Monday 10 July 2017

ओरछा

ओरछा

16th A.D  मैं राजपूत बुंदेला राजा रूद्र प्रताप सिंह ने इस शहर को बेतवा 

नदी के किनारे  बसाया था यह झाँसी से 15 K.M  दूर है







आवश्यक सूचना -क़िले के अन्दर जाते ही आप को जो एंट्रेंस टिकट मिले गी -वो ओरछा के हर मोन्यूमेंट को देखने के लिए है -कृपा उसे संभाल कर रखे -छतरियां देखने के लिए भी यही टिकट वैलिड है -परन्तु इसका कोई सुचना पट  नहीं लगाया गया




राय प्रवीण महल

यह महल राजा इन्द्रमणि की खूबसूरत गणिका कवयित्री और संगीतकारा प्रवीणराय की याद में बनवाया गया था। मुगल सम्राट अकबर को जब उनकी सुंदरता के बार पता चला तो उन्हें दिल्ली लाने का आदेश दिया गया। इन्द्रमणि के प्रति प्रवीन के सच्चे प्रेम को देखकर अकबर ने उन्हें वापस ओरछा भेज दिया।










महल के अन्दर छत पर बने भीति चित्र






महल का एक हिस्सा जिसे होटल बना दिया गया है




जहाँगीर महल का पिछला हिस्सा -

 आप शहर की तरफ से अन्दर जायेगे तो आप जहाँगीर महल के पिछले हिस्से मैं पहुंचे गे -प्रवीण महल के बिलकुल सामने ही है जहाँगीर महल परन्तु इसका मुख्या दरवाजा दूसरी तरफ है


रियासतके वज़ीर की कोठी



रानी के महल से ओरछा मंदिर की झलक





जहाँगीजहांगीर महल

जहाँगीर अपने शासन काल मैं एक दिन के लिए ओरछा आये थे तीन मंजिला यह महल जहांगीर के स्वागत में राजा बीरसिंह देव ने बनवाया था।र महल 



बुन्देलों और मुगल शासक जहांगीर की दोस्ती की यह निशानी ओरछा का मुख्य आकर्षण है। महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं। वास्तुकारी की दृष्टि से यह अपने जमाने का उत्कृष्ट उदाहरण है


 अस्तबल




होटल शीश महल--जहांगीर महल के पास है







चतर्भुज मंदिर-

चतुरभुज  का  संस्कृत  मैं  अर्थ  है 4 भुजा  वाला  यह  मंदिर  9th ad का  है एवं  भगवन  विष्णु  को  समर्पित  है मदिर के पास ही राम राजा मंदिर है यह पुरे भारत का एक मात्रा मंदिर है जहाँ राम की पूजा राजा के रूप मैं होती है यह मंदिर 344  फ़ीट ऊँचा है 67 सीडी चढ़ कर आप मंदिर तक पहुँच सकते है    


राम राजा मंदिर 

ओरछा नरेश मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे लेकिन रानी गणेशकुंवरि राम भक्त थीं। राजा ने रानी को वृन्दावन चलने को कहा रानी ने वृंदावन जाने से मना कर दिया। क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ।  रानी इस मूर्ति को (1554-92) के दौरान रानी गनेश कुवर अयोध्या से लाई - राजा मधुकरशाह ने करोडों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। मूर्ति वहां  से हिली नहीं प्रभु का चमत्कार मान मूर्ति को वही स्थापित कर दिया गया



महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। यह पूरी दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पडा है।

मंदिर के पास एक बगान में स्थित दो मीनार (सावन भादों ) लोगों के आकर्षण का केन्द्र हैं। इनके नीचे बनी सुरंगों को शाही परिवार अपने आने-जाने के रास्ते के तौर पर इस्तेमाल करता था।


कुलदेवता का मंदिर





छतरियाँ

छतरियों का अर्थ है शाही समाधियाँ ये स्मारक 17वीं और 18वीं शताब्दी के हैं। बेतवा नदी के घाट पर ऐसे 14 स्मारक हैं

















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