गोपांचल
पहाड़ी के पास स्तिथ होने के कारण कभी गोपगिरि
के नाम से प्रसिद ग्वालियर पे 3 A,D मैं कुषाण वंश का राज रहा है यह शहर गुर्जर प्रतिहार,
तोमर तथा कछवाहा राजवंशो की राजधानी रहा है
700 A.D मैं शाशको ने सास बहु मंदिर
बनवाया तो 13 A,D मैं जैन मंदिर का निर्माण
हुआ 1730 से सिंधिया
परिवार का शासन
है ग्वालियर के क़िले मैं दुनिया की पहली लिखित
जीरो है
किले का निर्माण 8वीं
शताब्दी में हुआ था इस
किले का मान मंदिर पैलेस शुरुआती तोमर
शासन में बनवाया गया था और दूसरा भाग - गुर्जरी महल- राजा मान सिंह तोमर ने 15वीं शताब्दी में अपनी प्रिय रानी, मृगनयनी के लिए बनाया गया था।
सूरज सिंह क़िला
ग्वालियर
का क़िला भारत के सबसे खूबसूरत किलो मैं से एक है इसका निर्माण सूरज सेन 726 A.D मैं ने
करवाया था एक उँचे पठार पर लाल बलुए पत्थर से बने इस किले तक पहुंचने के लिये
एक बेहद ऊंची चढाई वाली पतली सडक़ से होकर जाना होता है। इस सडक़ के आसपास की बडी-बडी
चट्टानों पर जैन तीर्थकंरों की विशाल मूर्तियां
हैं। किले की तीन सौ फीट उंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है।क़िले में प्रवेश के दो रास्ते हैं। पूर्वी दिशा में
'ग्वालियर गेट' है, जहां पैदल जाना पड़ता है। जबकि पश्चिमी दिशा में 'उर्वई द्वार'
है, क़िले मैं जहांगीर महल , शाहजहाँ महल
,करन मंदिर , विक्रम मंदिर ,भीम सिंह राणा की छतरी , जौहर कुण्ड, मनमंदिर
महल, एक सुन्दर गुरूद्वारा है जो सिखों के छठे गुरू गुरू हरगोबिन्द जी
की स्मृति में निर्मित हुआ. है मनमंदिर महल । मनमंदिर महल उत्तर-पश्चिम में स्थित है, इसे 15वि शताब्दी में
राजा मानसिंह द्वारा बनाया गया था और इसका जीर्णोद्धार 1648 में किया गाया। इसमें दो दरवाज़े हैं
एक उत्तर-पूर्व में और दूसरा दक्षिण-पश्चिम में। मुख्य द्वार का नाम हाथी पुल है एवं
दुसरे द्वार का नाम बदालगढ़ द्वार है
यहां जालीदार
दीवारों से बना संगीत कक्ष तहखानों में एक कैदखाना, है
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जौहर कुण्ड |
1232 में - इल्तुतमिश के आक्रमण के दौरान जब ग्वालियर के राजा परास्त हुए तब बहुत बड़ी
संख्या में महिलाओं ने जौहर कुंड में अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी। यह मान
मंदिर महल के अंदर स्थित है।
भीम
सिंह राणा की छतरी
भीम सिंह राणा के उत्तराधिकारी छत्र सिंह ने इस
छत्री को गुबंद के आकर में गोहद राज्य के शासक भीम सिंह राणा (1707-1756) के स्मारक के रूप में बनाया गया था।
संग्रहालय
किले में भीतर स्थित गुजारी महल को अब पुरातात्विक
संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। जिसमें इतिहास से सम्बंधित दुर्लभ मूर्तियां
रखी गई हैं,
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80 खम्बो की बावरी
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गुरूद्वारा
एक सुन्दर गुरूद्वारा है जो सिखों के छठे गुरू गुरू हरगोबिन्द जी की स्मृति
में निर्मित हुआ.
गोपाचल पर्वत यहाँ
पर विशाल दि. जैन मूर्तियाँ सं. 1398 से सं. 1536 के मध्य पर्वत को तराशकर बनाई गई
हैं। इन मूर्तियों का निर्माण तोमरवंशी राजा
वीरमदेव, डूँगरसिंह व कीर्तिसिंह के काल में हुआ।
गोपाचल पर्वत पर
लगभग 1500 मूर्तियाँ हैं इनमे 6 इंच
से लेकर 57 फीट की ऊँचाई तक के आकर की मूर्ति है।
गुजरी महल म्यूजियम
जयविलास महल
राजपरिवार का वर्तमान निवास स्थल ही
नहीं एक भव्य संग्रहालय भी है। इस महल के 35 कमरों को संग्रहालय बना दिया गया है।
ड्राइंग रूम
12.5
मीटर ऊँचाई पर स्थित, 3.5 टन के झूमर ---कहते हैं इन्हें तब
टांगा गया जब दस हाथियों को छत पर चढा कर छत की मजबूती मापी गई। प्रत्येक
250 प्रकाश बल्बों से सुसज्जित है
रानी लक्ष्मीबाई स्मारक
रानी लक्ष्मीबाई की आठ मीटर ऊंची मूर्ति
सरोद
घर
अमजद
अली खान सरोद घर मैं बहुत से सरोद रखे हुए है परन्तु स्टाफ का व्यव्हार अच्छा नहीं
है शहर की तंग गलियों मैं बने इस प्राइवेट
घर को म्यूजियम मैं बदल दिया गया है
परन्तु शहर के लोग इस म्यूजियम के बारे मैं रास्ता भी नहीं बता पाते
सहस्त्रबाहु या सासबहू: ग्वालियर दुर्ग पर इस मंदिर के बारे में मान्यता है की यह सहत्रबाहु अर्थात हजार भुजाओं वाले भगवन विष्णु को समर्पित है। बाद में धीरे-२ सासबहू का मंदिर कहा जाने लगा।
सास-बहू मंदिर कच्छपघाट वंश द्वारा 1092-93 में बनाया गया था।
सूर्य मन्दिर
विवस्वान सूर्य
मन्दिर बिरला द्वारा निर्मित करवाया मन्दिर है
इसका निर्माण 1988
में जी. डी. बिरला ने किया था।
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तानसेन स्मारक |
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मुहम्मद गोन्स की समाधी |
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तानसेन की समाधी |
तेली
का मंदिर: प्रतिहार सम्राट मिहिर
भोज ने -तेली का मंदिर का निर्माण करवाया था।7 वी शताब्दी में प्रतिहार राजा
के सेनापति तेल्प ने दुर्ग पर दक्षिण और उत्तर भारतीय शैली का मंदिर बनवाया था, जिसे
तेल्प का मंदिर कहा जाता था। आज इसे तेली का मंदिर कहा जाता है।
इसमें उत्तर में
82 फीट ऊँचाई की मीनार है यह मंदिर पहले भगवन बिष्णु का मंदिर था
मुस्लिम आक्रमण के समय इसे नष्ट कर दिया गया था। बाद में इसे शिव मंदिर के रूप में
फिर से बनाया गया।
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