Friday 21 July 2017

ज्योतिर्लिंग

 सोमनाथ
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। शिवपुराण के अनुसार जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है। हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।




 मल्लिकार्जुन
 आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैलम के मल्लिकार्जन स्वामी  ज्योतिर्लिंग में दूसरे स्थान पर , श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है।। स्कंद पुराण में  इस मंदिर का वर्णन आता है।  कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने  से  पापों से मुक्ति मिलती है  मंदिर का गर्भगृह बहुत बड़ा नहीं है
14वीं सदी में प्रलयवम रेड्डी ने पातालगंगा से श्रीशैलम के लिए सीढ़ीदार मार्ग बनवाया । विजयनगर के हरिहर राय ने मंदिर का मुख्यमंडपम का निर्माण कराया साथ ही उन्होंने दक्षिण गोपुरम का निर्माण कराया। 15वीं सदी में कृष्णदेव राय ने राजगोपुरम का निर्माण कराया। इस मंदिर का उत्तरी गोपुरम 1667 में छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था। साक्षी गणपति का मंदिर श्रीशैलम मुख्य मंदिर से दो किलोमीटर पहले शहर के प्रवेश द्वार पर ही है। 



ओंकारेश्वर
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है।12 ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर आता है ओंकारेश्वर में नर्मदा और कुबेर नदियों के बीच एक विशाल टापू बन गया। इसी टापू पर बना है इस टापू का मान्धाता पर्वत, ओंकार पर्वत या शिवपुरी भी कहते हैं  टापू के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ओंकार पर्वत का परिक्रमा मार्ग लगभग 8 किलोमीटर का है। पैदल परिक्रमा में लगभग 4 घंटे लगते हैं। इस परिक्रमा मार्ग पर नागर घाट ,लगभग 108 मंदिर हैं। कई लोग नदी में नाव आरक्षित करके भी परिक्रमा करते हैं
नागर घाट के ऊपर भगवान विष्णु का विशाल प्रतिमा है। यहां स्थित अन्नपूर्णा न्यास मंदिर में अखंड ओम नमः शिवाय का जाप चलता रहता है
 ओंकारेश्वर मंदिर जाने के लिए एक झूले का पुल है तो दूसरा स्थायी पुल। एनएचडीसी के सौजन्य से यहां नर्मदा पर झूले का पुल साल 2004 में बनाया गया है। 
ओंकारेश्वर का मंदिर सफेद रंग का पांच मंजिला मंदिर है। मंदिर में मौजूद शिवलिंग प्राकृतिक है। ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के इस पार ममलेश्वर मंदिर है। दोनों मंदिरों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग के तौर पर की गई है। ओंकारेश्वर में शिव प्रणव रूप में विराजते हैं तो दूसरे मंदिर में पार्थिव शिव लिंग है जो अमरेश्वर के रूप में है।
सिक्खों के प्रथम गुरू गुरूनानक देव जी ने भी ओंकार पर्वत की परिक्रमा की थी। उनकी स्मृति में शिवपुरी में गुरूद्वारा है 









भीमाशंकर

12ज्योतिर्लिंग में भीमाशंकर छठे नंबर पर है। भीमाशंकर मतलब डमरू वाले देवता का मंदिर। कहा जाता है कि शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए भीमकाय शरीर धारण किया। इसलिए उनका नाम भीमाशंकर पड़ गया। महाराष्ट्र के भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।









शिव युद्ध के बाद उनके शरीर से पानी का प्रवाह निकला जिससे भीमा नदी का उदगम हुआ। मंदिर के बगल में ही भीमा नदी का उदगम स्थल देखा जा सकता है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार पहुंचने के बाद आपको मंदिर के  गर्भगृह तक जाने के लिए सैकड़ो सीढ़ियां उतरनी पड़ती है।
पूरा मंदिर काले रंग के पत्थरों से बना हुआ है। मंदिर मुख्यतः नागर शैली में बना हुआ है। मंदिर में कहीं-कहीं इंडो-आर्यन शैली की झलक भी देखी जा सकती है।
 पेशवाओं के दीवान नाना फडणवीस ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। साथ ही मंदिर के पास दो कुंड बनवाए। पुणे के चिमणजी नाइक ने मंदिर के पास एक सभामंडप का निर्माण कराया। मंदिर परिसर में विष्णु की दशावतार की मूर्तियां भी देखी जा सकती हैं।



