य खो दिया। भगवान ने मानव जाति को बचाने के लिए अपने प्यारे इकलौते
पुत्र को भेजा था। इसलिए यीशु को मानव जाति का उद्धारकर्ता कहा जाता है। भगवान
बुराई को दंड देते हैं और अच्छे को पुरस्कार देते हैं। सबसे बड़ा अच्छा काम उन
लोगों को माफ करना है जो दूसरे व्यक्ति के खिलाफ पाप करते हैं।
रविवार को 'भगवान का दिन' माना जाता है और चर्चों में पूजा सेवा का आयोजन किया जाता
है। पूजा सेवा में धार्मिक शिक्षा, उपदेश, प्रार्थना शामिल
है।ईसाई धर्म के अनुसार किसी को भी जन्मजात ईसाई नहीं माना जाता है। एक को
बपतिस्मा नामक धार्मिक समारोह के माध्यम से विश्वास में प्रवेश करना होता है। यह
ईसाईयों के साथ-साथ अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए भी लागू होता है जो ईसाई बन
जाते हैं
ईसाई धर्म की शाखाए
ईसाइयों में मुख्ययतः तीन समुदाय हैं, कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और ऑर्थोडॉक्स तथा इनका धर्मग्रंथ
बाइबिल है। ईसाइयों के धार्मिक स्थल को चर्च कहते हैं। विश्व में सर्वाधिक लोग
ईसाई धर्म को मानते हैं।
कैथोलिक
कैथोलिक सम्प्रदाय में पोप को सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं। वेटिकन में इसका केंद्र है इसके मुख्य संस्कार हैं बपतिस्मा
ऑर्थोडॉक्स
ऑर्थोडॉक्स रोम के पोप को नहीं मानते, पर अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ के पैट्रिआर्क
को मानते हैं और परम्परावादी होते हैं।रूढ़िवादी ईसाई धर्म की अधिक उपस्थिति वाले
देश यूक्रेन, सर्बिया, बुल्गारिया, ग्रीस और रूस हैं.
प्रोटेस्टेंट
प्रोटेस्टेंट किसी पोप को नहीं मानते है और इसके बजाय पवित्र बाइबल
में पूरी श्रद्धा रखते हैं।मार्टिन लूथर ने जर्मनी में प्रोटेस्टैंट धर्म चलाया। वे केवल दो संस्कारों को स्वीकार करते
हैं: बपतिस्मा और यूचरिस्ट.
हेनरी अष्टम के राज्यकाल में इंग्लैंड का ईसाई चर्च रोम से
अलग होकर चर्च ऑव इंग्लैंड और बाद में एंग्लिकन चर्च कहलाने लगा एंग्लिकन के विश्वास का मूल बाइबिल में
पाया जाता है, ऐंग्लिकन धर्म में मुख्यतया तीन भिन्न विचारधाराएँ वर्तमान हैं:
काथलिक,
लिबरल
कैलविनिस्ट जॉन कैलविन (1509-1564 ई.) फ्रांस के निवासी थे। कैलविन के अनुयायी कैलविनिस्ट कहलाते हैं, वे विशेष रूप से स्विट्जरलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, स्कॉटलैंड, फ्रांस तथा अमेरिका में पाए जाते हैं,
सोसाइटी ऑफ़ फ्रेंड्स
जार्ज फॉक्स ने "सोसाइटी ऑव फ्रेंड्स" की स्थापना की थी, जो क्वेकर्स (Quakers) के नाम से विख्यात है। पूजा का कोई अनुष्ठान नहीं मानते और अपनी प्रार्थनासभाओं में मौन रहकर
पेंतकोस्तल 20वीं शताब्दी में प्रारंभ हुए हैं।
खास बातें
ईसाई धर्म पृथक-पृथक संस्कृतियों, जातियों, सिद्धान्तों, रीतियों, प्रथाओं, तथा धर्मशास्त्रों वाला धर्म है। एकरूपता विरली
ही होती है तथा ईसाई धर्म अपनी विविधता के लिए उत्कृष्ट है।
अधिकतर ईसाई सिद्धांतों तथा वैज्ञानिक तथ्यों पर विश्वास रखते हैं
तथा वैज्ञानिक संशोधन को मानते हैं।
सहायता करना, स्वयंसेवी होना, कठिन कार्यों में भाग लेना इसके अभिन्न अंग हैं
ईसाई धर्म के त्यौहार
