एलोरा युनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर है।यहां 34 "गुफ़ाएं" हैं ये गुफाएँ 350 से 700 A.D के दौरान अस्तित्व में आईं। इसमें हिन्दू, बौद्धऔर जैन गुफ़ा मन्दिर बने हैं। ये 5th और 10th
शताब्दी में बने थे। यहां 12 बौद्ध गुफ़ाएं (1-12 no ) (महायान संप्रदाय
पर आधारित) , 17 हिन्दू गुफ़ाएं (13-29 no ) और 5 जैन गुफ़ाएं (30-
34 no ) हैं। एलोरा की गुफाओ को वेरुल के लेनी के नाम से भी जाना जाता है
शताब्दी में बने थे। यहां 12 बौद्ध गुफ़ाएं (1-12 no ) (महायान संप्रदाय
पर आधारित) , 17 हिन्दू गुफ़ाएं (13-29 no ) और 5 जैन गुफ़ाएं (30-
34 no ) हैं। एलोरा की गुफाओ को वेरुल के लेनी के नाम से भी जाना जाता है
।Cave nos. 10 (Visvakarma Cave), 16 (Kailasa), 21
(Ramesvara) and 32 & 34 (Jaina group of caves) सबसे शानदार है
एलोरा का बहु-मंजिल कैलासगुहा मन्दिर (गुफा 16), सर्वाधिक
उत्कृष्ट है जिसका निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम(757- 83
A.D.) ने कराया था।जो दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से
बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति है। कैलासगुहा मन्दिर रथ के आकार का है
उत्कृष्ट है जिसका निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम(757- 83
A.D.) ने कराया था।जो दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से
बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति है। कैलासगुहा मन्दिर रथ के आकार का है
गुफ़ा न.10, निर्माण के देवता विश्वकर्मा भगवान जी को समर्पित है
इसलिए इस गुफ़ा को विश्वकर्मा गुफ़ा कहते हैं। गुफ़ा के अंदर भगवान
बुद्ध की 15 फ़ीट की मूर्ति उपदेश देने की मुद्रा में विराजमान है।
गुफा 30 - कैलाशा नाम से प्रसिद्ध यह गुफा थोड़ी अधूरी रह गई थी।
इसमें भगवान महावीर का एक चित्र सिंहासन पर बैठे हुए बना है।
गुफा 32 - इंद्र सभा के नाम से विख्यात यह गुफा जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर को समर्पित है। दो मंजिला बनी इस गुफा में एक मंदिर है जिसे मनस्तम्भ कहा जाता है और बगल में बायीं ओर एक हाथी भी बना हुआ है।
गुफा 33 - इस गुफा को जगन्नाथ सभा के रूप में जाना जाता है, इसमें चित्रों और मूर्तियों के अलावा कुछ खास नहीं है।
दाई मूर्ति के बिलकुल सामने खड़े हो कर आप मॉडर्न microphone system से आवाज फैलने का मज़ा ले सकते है
गुफा 32 मैं बना एक पेंटिंग
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