मंदिर परिसर में प्रसाद के रुप में शुद्ध घी में बना हुआ पेड़ा मिलता है। पुणे से दूरी 120 K.M
त्र्यंबकेश्वर
यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरूहोती है। भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है। धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती 


घृष्णेश्वर मन्दिर
औरंगाबाद के समीप( 29 किलोमीटर ) ज्योर्तिलिंगों की सूची में ये 12वां और आखिरी है।  इस मंदिर का जीर्णोद्धार 16 शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा मालोजी राजे भोंसले  द्वारा कराया गया। 18th A.D में   इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा भव्य रूप प्रदान किया गया। एलोरा की प्रसिद्ध गुफाओं  की दूरी महज आधा किलोमीटर है। इसे घुश्मेश्वर,घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। 
मंदिर में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं।  गर्भ गृह  गहराई में है। गर्भगृह में जाने वाले पुरुषों को कमर के ऊपर का वस्त्र उतारना पड़ता है। मंदिर परिसर के अंदर फोटोग्राफी प्रतिबंधित है।
  सुधर्मा नामक ब्राह्मण पत्नी सुदेहा के साथ रहता था।  उन्हें कोई संतान नहीं थी।  सुदेहा ने सुधर्मा को दूसरा विवाह अपनी छोटी बहन से करने को कहावह पत्नी की छोटी बहन घुश्मा से विवाह कर ले आए। घुश्मा भगवान शंकर की भक्त भी थी। उसे एक सुंदर पुत्र हुआ। पर ईष्या वश सुदेहा ने पुत्र को मार डाला मगर परम शिवभक्त सती धुश्मा के आराध्य शिव ने उसे पुनर्जीवित कर दिया और स्वयं घुश्मेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुए।




औंधा नागनाथ

नांदेड़ से 50 K.M  दूर है मान्यता है की इसका निर्माण पांडवो ने किया था कथा अनुसार एक बार भगत नाम देव मंदिर के बाहर बैठ प्रभु के भजन गए रहे थे पंडितो ने उनको बाहर जा कर गाने को कहा वो मंदिर के पिछली तरफ जा कर गाने लगे धीरे धीरे सारा मंदिर घूम गया तब पंडितो ने उनसे माफ़ी मांगी यह मंदिर पश्चिम मुखी है 13 A,D  मैं बने इस मंदिर की वास्तु शैली हेम दम्पति है गर्भा ग्रह जे अन्दर भी तहखाने मैं शिव लिंग है बड़ी मुश्किल से एक आदमी एक वकत पे अन्दर जा सकता है मंदिर मैं अन्य 12 मंदिर है 2 कुंड है नक्काशी बहुत ही खूबसूरत है






यह ज्योति लिंग है या नहीं ये मैं पक्की तरह से नहीं जानता स्थानीय लोग इसे ज्योति लिंग ही कहते है परन्तु मेरी जानकारी मैं यह सच नहीं है





























3- महाकालेश्वर   ==यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर की पूजा आयु वृद्धि  के लिए की जाती है।
5- केदारनाथ
केदारनाथ उत्तराखंड में 3584 मीटर की ऊँचाई पर  स्थित है   केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है
7- काशी विश्वनाथ
विश्वनाथ काशी नामक स्थान पर स्थित है।
9- वैद्यनाथ
श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।
11- रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुरं नामक स्थान में स्थित है। ज्योतिर्लिंगों साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। मान्यता है इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना  भगवान श्रीराम ने की थी। इस कारण रामेश्वरम कहा जाता है ।

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