क्रीसमस डे --
क्रिसमस शब्द की उत्पत्ति डच शब्द "Cristes
Maesse" से
हुई है, जिसका
मूल अर्थ "Mass Of Christ" है |भगवान इशू का जन्म इसी दिन हुआ था- दिसम्बर की 25तारीख़--हा जाता है कि फ्रांस के मायरा के रहने वाले
संत निकोलस ही सांता क्लोस है | सांता क्लोस के इस तरह तोहफें देने के पीछे एक कहानी बहुत प्रचलित है
| संत
निकोलस एक संपन्न परिवार से आते थे पर उनके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी | दूसरों की मदद करना उनके स्वाभाव में
था | वह
अक्सर जब किसी मदद करते तो रात के अंधेरें में करते थे, ताकि कोई यह जान ना सके कि उन्होंनें
यह वस्तु दी है | ऐसे ही एक बार एक ग़रीब की 3 बेटियाँ थी | वह ग़रीब उन तीनों की शादी करने मे असमर्थ था, इसलिए वह उन तीनों से मज़दूरी और देह
व्यापार कराने के लिए मजबूर हो रहा था | यह बात संत निकोलस को मालूम होते ही वह रात
उसके घर गये और वहाँ सुख रहे जुराबों में सोने के सिक्के डाल आए | तब से लोग क्रिसमस के दिन, अक्सर बच्चों से अपने मोजे बाहर रखकर
सोने के लिए कहते है | वैसे संत निकोलस और भगवान यीशू का कोई संबंध नही है, क्योंकि यीशू की मृत्यु के 280 साल बाद संत निकोलस का जन्म हुआ था, लेकिन पूरे ईसाई धर्म में माँ मरियम और
भगवान यीशू के बाद सबसे अधिक संत निकोलस ही पूजे गये है सांता
क्लॉस की लोकप्रिय छवि को जर्मन मूल के अमेरिकी कार्टूनिस्ट थॉमस नस्ट (1840-1902)
के द्वारा बनाया गया,
क्रिसमस के त्योहार पर क्रिसमस ट्री सजाया जाता है, उसका श्रेय "मार्टिन लूथर" को जाता है |कहते है कि क्रिसमस की एक शाम पूर्व, वह तारों को देख रहे थे वृक्षों की आड़ से चमकता तारा बहुत सुंदर लग रहा था | इस दृश्य ने उन्हें भगवान यीशू के जन्म की याद दिला दी तब से ही क्रिसमस ट्री रखने की परंपरा की शुरुआत हुई |
गुड फ्राइडे -
यह अप्रैल माह के तीसरे शुक्रवार को
होता है। गुड फ्राइडे को होली फ्राइडे, ब्लैक फ्राइडे और ग्रेट फ्राइडे भी कहते हैं। इस दिन गिरजाघरों में घंटियां नहीं बजाई जातीं। क्रिश्चन
समुदाय का मानना है कि भगवान यीशु मसीह ने अपनी जान लोगों की भलाई के लिए दे दी
थी। इसलिए इस दिन को गुड फ्राइडे कहा जाता है।
ईस्टर -
मौत के तीन दिन के बाद ईसा जीवित हो गए थे। उनके दोबारा जीवित होने
की इस घटना को ईसाई धर्म के लोग ईस्टर दिवस या ईस्टर रविवार मानते हैं। 'ईस्टर' शब्द जर्मन के 'ईओस्टर' शब्द से लिया गया, जिसका अर्थ है 'देवी'। ईसाई धर्म में अंडे पुनरुत्थान का
प्रतीक हैं. इस दिन अंडों को सजाया जाता है। और एक दूसरे को
गिफ्ट दिया जाता है
ईस्टर के 4० दिन बाद ईसा मसीह के स्वेच्छा से पुन स्वर्ग लोट जाने के उपलक्ष्य
में ईसाई समाज द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।
संत फ्रांसिस जेवियर उत्सव
पेंटेकोस्ट रविवार –
प्रभु यीशु की मृत्यु के चालीस दिन बाद पवित्र
आत्माओं के आगमन को पेंटकोस्ट के नाम से जाना जाता है।
आगमन – ADVENT
मध्य नवम्बर/दिसम्बर में क्रिसमस के लिए तैयार करने की अवधि शुरू
होती है। इस समय को ईसाई धर्म “प्रभु यीशु के आगमन की तैयारी” का समय मानता है।
LENT – ईस्टर के चालीस दिन पहले
