Sunday 11 June 2017

देव भूमि हिमाचल के शक्ति पीठ मंदिर



काँगड़ा देवी

हिमाचल मे शक्ति पूजा परम्परा सदियों से विराजमान है -शक्ति को समर्पित मंदिरो मैं एक प्रसीद मंदिर है -धौलाधार पर्वत श्रखला की कांगड़ा घाटी की गोद मे स्तिथ , काँगड़ा नगर का- माँ ब्रजेश्वरी मंदिर - - यह एक शक्ति पीठ है - मंदिर मुख्य रूप से बज्रेश्वरी देवी को समर्पित है जो वज्रगोगिनी, कांगड़ा देवी , बज्रेश्वरी देवी , नगर कोट वाली माता   के नाम से भी प्रसिद्ध हैं

ये मंदिर कांगड़ा जिले, हिमाचल प्रदेश में स्थित है।पांडव काल में  कांगड़ा का पुराना नाम नगर कोट था।  और इसलिए इस मंदिर को नगर कोट धाम भी कहा जाता है। कांगड़ा देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक है पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की बायं वृ़क्ष स्थल इस स्थान पर गिरा था।यह मंदिर कई बार लुटा व टूटाता रहा और बार बार इसका पुनः निर्माण होता रहा।वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण 1920 में किया गया था।

मंदिर एक ऊँचे टीले पर स्तिथ है -जहां तक पहुँचने के लिए इस नगर के बाजार से गुजरना पड़ता है -जहां पर पूजा अर्चना की समाग्री ,प्रशाद ,खानपान की  कई दुकाने है 
भव्य प्रवेश द्वार के सामने माँ की सवारी सिंह की पत्थर को काट कर बनाई गयी दो मुर्तिया विराजमान की गयी है


मुख्य प्रवेश द्वार के अन्दर कला का बेहतरीन उदहारण प्रस्तुत करती पीतल के बने 4 शेरों की मूर्तियां स्थापित है 







मंदिर के गर्भ गृह मे उकेरी गयी तस्वीरें हिमाचल की उत्कृष्ट कला का 

उदाहरण है बाहर जाने के लिए एक अन्य द्वार है जिसके पास एक जल कुंड 

है -जहां से माँ का चरण अमृत लिया जाता है 



यह मंदिर 1905 के भूकंप के बाद टूट गया था - मंदिर के नीचे का हिस्सा प्राचीन है ऊपर का हिस्सा आधुनिक है नए मंदिर का डिज़ाइन भी बिलकुल अलग है - कुछ लोगो का विचार है - इसके तीन गुम्बज - एक शिखर शैली मे हिन्दू धर्म ,दूसरा  गोल गुम्बज मुस्लिम धर्म एवं तीसरा सिख धर्म का प्रतीक  है – 



इस मंदिर की कई रहस्य मय बातें हमें पता चली - यहाँ एक नहीं -गर्भ गृह मे 

तीन पिंडियां स्थापित है - प्रथम माँ ब्रजेश्वरी देवी -दूसरी माँ भद्र काली 

-तीसरी 

माँ एकादशी -- पुरे भारत मे माँ एकदशी को समर्पित एक मात्र पिंडी यही है 


एकादशी के दिन सनातन धर्म मे चावल खाना वर्जित है -परन्तु यहाँ माँ एकादशी खुद मजूद है तो उन्हें एकादशी को चावल का भोग लगाया जाता है-




इस मंदिर मे दिन मे पांच आरती होती है - जिसमे एक गुप्त आरती भी होती है - --मंदिर मे मुंडन करवाने की परम्परा है उस वक़्त लोग यहाँ अपने बच्चो के मुंडन करवाते है- 


दूसरी अद्भुत पिंडी है भगवान् भैरव --लाल रंग से शुशोभित 5000 पुराणी 

इस प्रतिमा के बारे मे हमें पंडित जी द्वारा बताया गया कि जब भी काँगड़ा पर 

कोई संकट आता है तो भवन की इस प्रतिमा की आँखों मे आंसू आ जाते है 

-तब मंदिर के पुजारी स्पेसेल हवन का आयोजन कर माता से रक्षा करने की 

प्रार्थना करते है - 

यहाँ की एक और अध्भुत  प्रथा का भी चलन है - मंदिर से जुड़ी एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि, युद्ध में महिषासुर को मारने के बाद मां दुर्गा को कुछ चोटें आईं और अपनी चोटों को ठीक करने के लिए, देवी ने नागरकोट में रुककर उसके शरीर पर मक्खन लगाया।  मकर सक्रांति को यहाँ  माँ की पिंडी पर कई किलो माखन चढ़ाया जाता है -एक सप्ताह बाद उस प्रतिमा से उतार प्रशाद  के रूप मे बांटा जाता है –