उपवास किया जाता है।
भारत मैं मिशनरी
किंवदंतियों के मुताबिक, ईसा के बारह प्रमुख शिष्यों में से एक सेंट
थॉमस ईस्वी सन 52 में भारत पहुंचे थे। सन् 1542 में सेंट फ्रांसिस जेवियर के आगमन
के साथ भारत में रोमन कैथोलिक धर्म की स्थापना हुई 16वीं सदी में भारत के कुछ
इसाईयों ने पोप की सत्ता को अस्वीकृत करके 'जेकोबाइट' चर्च की स्थापना की। केरल में कैथोलिक चर्च से
संबंधित तीन शाखाए दिखाई देती हैं। सीरियन
मलाबारी, सीरियन
मालाकारी और लैटिन- रोमन कैथोलिक चर्च की लैटिन शाखा के भी दो वर्ग दिखाई पड़ते
हैं-भारत में प्रोटेस्टेंट धर्म का आगमन 1706 में हुआ भारत में जब अंग्रेजों का
शासन प्रारंभ हुआ तब कॉन्वेंट स्कूल और चर्च के माध्यम से ईसाई संस्कृति और ईसाई
धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ।
विरोध
कुछ लोग उन पर सेवा की आड़ में भोलेभाले लोगों को ईसाई बनाने का आरोप
लगाते रहे हैं। महान चिंतक एवं समाज सुधारक स्वामी दयानंद का एक ईसाई पादरी से
शास्त्रार्थ हो रहा था। स्वामी जी ने पादरी से कहा कि हिन्दुओं का धर्मांतरण करने
के तीन तरीके है। पहला जोर जबरदस्ती से दूसरा बाढ़, भूकम्प, प्लेग आदि प्राकृतिक आपदा में लोभ-प्रलोभन के
चलते और तीसरा बाइबिल की शिक्षाओं के जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके। मेरे विचार
से इन तीनों में सबसे उचित अंतिम तरीका मानता हूँ।
समाज सुधारक एवं देशभक्त लाला लाजपत राय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का
पुरजोर विरोध किया गया
विचारने योग्य तर्क
ईसाई समाज में चर्च द्वारा घोषित किसी भी संत की प्रार्थना करने से बिमारियों का ठीक होने की मान्यता पर अत्यधिक बल दिया जाता है ।प्रार्थना से चंगाई में विश्वास रखने वाली मदर टेरेसा खुद विदेश जाकर तीन बार आँखों एवं दिल की शल्य चिकित्सा करवा चुकी थी
दिवंगत पोप जॉन पॉल स्वयं पार्किन्सन रोग से पीड़ित थे और
चलने फिरने से भी असमर्थ थे। यहाँ तक कि उन्होंने अपना पद अपनी बीमारी के चलते
छोड़ा था
ईसाई मत की दूसरी सबसे प्रसिद्ध मान्यता है पापों का क्षमा होना
व्यवहारिक रूप से आप देखेगे कि संसार में सभी ईसाई देशों में किसी भी अपराध के लिए
दंड व्यवस्था का प्रावधान हैं।
ईसाई धर्म की धार्मिक पुस्तक--
ईसाई धर्म का धर्मग्रंथ बाइबिल है इसके 2 भाग
हैं old testament ,new testament
old testament- इसमें
प्राचीन यहूदी धर्म और यहूदी लोगों की गाथाएँ, पौराणिक कहानियाँ, मिथक आदि
का वर्णन है
new testament- ईसा
मसीह के 4 शिष्यों ने लिखा था बाइबिल कुल मिलाकर 72 ग्रंथों का संकलन है 45 old
testament से 27 new
testament से मूल रूप से ग्रीक भाषा में लिखा गया है
Baptism"
ईसाईयत में, बपतिस्मा जल के प्रयोग के साथ किया जाने वाला एक धार्मिक कृत्य है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को चर्च की
सदस्यता प्रदान की जाती है क्वेकर (Quakers) तथा मुक्ति सेना (Salvation
Army), बपतिस्मा
को आवश्यक नहीं मानते यहूदी शुद्धिकरण संस्कार बपतिस्मा दोनों आपस में जुड़े हुए हैं
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