यहाँ धयानु भगत की मूर्ति भी सातपित की गयी है - इस लिए उनके भगत 

पीले वस्त्र धारण कर यहाँ दर्शन करने आते है

इस यह एक पौराणिक मंदिर है जिसे मूल रूप से पांडवों द्वारा बनाया गया था


हाँ हजारों साल पुराने  वट वृक्ष पर बांधी गई चुनरियाँ माँ द्वारा भगतों की इच्छा पूरी होने की कहानी बताती है




ज्वालामुखी माता

 कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वालामुखी देवी का अनोखा मंदिर है क्योंकि यहाँ पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है इस मंदिर की गिनती माता के प्रमुख शक्तिपीठों में होती है। मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। 

ये मंदिर हिमाचल के काँगड़ा जिला मैं है यहाँ 9 जगह से ज्वाला निकलती है जो माँ के 9 रूपों का प्रतीक मानी जाती है ये एक शक्ति पीठ है यहाँ माँ पारवती के जीब गिरी थी मान्यता है की माँ का भवन पांडवो ने बनवाया था राजा अकबर ने आग की लॉट को बुझाने की कोशिश की थी परन्तु कामयाब नहीं हुआ


अकबर ने देवी को सोने का छत्र चढ़ाया। कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया छत्र किसी अन्य धातु में बदल गया था। वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है।

 यहाँ की गोरख टीभि मैं पानी उबलता लगता है परन्तु छूने से ठंडा मिलता है  

गोरख  टिब्ब्बी

 मंदिर से थोडा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। कहते है कि यहां गुरु गोरखनाथ आए थे यहां पानी का कुंड है जो देखने पर उबलता हुआ लगता है पर वास्तव में पानी ठंडा है।


रास्ता टेड़ा मंदिर

 ऊपर टेड़ा मंदिर है जो भूकंप मैं टेड़ा हो गया था ये मंदिर 4 कोने वाला मंदिर है ऊप्पर गोल गुम्बज है

टेड़ा मंदिर

पांडव गुफा  




यहाँ जल रही 9 जोत महाकाली ,महालष्मी  , सरस्वती , अन्नपुर्णा , चंडी ,विंध्यवासिनी ,हिंगला , भवानी , अम्बिका , अंजना देवी के सवरूप है


ज्योति दर्शन




मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाएं हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍ज्वलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाई थी। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूप में विराजमान है।














माँ छिन्मस्तिका

51 शक्ति पीठो मैं से एक ये मंदिर हिमाचल केबिलासपुर  जिला मैं है पठानकोट से 70 किलोमीटर  होशीआरपुर से 40 किलोमीटर दूरी पे है ये7th शक्ति पीठ माना जाता है यहाँ माँ का माथा गिरा था मारकंडे पुराण के अनुसार जब माँ ने राक्षसो का वध किया था तो उनका सर काट कर उनका खून पिया था परन्तु माँ की दो योगिनी जया एवं विजय और खून पीना चाहती थी तो माँ ने अपना सर काट कर उनकी प्यास भुझाई थी इस लिए इस मंदिर को आशा पुरनी  एवं चिंतपूर्णी भी कहते है यहाँ शादी का रिकॉर्ड भी रखा जाता था



















नैना देवी  51 शक्ति पीठो मैं से एक ये मंदिर हिमाचल के  बिलासपुर   जिला मैं है  चंडीगढ़  से  100 किलोमीटर दूरी पे है ये शक्ति पीठ माना जाता है यहाँ माँ सती की आंखे  गिरी  थी  कथा अनुसार नैना  नाम के चरवाहे ने सपना देखा की एक पत्थऱ पे जा कर गाए दूध दे रही है उसने ये बात राजा बीर चाँद को बतलाई राजा ने देखा की ये बात सत्य है तो उसने मंदिर का निर्माण किया इस महिषा पीठ भी कहते है १७५६ मैं गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी यहाँ यग किया था 


तंत्र मंत्र से मारे अपने  दुश्मन को -बगलामुखी माता  हिमाचल



















शक्ति की पूजा शाक्य परम्परा अनुसार आधी काल से ही की जाती है परन्तु इस परम्परा महाविद्या का विचार शक्तिवाद के इतिहास मैं  अद्भुत रहा इसके अनुसार नारी सर्व शक्ति मान है इसमें 10  देवियो की पूजा की जाती है काँगड़ा से 30 K.M  दूर नवखण्डी नमक स्थान पे तंत्र मंत्र की देवी बगलामुखी की पूजा की जाती है लोक मान्यता अनुसार यहाँ पर कुछ सिद्धि , हवन , करके आप अपने दुश्मन को मार भी सकते है वो भी हज़ारों मील दूर रह कर भी मंदिर पीले रंग का है हवन मंत्रो के उच्चारण से वातावरण थोड़ा रहस्य मय सा है पीले धागे भगतो को बाँधे जाते है प्रशाद भी पीला ही चढ़ाया जाता है 



हवन कुंड स्थान 











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